अजौला: दुधारु पशुओ के लिए एक पौष्टिक आहार 

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि‍ व्यवसाय के सहायक उद्यम के रूप में पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रायः मानसून के अलावा पशुओं को फसल अवशेषों, सूखे चारें आदि खिलाया जाते है। पौष्टिक चारें के अभाव में पशुओं के विकास, उत्पादन तथा प्रजनन क्षमता में कमी आती है जिससे पशुपालक की आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

इस समस्या से उभरने के लिए पशुपालको द्वारा अजौला उगाकर पशुओं को पौष्टिक चारा खिलाया जा सकता है।

क्या है अजौला :

अजौला एक जलीय फर्न है जो छोटे-छोटे समूह के रूप में सघन हरित गुच्छे की तरह जल की सतह पर मुक्त रूप से तैरती रहती हैं। भारत में इसकी प्रजाति अजौला पिन्नाटा मुख्य रूप से पायी जाती है, जो काफी हद तक अधिक तापमान को सहन कर लेती है।

अजौला के गुण :

  • यह तीव्र गति से बढवार करती है, सामान्य अवस्था में यह फर्न तीन दिन में दोगुनी हो जाती हैं।
  • इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त तत्व होनें के कारण आसानी से पच जाती है।
  • इसकी उत्पादन लागत काफी कम होती है तथा औसतन 15 किग्रा प्रति वर्गमीटर की दर से प्रति सप्ताह उपज देती है।
  • यह पशुओं के लिए प्रतिजैविक का कार्य करती है क्योंकि इसमें प्रोटीन, आवश्यक अमीनों अम्ल, विटामिन ए व बी, कैल्सियम, फास्फोरस, पोटेशयम, आयरन, कॉपर तथा मैग्निशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के साथ-साथ इसका भूमि की उर्वरा शक्ति को बढानें हेतु हरी खाद के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।

अजौला उत्पादन तकनीकी :

  • वह कृषक जो नवीन तकनीकी को अपनाने में रूचि रखते है, स्वयं के दुधारू पशु हो तथा पानी एवं छाया की उपयुक्त व्यवस्था हो।
  • इसके लिए सर्वप्रथम 6x1x2 मीटर आकार के दो सीमेन्टेड पिट का निर्माण करें।
  • तत्पश्चात् 80-100 किग्रा छनी हुई खेत की उर्वरा मिट्टी, 5-7 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 10-15 लीटर पानी का मिश्रण बनाकर प्रत्येक पिट में समान रूप से बिछा देवें।
  • प्रत्येक पिट में कम से कम 10 सेंटीमीटर तक पानी भरना हैं तथा उर्वरा मिट्टी व गोबर की खाद को पानी में अच्छी तरह मिलावें।
  • इसके बाद प्रत्येक पिट में 2 किग्रा अजौला बीज पानी की सतह पर समान रूप से छिटके तथा ऊपर से एक लीटर पानी छिड़के, जिससे अजौला सही स्थिति में आ जावें।
  • प्रत्येक पिट को चारों तरफ से 50 प्रतिशत नाइलोन नेट से 5-6 फीट की ऊचाई रखते हुए ढक देवें।
  • 20 दिन तक अजौला को वृद्धि हेतु यथा स्थिति में छोड़ देवें, 21 वें दिन तथा आगे प्रतिदिन प्रत्येक पिट से 5 से 2.0 किग्रा अजौला प्राप्त किया जा सकता है।
  • प्रत्येक पिट से नियमित 5 से 2.0 किग्रा अजौला प्राप्त करने हेतु प्रति माह 20 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 5 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद पानी में अच्छी तरह मिला देवें।

अजौला का संधारण :

  • प्रत्येक पिट में कम से कम 10 सेंटीमीटर पानी की गहराई बनाकर रखें ।
  • प्रत्येक 3 माह बाद अजौला, मिट्टी, गोबर एवं पानी को बदल देवें तथा नये सिरे से पिट को उपरोक्तानुसार पुनः भरें एवं 21 वें दिन प्रतिदिन प्रत्येक पिट से 5 से 2.0 किग्रा अजौला प्राप्त करें।
  • अजौला पिट से निकाली गई मिट्टी, गोबर एवं पानी का मिश्रण बहुत उपजाऊ होता है, जिसे फसलों, फलदार पौधों एवं सब्जियों में ड़ालकर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।

अजौला का प्रयोग एवं मात्रा:

  • अजौला को छलनी या बांस की टोकरी से पानी के ऊपर से लेवें। पिट से प्राप्त अजौला को साफ पानी से धोवें तथा गाय, भैंस, बकरी, भेड़, मुर्गी, खरगोश एवं मछलियों को खिलावें।
  • दुधारू पशु को 0-2.5 किग्रा, भेड़ व बकरी को 200-250 ग्राम एवं मुर्गी को 30-50 ग्राम प्रतिदिन खिलावें।
  • अजौला को सूखे चारें एवं बाटें में 1:1 मिलाकर पशुओं को खिलाया जा सकता है।
  • अजौला खिलानें की शुरूआत प्रारम्भ में आधी मात्रा से करें तथा स्वाद जमने पर उपरोक्तानुसार मात्रा तक देवें।

पशुपालन व्यवसाय लघु एवं सीमान्त किसानों, ग्रामीण महिलाओं और भूमिहीन श्रमिकों को रोजगार के पर्याप्त व सुनिश्चित अवसर देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ठोस आधार प्रदान करता है। दुधारू पशु को अजौला खिलानें से 15 प्रतिशत दूध उत्पादन एवं मुर्गी में 10-15 प्रतिशत अण्डा उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे किसान की आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


Authors:

राजबाला चौधरी1 प्रिया नेगी2 रश्मि भिण्डा3  और विरेन्द्र कुमार4  

1,2 विद्या वाचस्पति, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, जयपुर (राजस्थान)

3विद्या वाचस्पति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान)  

4कृषि अधिकारी, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स

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