पशुओं में प्रजनन सम्बन्धी रोग एवं प्रवंधन 

पशुपालन को लाभकारी बनाने के लिए पशुओं में होने वाली प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं का प्रवंधन अति आवश्यक है। प्रजनन सम्बन्धी प्रमुख समस्याओं में पशु का समय पर  हीट में  न आना (एनेस्ट्रस), बार बार कित्रिम गर्भाधान के बाद भी गर्भ धारण नहीं होना (रिपीट ब्रीडिंग), बच्चेदानी में सूजन होना, उसमे मवाद का भर जाना, प्रसव के दौरान बच्चा फँस जाना, जेर का समय से न गिरना, गर्भावस्था के शुरुवात में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाना, गर्भपात हो जाना इत्यादि शामिल है।

विदेशी नस्ल की गायों (जैसे जर्सी, होल्सटीन फ़्रिसियन आदि) में प्रजनन सम्बन्धी समस्याएँ देसी नस्ल की गायों (जैसे साहीवाल, गिर, थारपारकर आदि) की तुलना में अधिक पायी जाती है। काफी उम्र हो जाने  के बाद भी जब पशु हीट (मद) में नहीं आते तो इस अवस्था को एनेस्ट्रस बोलते है। एनेस्ट्रस का मतलब पशु का हीट में नहीं आना होता है। आम तौर पर जब कोई गाय अपने परिपक्व वजन का ६०-६५ % प्राप्त कर लेती है तो उसे हीट में आ जाना चाहिए।

प्रथम सफल गर्भधारण की उम्र सामान्यतया देशी गायों में 2७-३० महीने, विदेशी गायों में १५-२० महीने तथा भैसों में ३०-३६ महीने होती है जो उसकी नस्ल, खान- पान, मौसम आदि कई चीजों पर निर्भर करती है। प्रसव के बाद गाय या भैंस को डेढ़ से दो महीने में हीट  में आ जाना चाहिए परन्तु कुछ पशु कभी कभी कई महीनो तक हीट में नहीं आते है। किसी पशु को एनेस्ट्रस पशु कहने से पहले यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है की उसके हीट की निगरानी, निरिक्षण एवं पहचान, ठीक से की गयी है या नहीं।

पशुपालक के लिए एह आवश्यक है की उसे हीट के लक्षण ठीक से पता हो। इसके लिए हर पशु का रिकॉर्ड रखना चाहिए जिसमे अन्य विवरणों के साथ उसकी जन्म तिथि, ब्यांत की तिथि, उसका भार भी शामिल हो जिससे उसकी हीट में आने की तिथि अनुमानित की जा सके ताकि उस दौरान उस पशु की हीट के लिए ठीक से निरिक्षण या पहचान किया जा सके। गाय एवं भैंस का मदचक्रकाल औसतन २१ दिनों का होता है. तथा गर्भधारण नहीं होने पर २१ दिनों बाद पुनः हीट में आते है।

पशुओं के हीट की अवस्था में योनी से स्वच्छ लसलसा पदार्थ (तार) का निकलना, बार बार मूत्र त्याग करना, योनी का फूल जाना एवं गुलाबी हो जाना, बार बार रम्भाना, दुसरे पशुओं से थोडा अलग या दूर रहना, थनों का फूल जाना, खाना कम कर देना, दूध में गिरावट होना, चौकन्ना रहना, दुसरे पशुओं के ऊपर चढने की कोशिश करना, किसी अन्य पशु का उसके ऊपर चढ़ने पर कोई प्रतिरोध ब्यक्त नहीं करना (यह सबसे उत्तम लक्षण है तथा इस समय गाय स्टैंडिंग हीट में होती है तथा कित्रिम गर्भाधान के लिए उपयुक्त समय होता है) इत्यादि प्रमुख लक्षण शामिल है।

परन्तु हीट के समय ये सारे लक्षण ठीक से प्रदर्शित हों ऐसा आवश्यक नहीं है, हो सकता है हीट के समय इनमे से कुछ लक्षण प्रदर्शित न भी हों। भैसें हीट की अवस्था में एक दुसरे के ऊपर नहीं चढ़ती तथा प्रायः चिपचिपा पदार्थ या तार योनी से लटकता नहीं बल्कि एकायक गिर जाता है जिससे कई बार पशुपालक नोटिस नहीं कर पाता। पशुपालक को हीट की पहचान बिलकुल सुबह भोर में या शाम को करनी चाहिए क्योंकि इस समय हीट के लक्षण अच्छे से परिलक्षित होते हैं। हीट की पहचान के लिए टीज़र बुलका प्रयोग करना चाहिए। टीज़र बुल में आपरेशन करवाते है जिससे वो गाय या भैंस में हीट की पहचान में मदद करता है परन्तु वो उसे गर्भित नहीं कर सकता।

एनेस्ट्रस के कई सारे कारण होते है जिसमे आनुवंशिक कारण, पोषण की कमी, अंडाशय का ठीक से विकसित नहीं होना, उचित हॉर्मोन का उचित मात्रा में न निकलना, जनन अंग में संक्रमण होना, पशु में अत्यधिक आतंरिक अथवा वाह्य परजीवी का होना, दूसरी बिमारियों का होना, शारीर का वजन काफी कम होने के बाद भी दूध का देते रहना, अत्यधिक गर्म एवं आर्द्र मौसम का होना, मिनरल एवं विटामिन की कमी होना आदि कारण शामिल है।

पशुपालक को पशु के पोषण का विशेष ध्यान देना चाहिए, आहार में मिनरल मिश्रण एवं विटामिन भी शामिल करना चाहिए। दुग्ध उत्पादकता के अनुरूप संतुलित आहार देना चाहिए। कभी कभी बछड़े को थन से दूध पिलाने के कारण भी पशु समय से हीट में नहीं आता है जिससे बचने के लिए बछड़े की वीनिंग कर देते हैं जिसमें बछड़े को माँ के थन से दूध न पिलाकर अलग से दूध पिलाते है। यदि गर्भावस्था काल से ही ठीक से पशु का पोषण नहीं करते तो उसके समय पर हीट में आने की उम्मीद करना उचित नहीं होगा।

पशु एवं उसके आस पास स्वच्छता का ध्यान देना चाहिए। समय समय पर परजीवी या कीड़े की दवा देनी चाहिए। इससे एनेस्ट्रस होने की संभावना कम हो जाती है तथा एनेस्ट्रस होने पर पशुचिकित्शक से परामर्श लेनी चाहिए।

पशुओं के प्रजनन सम्बन्धी रोगों में रिपीट ब्रीडिंग एक बड़ी समस्या होती है। सामान्यतया जब कोई गाय या भैंस तीन या अधिक बार के प्राकृतिक या कित्रिम गर्भाधान (ए.आई.) के पश्चात् भी गर्भ धारण नहीं करती तो उसे रिपीट ब्रीडिंग की श्रेणी में रखते है।

रिपीट ब्रीडिंग होने के कई कारण होते है जैसे प्रजनन अंगों में विकृति, शुक्राणु या अंडाणु में विकृति, आनुवंशिक कारण, आहार में पर्याप्त पोषक तत्वों एवं  खनिज लवणों की कमी, उचित हॉर्मोन का उचित समय पर उचित मात्रा में न निकलना, अत्यधिक गर्म एवं आर्द्र मौसम का होना, संक्रमण होना, दोषपूर्ण कित्रिम गर्भाधान इत्यादि।

गाय एवं भैंस का मदकाल (हीट पीरियड) १२ से १८ घंटे का होता है तथा उसके अंडाशय से अंडाणु हीट पीरियड समाप्त होने के लगभग १२ घंटे बाद निकालता है।  अंडाणु का जीवन काल लगभग १०-१८ घंटे का होता है तथा शुक्राणु का जीवन काल लगभग २४ घंटे (१-२ दिन) का होता है।

निषेचन होने तथा भ्रूण बनाने के लिए अंडाणु तथा शुक्राणु का जीवित एवं स्वस्थ रहना जरुरी है अतः स्वस्थ गर्भाधान के लिए आवश्यक है की पशु में कित्रिम गर्भाधान हीट के लक्षण शुरू होने के १२ घंटे बाद करवाएं तथा उसके ८-१० घंटे बाद दुबारा कित्रिम गर्भाधान (ए.आई.) कराएं जिससे उसके गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है। हमेशा प्रशिक्षित ब्यक्ति से ही (ए.आई.) कराएं। वीर्य स्ट्रा को नाइट्रोजन सिलिंडर से निकालने के तुरंत बाद हलके गुनगुने पानी (३७0C) में ३० सेकंड रखने के बाद ही उसे गर्भाशय में छोड़ना चाहिए तथा ए.आई करने वाले को वीर्य के स्ट्रॉ को मान्यताप्राप्त केंद्र से ही लेना चाहिए तथा वीर्य के स्ट्रॉ का कोल्ड चेन और शितक्रम बना रहना चाहिए अन्यथा शुक्राणुओं के मृत्यु का खतरा बना रहता है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान उच्च होता है तथा मौसम भी आर्द्र होता है रिपीट ब्रीडिंगकी संभावना ज्यादा होती है। भैसों में यह समस्या और भी गंभीर होती है क्योकि काले रंग, कम बाल एवं कम पसीने की ग्रन्थिओं के कारण उनमे गर्मी का प्रभाव ज्यादा होता है। गर्मी के मौसम में नर भैंसों के वीर्य की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है तथा असामान्य तथा मृत शुक्राणुओं का प्रतिशत भी बढ़ जाता है जिससे गर्भधारण के प्रतिशतता में कमी आ जाती है तथा भ्रूण के मृत्यु का भी खतरा रहता है। इसलिए गर्मी के मौसम में पशु को पर्याप्त ठंडा पानी दें, भैंसों को तालाब अथवा नहर में छोड़ें, पशु को  दिन में दो बार नहलायें।

पशु के बांधने की जगह पर हवा का पर्याप्त प्रवाह होना चाहिए। पशुशाला में पंखे, कूलर, फौगर या स्प्रिंकलर  की ब्यवस्था लाभकारी होती है। पशु को पेड़ के नीचे जहाँ पर्याप्त छाया हो वहां बाधना चाहिए। गर्मी के मौसम में सीधी धूप पशु के लिए हानिकारक हो सकती है अतः पशु को चरने के लिए दोपहर में खुली धूप में नहीं छोड़ना चाहिए तथा गर्मियों में प्रायः पशु दोपहर में अच्छे से नहीं खाते अतः चारा सुबह या शाम को देना चाहिए।

गर्मियों में हरे चारे की कमी को देखते हुए चारे का साईलेज  बनाकर रखना चाहिए जो हरे चारे की कमी को पूरा कर देता है। गर्मी के समय में पशुओं को मिनरल मिश्रण जिसमे कॉपर, क्रोमियम, जिंक सोडियम पोटैशियम मिला हो तथा विटामिन (ए, सी, ई) अवश्य दें।

गर्मियो में उचित पशु प्रवंधन करने पर रिपीट ब्रीडिंग की संभावना को काफी कम किया जा सकता है। रिपीट ब्रीडिंग  की समस्या होने पर पशुचिकित्शक से परामर्श लेना चाहिए। कभी कभी प्रसव के दौरान बच्चेदानी में बछड़े की स्थिति उचित दिशा में नहीं होने के कारण  बछड़ा स्वतः बाहर नहीं निकल पाता तथा फंस जाता है ऐसी स्थिति में तुरंत पशुचिकित्शक की सहायता लेनी चाहिए तथा जबरदस्ती बछड़े को निकलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए अन्यथा बच्चेदानी में घाव होने का खतरा रहता है जिसमे संक्रमण होने पर बच्चेदानी में सूजन, मवाद तथा अन्य कई बिमारियों के होने का खतरा  बढ़ जाता है।

योनी से किसी तरह का असामान्य निर्वहन होने पर पशुचिकित्शक से परामर्श करना चाहिए। प्रसव के स्थान पर साफ सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए अन्यथा संक्रमण का खतरा रहता है जो बाद में तमाम प्रजनन सम्बन्धी बिमारियों का कारण बनती है।

गर्भावस्था के दौरान एकाएक गर्भपात होना भी एक प्रमुख समस्या है जो अनेक जीवाणुओं, विषाणुओं या अन्य कई वजह से हो सकता है। गर्भपात के पदार्थ को बहुत ही सावधानी पूर्वक दस्ताना पहनकर हैंडल करना चाहिए तथा जमींन के अंदर गाड देना चाहिए क्योंकि कुछ जीवाणु जैसे ब्रुसेल्ला की वजह से होने वाले गर्भपात, मनुष्यों को भी संक्रमित कर सकते है। ये पदार्थ मुख के द्वारा दुसरे नजदीकी पशुओं को भी संक्रमित कर सकते है।

ब्रूसीलोसिस का टीकाकरण ४-८ महीने की उम्र में करवाने से ब्रूसीलोसिस की वजह से गाय या  भैंस में होने वाले गर्भपात से बचा जा सकता है।  गाय एवं भैंसों में प्रसव के उपरांत जेर का देर से गिरना भी एक प्रमुख समस्या है।

सामान्यतया बच्चा देने के ३-८ घंटे बाद जेर  गिर जाना चाहिए परन्तु जब ये १२-२४ घंटे के बाद भी नहीं गिरता तो यह असामान्य है। इस समस्या के प्रमुख कारणों में समय से पूर्व ही बछड़े का जन्म होना, गर्भपात हो जाना, ब्यांत के समय बछड़े का फंस जाना, जननांगों में संक्रमण होना, प्रतिकूल मौसम होना, विटामिन्स (जैसे विटामीन ए, ई) एवं मिनरल्स  की कमी  (सिलिनियम) होना इत्यादि।

समय पर चिकित्सा नही करने पर जननांगों में संक्रमण, थनैला एवं अन्य प्रजनन सम्बन्धी समस्याए आ सकती है अतः पशुचिकित्शक से परामर्श करना चाहिए।


Authors:

1मनोज कुमार त्रिपाठी, 2प्रदीप कुमार रे, 3पंकज कुमार, 4अमिताभ डे 

 १.२(वैज्ञानिक), (वरिष्ठ वैज्ञानिक), (प्रधान वैज्ञानिक)

पशुधन एवं मत्स्यप्रवंधन विभाग, भा.कृ.अ.प. का पूर्वी प्रक्षेत्र, भा.कृ.अ.प. परिसर, पोस्ट- बिहार वेटरनरी कॉलेज, पटना, ८०००१४

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