Protection of Sugarcane Crop from Fall Armyworm 

फाॅल आर्मी वर्म नामक कीटका बिहार में कुछ दिनों से मक्के की फसल पर प्रकोप देखने को मिल रहा है। साथ ही यह भी सम्भावना है कि मक्का फसल की कटाई के बाद भोजन की अनुउपलब्धता में गन्ने की फसल पर इसका प्रकोप हो सकता है। अतः किसान भाईयों (विशेषकर गन्ना उत्पादकों) से  अनुरोध है कि गन्ना फसल की लगातार निगरानी करते रहें जिससे समय रहते आवश्यक कदम उठाया जा सके।

सर्वप्रथम यह कीट सन् 2015 में अमेरिका में मक्का, धान एवं गन्ना पर पाया गया था एवंइनके अलावा इस कीट के परपोषी पौधे घास कुल के अन्य सदस्य भी हैं। सन् 2017 के अंत तक इस कीट का प्रसार लगभग 54 अफ्रीकी देशों में हो चुका था। यह कीट टिड्डी की तरह सम्पूर्ण फसल नष्ट करने की क्षमता रखता है।

भारत में सर्वप्रथमसन् 2018 में कर्नाटक में मक्का की फसल पर इसका प्रकोप पाया गया था। तत्पश्चात् आँध्रप्रदेश, बिहार, गुजरात में भी इस कीट का प्रकोप देखा गया और फसल की भारी क्षति देखने को मिली। गन्ने की फसल पर इस कीट का प्रकोप सबसे पहले तमिलनाडू में पाया गया। यह कीट एक दिन में 100 किलोमीटर की उड़ान भरने की क्षमता रखता है।

फाॅल आर्मी वर्म की पहचान

फाॅल आर्मी वर्म कीट के पिल्लू (लार्वा) की पहला से तीसरी अवस्था को पहचानने में मुश्किल होता है लेकिन चैथी एवं पाँचवी अवस्था की पहचान करना बहुत ही आसान है। इसके सिर पर अंग्रेजी के अक्षर ‘वाई’की उल्टी अवस्था के आकार का निशान दिखाई देता है साथ ही लार्वा के शरीर के आठवें खण्ड पर वर्गाकार आकृति के चार बिन्दु को साफ देखा जा सकता है।

इसकी वयस्क मादा एक बार में लगभग दो सौ अंडे सात से आठ गुच्छों में देती है। अपने जीवनकाल में 1600 से 2000 अंडा दे सकती है। यह अण्डे तीन से चार दिनों में फूट कर लार्वा निकलते हंै। लार्वा का जीवनकाल 15 से 25 दिन तथा प्यूपा का 6 से 14 दिन का होता है। इस कीट का पूरा जीवनचक्र 35 से 60 दिनों का होता है।

लार्वा (सिर पर अंग्रेजी के अक्षर ‘वाई’ की उल्टी अवस्था के आकार का निशान और शरीर के आठवें खंड पर वर्गाकार आकृति के चार बिन्दु को साफ देखा जा सकता है)

क्षति के लक्षण

फाॅल आर्मी वर्म के नवजात लार्वा पौधे की पत्तियों को खुरच कर खाते हैैंैं जिससे पत्तियों पर सफेद धारियाँ दिखाई देती है। लार्वा बड़े होने पर पौधांे के ऊपरी पत्तियों को पूर्ण रुप से खा जाते है एवंकण्ठ में घुसकर मुलायम पत्तियों को भी खा जाते हैं। फलस्वरुप पत्तियों पर बड़े गोल-गोल छिद्र एक कतार में नजर आते हैं। इस प्रकार कीट द्वारा क्षति के लक्षण स्पष्ट रुप से देखे जा सकते हैं।

नियंत्रण

  • नियमित फसल की निगरानी करते रहें ताकि ससमय कीट के स्तर की जानकारी मिलती रहे।
  • वर्तमान समय मिट्टी चढ़ाने का है इसलिए किसान भाईयों को सलाह दिया जाता है कि मिट्टी अवश्य चढ़ायें। ऐसा करने पर मिट्टी में छुपे हुए प्यूपा उपर आ जायेंगे और परभक्षी कीटों द्वारा सेवन किया जा सकता है।
  • पौधों के कण्ड में बालू डालने पर भी इस कीट के प्रकोप में कमी देखी गई है।
  • कीट के प्रकोप की प्रारम्भिक अवस्था में इमावेक्टीन बैंजोएट-5 एस.जी. की एक मि0ली0 दवा की5 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।
  • अधिक प्रकोप की अवस्था में फसल परक्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल5 एस.सी. दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा को 2.5 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें और प्रयास रहे कि दवा फसल के कण्ठ में जाए। इस प्रकार अन्दर छिपे पिल्लू दवा के सम्पर्क में आने पर नष्ट हो जायेंगे।

Authors:

डा0 अनिल कुमार, डा0 हरी चन्द एवं डा0 ए0के0 सिंह

ईख अनुसंधान संस्थान

डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय

पूसा, समस्तीपुर- 848 125

 

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