खरपतवारों से फसल क्षति
गन्ने की फसल 12 से 18 महीने तक होती है। इसकी बढ़वार एवं अधिक उपज के लिए अत्यधिक खाद एवं पानी की आवश्यकता होती है। जिसके कारण खरपतवारों की भी वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होती हैं। गन्ने की फसल में खरपतवार फसल की तुलना में 6-8 गुना नाइट्रोजन, 7-8 गुना फास्फोरस एवं 3-5 गुना पोटाश अवषोषित करते हैं, साथ ही खरपतवार, नमी का एक बड़ा हिस्सा शोषित कर लेते हैं तथा फसल के साथ आवश्यक प्रकाश एवं स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा रखते हैं।
इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों में लगने वाले कीटों एवं रोगों के जीवाणुओं को भी आश्रय देते हैं। खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति के अनुसार गन्ने की पैदावार में 20 से 65 प्रतिशत तक की कमी आंकी गयी है तथा साथ ही साथ चीनी की परता एवं गुणवत्ता में भी कमी आती है।
खरपतवारों की रोकथाम का समय
गन्ने में खरपतवार बुवाई से लेकर मानसून शुरू होने तक अधिक संख्या में वृद्धि करते हैं। प्रारम्भिक स्थिति में गन्ने के पौधे छोटे होने के कारण खरपतवारों से मुकाबला नहीं कर पाते हैं। अतः गन्ने की फसल को खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था में खरपतवार रहित रखना आवष्यक है।
नियन्त्रण के उपाय -
गन्ने की फसल में खरपतवार नियन्त्रण की विधियां निम्न हैं।
1. भौतिक या यान्त्रिक विधि
2. पलवार/मल्चिंग
3. फसल विविधिकरण
4. खरपतवारनाशी का उपयोग
गन्ने की फसल में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए बहुत से खरपतवारनाशी/शाकनाशी उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग अंकुरण के पूर्व व बाद में किया जा सकता है खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 600-1000 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर के हिसाब से घोल बनाकर समान रूप से करना चाहिए। इनमें प्रमुख हैं (सारणी-2)।
क्र.सं. | खरपतवार | खरपतवारनाशी | व्यापारिक नाम | मात्रा (कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हेक्टेयर) |
1 | चौड़ी पत्ती वाले, घासवर्गीय एवं मोथावर्गीय | एट्राजीन एट्राटाफ, | धानुजिन, सोलारो | 2-2.5 |
2 | चौड़ी पत्ती वाले, घासवर्गीय एवं मोथावर्गीय | मेट्रीव्यूजिन सेंकार, | टाटा मेट्री, लेक्सोन | 1.0-1.5 |
3 | चौड़ी पत्ती वाले, एवं घासवर्गीय | डाइयूरान ग्रोमेक्स, | कारमेक्स, क्लास | 2.5-3.0 |
4 | चौड़ी पत्ती वाले | 2, 4-डी 2, 4-डी, एग्रोडोन-48, | वीडमार, टेफासाइड, ईर्विटाक्स | 1.0 |
5 | घासवर्गीय एवं चौड़ी पत्ती वाले | एलाक्लोर | लासो | 2-3 |
एकीकृत खरपतवार प्रबन्धन:
गन्ने की कतारों के बीच अधिक दूरी होने के कारण यान्त्रिक विधि, मल्चिंग एवं रासायनिक विधि, आदि तरीकों का प्रयोग साथ-साथ किया जा सकता है। ऐसा करने से जहां केवल एक विधि से खपरतवार नियन्त्रण पर निर्भरता कम होती है बल्कि खरपतवारों का प्रभावी ढंग से नियन्त्रण भी होता है। उदाहरण के तौर पर गन्ने में बुवाई के बाद सूखी पत्तियों की मल्चिंग करने तथा उसके बाद फसल उगने पर किसी भी शाकनाशी का प्रयोग करने से खरपतवारों का नियन्त्रण ज्यादा कारगर होता है तथा गन्ने की पैदावार भी बढ़ जाती है।
एट्राजीन 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर की दर से बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने तथा उसके बाद हाथ से एक बार निराई करने पर गन्ने की पैदावार में अधिक वृद्धि होती है। इसी प्रकार एट्राजिन 1-0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर की दर से लाइनों के बीच (डायरेक्टेड स्प्रे) करने से गन्ने की फसल को खरपतवारों से सम्पूर्ण छुटकारा मिल जाता है तथा पैदावार में भी बढ़ोत्तरी होती है।
Authors:
ललिता राणा एवं नवनीत कुमार
ईख अनुसंधान संस्थान
डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा
समस्तीपुर (बिहार)-848125
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