Potato seed certification method

राष्ट्रीय बीज गुणन पोलिसी के अनुसार बीज गुणन प्रावस्थाओं को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। i) प्रजनित या मूल बीज ii) आधार बीज-I व II iii) प्रमाणित बीज ।

प्रमाणित बीज के बारे में यह माना जाता है कि यह बीज मिलावट रहित शुद्ध एवं रोग मुक्त होता है जिनमें रोग और कीटों के प्रति सहनशीलता होती है। जबकि आधार बीज-1 और आधार बीज-2 तथा प्रमाणित बीज की विषाणु रोगों, विजातीय किस्मों, कन्द जनित रोगों और ग्रेड सम्बन्धित सीमाओं का निर्धारण भारत सरकार द्वारा तय होता है।

प्रजनित बीज की माँनीटरिंग का कार्य तो प्रमाणीकरण एजेन्सियां करती हैं किन्तु यह एजेन्सियां बीज का प्रमाणीकरण नहीं करतीं। भारत वर्ष के 21 राज्यों में राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थाएं हैं जो विभिन्न फसलों के बीजों का प्रमाणीकरण करती हैं। किन्तु आलू बीज प्रमाणीकरण की एजेन्सियां हिमाचल प्रदेश, जम्मू और काश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम, मध्य प्रदेश, गंजरात, उड़ीसा, कर्नाटक और तमिलनाडू में ही स्थित हैं।

सामान्य बीज प्रमाणीकरण मानक का उपयोग और विस्तारण:

उत्पादन क्षेत्र के अनुसार बीज आलू का वर्गीकरण तथा बीज आलू का उत्पादन पहाड़ी एवं मैदानी क्षेत्रों के हिसाब से किया जाता है। पहाड़ी और मैदानी इलाकों में उगाया गया बीज क्रमशः पहाड़ी व मैदानी बीज कहलाता है।

पहाड़ी क्षेत्रों में बीज आलू आमतौर पर समुद्र तल से 2500 मीटर ऊंचे इलाकों या तकनीकी रूप से उचित परिस्थितियों में उगाया जाता है जबकि मैदानी इलाकों में फसल मौसम के दौरान माहूं के न्यूनतम प्रकोप काल व तकनीकी रूप से उचित परिस्थितियों को देखते हुए बीज आलू का उत्पादन किया जाता है।

भूमि की पहचान:

मस्सा (सिन्किट्रियम इन्डोबायोटिकमद्) और कवचधारी सूत्रकृमियों (ग्लोबोडेरा रोस्टोकाइसिंस, ग्लोबोडेरा पालिडा) भूरा गलन या जीवाणु मुरझान (रालस्टोनिया सोलानासीरियम), गैर कवचधारी सूत्रकृमियों या पिछले तीन वर्षों से साधारण खुरण्ड (स्ट्रेप्टोमाइसिस स्कैबिज) आदि से ग्रसित भूमि में ली गई बीज आलू की फसल प्रमाणीकरण के योग्य नहीं होती।

खेत का निरीक्षण:

बीज आलू फसल का कम से कम चार बार निरीक्षण करना चाहिएः

क) विजातीय किस्म के पौधों के साथ-साथ मृदु और उग्र चिती, पती मुड़न, पीत रोग, भूरा गलन और इसी प्रकार के अन्य कारकों के संदर्भों में पहाड़ी इलाकों में बुआई के लगभग 45 दिनों बाद और मैदानी इलाकों में बुआई के 35 दिनों बाद फसल का पहला निरीक्षण करना चाहिए।

ख) उगाई गई किस्मों की फसल बढ़वार की उचित अवस्था को ध्यान में रखते हुए विजातीय पौधों, मृदु और उग्र चिती, पती मुड़न, पीत रोग, भूरा गलन और इसकी प्रकार के अन्य सम्बन्धित रोग कारकों पर नियत्रण पाने के लिए अगेती किस्मों का निरीक्षण फसल बुआई के 60-65 दिनों बाद और पिछेती किसमों का 70-75 दिनों के बाद दूसरा निरीक्षण करना चाहिए।

ग) तीसरा निरीक्षण का काम तने काटने या तने नष्ट करने के तुरन्त बाद करना चाहिए। इस निरीक्षण का मुख्य उदेश्य यह है कि तने निर्धारित समय पर और सही ढंग से कटे और नष्ट किए जाएं।

घ) चौथा निरीक्षण फसल खुदाई से पहले और तना काटने के 10 दिन बाद करना चाहिए। इस निरीक्षण के दौरान यह ध्यान रखना है कि काटे गए तनों की बढ़वार पुनः तो नहीं हुई। प्रमाणीकरण के लिए चौथे निरीक्षण के समय फसल का अंकुरण एक समान तथा बीज फसल पूर्णत: विकसित होनी चाहिए। बहुत जल्दी या बहुत देर में बीज फसल निरीक्षण करने का कोई औचित्य नहीं रहता।

ड॰) एक हेक्टेयर क्षेत्र में एक कोने से दूसरे कोने तक आड़ा-तिरछा चलते हुए कम से कम चार विभिन्न स्थानों से प्रत्येक 100 पौधों में से एक-एक पौधा याद्रीछिक (रैनडोमली) लें। उसके पश्चात् प्रत्येक अतिरिक्त हेक्टेयर या 100 पौधों के 2 सैम्पलों की जांच समस्त दृश्य मोजाइक, अन्य बीमारियों और विजातीय प्रकार के पौधों की पहचान के लिए करें।

प्रमाणीकरण के लिए निम्नालिखित शर्तों / अनुबन्धों के पूरा होने पर अन्तिम बार खेत का निरीक्षण करें।

  • निरीक्षण के समय खेत में उगाई गई पिछली फसल, फसल चक्र, उर्वरकों और पौध संरक्षण उपायों की अनुसूची उपलब्ध होनी चाहिए।
  • निरीक्षण से पहले अन्तिम रोगिंग पूरी कर ली जाए। रोगिंग के समय ही सभी निष्फल प्रकार के बीमार व विजातीय पौधों को कन्दों सहित खेत से निकाल देना चाहिए।

आलू बीज प्रमाणीकरण के लि‍ए रोग का मानक

सामान्य आवश्यकताएं:

पृथक्कताः किस्म शुद्धता प्रमाणीकरण के लिए आधार-1 व आधार-2 और प्रमाणीकृत बीज फसल के प्लाट या खेत, अन्य किस्मों के खेतों से कम से कम 5 मीटर की दूरी पर होने चाहिए।

विशिष्ट आवश्यकताएं:

कारक अवस्थाएं उच्चतम स्वीकार्य सीमा
आधार-I आधार-II प्रमाणीकृत
विजातीय किस्मों के पौधे पहला और दूसरा निरीक्षण 0.05 % 0.05 % 0.10 %
जिन पौधों में मृदु मोजाइक के लक्षण देखाई दें पहला और दूसरा निरीक्षण 1.0% 2.0% 3.0%
उग्र मोज़ाइक, पती मुड़न, पीत रोग पहला और दूसरा निरीक्षण 0.05% 0.75% 1.0%
*कुल रोग पहला और दूसरा निरीक्षण 1.0% 2.0% 3.0%
**भूरा गलन से संक्रमित पौधे पहला और दूसरा निरीक्षण कोई नहीं कोई नहीं प्रति हेक्टेयर 3 पौधे
***तने कटाई/नष्ट करने के उपरान्त पौधों की पुनः वृद्धि/बढ़वार चौथा निरीक्षण 0.05% 0.05% 0.05%

*पहले निरीक्षणों में वायरस उपस्थिति की प्रतिशतता जो भी अधिक होगी उसे ही निर्दिष्ट सहनशीलता सीमा माना जाएगा।

**भूरा गलन रोग से संक्रमित इलाकों में निर्दिष्ट सीमा तक पौधों के इस रोग के सहनशीलता सीमा को ही स्वीकार्य माना जाएगा। यदि पौधों में भूरा गलन रोग का अंदेशा हो तो उसके साथ लगते पौधे को कन्द सहित उखाड़ दें।

***तनों की पुनः बढ़वार का मानक चौथे निरीक्षण के समय तना कटाई के दस दिन बाद प्राप्त होता है।

टिप्पणी:   i) सभी विजातीय और रोगी पौधों को कन्द-जड़ सहित उखाड़ कर नष्ट कर दें। (ii) सीड प्लाट में 10.0  प्रतिशत से अधिक दूरी या गैप नहीं होना चाहिए। (iii) प्रमाणीकरण संस्था द्वारा निर्दिष्ट तिथि से पहले ही तनों को जमीन के साथ लगते हिस्से काटकर से नष्ट कर दें। ऐसा न करने पर फसल को प्रमाणीकरण के लिए अस्वीकार किया जा सकता है।

आलू के प्रमाणीत बीज का आकार व भार

आधार-I व आधार-II एवं प्रमाणित श्रेणी के बीज का आकार व भार।

पहाड़ी बीज

श्रेणी आकार (मि॰ मी॰) भार (ग्राम में)
बीज आकार 30 से 60 25 से 150
बड़ा आकार 60 से अधिक 150 से अधिक

मैदानी बीज

श्रेणी आकार (मि॰ मी॰) भार (ग्राम में)
बीज आकार 30 से 55 25 से 125
बड़ा आकार 55 से अधिक 125 से अधिक

टिप्पणी

  • कन्द के आकार का निर्धारण कन्द के मध्य से दोनों तरफ की चैड़ाइयों के मध्यमान या कन्द की लम्बाई या कन्द के भार के अनुसार तय किया जाएगा।
  • बीज के प्लाट में निर्दिष्ट आकार के अनुसार कन्दों की संख्या का अनुपात 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • बीज पूर्ण रूप से साफ-सुथरा, अच्छी बनावट वाला, रोग मुक्त स्वस्थ्य व सुडौल होना चाहिए और उसमें किस्म विशेष के समस्त गुण भी होने चाहिएं। फाउंडेशन एवं प्रमाणीकृत बीज कन्दों में किस्मों के मिश्रण का अनुपात क्रमशः 0.05 प्रतिशत और 1 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • कटे-फटे, खरोंचयुक्त, टेढ़े-मेढ़े, चिटके कन्दों या कीटों, घोंघे या कृमियों से ग्रसित कन्दों का अनुपात 1 प्रतिशत (भार में) से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • प्रमाणीकरण के लिए कन्दों पर हरी रंजकता की अयोग्यता नहीं होगी।

रोगों या बीमारियों से ग्रसित कन्दों में दृश्य लक्ष्णों की अधिकतम सहनशील सीमा ।

रोग का नाम अधिकतम स्वकार्य सीमा (संख्या में)
आधार-I आधार-II प्रमाणित
पिछेता झुलसा, शुष्क गलन या काला गलन 1 प्रतिशत 1 प्रतिशत 1 प्रतिशत
आर्द्रध्गीला गलन कोई नहीं कोई नहीं कोई नहीं
*साधारण खुरण्ड 3 प्रतिशत 3 प्रतिशत 5 प्रतिशत
**काली रूसी 5  प्रतिशत 5  प्रतिशत 5  प्रतिशत
***समस्त रोग 5  प्रतिशत 5  प्रतिशत 5  प्रतिशत

*यदि बीज के लॉट में साधारण खुरण्ड से ग्रसित एक भी कन्द की पहचान हो जाए तो बीज लॉट को प्रमाणीकृत के लिए फिट घोषित करने से पहले पूरे बीज लॉट को अनुमोदित फफूंदनाशक के साथ उपचारित करें। उपचार के बाद भी यदि बीज लॉट में निर्दिष्ट या तय सीमा से अधिक संक्रमित कन्द पाए जाते हैं तो बीज लॉट का प्रमाणीकरण नहीं होगा।

**यदि किसी कन्द में 10 प्रतिशत या अधिक हिस्से पर रूसी या स्कर्फ हो तो उसे एक संक्रमित इकाई माना जाएगा। बीज लॉट में काली रूसी से संक्रमित व ग्रसित कन्दों की संख्या तय या निर्धारित सीमा से अधिक होने के बावजूद भी प्रमाणीकृत किया जा सकता है बशर्तें कि उसे एकीकृत फफूंदनाशक या रसायन से उपचारित कर दिया जाए।

***सभी बीमारियों के लिए रोग सहनशीलता की निर्दिष्ट सीमा को ध्यान में रखकर उच्चतम रोग प्रतिशतता पर विचार किया जाए।

टैग लगाना

विभिन्न श्रेणियों के बीजों के लिए दो स्पेसीफिकेशन सहित तीन प्रकार के टैग होते हैं।

क्र॰ सं॰ बीज की श्रेणी टैग का रंग आकार (सें॰ मी॰)
1. प्रजनक बीज सुनहरा 12x6
2. आधार बीज सफेद 15x 7.5
3. प्रमाणित बीज नीला 15x75

गुणवता का नियत्रण

जारी गई किस्म के प्रदत बीज लॉट की आनुवंशिक शुद्धता तथा निर्दिष्ट मानक सीमा स्तर सुनिश्चित करने के लिए गुणवता नियंत्रण परीक्षण किया जाता है।

प्रतिचयन (सैम्पलिंग)

  • बीज आपूर्तिकर्ता (सप्लाएर्स) और बीज प्राप्तकर्ता को मानक प्रक्रिया का पालन करते हुए ग्रो आउट परीक्षण साथ-साथ करना चाहिए।
  • 100 किंवटल के लॉट में से प्रत्येक पार्टी को बीज प्राप्ति स्रोत किस्म व लॉट नम्बर आदि की जानकारी के साथ-साथ टैग सहित 250 बीज आलू निकालने चाहिए।

ग्रो आउट परीक्षण की प्रक्रिया:

मानक बीज उत्पादन तकनीक का पालन करते हुए अगले फसल मौसम में सैम्पल बीज कन्द उगाकर ग्रो आउट परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के दौरान बीज कन्दों की आनुवंशिकी शुद्धता बनाए रखने के लिएए पौधों का अंकुरण, आकारकीय लक्षणों और विषाणुओं के प्रकोप आदि बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


Authors:

तनुजा बक्सेठ, कौशलेन्द्र कुमार पाण्डेय और बीर पाल सिंह

भा. कृ. अनु. प.- के. आ. अ. सं. शिमला-171001 (हि. प्र.)।

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