Bakanae disease of rice in basmati rice: Symptoms and control measures

बकाने रोग, धान (ओरायजा सटाइवा एल.) की फसल के उभरते हुए रोगों में से एक है। भारत में यह रोग रोग पहली बार थॉमस (1931) द्वारा सूचित किया गया था। यह रोग देश के विभिन्न भागों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, असम, महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ओडिशा आदि से रिपोर्ट किया गया है।

भारत में बकाने रोग पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंण्ड में अधिक गंभीर सूचित किया गया है जहाँ बासमती की किस्में उगाई जाती हैं। जापानी भाषा में ‘बकाने’ का शाब्दिक अर्थ बुरी या बेवकूफीपूर्ण पौध होता है जो इस रोग के विशिष्ट लक्षण, सामान्य से अधिक लम्बा होने की ओर इंगित करता है।

इस रोग को गुणात्मक और मात्रात्मक नुकसान के लिए जाना जाता है। उपयुक्त पर्यावरणीय स्थितियों में रोग को दुनिया के विभिन्न कोनों में 70% तक की कमी का कारण माना जाता है।

रोगजनक:

बकाने एक कवक जनित रोग है जो फ्यूजे़रियम फ्यूजिकुरोई के कारण होता है । यह कवक जिबरेलिन्स एवं अन्य उपापचयजों जैसे कि कैरोटिनायड्स, बीकावेरिन एवं फ्यूजे़रिन का उत्पादन करते हैं।

रोग लक्षण:

बकाने रोग को विभिन्न प्रकार के लक्षणों के लिए जाना जाता है, जिसमें बुवाई से लेकर कटाई तक विभिन्न प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं । प्ररूपी लक्षणों में प्राथमिक पत्तियों का दुबर्ल हरिमाहीन तथा असमान्य रूप से लम्बा होना है ।

हालाँकि इस रोग से संक्रमित सभी पौधे इस प्रकार के लक्षण नही दर्शाते हैं क्योंकि संक्रमित कुछ पौधों में क्राउन विगलन भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप धान के पौधे छोटे (बौने) रह जाते हैं। फसल के परिपक्वता के समीप होने के समय संक्रमित पौधे, फसल के सामान्य स्तर से काफी ऊपर निकले हुए हल्के हरे रंग के ध्वज-पत्र युक्त लम्बी दौजियाँ (टिलर्स) दर्शाते हैं।

संक्रमित पौधों में दौजियों की संख्या प्रायः कम होती है और कुछ हफ्तों के भीतर ही नीचे से ऊपर की और एक के बाद दूसरी, सभी पत्तियाँ सूख जाती हैं। कभी-कभी संक्रमित पौधे परिपक्व होने तक जीवित रहते हैं किन्तु उनकी बालियाँ खाली रह जाती है ।

संक्रमित पौधों के निचले भागों पर सफेद या गुलाबी कवक जाल वृद्धि भी देखी जा सकती है। भारत में अतिसंवेदनशील किस्म पूसा बासमती 1121 में विभिन्न प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं जिसमें नि‍म्‍न लक्षण जैसे  असमान्य रूप से लम्बे पीले पौधे, असमान्य रूप से लम्बे हरे पौधे,  सामान्य और सूखे पौधे,  रॉटेड पौधे,  खाली बालियाँ,  जड़ों का सड़ना और काला पड़ना ,  Adventitious जड़ निर्माण आदि प्रमुख हैं ।


बासमती धान में बकाने रोग के लक्षणः सूखे पौधे, असमान्य रूप से लम्बे पीले पौधे

बकाने रोग के लक्षणः कः सूखे पौधे, खः असमान्य रूप से लम्बे पीले पौधे

पूसा बासमती 1121 में बकाने रोग के लक्षण: असमान्य रूप से लम्बे पीले पौधे, असमान्य रूप से लम्बे हरे पौधे,  सामान्य और सूखा हुआ पौधा,  सूखा हुआ पौधा,  परिपक्व पौध में खाली बालियाँ

पूसा बासमती 1121 में बकाने रोग के लक्षण कः असमान्य रूप से लम्बे पीले पौधे, खः असमान्य रूप से लम्बे हरे पौधे, गः सामान्य और सूखा हुआ पौधा, घ: सूखा हुआ पौधा, चः परिपक्व पौध में खाली बालियाँ


पूसा बासमती 1121 की जड़ों में बकाने रोग के लक्षण:  Adventitious जड़ निर्माण, जड़ों का सड़ना और काला पड़ना

पूसा बासमती 1121 के जड़ों में बकाने रोग के लक्षण: क, खः जकल्‍पि‍त जड़ (Adventitious roots) निर्माण, गः जड़ों का सड़ना और काला पड़ना

रोग चक्र:

यह बीजजन्य रोग है। रोगग्रस्त बीज, निवेश द्रव का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। जिससे खेत में पौधे संक्रमित होतेहैं। तथा साथ ही यह रोग नए खेतों में भी पहुँच जाता है। पुष्पन अवस्था के समय बीजों में संक्रमण होता है।

गंभीर संक्रमण होने पर रोगजनक के बीजाणुओं (कोनीडिया) की उपस्थिति के कारण बालियाँ लालिमायुक्त दिखाई पड़ती हैं। मृदा के भीतर यह कवक मोटी कोशिका भित्तियुक्त कवक तंतुओं या मेक्रोकोनीडिया के रूप मे लगभग 4 महीने तक जीवित रहता है।

प्रायः यह देखा गया है कि कम तापमान में बकाने रोग प्रभावित पौधे बहुत कम होते हैं अथवा बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ते। 30 से 350 सें तक की सीमा में तापमान होना इस रोग के लिए अनुकूल है। नम मृदा अवस्था पौधों की सामान्य से अधिक लम्बाई वाले लक्षणो के लिए अनुकूल है, जबकि शुष्क मृदा अवस्था में पौधे बौने रह जाते हैं।

प्रबंधन:

  • रोग में कमी लाने के लिए साफ-सुथरे रोगमुक्त बीजों का प्रयोग करना चाहिए जिन्हें विश्वसनीय बीज-उत्पादकों या अन्य विश्वसनीय स्रोतों से खरीदा जाना चाहिए।
  • बोए जाने वाले बीजों से भार में हलके एवं संक्रमित बीजों को अलग करने के लिए नमकीन पानी का प्रयोग किया जा सकता है। ताकि बीजजन्य निवेश द्रव्य को कम किया जा सके।
  • गर्म जल से बीजोपचार प्रभावी है। इसके लिए पहले बीजो को 3 घन्टे तक सामान्य जल में भिगो दें और तत्पश्चात बीजों में विद्यमान कवक को नष्ट करने के लिए उन्हें 50-570 सें तापमान पर गर्म जल से 15 मिनट तक भिगोकर उपचारित करें।
  • 2 ग्रा प्रतिकिलो ग्राम बीज की दर से कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू पी का बीजोपचार उपयोगी है।
  • रोपाई के समय 1 ग्रा/ली पानी की दर से कार्बेंडाजिम (बाविस्टीन) 50 डब्ल्यू पी से 12 घंटे पौध उपचारित करे।
  • खेत को साफ-सुथरा रखे और कटाई के पश्चात धान के अवशेषों एवं खर पतवार को खेत में न रहने दें।
  • बकाने रोग से ग्रस्त पौधों के देखते ही तुरंत खेत से निकाल दें ताकि अन्य स्वस्थ पौधे संक्रमित न हो सकें।

Authors:

डा. बिष्णु माया बस्याल

वरिष्ठ वैज्ञानिक, पादप रोगविज्ञान संभाग

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली-110012

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.