Cage layer fatigue : a common problem in cage reared poultry

केज लेयर फटीग पिजरे में पाली जाने वाली पोल्ट्री जैसे मुर्गी, बतख एवं  टर्की में होने वाली ऐसी पोषण सम्बन्धी बीमारी है जिसमे उनके पैर की हड्डियां मुलायम या कमजोर हो जाती है । इस बीमारी  में पैर की हड्डियां धनुषाकार हो जाती है जिससे इन पंछियों को खड़े होने तथा चलने में दिक्कत होती है ।

अनेक बैज्ञानिको ने इस सिंड्रोम का कारण  हड्डीओं में डीमिनेरेलाइजेसन (मिनरल्स का निकल जाना) बताया है जिससे ये पंछियां अपने पैर पर खड़ी नहीं हो पाती है । अंडे देने वाली युवा मुर्गिओं में जो अधिकतम उत्पादन के समय बैटरी केज में रहती है आजकल एक आम बीमारी है ।

पिजरे में प्रायः मुर्गिओं के बीच में दाना और पानी पाने की  प्रतिस्पर्धा हो सकती है ।  ऐसे में इस बीमारी से ग्रसित मुर्गियां प्रायः पिजरे के पिछले हिस्से में रह जाती है जिससे पानी की कमी (डीहाइड्रेसन) या भुखमरी की वजह से इनकी मृत्यु हो जाती है । अत्यधिक अंडा देने वाली मुर्गिओं में ऑस्टियोपोरोसिस भी हो सकती है ।

ऑस्टियोपोरोसिस में हाड़िओं का घनत्व घटने  के  कारण हड्डियां भंगुर हो जाती है साथ में कैल्शियम की कमी होने से अंडा  उत्पादन भी कम हो जाता है । ऐसी पंछियाँ दाना कम खाती है ,पड़ी रहती है तथा पतले बाहरी परत वाले या परतविहीन अंडे देती है जिससे अंडा उत्पादकों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है ।  

अत्यधिक उत्पादन के समय अस्थिभंग के कारण मेरुरज्जु दबने से लकवा हो सकता है जिसके कारण भी मृत्यु हो सकती है ।  वास्तव में लंगड़ाने की शुरुवाती अवस्था में ही ऐसे पंछियों को पिजरे से अलग करके फर्श पर पालने से ये पूरी तरह से ठीक हो सकते है । परन्तु बड़े बड़े फार्मों या औद्योगिक इकाइयों में ऐसा कर पाना बहुत कठिन है इसीलिए यह समस्या वहां ज्यादा पायी जाती है ।

सत्तर के दशक में १०% मृत्युदर सामान्य थी परन्तु आज पोल्ट्री सेक्टर के विकास गति को देखते हुए ०.५% प्रभावित होना भी समस्याग्रस्त समझा जाता है ।

फटीग (थकावट) का कारण

फटीग (थकावट) का प्रमुख कारण एक्सरसाइज या व्यायाम की कमी होती है । व्यायाम की कमी में उन्नत आहार भी इस बीमारी को नहीं रोक पाता है । अंडे देने वाली मुर्गिओं में कैल्शियम और फॉस्फोरस नाम के दो महत्वपूर्ण मिनरल  २:१ के अनुपात में आवश्यक होते है ।  

पिजरे में रहने वाली मुर्गिओं को कम से कम ४% कैल्शियम आहार में आवश्यक होते है । अंडे देने वाली मुर्गियां कैल्शियम को अस्थिओं में आरक्षित करके उपयोग करती है मेदुलरी अस्थियां प्रचुर मात्रा में मिनरल से भरपूर होती है तथा कैल्शियम का एक गतिमान श्रोत प्रदान करती है ।

मेडुलारी अस्थिओं के भंडारों से कैल्शियम, अंडे बनाने में तथा अस्थि उपापचय में सहायता करती है ।  यदि मुर्गी पर्याप्त कैल्शियम को आहार में नहीं ग्रहण करती है तो अंडा बनाने के लिए कैल्शियम को शरीर कैल्शियम के भंडार यानि अस्थिओं  से  उपयोग करती है । आहार में कैल्शियम, फास्फोरस एवं विटामिन डी-३ की कमी ही इस बीमारी का प्रमुख कारण है । आंत्र से कैल्शियम और फॉस्फोरस के अवशोषण में कमी भी एक प्रमुख कारण हो सकता है ।

पोल्ट्री की कई सारी कम्पनियाँ अधिक घनत्व के पिंजरों, फीडर स्थान (स्पेस) की कमी तथा फीडिंग अवधी को कम करने को प्रोत्साहित करती है जिससे कैल्शियम ग्रहण करने में प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो जाती है तथा कई अंडे देने वाली पंछियों में केज फटीग सिंड्रोम की स्थिति आ जाती है । यह दशा फर्श पर पलने वाली  पंछियों में अत्यंत कम देखने को मिलती है जो यह दर्शाता है की पिजरे या केज  के अंदर क्रियाशीलता की कमी ही इस सिंड्रोम की प्रमुख पूर्वानुकूल कारक है ।

इस बीमारी में मासपेशिओं में लकवा मार देना, उरोस्थि में विकार होना, पसलियों का अवग्रहकार हो जाना, अथवा कॉस्टोकोंड्रल जोड़ पर छोटे छोटे अस्थिभंजन के कारण पसलियों  का मुड़ जाना, हड्डीओं का बहुत पतला हो जाना तथा मेडुलारी हड्डी के द्रव्यमान का घट जाना पाया जाता है । अस्थिभंग का प्रमुख कारण अंडो के लिए कैल्शियम का उपयोग होने के साथ साथ आहार में कैल्शियम की कमी है ।

संकेत और लक्षण

  • लंगड़ापन और पिंजरे में चलने में उदाशीनता
  • पैर का कमजोर हो जाना, सिहरन
  • अंडे का कवर पतला हो जाता है
  • अधिक अंडे देने वाली मुर्गिओं में पीक समय पर या उसके ठीक बाद लकवा की शिकायत होना
  • कई सारी हड्डीओं एवं मेरुदंड में अस्थि भंजन जिससे मेरुरज्जु भी प्रभावित हो सकता है
  • प्रभावित पंछियाँ पिजरे के पीछे एक तरफ पड़ी रहती है तथा लकवा के कारण खाना या पानी तक नहीं पहुंच पाती जिससे भुखमरी या निर्जलीकरण (पानी की कमी) के कारण मर जाती है
  • यदि पंछियों का परीक्षण लकवा मारने के तुरंत बाद किया जाय तो डिंबवाहिनी में निर अपवाद रूप से आंशिक कवरयुक्त अंडे पाए जाते है तथा अंडाशय में अंडे की जर्दी अनुक्रम में पाए जाते है
  • यदि पंछियों को लकवा मारने के कुछ समय बाद परीक्षण किया जाता है तब पोषण कम होने की वजह से अंडाशय प्रायः प्रत्यावर्तित और क्रिया विहीन हो जाती  है

केज लेयर फटीग प्रवंधन एवं इलाज

अंडा देने वाली मुर्गिओं में सावधानीपूर्वक उचित प्रवंधन से केज लेयर फटीग को होने से रोका जा सकता है । प्रभावित पंछियों को यदि गमनागमन एवं कसरत के लिए पर्याप्त जगह प्रदान की जाय तो दुबारा ठीक किया जा सकता है ।  

यौन परिपक्वता के समय पर उचित उम्र पर उचित शरीर भार सुनिश्चित कर के तथा पहली बार अंडा देने के पहले से कम से कम सात दिनों तक उच्च कैल्शियम युक्त( न्यूनतम४%) आहार देना चाहिए आहार में पर्याप्त मात्रा में मिनरल्स एवं पोषक तत्त्व जैसे कैल्शियम और फॉस्फोरस आवश्यक है ।

कुल आहारीय कैल्शियम का ५०% मोटा एवं महीन चूना पत्थर के रूप में देने से अंडे के बाहरी आवरण की मजबूती एवं हड्डीओं की सामर्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है । यदि लकवा के तुरंत बाद भी कैल्शियम फॉस्फेट प्रदान किया जाये तो भी यह  बहुत प्रभावशाली होता है साथ में पानी के साथ विटामिन एवं इलेक्टोलाइट प्रदान करना उक्त दशा से बचाने में काफी सहायक होता है ।

केज लेयर फटीग से बचाव

सामान्य अस्थिओं के विकास के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस का अनुपात २:१ होना चाहिए. यदि इस अनुपात में असंतुलन होता है तो समस्या आ सकती है ।

इस समस्या के रोकथाम के लिए तनाव की दशा को न्यूनतम रखने का प्रयास होना चाहिए और मुर्गिओं को स्वच्छ और आरामदायक वातावरण में रखना चाहिए तथा बाड़े को अधिक गर्म होने से बचाना चाहिए क्योकि तनाव पूर्ण वातावरण में कैल्शियम का उचित  उपयोग नहीं हो पाता है तथा इस समस्या के होने का खतरा बढ़ जाता है ।

मुर्गिओं को अंडे देने की अवधि से पहले से ही कैल्शियमयुक्त आहार देना शुरू कर देना चाहिए इसके लिए मुर्गिओं के बच्चों को यौन परिपक्वता में आने की निगरानी रखनी चाहिए तथा आहार में कब कैल्शियम बढ़ाना है उसका ध्यान रखना चाहिए अन्यथा कैल्शियम की कमी होने से केज लेयर फटीग का खतरा बढ़ जाता है ।

कैल्शियम और फॉस्फोरस के अवशोषण एवं उपापचय हेतु विटामिन डी- ३ बहुत महत्वपूर्ण होता है इसीलिए कैल्शियम और फॉस्फोरस के संतुलन को बनाये रखने के लिए विटामिन डी- ३ भी प्रदान करना अति महत्वपूर्ण होता है मुर्गिओं को कवक या फंगस लगा हुआ आहार नहीं देना चाहिए क्योकि फंगस में माइकोटॉक्सिन्स हो सकते है जिससे तमाम  दिक्कतों के साथ साथ पोषक तत्वों के अवशोषण में भी बाधा हो सकती है ।

अस्थिओं की यह समस्या अधिक अंडे देने वाली मुर्गिओं में जो पिजरे में रहती है उनमे फर्श पर पाली जाने वाली मुर्गिओं से काफी अधिक होती है इसीलिए इसका नाम केज लेयर है और इसीलिए इस बीमारी की रोकथाम में व्यायाम या श्रम का महत्व अधिक है ।


Authors

डॉ अंजलि1, डॉ मनोज कुमार त्रिपाठी 2, डॉ गुरुराज

, पीएचडी स्कॉलर, पशु चिकित्सा फिजियोलॉजी और जलवायु विज्ञान विभाग

आईसीएआर-आईवीआरआई, इज्जतनगर, बरेली (यूपी), ।ND।A

वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान का पूर्वी अनुसंधान परिसर, आईसीएआर परिसर, पोस्ट बिहार वेटरनरी कॉलेज पटना

Ema।l: anjal।bramhane@gma।l.com