How to make useful manure with Nadep method

नाडेप कंपोस्ट विधि, कम से कम गोबर का उपयोग कर अधिक से अधिक मात्रा में खाद बनाने की उत्तम व लोकप्रिय पद्धति है। इस विधि की खोज महाराष्ट्र के एक किसान एन. ड़ी. पांडरीपांडे उर्फ नाडेप काका ने की थी। इसलिए इस विधि को नाडेप विधि और इससे तैयार खाद को नाडेप कंपोस्ट कहते हैं।

इस पद्धति द्वारा मात्र एक गाय/ भैंस के वार्षिक गोबर से 80 से 100 टन खाद प्राप्त की जा सकती है। नाडेप कंपोस्ट में नाइट्रोजन 0.5 से 1.5%, फास्फोरस 0.5 से 0.9% तथा पोटाश 1.2 से 1.4% उपलब्ध होती है।

नाडेप कंपोस्ट बनाने के लिए सामग्री

  • वानस्पतिक व्यर्थ पदार्थ : सूखे पत्ते, छिलके, डंठल, टहनियां, जड़ें आदि 14 से 15 क्विंटल।
  • गोबर /गोबर गैस स्लरी :  90 से 100 किलोग्राम (8 से 10 टोकरे)।
  • सूखी छनी मिट्टी : खेत या नाले बगैरह की 18 से 20 क्विंटल (120 टोकरे) छनी मिट्टी। गोमूत्र से सनी मिट्टी लाभदायक होती है।
  • पानी : पानी का प्रयोग वर्षा ऋतु में कम व ग्रीष्म ऋतु में अधिक होगा। साधारणतया सूखे वानस्पतिक पदार्थ के वजन के बराबर पानी की मात्रा 1500 से 2000 लीटर पर्याप्त होती है। 

नाडेप कंपोस्ट बनाने का तरीका

इस विधि से कंपोस्ट तैयार करने के लिए ईंटों की सहायता से जमीन के ऊपर एक आयताकार  गड्ढा/हौदी बनाया जाता है जिसकी दीवारें 9 इंच चौड़ी होती हैं। हौदी के अंदर की लंबाई 12 फुट, चौड़ाई 5 फुट तथा ऊंचाई 3 फुट होनी चाहिए।  ईंट की जुड़ाई मिट्टी से की जाती है सिर्फ आखिरी रद्दा सीमेंट से जोड़ा जाता  है जिससे गड्ढा गिरने का डर नहीं रहता।

गड्ढे का फर्श  ईंट-पत्थर  के टुकड़े डालकर, धुम्मस कर सीमेंट से पक्का करें। यह गड्ढा/हौदी हवादार होनी चाहिए  क्योंकि खाद सामग्री के पकने के लिए कुछ मात्रा में हवा की आवश्यकता होती है। इसके लिए चिनाई के समय चारों दीवारों में छेद रखे जाते हैं। ईंट के हर दो  रद्दों  की जुड़ाई के बाद 7 इंच का छेद छोड़कर जुड़ाई करें। इस प्रकार चारों दीवारों में छेद बनेंगे।

छेद इस प्रकार रखें कि पहली लाइन के दो छेदों  के मध्य तीसरी लाइन के छेद आएं। छेदों की संख्या बढ़ाने से खाद जल्दी पकती है। गड्ढे के अंदर और बाहर की दीवारें और फर्श को गोबर से लीप दें व लिपाई सूखने के बाद ही इसे प्रयोग करें। बरसात या अत्यधिक गर्मी  में नाडेप गड्ढे  के ऊपर अस्थाई छाया का प्रबंध कर दें।

 नाडेप गड्ढा भरने की विधि

एकत्रित खाद सामग्री से ऊपर बताए गए क्रम में गड्ढे/हौदी को भरें। जिस तरह अचार डाला जाता है उसी तरह से खाद सामग्री एक ही दिन में ज्यादा से ज्यादा 48 घंटों में पूरी तरह गड्ढे में भरकर सील कर दी जाती है।

प्रथम भराई - गड्ढा भरने का काम शुरू करने से पहले इसके अंदर की दीवारों एवं फर्श पर गोबर व पानी का घोल छिड़क कर अच्छी तरह से गीला कर दें।

  • पहली परत - पहले 6 इंच तक वानस्पतिक पदार्थ से भर दें। इस 30 घन फुट में 100 से 110 किलोग्राम सामग्री आएगी।
  • दूसरी परत - 125 से 150 लीटर पानी में 4 किलोग्राम गोबर घोलकर पहली परत पर इस प्रकार छिड़कें कि पूरी वनस्पति अच्छी तरह  भीग जाए।
  • तीसरी परत - भीगी हुई वनस्पति की परत पर वनस्पति के वजन की 50% यानी 50 से 60 किलोग्राम मिट्टी समतल बिछा दें। उस पर थोड़ा पानी छिड़क दें। गड्ढे को इस प्रकार तीन परतों के क्रम में मुंह के ऊपर 1.5 फुट ऊंचाई तक झोंपड़ीनुमा आकार में भरते जाएं। साधारणतया 11 से 12 तहों में  गड्ढा भर जाएगा। भरे गड्ढे को सील कर दें। भरी सामग्री के ऊपर 3 इंच मिट्टी (400 से 500 किलोग्राम) की तह जमा दें और गोबर के मिश्रण से लीप दें। इस पर दरारें पड़ें तो उन्हें भी लीप दें।

द्वितीय भराई 

15 से 20 दिन में खाद सामग्री सिकुड़कर गड्ढे के मुंह से 8 से 9 इंच नीचे अंदर की ओर चली जाएगी। तब पहले की तरह क्रमश: वानस्पतिक पदार्थ, गोबर घोल, छनी मिट्टी की परतों से पुनःगड्ढे की सतह से मुंह के ऊपर5 फुट ऊंचाई तक भर कर ऊपर 3 इंच मिट्टी की परत देकर पहले जैसा ही लीप कर सील कर दें।

नाडेप कंपोस्ट की परिपक्वता

तीन-चार महीने (प्रथम भराई की तारीख से लेकर 90-120 दिन तक) में खाद परिपक्व होकर गहरे भूरे रंग की बन जाती है और सब दुर्गंध समाप्त होकर एक अच्छी खुशबू आती है। इस गड्ढे से साधारणतया 160 से 175 घन फुट छनी खाद और 40 से 50 घन फुट कच्चा माल मिलेगा। कच्चे पदार्थ को दोबारा इसी विधि से पकाया जा सकता है।

नाडेप कंपोस्ट की उपयोग विधि

यदि आपके पास कंपोस्ट की पर्याप्त मात्रा है तो प्रति एकड़ प्रति वर्ष 3 से 5 टन खाद बिजाई से 15 दिन पूर्व खेत में फैला कर मिट्टी में मिला दें। इस प्रकार 3 वर्ष में इसका पूरा लाभ प्राप्त होगा क्योंकि फसल में किसी भी कार्बनिक खाद का लाभ पहले वर्ष 33%, दूसरे वर्ष 45% और शेष 22% तीसरे व चौथे वर्ष में प्राप्त होता है।

नाडेप कंपोस्ट गुणवत्ता में वृद्धि के उपाय

  • मिट्टी यदि गौशाला के गोमूत्र से सनी हुई होगी तो उसके उपयोग से खाद की गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
  • साधारणतया गोबर घोल की जगह गोबर गैसस्लरी ज्यादा उपयोगी होती है।
  • भराईकरते समय प्रत्येक परत के ऊपर 4 से 5 किलोग्राम रॉक फास्फेट या 5 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का पाउडर डाला जाना चाहिए।
  • प्रथम भराई के दो ढाई महीने बाद जब हौदी का तापमान कम हो जाता है तो 2 किलोग्राम फास्फोरिका घोल (पीएसबी) पानी में घोलकर गड्ढे  के ऊपर डेढ़-डेढ़ फुट पर गोल गड्ढे बनाकर उसमें भरना चाहिए।

सावधानियां

  • कंपोस्ट सामग्री में प्लास्टिक, कांच, धातु, पत्थर आदि नहीं रहने चाहिए।
  • नाडेपगड्ढे/हौदी को बताए गए क्रम में ही कंपोस्ट सामग्री से भरें।
  • कंपोस्ट बनने की पूरी प्रक्रिया के दौरान आर्द्रता बनाए रखने और दरारें बंद करने के लिए गोबर और पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए।
  • यदि कड़ी धूप या बरसात हो तो घास-फूस की छत से छाया कर दें।
  • कंपोस्ट को गड्ढे से निकाल कर खुली जगह में नहीं रखना चाहिए।
  • छना हुआ कंपोस्ट उपयोग में लाना चाहिए।

नाडेप कंपोस्ट की विशेषताएं

  • नाडेप पद्धति में 1 किलोग्राम गोबर से 30 से 40 किलोग्राम उत्तम कार्बनिक खाद बन सकती है तथा कृषि व बागवानी भूमि को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सूक्ष्म तत्व बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
  • इस विधि से तैयार खाद परंपरागत तरीके से तैयार की गई खादकी तुलना में तीन से चार गुना अधिक प्रभावशाली होती है।
  • यह कंपोस्ट पद्धति पूर्णतया प्रदूषण रहित है।

Authors

Sanjeev K. Chaudhary, Manoj Kumar and Neeraj Kotwal

Regional Horticultural Research Sub-station - Bhaderwah, SKUAST-Jammu (J&K)-182222.

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