Management of Whitegrub in Kharif Crops

सफ़ेद लट (whitegrub) खरीफ की फसलों जैसे मूंगफली, मूंग, मोठ, बाजरा, सब्जियों इत्यादि पौधों की जड़ो को काटकर हानि पहुँचती है।

ये मूंगफली जैसी मुसला जड़ो वाली फसलों में,  बाजरा जैसे झकड़ा जड़ वाली फसलों की अपेक्षा अधिक नुकसान करती है । राजस्थान के हल्के बालू मिटटी वाले क्षेत्रो में होलोट्राइकिया नामक भृंगो की सफ़ेद लटें अत्यधिक हानि करती है ।

सफ़ेद लट का जीवन चक्र

राजस्थान के हल्के बालू मिटटी वाले क्षेत्रो में होलोट्राइकिया नामक भृंगो की सफ़ेद लटें एक वर्ष में केवल एक ही पीढ़ी पूरी करती है । मानसून अथवा मानसून पूर्व की पहली अच्छी वर्षा के पश्चात इस किट के भृंग सांयकाल गोधूलि वेला के समय प्रतिदिन भूमि से बाहर निकलते है| 

सूर्य के तीव्र प्रकाश में यह भृंग भूमि से बाहर नहीं निकलते| मादा भृंग समागम के 3-4 दिन पश्चात गीली मिटटी में लगभग 10 सेमि गहराई पर अंडे देना शुरू कर देती है परन्तु यह सारे अंडे एक साथ न देकर थोड़े थोड़े अंडे 4-5 सप्ताह तक देती रहती है

अंडो में से 7-13 दिन पश्चात छोटी लटें निकलनी प्रारम्भ हो जाती है  जो निम्न प्रकार से है-

प्रथम अवस्था की लट 15 मिलीमीटर लम्बी होती है । यह अवस्था 2 सप्ताह तक रहती है

द्वितीय अवस्था की लट 35 मिलीमीटर लम्बी होती है । यह अवस्था 4-5 सप्ताह तक रहती है

तृतीय व् अंतिम अवस्था की लट 41 मिलीमीटर लम्बी होती है  यह अवस्था 6-8 सप्ताह तक रहती है।

सफ़ेद लट दूसरी व् तीसरी अवस्थाए पौधों की बड़ी जड़ो को काटती  है और अधिक नुक्सान करती है । इस प्रकार लट का पूर्ण समयकाल करीब 12-14 सप्ताह का होता है। जिसके अंतर्गत यह जुलाई से मध्य अक्टूबर तक पौधों की जड़ो को खाती है।

इसके पश्चात यह लटें भूमि में गहराई में चली जाती है और करीब 40-70 सेमि गहराई पर शंकु में परिवर्तित हो जाती है । शंकु से लगभग 2 सप्ताह में प्रौढ़ निकल आते है और प्रौढ़ निष्क्रय अवस्था में अगली आने वाली वर्षो तक भूमि में पड़े रहते है ।

इस विनाशकारी कीट के प्रकोप से खरीफ की फसलों की रक्षा के उपाय केवल दो ही परिस्थितियों में किये जा सकते है पहली जब यह कीट वयस्क (भृंग) अवस्था में हो और दूसरी जब यह लट की प्रथम अवस्था में हो।

इस कीट के अनोखे जीवन चक्र (साल में एक ही पीढ़ी) के कारण यह दोनों ही अवस्थाए साल में केवल एक बार ही आती है और वो भी बहुत कम समय के लिए। इसलिये यह अत्यंत आवश्यक है की इसी समय पर कीट नियंत्रण के उपयुक्त उपाय किये जाए

यदि समय पर उपयुक्त उपाय नहीं किये गये तो फसल को नुक़सान के साथ साथ सफ़ेद लट पर नियंत्रण के वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे सफ़ेद लट के कारगर उपाय के लिए किसान नीचे दिए गए निम्न बिन्दुओ का ध्यान अत्यंत आवश्यक रूप से रखे-

  • सही कीटनाशी रसायन का चयन
  • सही कीटनाशी रसायन की उपयुक्त मात्रा में प्रयोग
  • नियंत्रण की उपयुक्त जैविक कृषि यन्त्रिक विधियों का चयन व् समय पर प्रयोग करना  

कीटनाशी रसायन का चयन व् छिड़कने की विधि: 

मानसून या मानसून पूर्व की पहली वर्षा के बाद भृंग प्रति दिन संध्या के निश्चित समय भूमि से बाहर निकलकर पौड़ी वृक्षों (बेर, खेजड़ी, नीम, गूलर, सेंजना एवं अमरुद आदि) पर जाकर बैठते है, यही समय होता है जब भृंगो का नियंत्रण किया जाना चाहिए।

इसके लिए पहली वर्षा के तुरंत बाद सभी पौड़ी वृक्षों पर छिड़काव न कर खेत के हर 20 मीटर अर्धव्यास क्षेत्र में केवल एक पेड़ का चुनाव करे। इस चुने गए पेड़ पर मिथोक्सी बेंजीन (एनीसोल) के नाम से बाजार में उपलब्ध फेरोमोने ट्रैैैप का इस्तेमाल करे ।

15 मीटर के एक पेड़ पर एनीसोल पाश स्पंज में 3 मिली प्रति स्पंज 3 लीटर प्रति पेड़ तीन पहली वर्षा के बाद फेके  यह क्रम 3 – 4 दिन तक करे  व इन पेड़ो पर मोनोक्रोतोफोस 0.04 प्रतिसत का  छिडकाव भी करे। भ्र्न्गो का निकलना 4-5 दिन तक चलता रहता हे।

फेरोमोन ट्रैप टाँगे गए पौड़ी वृक्षों पर ही भृंग आकर्षित होंगे इस लिए किसान केवल इन्ही वृक्षों पर कीटनाशी का छिड़काव करे। 

इमिडाक्लोप्रिड  17.8 एस.एल. 1-5 मिली प्रति लीटर पानी अथवा कार्बरील 50 डब्लू. पि. 400 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा क्यूनालफॉस 25ई.सी. 200 मिली प्रति लीटर पानी का छिड़काव करे

बीजोपचार से सफ़ेद लट नियंत्रण:

बीजोपचार करने से भी सफ़ेद लट का नियंत्रण किया जा सकता है।  मूंगफली में किसान सफ़ेद लट के प्रकोप से बचाने के लिए 80 किलो गुली को इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 240 मिली (300 मिली प्रति किलोग्राम बीज) या क्लोथियनिडीन (डंटोट्स) 50 डब्लू.डी.जी. 160 मिलीग्राम (200 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम बीज)  से उपचारित करें


 Authors:

हँसराज शिवरान 

सीनियर रिसर्च फेलो, कृषि अनुसधान केंद्र

स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर

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