FPO A boon for farm women empowerment and livelihood security

भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान सर्वविदित है | एक आंकलन के अनुसार आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाओं में से  80 प्रतिशत महिलाओं की जीविका कृषि सम्बन्धी गतिविधि पर निर्भर करती है | हाल में ही, (मई, 2020) फिक्की लेडीज ऑर्गनाइज़ेशन ने देश में महिलाओं के कृषि में योगदान के समीक्षा कर उनके सशक्तिकरण के लिए महिलाओं आधारित कृषक उत्पादन संघ की वकालत की है |

उनके अनुसार यह महिलाओं को  वाजिब हक तथा मान्यता प्रदान करने में मददगार होगी | देश के बहुसंख्यक कृषक (लगभग 86%) लघु एवं सीमांत श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, जिनके पास औसतन 1.10 हैo से कम जोत है |

आने वाले वर्षों में सामाजिक व्यवस्था के कारण इनके संख्या में वृद्धि होने के कारण तथा भूमि की जोत घटना अवश्यसंभावी है | इन श्रेणी के कृषक परिवारों  को खेती के समय होने वाले चुनौतियों जैसे तकनीक, उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, रसायन, कीटनाशक और समुचित वित्त की समस्याओं के कारण जीवन निर्वाह और भी चुनौती पूर्ण होगा |

इस का असर परिवार के पुरुष एवं महिला  सदस्य पर पड़ना लाजिमी है | वर्तमान सामाजिक परिवेश में महिला कृषकों  की आर्थिक स्वतन्त्रता लगभग न के बराबर है, तथा वे आर्थिक आवश्यकताओं के पूर्ति हेतु पूर्ण रूप से घर के मुखिया जो समान्यतः पुरुष होते हैं उन पर निर्भर करती हैं |

उपरोक्त धारणा की शुरुआत इस पृष्ठभूमि में हुई कि आधुनिक जीवन में स्त्री पुरुष के समानता के अधिकार पर एक प्रश्न चिन्ह है | इसके लिए कमजोर कड़ी को सशक्त करने कि जरूरत है जिसे कृषक उत्पादन संघटन माध्यम से पूरा किया जा सकता है |

कृषक उत्पादन संघटन  किसानों का एक समूह है, जो कृषि उत्पादन से जुड़ी हुई व्यावसायिक गतिविधि चलाते हैं | यह समूह कानूनी तौर पर को-ओपरेटिव, प्रोड्यूसर कम्पनी, सोसाइटीज कंपनी एक्ट के रूप में पंजीकृत होते हैं |

इसके निर्माण का मुख्य उद्देश्य किसानों के उत्पादन से लेकर बाजार तक की सभी समस्याओं का समाधान करता है | यह प्रतिभागियों को उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक,रसायन, कीटनाशक, समुचित वित्त और उपज का बाजार उपलब्ध कराते हैं |

देश में वर्ष 2018 तक 5000 कृषक उत्पादन संघटन थे जिनके गठन और बढ़ावा देने के लिए लघु कृषक कृषि व्यापार संघ, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम मिल कर निरन्तर कार्य कर रहे हैं |

हाल में ही कृषक उत्पादन संघटन को भारत सरकार के “आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम” के अंतर्गत शामिल किया है, तथा वर्ष 2019-24 तक 10,000 नए कृषक उत्पादन संघटन के निर्माण का लक्ष्य रखा है | महिलाएं इस अवसर का अधिक से अधिक लाभ अपने जिले के संबधित  संस्थाओं से संपर्क कर प्राप्त कर सकती हैं |

महिला सशक्तिकरण:

अनेक शोध पत्रों से यह साबित हुआ है की महिलाओं में स्वंय सहायता समूह द्वारा संगठित प्रयास के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से लाभ के अलावा परिवारिक तथा सामुदायिक स्तर पर विकास की अनेक संभावनाएं बढ़ जाती है | यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें महिलाओं के जीवन में परिवर्तन का अनुभव सीमित शक्ति एवं आर्थिक पहुँच के स्थिति से आर्थिक विकास की ओर होता है |

आर्थिक सशक्तिकरण, लिंग समानता, गरीबी उन्मूलन तथा समग्र आर्थिक विकास के आधार पर प्रत्यक्ष मार्ग को सुनिश्चित करती है | स्वंय सहायता समूह (एसएचजी) द्वारा महिलाओं को मूल्य संवर्धन तथा मूल्य श्रृंखला में शामिल करने पर ज्यादा से ज्यादा कार्य के अवसर पैदा होते हैं | इससे कृषि आधारित आय की हिस्सेदारी सकल पारिवारिक आमदनी में बढ़ती है |

कृषक उत्पादन संगठन के माध्यम से  महिला कृषकों द्वारा  स्थानीय स्तर पर कृषि आगत के उचित मूल्य पर खरीद से उत्पादित या मूल्य वर्धित वस्तु का लागत मूल्य कम आता है, जिसे स्थानीयतथा राष्ट्रीय स्तर पर  ई मार्केटिंग प्लेटफार्म पर आसानी से बिक्री किया जा सकता है | 

इससे विपणन संबंधी समस्याओं का समाधान होने से अधिक से अधिक महिलाओं का समूह आय सृजन गतिविधि में शामिल हो कर आर्थिक स्वतन्त्रता की ओर अग्रसर हो सकती हैं |  

आजीविका सुरक्षा के अवसर:

कृषि से जुड़ी  महिलाओं के लिए अनेक अवसर जैसे- जैविक सब्जी उत्पादन, छोटे मिल का संचालन, समूहिक खेती, मुर्गी पालन, मूल्य वर्धित उत्पाद (पापड़, आचार, जैम, जेली, दुग्ध उत्पाद), फूलों की खेती, बागवानी, बकरी पालन, मशरूम उत्पादन, प्राकृतिक रेशा से निर्मित हस्त शिल्प आदि उपलब्ध हैं |

इन उद्यमो की अपनी- अपनी विशेषताएँ हैं, जिसे स्थान विशेष के हिसाब से चुन कर आय सृजन का कार्य आगे बढ़ाया जा सकता है | इस तरह के व्यवसाय में स्थानीय संसाधन के साथ-साथ उपलब्श श्रम का रोजगार उपयोग भी होता है |

चूजों की बिक्री पटसन निर्मित हस्त शिल्प की बिक्री
पटसन रेशा से कलात्मक सामग्री का निर्माण  पटसन वस्त्र से बैग का निर्माण
  जैविक सब्जी उत्पादन  मशरूम उत्पादन

निम्न उद्धरणों में ऐसे दो प्रेरणादायक कथा की चर्चा की गई है | पहली कहानी उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिला के भटवारी भैली असोशिएशन के बारे में है | इस जिला के लटा ग्राम की महिलाओं (48 सदस्य) ने वर्ष 2008 में डेयरी आधारित कृषक उत्पादन संघटन की शुरुआत की | दूध उत्पादन के समस्या को चिन्हित कर उसका निराकरण किया | वन पंचायत की अनुमति से  खाली पड़ी जमीन में पहले मौसमी हरा चारा का उत्पादन किया |

बाद में इसका उपयोग बहुवर्षी चारा के लिए करने लगे, जिससे मृदा संरक्षण का भी कार्य हुया | उन्हे घरेलू कार्य पूरा करके के लिए अधिक समय मिलने के साथ- साथ चारा उत्पादन से अधिक आमदनी ( 1000-1200 रुपया प्रति माह के जगह 1500-2500 रुपया प्रति माह) की प्राप्ति हुई |

ग्राम  के कृषकों ने अपने व्यवहार में परिवर्तन (पशुओं को खुले चरने छोड़ने की जगह स्टाल फीडिंग) लाया | इससे व्यवसाय विकास सेवा की शुरुआत हुई | राज्य के पशु चिकित्सा विभाग द्वारा सहायता भी प्रदान की जाती है | ग्राम की महिलाओं द्वारा अन्य लोगों के लिए उदाहरण पेश किया कि किस तरह अनुपयोगी संसाधन (वन पंचायत की खाली पड़ी जमीन ) का विवेकपूर्ण इस्तेमाल से आर्थिक तरक्की प्राप्त की जा सकती है |

दूसरी कथा महाराष्ट्र के नंदुरबार एवं धुले जिला के आदिवासी बहुल क्षेत्र के सावित्री बाई महिला स्वंय सहायता समूह के बारे मे है | भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज़ फ़ाउंडेशन (BAIF), पुणे के तकनीकी मदद से वर्ष 2011 में मुर्गी पालन की एक मॉडल की शुरुआत कोंकणी, भील, पावरा जन-जातियों को अतिरिक्त आमदनी और लाभकारी स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए की गई |

मुर्गी पालन के लिए घर के पिछले हिस्से को चुना गया क्योंकि इससे प्रबंधन में आसानी, कम पूंजी की आवश्यकता तथा चिकन के लिए स्थानीय बाज़ार उपलब्ध थे | प्रत्येक प्रतिभागी परिवार 10 मुर्गीयों के एक समूह को पाल-पोष प्रति वर्ष दो से तीन हजार रुपया अर्जन के साथ-साथ मुर्गीयों का संख्या भी दोगुनी कर पाने में सक्षम थे |

इसके साथ–साथ वे अपने परिवार का पोषण सुरक्षा भी कर पायीं |  इस प्रयास में महिला सदस्यों का खुद आगे बढ़ कर आना, स्थानीय सुविधा का उपयोग (घर का पिछे का हिस्सा, स्थानीय बाजार) तथा बाईफ (बाइफ़) द्वारा तकनीकी जानकारी की सुविधा सफलता के मूल कारण थे |

इस तरह कृषक उत्पादन संगठन से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए पहले से परिचालित कृषक उत्पादन संगठन के गतिविधियों में मौजूद खामियों को दूर कर  इसे स्वंय सहायता समूह के आंदोलन के स्तर तक ले जाने की आवश्यकता है | सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जागरूकता, समूह-चर्चा, प्रचार- प्रसार, प्रशिक्षण आदि  के माध्यम से हितधारकों को और भी प्रेरित करने की आवश्यकता है |


Authors:

1Shamna. A   and 2Shailesh Kumar, 

Senior Scientist1, Principal Scientist2

ICAR CRIJAF, Barrackpore , Kolkata

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