Environmental friendly agriculture through bio fertilizers

खेत की मिट्टी एक जीवंत माध्यम है जिसमें प्रति ग्राम करोड़ों की संख्या में लाभदायक/मित्र जीवाणु पाए जाते हैं। कुछ पौधों जैसे कि  चना, सोयाबीन, मूंगफली आदि फलीदार फसलों की जड़ों पर गुलाबी गांठों के रूप में भी सूक्ष्म जीवाणु निवास करते हैं। यह जीवाणु अपनी जैविक क्रियाओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण या मिट्टी में अनुपलब्ध दशा में मौजूद पोषक तत्वों को उपलब्ध दशा में परिवर्तित करते  रहते हैं तथा फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान  प्रदान करते हैं।

सघन खेती में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से इन मित्र जीवाणुओं की संख्या में कमी आई है तथा मिट्टी स्वास्थ्य में भारी गिरावट आई है। इसकी उत्पादन क्षमता क्षीण हुई है। अतः आज यह आवश्यक हो गया है कि रासायनिक उर्वरकों व जैव उर्वरकों/ जीवाणु खादों का मिल जुलकर संतुलित प्रयोग किया जाए।

जैव उर्वरक क्या हैं

प्रायः जड़ों या खेत की मिट्टी में इन मित्र जीवाणुओं की आबादी कम होती है इसलिए प्रयोगशाला में इनको निकाल कर और शुद्ध करके इनकी आबादी को बढ़ा लिया जाता है। इनकी आवश्यक मात्रा को कुछ अन्य पदार्थों जैसे कि चारकोल, पीट, लिग्नाइट आदि के साथ मिलाकर पैकेट में सील कर दिया जाता है। इस तरह तैयार जैविक/जीवाणु खाद को जैव उर्वरक कहा जाता है।

जैव उर्वरक का महत्व

जैव उर्वरक प्राकृतिक, सस्ती और प्रभावशाली जैविक खाद का उत्तम स्रोत हैं। इनके इस्तेमाल से फसल की उपज और भूमि की उपजाऊ शक्ति पर अपेक्षित प्रभाव पड़ता है और वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता। इनको रासायनिक उर्वरकों के साथ उनके पूरक या अंश के तौर पर एकीकृत रूप से इस्तेमाल करके भली-भांति लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

एक अनुमान के अनुसार फलीदार फसलों में राइजोबियम जैव उर्वरक के इस्तेमाल से विभिन्न परिस्थितियों में 20-120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हे. भूमि में अवशेष के तौर पर उपलब्ध हो सकती है। आगामी फसल की उपज पर भी जैव उर्वरक का लाभप्रद प्रभाव पड़ता है।

जैव उर्वरक के लाभ

  • यह एक सस्ती खाद है जिससे कम कीमत में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।
  • इसका इस्तेमाल काफी कम मात्रा में अपेक्षित होता है।
  • इसका इस्तेमाल सिंचित एवं असिंचित खेती में समान रूप से लाभकारी होता है।
  • इसके इस्तेमाल से 10-20% तक पैदावार में वृद्धि हो सकती है।
  • इसके इस्तेमाल से भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में सुधार होता है तथा उसकी उपजाऊ शक्ति बेहतर होती है।
  • लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं की क्षारीयता कम हो जाती है व जमीन की संरचना में सुधार होता है।
  • इनके प्रयोग से उपज के अतिरिक्त गन्ने में शर्करा, तिलहनी फसलों में तेल तथा मक्का एवं आलू में स्टार्च की मात्रा में बढ़ोतरी होती है।
  • आगामी फसल की उपज पर भी जैव उर्वरक का लाभप्रद प्रभाव पड़ता है।
  • विटामिन व हारमोंस रिलीज होते हैं जिससेपौधों का तेजी से विकास होता है।
  • फसलों के बीज अंकुरण, फूलने व पकने की प्रक्रिया में तेजी आती है।
  • ये पर्यावरण मित्र व प्रदूषण रहित हैं।
  • ये लाभदायक जीवाणुओं को मिट्टी में बने रहने व प्रचुर मात्रा में पैदा होने में सहायता करते हैं।

जैव उर्वरकों से तत्वों की प्राप्ति 

  • राइजोबियम द्वारा 50-200 कि.ग्रा. प्रति हे. नाइट्रोजन का स्थिरीकरण किया जाता है।
  • एजोटोबेक्टर द्वारा 20-40 कि.ग्रा. प्रति हे. नाइट्रोजन का स्थिरीकरण किया जाता है।
  • एजोस्पिरिलम द्वारा 20-40 कि.ग्रा. प्रति हे. तक नाइट्रोजन का स्थिरीकरण किया जाता है।
  • ब्लू ग्रीन एलगी द्वारा 30-60 कि.ग्रा. प्रति हे. वायुमंडलीय नाइट्रोजन का अमोनिया में यौगिकीकरण किया जाता है।
  • अजोला द्वारा 40-80 कि.ग्रा. प्रति हे. तक वायुमंडलीय नाइट्रोजन का अमोनिया में यौगिकीकरण किया जाता है।


जैव उर्वरकों की किस्में -

जैव उर्वरकों को मुख्यत: तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है:

  1. सहजीवी तौर पर वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु जैसे कि राइजोबियम।
  2. स्वतंत्र तौर पर नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करने वाले जीवाणु जैसे कि एजोटोबेक्टर, एजोस्पिरिलम, अजोला, ब्लू ग्रीन एलगी आदि।
  3. भूमि में मौजूद तत्व घोलक जीवाणु जैसे कि फास्फोरस घोलक जीवाणु (PSM) या बैक्टीरिया (PSB), वैसीक्युलर आरवैसीक्युलर माइकोराइजा (VAM) आदि।

उपरोक्त जीवाणुओं में से राइजोबियम, ब्लूग्रीन एलगी और अजोला का इस्तेमाल विशेष फसल के लिए ही किया जाता है अन्यथा एक फसल के लिए उपयुक्त जीवाणु किसी अन्य फसल के लिए लाभदायक नहीं होगा।  उदाहरण के तौर पर माश के लिए उपलब्ध जीवाणु का टीका मात्र माश के लिए ही लाभकारी  होगा।

इसी प्रकार ब्लू ग्रीन एलगी और अजोला का इस्तेमाल मात्र खड़े पानी वाली धान की फसल के लिए ही किया जाना चाहिए। जबकि एजोटोबेक्टर, एजोस्पिरिलम, फास्फोरस घोलक जीवाणु और वैम का टीका लगभग हर फसल में लाभप्रद तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है जिसे बुवाई के समय इस्तेमाल करना चाहिए।

जैव उर्वरकों का इस्तेमाल कैसे करें

इन राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, एजोस्पिरिलम, वैम आदि जीवाणुओं का टीका, बीज उपचार, पौध जड़ उपचार, कंद उपचार या मृदा उपचार द्वारा किया जा सकता है जिसकी विधि इस प्रकार है:

बीज उपचार विधि -

जैविक उर्वरकों के प्रयोग की यह सर्वोत्तम विधि है। 500 मि.ली. सादे पानी में 50 ग्रा. गुड घोलकर उसमें100 ग्रा. जैव उर्वरक कल्चर का एक पैकेट घोल लें। इस घोल को 10-12 कि.ग्रा. बीज पर डालें। खाद और बीज को अच्छी तरह हल्के हाथों से मिलाएं ताकि तमाम बीज पर घोल की परत चढ़ जाए। अथवा; बीज को साफ फर्श/ प्लास्टिक आदि की साफ-सुथरी शीट पर फैलाएं। पानी का हल्का छींटा मारकर इस बीज को गीला कर लें।

गीले बीज पर जैव उर्वरक का पाउडर छिड़क दें। बीज को तीन - चार बार हाथों से हल्के से उलट पुलट दें ताकि तमाम बीज पर जीवाणु खाद की परत चढ़ जाए। उपचारित बीज को छाया में सुखाकर तुरंत बो दें या बुवाई तक उसे ठंडे छायादार स्थान पर रखें। बीज अंकुरण पर ये जीवाणु जड़-मूल रोग के सहारे पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रन्थियों (नोड्यूल्स) का निर्माण करते हैं, ये ग्रन्थियाँ ही नत्रजन स्थिरीकरण करती हैं।

पौध जड़ उपचार विधि -

रोपी जाने वाली फसलों जैसे कि धान, सब्जियां, फल, फूल आदि की पनीरी की जड़ों कोसाफ कर रोपाई से पहले कल्चर के घोल में लगभग 5-10 मिनट तक डुबोने के बाद उनकी रोपाई जल्द से जल्द करें। इस काम के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरक कल्चर के एक पैकेट को 10 लीटर पानी में मिला लें जो प्रायः 200 पौधों के उपचार के लिए पर्याप्त होगा।

कंद उपचार विधि -

कंद वाली फसलों जैसे कि आलू, अदरक, अरबी के 10 क्विंटल कंदों को बिजाई से पहले 1-2 कि.ग्रा. जैव उर्वरक कल्चर को 50 - 100 लीटर पानी में घोलकर लगभग 5-10 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें। उपचारितकंदों की बिजाई जल्द से जल्द करें।

मृदा उपचार विधि -

कम अवधि वाली फसलों के लिए खेत से 90-120 कि.ग्रा. भुरभुरी मिट्टी या गोबर की गली सड़ी खाद लें। मिट्टी आदि को साफ फर्श या प्लास्टिक की शीट पर फैला दें। फैली मिट्टी आदि पर 3-4 कि.ग्रा. जीवाणु खाद का पाउडर छिड़क कर दोनों को अच्छी तरह मिला दें।

ज्यादा अवधि वाली फसलों के लिए खेत की 120-150 कि.ग्रा. भुरभुरी मिट्टी या गोबर की गली सड़ी खाद में 4-5 कि.ग्रा. जीवाणु खाद का पाउडर मिलाएं।

यह मिश्रण एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है। अथवा; मिट्टी के मिश्रण को बुवाई करते समय हल के पीछे नालियों में डालें या तैयार खेत की सतह पर बुवाई से पहले बुरक दें। प्रथम तरीका थोड़ा महंगा जरूर है परंतु इससे बेहतर परिणाम की आशा की जा सकती है।

यूं तो जीवाणु खाद का उपरोक्त किसी भी विधि से प्रयोग कर सकते हैं। परंतु फलीदार और धान्य फसलों के लिए बीज उपचार आसान है और प्रायः बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं, खासतौर पर राइजोबियम खाद से। 

अजोला फर्न और ब्लू ग्रीन एलगीशैवालकाई (BGA)

इन दोनों (फर्न एवं एलगी) की पौध को पहले अलग तलाब या टैंक में खड़े पानी में उगा कर बढ़ाना पड़ता है। इनकी तेज बढ़वार के लिए तलाब या टैंक में खादों की संतुलित मात्रा डालना और बराबर ध्यान रखना आवश्यक होता है। आमतौर पर अजोला की बढ़वार नम और ठंडे इलाकों में गर्म और खुश्क इलाकों की तुलना में बेहतर होती है।

तैयार एलगी को धान की रोपाई के बाद खेत के खड़े पानी में डाल दें। 5 टन अजोला प्रति हे. हरी खाद से लगभग 30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन उपलब्ध हो सकती है।

तालिका : विभिन्न फसलों के लिए जैविक उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधि

क्र. सं. फसल जैव उर्वरक मात्रा (प्रति हे.) प्रयोग विधि प्रयोग का समय
1. चना, उड़द, मटर, मसूर  राइजोबियम 400-600 ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
पीएसबी 1-2 कि.ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
2. सोयाबीन राइजोबियम 400-600 ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
पीएसबी 1-2 कि.ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
3. बरसीम, मेथी राइजोबियम 400-600 ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
पीएसबी 1-2 कि.ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
4. गेहूं, जो, मक्का एजोटोबेक्टर 1-2 कि.ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
5. धान एजोस्पिरिलम 2-3 कि.ग्रा. पौध उपचार पौधारोपण के समय
ब्लू ग्रीन एलगी 10 कि.ग्रा. छिड़क कर पौधारोपण के 1 सप्ताह बाद
6. तिलहन एजोटोबेक्टर 500-800 ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
पीएसबी 2-3 कि.ग्रा. पौध उपचार बुवाई के समय
7. आलू एजोटोबेक्टर 4-5 कि.ग्रा. मृदा/कंद उपचार बुवाई के समय
8. भिंडी, मूली एजोटोबेक्टर/ एजोस्पिरिलम 400-600 ग्रा. बीज उपचार  बुवाई के समय
9. गाजर, शलगम, कद्दू वर्गीय सब्जियां एजोटोबेक्टर 200 ग्रा. बीज उपचार बुवाई के समय
10. गोभी वर्गीय सब्जियां, टमाटर, प्याज, बैंगन, मिर्च एजोटोबेक्टर/ एजोस्पिरिलम  1.5-2 कि.ग्रा. पौध उपचार पौधारोपण के समय

जैव उर्वरक के इस्तेमाल से संबंधित सावधानियां

  • जैव उर्वरक को धूप या गर्मी से बचाएं। इन्हें ठंडे छायादार व सूखे स्थान पर 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखें।
  • पैकेट को उस पर लिखित अंतिम तारीख से पहले इस्तेमाल करें।
  • जैविक उर्वरक के पैकेट पर अनुमोदित फसल विशेष के लिए ही उसे इस्तेमाल करें।
  • पैकेट को इस्तेमाल करने के समय ही खोलें और एक बार में उतना ही बीज उपचारित करें जितना तुरंत बोया जा सके।
  • जैव उर्वरक का पैकेट खोलने पर एक बार में ही सारी मात्रा का प्रयोग करें।
  • कल्चर को कभी भी गर्म पानी में मिला कर इस्तेमाल न करें।
  • यदि बीज को कृषि रासायनों से भी उपचारित करना हो तो जीवाणु खाद की मात्रा दुगनी कर दें।
  • यदि जैव उर्वरक के अलावा अन्य रासायनों से भी बीज उपचार करना हो तो सबसे पहले फफूंदी नाशक दवा से, फिर कीटनाशक दवा से और अंत में जीवाणु खाद से क्रमशः बारी-बारी उपचारित करें। यदि कवकनाशी दवा से भी बीज उपचार करना हो तो ऐसा सर्वप्रथम और बुवाई से कम से कम तीन दिन पहले कर लें।
  • रासायनिक खादों या कृषि रासायनों को सीधे जैव उर्वरक के साथ न मिलाएं।
  • उपचारित बीज, कंदों या पौध को तुरंत लगा दें।

 जैव उर्वरकों के कारगर होने के लिए परिस्थितियां

  • मिट्टी का अनुकूल तापमान 20 - 25 डिग्री सेल्सियसहोना।
  • मिट्टी में जैविक पदार्थ 50% होना।
  • मिट्टी में नमी 30 - 40% होना ।
  • मिट्टी का पीएच मान5 - 7.5 होना।

जैव उर्वरकों के कारगर हो पाने की परिस्थितियां

  • जमीन में उस जाति के जीवाणुओं की अधिक आबादी या शक्तिशाली जाति का होना जिसका कल्चर इस्तेमाल किया गया है।
  • मृदा का पीएच मान, जल, तापमान या हवा का संचार अनुकूल न होना।
  • जमीन में इस्तेमाल किए गए जीवाणु की किसी विपक्षी जीवाणु प्रजाति का बहुतायत में मौजूद होना।
  • पैकेट को निर्धारित तारीख के बाद इस्तेमाल करना।
  • जैव उर्वरक कल्चर को अनुमोदित फसल पर इस्तेमाल न करना।
  • इस्तेमाल से पहले पैकेट या उपचारित बीज को धूप या गर्म स्थान पर देर तक रखना अथवा उसे घोल बनाते समय गर्म पानी में डाल दिया जाना जिसके फलस्वरुप जीवाणुओं का नष्ट होना।

जैव उर्वरक कहां से प्राप्त करें

जैव उर्वरक से पूरा लाभ प्राप्त करने हेतु जीवाणुओं का उसी या नजदीकी क्षेत्र से लिया जाना जहां उनका इस्तेमाल किया जाना हो; प्रायः अधिक लाभकारी रहता है। इसलिए जहां तक संभव हो सके अपने क्षेत्र के कृषि विश्वविद्यालय या कृषि विभाग द्वारा तैयार कल्चर को प्राथमिकता देनी चाहिए।


Authors

Sanjeev K. Chaudhary, Manoj Kumar and Neeraj Kotwal

Regional Horticultural Research Sub-station

 Bhaderwah, SKUAST-Jammu (J&K)-182222.

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