कीवी फल की वैज्ञानिक तरीके से खेती
कीवी का वैज्ञानिक नाम एक्टिनीड़िया चाईनैंसिस है। इसे चाइनीस गूसबेरी भी कहते हैं। यह एक बहु-वर्षीय बेल वाला पौधा है जिसमें नर व मादा अलग-अलग होते हैं। इसके फल सहिष्णु, गोलाकार या बेलनाकार होते हैं तथा हल्के भूरे रेशों द्वारा ढके रहते हैं। फल का गूदा हरे रंग का तथा काले छोटे बीजों से भरा रहता है।
कीवी फल मे पोषक तत्व
इस फल में 81.2% पानी, 0.79% प्रोटीन, 0.071% वसा, 16 मि.ग्रा. कैल्शियम, 340 मि.ग्रा. पोटेशियम, विटामिन-ए 175 आई यू/100 ग्रा. और 150 मि.ग्रा. विटामिन-सी, कार्बोहाइड्रेट एवं अन्य विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
कीवी फल उत्पादन के लिए जलवायु
इसके लिए विशेष जलवायु की आवश्यकता होती है। इसे समुद्र तल से 200 - 2000 मी. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है जहां जाड़े का तापमान 200 - 300 घंटे 70 सेंटीग्रेड से कम आ जाता है।
यह एक पतझड़ वाला बेल वाला पौधा है जो सुषुप्त अवस्था में शून्य से नीचे तक का तापमान सहन कर लेता है। यह जम्मू-कश्मीर के मध्यवर्ती क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है जहां पर गर्मी-सर्दी का प्रकोप ज्यादा न हो।
कीवी फल की मुख्य प्रजातियां
1. एबट - यह एक अगेती किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के तथा इनका औसत वजन 40-50 ग्राम होता है।
2. एलिसन - इसके फल पतले और लंबे होते हैं जिनमें खट्टापन जरा ज्यादा होता है।
3. ब्रूनो - इसके फलों का आकार मध्यम एवं रंग भूरा होता है। फलों में अम्लता कम होती है तथा इस प्रजाति को अपेक्षाकृत कम तापमान की आवश्यकता होती है।
4. हेवर्ड - इसके फल ज्यादा आकर्षक दिखते हैं तथा इन्हें ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। इसमें घुलनशील शर्करा 14% तक होती है जो अन्य प्रजातियों से काफी अधिक है। कम ताप वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र इसके लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रजाति के 5-7 वर्ष के एक पौधे से 50-55 कि.ग्रा. फल प्राप्त होते हैं।
5. मोंटी - यह प्रजाति देर से फलती है परंतु पकने में समय कम लगता है। इसके फल मध्यम आकार के तथा वजन लगभग 40-50 ग्राम होता है। इस फल में कुल घुलनशील शर्करा 12-12.5% तथा अम्लता ज्यादा होती है।
6. तुमोरी - यह एक नर पौधा है जिसे परागण हेतु किसी भी मादा किस्म के साथ रोपित किया जाता है। इसके पुष्प गुच्छेदार व आकर्षक दिखते हैं।
7. रेड कीवी - इस प्रजाति के फलों का रंग लाल होता है तथा फलों के ऊपर रोम नहीं पाए जाते हैं। इसमें भी नर व मादा प्रजाति के अलग-अलग पौधे होते हैं।
भूमि का चयन
इस फल के लिए गहरी दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो तथा जिसका पीएच मान 7.3 से कम हो उपयुक्त होती है। कीवी फल के पौधे ज्यादा लवणीय भूमि के प्रति सहनशील होते हैं।
कीवी में पौध प्रसारण
कीवी फल के पौधों का प्रसारण कटिंग, ग्राफ्टिंग एवं लेयरिंग द्वारा किया जाता है। इन विधियों का विवरण आगे दिया जा रहा है।
कटिंग द्वारा -
कीवी की एक साल पुरानी शाखाओं से कलम (कटिंग) काटकर जो 15-20 सें.मी. लंबी व कली युक्त हो, इसे 1000 पीपीएम आईबीए नामक हार्मोन से उपचारित कर जनवरी माह में क्यारी में लगाया जाता है। इस प्रकार तैयार पौधों का रोपण अगले वर्ष किया जाता है।
ग्राफ्टिंग द्वारा -
इस विधि द्वारा एक साल पुराने बीजू पौधे की शाखा को मार्च में जमीन से 15-20 सें.मी. ऊपर काटकर पेंसिल के आकार की पतली कटिंग को टंग एवं स्लाइस विधि (कलेफ्ट ग्राफ्टिंग) के द्वारा ग्राफ किया जाता है जिसमें पौधों की सफलता ज्यादा प्राप्त होती है।
ग्राफ्टिंग से पहले कीवी के बीजों को 30 पीपीएम जीए-3 (जिब्रेलिक एसिड-3) हार्मोन के घोल में 24 घंटे भिगोकर नर्सरी में बोते हैं तो अंकुरण अच्छा मिलता है तथा रूटस्टॉक अच्छे और स्वस्थ मिलते हैं।
लेयरिंग द्वारा -
पौधे की एक साल पुरानी शाखा से लगभग एक इंच चौड़ी छाल का रिंग उतार लेते हैं और उसके ऊपर प्लास्टिक की सहायता से सफैगनम घास/मौस या गीली मिट्टी अच्छी तरह से बांध दी जाती है। लगभग एक महीने के अंदर उसमें से जड़ें निकलना प्रारंभ हो जाती हैं। तत्पश्चात इसे मुख्य पौधे से काटकर किसी और जगह पर लगा दिया जाता है। इस प्रकार कुछ समय बाद नए पौधे तैयार हो जाते हैं।
पौध रोपण
कीवी के पौधों का रोपण शीत ऋतु (जनवरी माह) में किया जाता है। इसके लिए 5मी. x 5मी. की दूरी का स्थान सुनिश्चित कर 1मी. x 1मी. x 1मी. आकार का गड्ढा तैयार कर उसमें एक तिहाई भाग गोबर की सड़ी खाद से भर देना चाहिए। नीम की 1 कि.ग्रा. खली, 20 ग्राम थीमेट 10-जी गड्ढे में मिला देना चाहिए। अब इसे मिश्रित कर पौधों की रोपाई करें और पानी डाल दें।
कीवी बागवानी का रोपण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इसमें नर व मादा पौधे अलग-अलग होते हैं जिसमें मादा पौधों से फल प्राप्त होते हैं। अच्छे परागण प्रबंधन के लिए पांच मादा पौधों के साथ एक नर पौधे का रोपण करना चाहिए। सामान्य परिस्थितियों में 200 वर्ग मीटर में आठ मादा पौधों के साथ एक नर पौधे का रोपण किया जा सकता है।
खाद व उर्वरक
कीवी के पौधों में प्रारंभ में 2-3 वर्षों तक 30 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद तथा 0.5 कि.ग्रा. एनपीके मिश्रण (120:60:60 अनुपात में) प्रति पौधा देना चाहिए। पौधे के बढ़ने के साथ खाद की मात्रा भी बढ़ती जाती है।
प्रति वर्ष 15% की दर से नाइट्रोजन युक्त उर्वरक प्रति पौधा बढ़ाते रहना चाहिए। 8-10 वर्ष पश्चात पूर्ण विकसित पौधों में 50-60 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 700 ग्रा. नाइट्रोजन, 400 ग्रा. फास्फोरस एवं 700 ग्रा. पोटेशियम देना चाहिए।
पौधे की ट्रेनिंग
इसकी बेल अंगूर के पौधे के समान होती है जिसे जमीन से ऊपर रोकने के लिए मजबूत ढांचे की आवश्यकता होती है। यह मजबूत ढांचा लोहे के खंभों एवं तारों से टी-बार एवं परगोला विधि के अनुसार तैयार किया जाता है।
टी-बार विधि -
इस विधि में पहले वर्ष पौधे की एक शाखा को तार तक बढ़ने की अनुमति देते हैं, यही इसकी मुख्य शाखा होती है। दूसरे वर्ष दो शाखाओं का चयन कर दोनों तरफ बीच वाले तार में बांध दिया जाता है और यह उसकी दूसरी मुख्य शाखा होती है।
तीसरे वर्ष तीसरी शाखाओं का चुनाव दूसरी मुख्य शाखा से करते हैं और तीसरी शाखा बाहर वाली तार पर बांध देते हैं जो कि अगले वर्ष फल देती है।
परगोला विधि -
लगभग एक मीटर व्यास के लोहे के छल्ले को लोहे के खंभे पर, जिसकी ऊंचाई लगभग आठ फुट हो; के ऊपर वेल्ड किया जाता है तथा पौधा जब तक उस छल्ले तक नहीं पहुंचता, उसे सिंगल स्टेम रखा जाता है।
छल्ले तक पहुंचने पर इसकी तीन-चार टहनियां जो चारों दिशाओं में फैली हों, पर सिधाई की जाती है। इसके पश्चात प्रत्येक वर्ष पौधे की काट-छांट की जाती है जिससे कि पौधे की वानस्पतिक बढ़वार सीमित रहे व भरपूर फल उत्पादन हो।
पुष्पण, फलन व उपज
कीवी में 3-4 वर्षों में फूल आना प्रारंभ होता है। इस के पौधे में परागण वायवीय व मधुमक्खियों द्वारा होता है। अतः कीटनाशक दवाओं का प्रयोग फूल आने के समय नहीं करना चाहिए। पूर्ण विकसित पौधे (5-7 वर्ष) से 50-60 कि.ग्रा. फल प्रति पौधा (20-25 टन प्रति हे.) प्राप्त किया जा सकता है।
इस फल की तुड़ाई अक्टूबर - दिसंबर माह तक की जाती है। जीए-3 का 200 पीपीएम व एनएए 200 पीपीएम के घोल में फल लगने के बाद 15 दिन के अंतराल पर छह बार फलों को डुबोएं तो फलों के आकार में अपेक्षित वृद्धि मिलती है। फल बड़े होते हैं इसलिए बाजार में इनकी अच्छी कीमत मिलती है।
विपणन प्रबंधन
कीवी फल के शीघ्र खराब न होने के कारण इसका विपणन प्रबंधन बहुत आसान है। ठोस अवस्था में फल पकने से पूर्व इसे तोड़ लिया जाता है। तत्पश्चात आकर्षक दिखने के लिए इसके रोम को हटा कर पॉलीथीन में रख दिया जाता है।
खाने योग्य मुलायम अवस्था में आने में सामान्य तापक्रम पर इसे लगभग दो सप्ताह का समय लगता है। यह समय विपणन प्रबंधन में प्रयोग किया जा सकता है।
इस प्रकार यह फल अपनी सहिष्णुता, व्यापकता, ज्यादा उत्पादन, विशेष एवं पोषक गुणों के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में अपनी बहुमूल्य भागीदारी निभा सकता है।
Authors
Sanjeev K. Chaudhary and Nirmal Sharma,
Regional Horticultural Research Sub-Station, Bhaderwah, SKUAST-Jammu (J&K)-182222.
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