The use of plant regulators in gardening  

बागवानी में हार्मोन्स (पादप नियंत्रकों) का बहुत महत्व है ! फल वृक्षों में कई बार विकास की वृद्धि दर रुकने, फल एवं फूल झड़ने एवं वृद्धि कम होने की समस्या आ जाती है ! ऐसी स्थिति में कृत्रिम हार्मोन्स का उपयोग लाभकारी सिद्ध होता है ! पादप नियंत्रक पौषक तत्व न होकर कार्बनिक रसायन होते हैं जिनकी थोड़ी सी मात्रा ही पौधों की क्रियात्मक वृद्धि के लिए जिम्मेदार होती है !

हार्मोन्स का उपयोग जड़ों को विकसित करने, कलिकाओं की निष्क्रियता खत्म करने, वृद्धि जनकवृद्धि अवरोधक, पुष्पांकन का नियमितिकरण एवं नियंत्रण, बीजरहित फल प्राप्त करने, फूलों एवं फलों को झड़ने से रोकने, नर-मादा अनुपात नियंत्रण करने तथा फलों को पकाने आदि में सहायक होता है !

बागवानी में हार्मोन्स (पादप नियंत्रकों) का उपयोग

  • आम में मेलफॉरमेषन (गुच्छा विकार) की समस्या को रोकने के लिए नेफ्थलीन एसिटिक एसिड (एन.ए.ए.) को 200 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इस समस्या की रोकथाम की जा सकती है !
  • निम्बुवर्गीय वृक्षों में फल गिरने की समस्या रहती है ! इसे रोकने के लिए 2,4-डी 10 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए ! नागपूरी संतरे में परिपक्व फलों को गिरने से बचाने के लिए प्रति लीटर पानी में 200 मिलीग्राम नेफ्थलीन एसिटिक एसिड (एन.ए.ए.) का छिड़काव करना चाहिए !
  • अमरुद के वृक्ष पर लगे फूलों पर नेफ्थलीन एसिटिक एसिड (एन.ए.ए.) के 600 पी.पी.एम. सांद्रता वाले घोल का छिडकाव प्रभावी होता है !
  • अंगूर के फलों का आकार बढ़ाने के लिए जिब्रेलिक एसिड से आरम्भ में ही गुच्छे का उपचार जरूरी होता है ! पूसा सीडलेस किस्म की मंजरियों के 80 प्रतिशत फूलों के खिलने पर जिब्रेलिक एसिड 45 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से उपज में वृद्धि होती है !
  • फालसा की झाड़ी से प्राय: कम फल मिलते हैं ! परन्तु जिब्रेलिक एसिड की 60 मिलीग्राम मात्रा एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से फलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है !
  • बेर की गोला किस्म में जिब्रेलिक एसिड के 30 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करने से फल गिरने की समस्या कम होती है !
  • फलदार पौधों को पकाने के लिए इथेफोन 500 पी.पी.एम. घोल का छिडकाव करना चाहिए !
  • पौधों की कटिंग में जड़ों के विकास के लिए 500 मिलीग्राम आई.बी.ए. हार्मोन का उपयोग करना चाहिए !
  • कुष्मांड कुल की सब्जियों में मादा फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए जिब्रेलिक एसिड 10 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए !
  • मेलिक हाईड्राजाइड का उपयोग 2000 पी.पी.एम. भण्डारण में प्याज के अंकुरण को रोकने के लिए किया जाता है ! इस दवा का उपयोग प्याज की खुदाई के एक माह पूर्व करना चाहिए !
  • खजूर के फलों पर डोका अवस्था में 1 ग्राम इथ्रेल एक लीटर पानी के घोल का छिड़काव करने से फलों के आकार और वजन में सुधार होता है !
  • आलु के कंदो के अच्छे अंकुरण के लिये आलु के कंदो को 5 पी.पी.एम. जिब्रेलिन के घोल में 5 मिनट के लिये रखना लाभकारी होता है !
  • शकरकंद में कंदो की उपज बढाने के लिये ईथरेल 250 पी.पी.एम. का छिडकाव 5 बार 15 दिन के अंतराल में रोपण के बाद करना चाहिये !
  • मिर्च में फलन को बढाने तथा फूलों के झडने को रोकने के लिये नेफ्थीलीन एसिटीक अम्ल 10-25 पी.पी.एम. का छिडकाव 60 व 90 दिन के अंतराल पर रोपण के बाद करना चाहिये !
  • अन्नानास में नेफ्थीलीन एसिटीक अम्ल 5-10 पी.पी.एम. का छिडकाव करना फूलों के लिये प्रभावी साबित होता है !
  • अंगूर में गुच्छों का विरलीकरण करने के लिये 60 पी.पी.एम. जिब्रेलिन का इस्तेमाल किया जाता है !
  • टमाटर में फलों को गिरने से बचाने के लिये तथा उपज बढाने के लिये 50 पी.पी.एम. जिब्रेलिक अम्ल का छिडकाव पौध रोपण के 15 दिन बाद करना चाहिये !
  • साईकोसिल 250 पी.पी.एम. के छिडकाव से टमाटर में पत्ती मोडक विषाणु का नियंत्रण किया जा सकता है !
  • पपीते के बीजों के सही अंकुरण के लिये बीजों को 200 पी.पी.एम जिब्रेलिन से उपचारित करना चाहिये !
  • बैंगन में फलन को बढाने के लिये 2 पी.पी.एम. 2, 4–डी या ट्राईकोंटानोल का छिडकाव फूल आने के बाद की अवस्था पर करते हैं !

पादप नियंत्रकों के प्रयोग करने की विधि

पादप नियंत्रकों का पाउडर के रूप में प्रयोग –

पादप नियंत्रकों का पाउडर के रूप में अधिकतर कर्तनों को उपचारित करने में किया जाता है ! रासायनिक यौगिक की निश्चित मात्रा सैरेड़ेक्स पाउडरमें मिश्रित करके पादप नियंत्रकों का यह रूप तैयार किया जाता है ! जैसे – सैरेड़ेक्स ए तथा सैरेड़ेक्स बी मुख्य हैं !

कर्तनों के निचले सिरे को लगभग एक या दो सेंटीमीटर लम्बाई मे गीला करके हार्मोन पाऊडर मे डुबोकर घुमा दिया जाता है, जिससे पाउडर बर्तन के निचले सिरे पर चारों तरफ लग जाता है ! इसके पश्चात् तैयार किये गए माध्यम में छिद्र बनाकर कर्तनों को लगा दिया जाता है !

पादप नियंत्रकों का द्रव के रूप मे प्रयोग –

इस रूप मे पादप नियंत्रकों का प्रयोग दस पी.पी.एम. से दो हजार पी.पी.एम. तक किया जाता है ! इनको द्रवित अवस्था मे बदलने के लिए 50 प्रतिशत वाष्प पानी तथा 50 प्रतिशत शुद्ध एल्कोहल कि मिश्रित मात्रा मे घोला जाता है ! जब ये ठीक प्रकार से घुलकर मिल जाएँ तो इनका प्रयोग पौधों कि वृद्धि के लिए छिडकाव के रूप मे कर्तनों को उपचारित करने मे किया जाता है !

पादप नियंत्रकों का लेई के रूप मे प्रयोग –

पादप नियंत्रकों को इस रूप में बनाने के लिए इनकी निश्चित मात्रा एक लेई लिनोलिन में मिलाई जाती है ! इस प्रकार से इसी रूप मे इनका प्रयोग कर्तनों, गुट्टी तथा अन्य वानस्पतिक प्रसारण के तरीकों में किया जाता है ! लेई कि निश्चित मात्रा कर्तनों के निचले सिरों पर तथा गुट्टी कि वलय के उपरी भाग पर चाकू या स्पेचुला से लेप कर की जाती है !

हार्मोन्स का वाष्प के रूप मे प्रयोग

पादप नियंत्रकों क यह रूप ग्रीनहाउस में पौधों को उपचारित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है ! इसमें रासायनिक यौगिक को गर्म प्लेट के ऊपर रखा जाता है ! जिससे यह वाष्प के रूप मे बदलकर समस्त पौधों को उपचारित कर देता है ! इसको प्रयोग करते समय यह ध्यान रहे कि ग्रीनहाउस कि खिड़कियाँ एवं किवाड़ बंद होने चाहिए !

एरोसोल के रूप मे पादप नियंत्रकों का प्रयोग

इसमें घोल को एक सिलेण्डर में भर लिया जाता है ! तथा उसका सूक्ष्म छिद्र वाले नोज़ल से अधिक दबाव के साथ छिडकाव करते हैं ! जिससे द्रवीय गैस वाष्प के रूप मे बदलकर कोहरे के रूप मे छा जाती है ! फलस्वरूप ग्रीनहॉउस के सभी पौधे इसके द्वारा उपचारित हो जाते हैं !

हार्मोन्स (पादप नियंत्रकों) के उपयोग में सावधानियाँ

हार्मोन्स का उपयोग पूर्ण जानकारी एवं अनुभव के आधार पर सावधानी से किया जाये अन्यथा असावधानी के कारण तथा निर्धारित मात्रा से अधिक उपयोग करने पर नुकसानदायक भी हो सकता है !

  • पादप नियंत्रकों का उपयोग बहुतही कम मात्रा में किया जाता है ! एक पी.पी.एम. बनाने के लिये एक मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर में डालनी चाहिये !
  • फलों एवम् सब्जियों के लिये पादप नियंत्रकों कि मात्रा अलग अलग होती है ! कम व ज्यादा मात्रा गलत परिणाम दे सकती है ! अतः सही मात्रा का उपयोग करना चाहिये !
  • सीधे जल में हार्मोन्स की घुलनशीलता कम होती है ! अतः इसका घोल परिशुद्ध जल या सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन की अल्पमात्रा में घोलने के बाद जल में मिलाना चाहिए !
  • छिड़काव दोपहर में न करके सुबह या सांयकाल ही किया जाना चाहिए !
  • कलमों से जड़ों के शीघ्र विकास के लिए आई.बी.ए. या आई.ए.ए. रसायन को साधारण पाऊडर के साथ मिलाकर सूखी अवस्था में ही कलमों के निचले भाग को उपचारित कर लगाना चाहिए !

 Authors

विवेक कुमार, डॉ. एस. मुखर्जी एवं प्रियंका कुमारी जाट

राजस्थान कृषि अनुसन्धान संस्थान, दुर्गापुरा (जयपुर) 302018

श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर (राजस्थान)

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