Measures to increase production in rabi crops
वर्तमान जलवायु परिवर्तन के दौर में विभिन्न फसलों का अपेक्षित उत्पादन एक गंभीर चुनौती है। मृदा उर्वरता घटने के कारण वर्तमान खाद्यान्न उत्पादन स्तर भी बरकरार रख पाना कठिन प्रतीत हो रहा है। कृषि उत्पादन में बढोतरी के लिए हमारे सामने दो महत्वपूर्ण विकल्प हैं - पहला यह कि हम पैदावार बढा़ने के लिए कृषि योग्य भूमि में वृद्धि करें जो कि लगभग असंभव है। अब हमारे पास सिर्फ दूसरा महत्वपूर्ण विकल्प बचता है कि कम से कम क्षेत्रफल से अधिक से अधिक पैदावार लें।
एकीकृत फसल प्रबंधन एक ऐसी विधि है जिससे पर्यावरण संरक्षित रखते हुए अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। दीर्घकालीन टिकाऊ खेती हेतु उत्पादन के विभिन्न घटकों जैसे भूमि, जल, मृदा एवं फसलों आदि के प्रभावशाली प्रबंधन करने होंगे। उपरोक्त बिन्दूओं को दृष्टिगत रखते हुए रबी फसलों के उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि हेतु विभिन्न उपायों के विवरण निम्नलिखित हैं।
फसलों के उत्पादन वृद्धि हेतु उपाय:-
बुवाई पूर्व बीजोपचार
यह बीज जन्य रागों की रोकथाम की सबसे आसान, सस्ती और लाभकरी विधि है। फफूंदनाशी रसायन बीज जन्य रोगाणुओं को मार डालता है अथवा उन्हें फैलने से रोकता है। यह एक संरक्षण कवच के रूप में बीजों के चारों ओर एक घेरा बना लेता है जिससे बीज को रोगजनक के आक्रण एवं सड़ने से रोका जा सकता है।
अदैहिक फफूंदनाशक जैसे-थायरम, कैप्टान, डायथेन एम-45 की 2.5 से 3.0 ग्राम मात्रा जबकि दैहिक फफूंदनाशकों जैसे कार्बेन्डाजिम वीटावैक्स की 1.5 से 2.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के उपचार के लिए प्र्याप्त होती है।
जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा विरडी, ट्राइकोडर्मा हरजिनेयम, ग्लोमस प्रजाति आदि मृदा जनित फफूदों जैसे- फयूजेरियम, राइजोक्टोनिया, स्क्लेराशियम, मैक्रोफोमिना इत्यादि के द्वारा होने वाली बिमारियों जैसे जड़ सड़न, आद्रगलन, उक्ठा, बीज सहन, अंगमारी आदि को नियंत्रित करते है।
जैविक फफूंदनाशियों की 5-10 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति किग्रा बीज का उपचार हेतु 50 किग्रा गोबर खाद में एक किग्रा ट्राइकोडर्मा अथवा बेसिलस सवटिलस या स्यूडोमोनास को मिलाकर छाया में 10 दिनों तक नम अवस्था में रखते हैं। तत्पश्चात् एक एकड़ क्षेत्र में फैलाकर जमीन में मिलाते हैं।
मृदा के उतम स्वास्थ्य हेतु जैव उर्वरकों का उपयोग
जैव उर्वरकों में मौजूद सूक्ष्मजीव में पौधों के लिये पोषक तत्व उपलब्ध कराने की क्षमता होती है ये वायुमण्डलीय नत्रजन को भूमि में स्थापित (स्थिर) करने भूमि में अघुलनशील स्फुर व पोटाश जो खनिजों के अपक्षय से बनते हैं उन्हें घुलनशील बनाते हैं एवं कार्बनिक पदार्थों (जीवांश) को सड़ा-गलाकर पौधों के लिए उपयोगी बनाते है। जैव उर्वरक सरल, प्रभावी, प्रकृति अनुकूल एवं सस्ता साधन है, जिसका उपयोग कर कम लागत में वांछित पोषक तत्वों की पूर्ति कर सकते हैं।
जैव उर्वरकों से लाभ:-
- वृद्धि कारक हारमोन्स, विटमिन्स व खनिज तत्वों की भी पूर्ति करने में सहायक हैं।
- जैव उर्वरक प्रयोग से बीजों का अंकुरण शीघ्र होता है पौधों की वृद्धि अधिक होती है।
- जैव उर्वरकों के उपयोग से फसल उत्पादन में 10-20 प्रतिशत वृद्धि होती है।
जैव उर्वरकों का वर्गीकरण :-
राइजोबियम जैव उर्वरकः-
राइजोबियम जैव उर्वरक वातावरण की नाइट्रोजन को फसल के साथ सहभागिता/सहजीवी रूप में अवशोषित कर भूमि में स्थिर करते हैं। राइजोबियम द्वारा औसतन 40-80 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर परिवर्तित होकर भूमि में बची रहती है जो आगामी फसल को लाभ पहुंचाती है।
एजेटोबैक्टर जैव उर्वरकः-
यह असहजीवी जीवाणु है जो पौधों की जड़ों में सतह में रहते हुए वायुमण्डलीय नत्रजन को परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। ये जीवाणु कुछ विशेष पादप वृद्धि विनियामक पदार्थों जैसे- जिबरेलिन का स्त्राव करते हैं जो फसल की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही कुछ एण्टीबायोटिक रसायन उत्सर्जित करते हैं जिससे फसल में लगने वाले भूमि जन्य रोग व वायरस रोगों से फसल का बचाव होता है। एजेटोबैक्टर के उपयोग से 20-40 किग्रा जत्रजन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष तक फसल को प्राप्त होती है।
फास्फोरस प्रदायी जैव उर्वरक (पी.एस.बी.):-
फास्फोरस प्रदायी जैव उर्वरक स्यूडोमोनास, वेसिलस, माइकोराइजा भूमि में उपस्थित अघुलनशील स्फूर को घुलन व गतिशील अवस्था में लाने का कार्य करतें हैं। स्फूर प्रदायी जैव उर्वरक, भूमि में उपस्थित 70 प्रतिशत अघुलनशील स्फूर को घुलनशील व गतिशील अवस्था में लाकर पौधों में उपलब्ध कराते हैं जिससे पौधों की वृद्धि व विकास अच्छा होने से 8-10 प्रतिशत उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
समन्वित पोषक तत्व प्रबंधनः-
उर्वरक का प्रयोग खेत की मिट्टी परीक्षण के बाद करने से ज्यादा लाभदायी रहेगी। संतुलित खाद का अर्थ है कि किसी स्थान विशेष की मिट्टी फसल और वातावरण के आधार पर तत्व यथा नत्रजन, स्फूर व पोटाश हेतु उपयुक्त उर्वरकों का प्रयोग।
भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए प्रत्येक एक या दो वर्ष में एक बार अपने खेतों में पकी हुई गोबर की खाद (200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) या कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट आदि का उपयोग ठीक होगा। हरी खाद प्रमुखतया ढेंचा या सनई की 35-45 दिन की फसल को जुताई कर खेत में मिला देने से दो वर्ष तक किसी अन्य जैविक खाद के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती।
खाद देने का समय एवं विधिः-
उर्वरक बीज बोने से पहने सीड ड्रील द्वारा जमीन में 10 से.मी. की गहराई पर डालना चाहिए या बोनी के समय डबल पोर फड़क द्वारा बीज से 5 सेमी. नीचे डालना चाहिए। संतुलित खाद के उपयोग से फसल की बाढ़ संतुलित होती है जिससे अनायास पौधा गिरता नहीं है। मृदा का स्वास्थ्य ठीक एवं उर्वराशक्ति स्थिर बनी रहती है। उत्पादित फसल की गुणवता ठीक रहती है जिससे बाजार भाव सही प्राप्त होता है।
Authors
पूजा, एस.एस.ढांडा, आर.एस.बेनिवाल
जेनेटिक्स एवं पौध प्रजनन विभाग
चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि महाविद्यालय हिसार (हरियाणा)
Email: