ताप-संरक्षक (थर्मो-प्रोटेक्टेंट): मूँग में उच्च तापमान सहनशीलता और उपज बढ़ाने के लिए बूस्टर खुराक 

सभी दालों में, मूँग का जल्दी परिपक्व,  उच्च दैनिक उत्पादकता और बहुउपयोगी होने के कारण, एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हमारे देश के कुल दाल उत्पादन में मूँग का योगदान 11% है। मूँग एक पौष्टिक अनाज है जो पूरे भारत में अनाज आधारित आहार का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

मूँग का पौष्टिक मूल्य इसके उच्च और आसानी से पचने योग्य प्रोटीन में निहित है। मूँग आम तौर पर गर्म मौसम की फसल है जिसमें बुवाई से लेकर परिपक्वता तक गर्मियों में 60-65 दिनों की आवश्यकता होती है।

मूँग गर्म मौसम की फसल होने के कारण अपनी अधिकांश वृद्धि अवधि के दौरान उच्च तापमान के प्रति अपेक्षाकृत अच्छी सहनशीलता दिखाती है। लेकिन, जब मूँग का  प्रजनन अवधि गर्मी के मौसम के दौरान असामान्य रूप से उच्च तापमान (> 40 ℃) के साथ संयोग होता है , तो इसपर  गर्मी  का प्रभाव गंभीर होता है।

मूँग की वृद्धि  के लिए इष्टतम तापमान सीमा 27°C से 35°C के बीच होता है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग (भूमंडलीय तापमान वृद्धि) के कारण, हाल ही में अत्यधिक उच्च तापमान (> 45 ℃) के लगातार और अप्रत्याशित घटना देखी जा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट, में कहा है कि पृथ्वी की औसत सतह का तापमान 2040 तक 1.5 ℃ बढ़ने की उम्मीद है। गर्मी के मौसम के दौरान जब मूँग की फसल प्रजनन स्तर पर असामान्य रूप से उच्च तापमान का अनुभव करती है, तो इसका परिणाम प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों (ROS) उत्पादन, प्रकाश संश्लेषक क्षति, पराग की अदृश्यता, फूल और फली झड़ना और अंततः खराब उपज और गुणवत्ता में होता है।

गर्मी की फसल के लिए मूँग की बुवाई करनी चाहिए अंतिम फसल के तुरंत बाद। ग्रीष्म मूँग की बुवाई के लिए मार्च का पहला पखवाड़ा सबसे उपयुक्त होता है, जबकि 10 अप्रैल के बाद बुवाई से बचना चाहिए क्योंकि इससे फूल आने का समय बहुत अधिक तापमान के साथ हो सकता है।

आमतौर पर, उच्च तापमान तनाव के तहत, मूँग जीवन अवस्थाएँ  (फेनोलॉजी) तेज हो जाती है जिससे पत्ती क्षेत्र, प्रकाश संश्लेषण, जैव सार (बायोमास) , फूल, फली और पैदावार में काफी कमी आती है।

पादप हार्मोन (सैलिसिलिक एसिड, एब्सिसिक एसिड, आदि), संकेतिक (सिग्नलिंग) अणु (जीएबीए, पॉलीमाइन, कैल्शियम, आदि), परासणक (ऑस्मोलाइट्स) (प्रोलाइन, ग्लाइसिन बीटाइन  , ट्रेहलोस) के रूप में कुछ ताप-संरक्षक  यौगिकों का अनुप्रयोग, उच्च तापमान तनाव के तहत पौधों के लिए अत्यधिक लाभप्रद बताया गया है।

इन जैविक अणु  में मुख्य रूप से एंटीऑक्सिडेंट और विकास उत्तेज क्षमताएं होती हैं, जिससे वे ताप-संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं । इन ताप-संरक्षक पदार्थों के बहिर्जात अनुप्रयोग से मूँग में गर्मी सहनशीलता और उपज में वृद्धि होती है।

ये ताप-संरक्षक एंटीऑक्सिडेंट तंत्र के अप-विनियमन, परासरणीय  समायोजन, रेडॉक्स होमियोस्टेसिस को बनाए रखने और पौधे के बेहतर कामकाज को बढाकर  करके प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों (आरओएस) को विषैला मुक्त  करके उच्च तापमान के हानिकारक प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ताप-संरक्षक (थर्मो-प्रोटेक्टेंट) के रूप में कुछ महत्वपूर्ण जैवनियामक अणुओ की भूमिका

कुछ ताप-संरक्षक अणुओं का अनुप्रयोग उच्च तापमान प्रतिकूल परिस्थितियों में पौधों को एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। मूँग में ताप-संरक्षक के रूप में कुछ महत्वपूर्ण जैवनियामक अणुओ की भूमिका नीचे संक्षेप में दी गई है।

पादप हार्मोन

पादप होर्मोन ताप-संरक्षक के रूप में एक आशापूर्ण भूमिका निभाते हैं और परासणक (ऑस्मोलाइट्स) को विनियमित करके, एंटीऑक्सिडेंट क्षमता में सुधार और तनाव से संबंधित जीन विनियमन को संशोधित करके और प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों (ROS) को विषैला मुक्त  करके गर्मी सहिष्णुता में सुधार करते हैं । मूँग में महत्वपूर्ण पादप वृद्धि नियामकों के उल्लेखनीय प्रभाव इस प्रकार हैं:

पादप हार्मोन

दर (पीपीएम)

सहनशीलता/ उपज में सुधार का कारण

सलिसीक्लिक एसिड

69

लिपिड पेरोक्सीडेशन में कमी,

सुपरऑक्साइड डिसम्यूटे(एसओडी) गतिविधि, ग्लूटाथियोन सामग्री और उत्प्रेरित गतिविधि में वृद्धि

जिबरेलिक एसिड

34.6

β-एमाइलेज गतिविधि में वृद्धि, पौधों की वृद्धि और रक्षा में सुधार

परासणक   (ऑस्मोलाइट्स)

प्रोलाइन, ग्लाइसिन बीटाइन और ट्रेहलोस जैसे परासणक उच्च तापमान तनाव सहित कई अजैविक तनावों के तहत जमा होते हैं। ये परासणक  बेहतर अस्तित्व के लिए पौधों के एक प्रसिद्ध अनुकूली तंत्र में भाग लेते हैं।

आज तक मूँग की एक भी गर्मी-सहिष्णु किस्म उपलब्ध नहीं है, और उपलब्ध गर्मी-संवेदनशील किस्मों में इन अणुओं को जमा करने की क्षमता नहीं है। ऐसी किस्मों में परासणक के बहिर्जात अनुप्रयोग द्वारा गर्मी सहनशीलता में सुधार किया जा सकता है।

परासणक

दर (पीपीएम)

सहनशीलता/ उपज में सुधार का कारण

प्रोलाइन

575

बढ़ी हुई पत्ती जल स्थिति, क्लोरोफिल, कार्बन निर्धारण और आत्मसात क्षमता के माध्यम से पराग उर्वरता, वर्तिका तथा अंडाशय को बढ़ाना

संकेतिक (सिग्नलिंग) अणु

पॉलीमाइन, गैर-प्रोटीन अमीनो एसिड, थियोल आदि जैसे विभिन्न जैवनियामक अणु  झिल्ली अखंडता, प्रोटीन और एंजाइम परिसरों की संरचना और रेडॉक्स क्षमता को बनाए रखते हुए गर्मी के तनाव के तहत पौधे की रक्षा करते हैं। कुछ महत्वपूर्ण संकेतक यौगिक तथा तापीय सहिष्णुता प्रदान करने में उनकी भूमिका इस प्रकार है।

संकेतिक अणु

दर (पीपीएम)

सहनशीलता/ उपज में सुधार का कारण

γ-एमिनोब्यूट्रिक एसिड

103.12

पत्ती के पानी की स्थिति में सुधार, फली की संख्या (28%) और बीज वजन (27%) प्रति पौधा और कम कोशिका झिल्ली क्षति

ग्लूटेथिओन

153.66

एंटीऑक्सीडेंट रक्षा प्रणाली और ग्लाइऑक्सालेज़ सिस्टम में सुधार

स्परमाइन

40.47

ऑस्मोरग्यूलेशन, एंटीऑक्सीडेंट एंजाइम गतिविधि और ग्लाइऑक्सालेज़ सिस्टम में सुधार

एस्कॉर्बिक एसिड

8.80

बढ़ती क्लोरोफिल गतिविधि, पत्ती जल की स्थिति, एएससी/जीएसएच मार्ग

इसी तरह, कई अन्य जैवनियामक अणुओ (थायोयूरिया, कैल्शियम नाइट्रेट, ट्रिप्टोफैन, आदि) के बहिर्जात अनुप्रयोगों को विभिन्न अन्य फसलों में गर्मी के तनाव के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए विश्वसनीय बताया गया था, लेकिन उच्च तापमान तनाव के तहत मूँग में ताप-संरक्षक का पता लगाया जाना बाकी है।

इस प्रकार, उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि ताप-संरक्षकमें, मूँग को उच्च तापमान के हानिकारक प्रभावों से बचाने और ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में उनके ताप सहन-सिलता  और उपज में सुधार करने की क्षमता है।

उपसंहार

आज ग्लोबल वार्मिंग (भूमंडलीय तापमान वृद्धि) इस सदी के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है। उच्च तापमान तनाव वृद्धि और विकास से जुड़ी विभिन्न शारीरिक और जैव रासायनिक विशेषताओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और प्रजनन अक्षमता को निर्धारित करता है।

आज तक, मूँग की कोई गर्मी-सहिष्णु किस्म उपलब्ध नहीं है, इसलिए ताप-संरक्षक यौगिकों का बहिर्जात अनुप्रयोग बेहतर उपज के लिए मूँग की फसल के जीवित रहने और गर्मी के तनाव की स्थिति में प्रेरित ताप-सहिष्णुता के प्रबंधन के लिए एक प्रभावी विकल्प है।

इस दिशा से संबंधित आगे के अध्ययन की आवश्यकता है जिसका उपयोग मूँग में कुशल उच्च तापमान प्रबंधन के लिए अधिक प्रभावी रणनीति बनाने के लिए किया जा सकता है।


Authors:

रक्तिम मित्रा1 और डॉ. प्रमोद कुमार1

1पादप कार्यिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-12

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