High density or Intensive farming of Fruit trees

भारतवर्ष में जनसंख्या वृध्दि के साथ साथ फल उत्पादन भी बढ़ रहा है, लेकिन फल उत्पादन में द्वितीय स्थान होने के बावजूद भी प्रति व्यक्ति फलों की उपलब्धता केवल 80 ग्राम प्रतिदिन है। प्रति व्यक्ति फलों की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए क्षेत्रफल का बढ़ाना बहुत ही मुश्किल काम है

लेकिन फल उत्पादन को हम निम्न तरीके से बढ़ा सकते हैं जैसे अधिक उपज वाली किस्में लगाकर, समय के साथ कटाई, छंटाई व अन्य, फल वृक्षों की रोग तथा किटाणुओं के प्रति प्रबन्धन तथा सघन खेती से भी हम फल उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

सघन खेती से हमारा अभिप्राय किसी क्षेत्र में फल वृक्षों की संख्या बढ़ाना है जिससे हमें अधिक फल उत्पादन मिल सके। सघन खेती में फल वृक्ष की शाखाओं का क्षेत्र कम करते हैं क्योंकि फल वृक्षों में मुख्यत: बाहरी एक मीटर तक की शाखाओं पर ही फल आते हैं।

फल वृक्षों में टहनियों का धन्तव ज्यादा होने के कारण एक मीटर से अन्दर का बहुत क्षेत्र फल रहित रह जाता हैं क्योंकि वृक्ष के अन्दर वाले क्षेत्र में सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती। इसलिए छोटे वृक्षों में फल उत्पादित क्षेत्र ज्यादा होता है।

Intensive farming of Fruit trees

सघन खेती के लिए ध्यान रखने योग्य बातें

छोटी किस्म के फल वृक्षों को लगाना चाहिए

फल वृक्षों में कम वृद्वि होनी चाहिए

मूलवृन्त ऐसा होना चाहिए जो छोटा पौधा दे सकें।

वृक्षों की वृध्दि रोकने के लिए वृध्दि रोधक हारमोन का प्रयोग करना चाहिए।

समय के साथ साथ टहनियों की कटाई व छंटाई करते रहने चाहिए।

 दस से बारह वर्ष बाद अगर सघन खेती में टहनिया तथा जड़ आपस में उलझने लगें तो हम बीच में एक लाईन पेड़ो की काट सकते हैं। जैसे कि दशहरी आम में

सघन खेती के लिए कुछ सिफारिश

(उष्ण कटिबन्ध तथा समउष्णकटिबन्ध क्षेत्र के लिए)

फल वृक्ष    किस्म       वृक्षों की संख्या
आम  आम्रपाली  दशहरी   1600 पौधें / है.1300 पौधें / है  
केला   उवारफ कवेन्डिश  रोबस्टा    6944 पौधें/ है
अनानाश    किव    63000 पौधें/ है
पपीता  पुसा नन्हा, 6400 पौधें/ है

 

 पपीते की सघन खेती

मूलवृन्त का चुनाव

किन्नू के लिए - सिटरेंज (2990 पौधे/है.)

अमरूद में अलाहाबाद सफेदा के लिए - अनुपलोइड नं. 82 (1076 पौधे/है.)

सघन खेती के फायदे

  1. सघन खेती में फल वृक्ष का आकार छोटा होने के कारण वृक्ष का कुल उत्पादित क्षेत्र बढ़ जाता है तथा इसके साथ साथ प्राकृतिक संसाधनों का भी अधिकतम उपयोग होता है जैसे धूप, जमीन, पानी आदि जो कि प्रति क्षेत्र उपज बढाने में सहायता करते हैं
  2. सघन खेती में प्रति वृक्ष अधिक उत्पादित क्षेत्र होने के कारण प्रति क्षेत्रफल उत्पादन भी बढ़ जाता हैं जो कि हमारा मुख्य लक्ष्य है।
  3. सघन खेती में छोटे वृक्ष होने के कारण अनउत्पादित समय भी घट जाता है। जिससे पौधे जल्दी उत्पादन देना शुरू कर देते हैं।
  4. पौधों का आकार छोटा होने के कारण पौधों की कटाई, छंटाई, तुड़ाई के साथ साथ-साथ स्प्रे आदि करना भी आसान हो जाता है जिससे कि फल उत्पादन का खर्चा घट जाता हैं।
  5. पौधों का आकार छोटे होने के कारण सूर्य की किरणें पौधें की गहराई तक जाती हैं जिससे की अधिकतम प्रकाश संश्लेषण होता है जोकि फलों की गुणवता को बढ़ाता हैं।
  6. छोटे आकार के पौधें होने खाद तथा पानी का भी अधिकतम उपयोग हो जाता है।

सघन खेती के नुकसान

  1. ज्यादा धूप पड़ने के समय फलों पर जलन हो सकती हैं
  2. कभी कभी फलों का आकार भी थोड़ा सा छोटा रहा जाता है।
  3. 10-12 वर्ष बाद पौधें की टहनियां तथा जड़ आपस में उलझ सकती हैं।

 


Authors:

सतपाल बलौदा, रामकिशन शर्मा, श्वेता मलिक, और जितराम शर्मा

उद्यान विभाग, कृषि महाविद्यालय,

चौ. च. सिं. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय,

हिसार, हरियाणा-125 004

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