यह एक सर्वमान्य तथ्य है की वर्त्तमान कृषि में रासायनिक खाद और हानिकारक कृषि रसायनो का उपयोग बहुत अधिक बढ़ गया है और इससे न सिर्फ पर्यावरण बल्कि मृदा के पारिस्थितिक तंत्र पर भी बहुत नकारात्मक प्रभाव पढ़ रहा है l मिटटी अपना वास्तविक स्वरुप खोती जा रही है, खेत बंजर होते जा रहे है, मिटटी की जल धारण क्षमता लगातार घटती जा रही है, जिससे बढ़ आना, सूखा पढ़ना, भूमिगत जलस्तर का कम होना आदि दुष्परिणाम सामने आ रहे है।

इन उर्वरको और रसायनो के उपयोग से होने वाले तात्कालिक लाभ के लिए हम एक बहुत बढ़ी कीमत चूका रहे है। इनका नकारात्मक प्रभाव अब वैश्विक स्तर पर दिखने लगा है और विश्व के कई देश अब सस्टेनेबल या टिकाऊ खेती की तरफ तेजी से अग्रसर है।

संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के अनुसार, वर्ष 2015 के बाद से विश्व में 100 मिलियन हेक्टेयर से ज्यादा भूमि प्रतिवर्ष बंजर बनती जा रही है जिसकी एक प्रमुख वजह पर्यावरण में हो रहा यह परिष्तिकीय असंतुलन है। यह ट्रेंड हमारे देश में भी लगातार बढ़ रहा है।

कृषि मंत्रालय, भारत सरकार की 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 94.5 मिलियन हेक्टेयर भूमि अपनी उपजाऊ क्षमता खो रही है जो कुल कृषि योग्य भूमि (154 मिलियन हेक्टेयर) का लगभग 60 % है। 

मिटटी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के लिए प्राकृतिक खेती या सस्टेनेबल खेती आज की आवश्यकता बनती जा रही है, इससे न सिर्फ खेती की लागत में कमी आएगी बल्कि धीरे धीरे मिट्टी की उर्वरता के सुधरने से फसल उत्पादन भी बढ़ेगा। मिट्टी की उर्वरा शक्ति सुधारने के लिए "संजीवक" एक प्रमुख और महत्वपूर्ण जैविक खाद है।

जैविक घोल - संजीवक

बेहतर फसल उत्पादन के लिए मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की समुचित आबादी का होना जरुरी है परन्तु अत्यधिक उर्वरको और रसायनो के उपयोग से आज इनकी संख्या बहुत कम हो गयी है। जब तक मिटटी में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की आबादी नहीं बढ़ाई जाती मिटटी की उत्पादकता को नहीं बढ़ाया जा सकता और इसके लिए सबसे अच्छा, आसान और असरदार तरीका है "संजीवक" का उपयोग।

संजीवक एक प्रकार का जैविक घोल है जिसमे खेती के लिए लाभदायक सूक्ष्मजीव बहुतायत में होते है। जब इस घोल को नमी वाले खेत में डाला जाता है तो यह तेजी से अपनी संख्या को बढ़ाते है और मिट्टी में पहले से उपस्थित कार्बनिक पदार्थ, अक्रियाशील पोषक तत्वों को मिट्टी में सड़ाकर पोधो के लिए उपलब्ध करा देते है साथ ही मृदा की सामान्य संरचना को सुधारने में भी सहायक होते है।

संजीवक बनाने की विधि :-

संजीवक बनाने के लिए सबसे पहले संजीवक या किसी ड्रम में 100 लीटर पानी लेकर उसमे 30 किलो गाय का ताजा गोबर, 3 लीटर गोमूत्र, 500 ग्राम गुड़ तथा कुछ मात्रा में बेसन मिलाते है। इस घोल को अगले 7 से 10 दिनों तक सुबह - शाम 10 मिनट के लिए साफ लड़की की सहायता से हिलाते है। 7 - 10 दिनों के बाद घोल में सूक्ष्मजीवों की संख्या अधिकतम हो जाती है और यह घोल खेत में डालने के लिए तैयार हो जाता है। एक बार बनने के बाद इसे अगले 10 - 15 दिनों के उपयोग कर लेना चाहिए अथवा इसमें फिर से गुड़ और बेसन मिला देना चाहिए।

संजीवक उपयोग एवं मात्रा :-

  • संजीवक को सिंचाई के साथ (पानी के साथ बूंद-बूंद करके) या स्प्रे के माध्यम से खेत में डाला जाता है।
  • ड्रिप सिंचाई विधि में इसे सीधे फर्टिगेशन टैंक के माध्यम से पानी के साथ मिलाकर दिया जा सकता है।
  • साधारण सिंचाई के साथ देने या स्प्रे के लिए पहले वर्ष में 1000 लीटर प्रति एकड़, दूसरे वर्ष 800 लीटर प्रति एकड़, तीसरे वर्ष 600 लीटर प्रति एकड़ उपयोग करना चाहिए। ड्रिप सिंचाई विधि की दक्षता अधिक होती है, इसलिए इस विधि में संजीवक की मात्रा थोड़ी कम की जा सकती है।
  • प्रति एकड़ 3 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रत्येक 3 वर्ष में एक बार उपयोग करने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा संतुलित बनी रहती है जो अच्छी फसल के लिए जरुरी है।

संजीवक के लाभ:

  • मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ाने में सहायता करता है।
  • फसलों को सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति कर फसलों के विकास को बढ़ावा देता है।
  • जैव अपशिष्ट को नष्ट करने में मदद करता है।
  • मिट्टी की संरचना को सुधारने में सहायता करता है।

संजीवक केे अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :-

  • संजीवक के साथ कोई अन्य रसायन या खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • फसल कटाई के बाद खेत में पराली को काटकर मिला देना चाहिए, इन्हे अपघटित करके मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाते है।
  • गेहू, चने या अन्य रबी फसलों में इसे 2 से 3 बार (बुवाई से पहले, बुवाई के 20 -25 दिन बाद, बुवाई के 40 - 45 दिन बाद) उपयोग करने से बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते है।
  • फसल कटाई के बाद खेत में आग नहीं लगाना चाहिए।

Authors:

Lakhan Patidar

Senior Agriculture Officer

Narmada Landscape Restoration Project

Global Green Growth Institute (GGGI), India

This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.