सामान्य बीमारियों के लिए प्रमुख औषधीय पौधे

प्राचीन काल से ही मनुष्य सामान्य रोगों के शमन के लिए अपने दैनिक जीवन में औषधीय पौधों का प्रयोग करते आ रहा है। इस आधार पर सामान्य रोगो के चिकित्सा को सर्वसुलभ तथा सस्ता बनाया जा सकता है। अपने पूरे जीवनकल में हम इन औषधीय पौधों का उपयोग किसी न किसी रूप में करते हैं। इनमें मारक गुण काम और शोधक अधिक होता है।

ये औषधीय पौधे रोगों को दबाती नहीं, वरन उखाड़ती और भागती हैं।  जीवन-शक्ति संवर्धक औषधीय पौधे हमारे आस-पास ही खेतों, जंगलों में बहुताय उपलब्ध हैं। सही औषधीय पौधे उपुक्त क्षेत्र से, उपयुक्त मौसम में एकत्र की जाए, उन्हें सही ढंग से रखा और प्रयुक्त किया जाए तो आज भी इनका चमत्कारी प्रभाव देखा जा सकता है।

आहार एवं औषधि प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाली औषधीय पौधे अपने आपमें पूर्ण हैं, इनमें प्रत्येक की संरचना अनेक यौगिकों, क्षारों, रसायनों एवं खनिजों के सम्मिश्रण से हुई हैं, इसलिए इनमें प्रत्येक औषधीय पौधे परिपूर्ण हैं। इनसे कठिन रोगों की सरल चिकित्सा संभव हैं।

प्रत्येक औषधीय पौधे स्वयं में समग्र हैं। इनका प्रयोग वैधकीय सलाह से ही करें। कुछ औषधीय पौधों को अपने घर के आस-पास या गृहवाटिका में लगा कर उनका लाभ ले सकते हैं।

1. ब्राम्ही (बाकोपा मोनिएरी) -

यह पौधा भारत के सभी प्रदेशों में नम स्थानों में पाया जाता हैं।  प्राय: यह भूमि प्रसारी होता हैं। ब्राम्ही का सबसे बेशकीमती लाभ स्मृति, एकाग्रता और दिमाग को उत्तेजित करने की क्षमता है। तनाव और चिंता से राहत देने के लिए ब्राम्ही की पत्तियों (केवल एक समय में २-३) को चबाया जा सकता हैं। 

इसको चाय में या सामान्य पत्तियों को खाने से कफ और बलगम को बाहर करके और सूजन को दूर करके, तेजी से गले और सांस में रहत  प्रदान करती है। इसके निमयित प्रयोग से इसमें मौजूद विभिन्न एन्टीआक्सीडेंट और पोषक तत्व हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करते है।

मिर्गी के कारण हुई सूजन को काम करने में मदद करता है। ब्राम्ही एक शामक और सुखदायक औषधि है, साथ ही इसमें सूजन विरोधी गुण भी है।  ब्राम्ही अल्सर जैसे जठरांत्र विकारों से राहत प्रदान करने में मदद दिला सकता हैं। 

2. जटामांसी (नारडोस्टैकिस जटामांसी) -

जटामांसी या बालछड़ मुख्य रूप से हिमालय में पाई जाती हैं। मस्तिष्क या सिर से जुड़ी समस्याओं के लिए जटामांसी औषधि एक रामबाण इलाज हैं। यह तंत्रिका तंत्र में हार्मोन्स के संतुलन को बनाये रखने में मदद करता है और इस तरह यह मिर्गी के रोगियों को स्ट्रोक के खतरे से बचाती है। जटामांसी नींद की गुणवत्ता में सुधार और अनिद्रा को कम कर देती है।

जटामांसी अवसाद का मुकाबला करने में मदद करती है। यह आक्रामक आत्म विनाशकारी और हिंसक व्यवहार को कम करता हैं। यह बेचैनी, गुस्सा, कुंठा, चिड़चिड़ापन, नींद और ऊर्जा की कमी को भी कम करता हैं। यह जीवन शक्ति और ताकत बढ़ती हैं।

परंम्परागत रूप से, यह बालो को काला और चमत्कदार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह रूशी को भी नियंत्रित करता हैं। चिकने, रेशमी, मोटे और स्वस्थ बालो के लिए इसका नियमित रूप से प्रयोग करें। 

3. मुलेठी (ग्लीसिररहिजा गलब्रा) -

मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा है। आमतौर पर मुलेठी के तने को छाल सहित सुखाकर उसका उपयोग किया जाता हैं। इसके तने में कई औषधीय गुण होते हैं। इसकी तासीर ठंडी एवं स्वाद में मीठा होता है। यह दांतों, मसूड़ों और गले के लिए बहुत फायदेमंद है। इसी वजह से आज के समय में कई टूथपेस्ट में मुलेठी का इस्तेमाल किया जाता है।

यह गले की खराश, सर्दी, खॉंसी और दमा के रूप में श्वसन तंत्र में संक्रमण का इलाज करती हैं। इसके आलावा इसके रोगाणुरोधी, जीवाणुरोधी और एंटीवाइरल गुण साँस की बीमारियो और बलगम का कारण होने वाले रोगाणुओ से लड़ते है। मुलेठी की जड़ कब्ज, अम्लता, सीने में जलन, पेट में अल्सर जैसी पाचक समस्याओ के इलाज में सहायक है।

मुलेठी को एंटीऑक्सीडेंट का पावर हाउस भी कहा जाता है क्योंकि इसमें आपको निरोग बनाकर रखने वाले कई पोषक तत्व पाए जाते है। नियमित रूप से मुलेठी का सेवन करने से न सिर्फ गिरते बालों की समस्या दूर होती हैं बल्कि गंजेपन की समस्या भी दूर होती हैं। कम उम्र में बाल सफेद होने की समस्या दूर होती है और कई तरह के स्कैल्फ इन्फेक्शन से भी छुटकारा मिलता हैं।

4. मकोय (सोलनम निग्रुम) -

भारतवर्ष में मकोय खरपतवार के रूप में पाया जाता हैं। इस लिए मकोय का उपयोग हम नहीं कर पाते। मकोय का उपयोग साँस सम्बन्धी विकारों को दूर करने, कुष्ठ और बुखार में किया जाता है। किड़नी, सूजन, बवासीर, दस्त में भी इसका सेवन से लाभ पहुँचता हैं। मकोय को त्रिदोष नाशक माना जाता हैं अर्थात वात-पित और कफ नाश करने वाला।

यदि नियमित रूप से सीमित मात्रा में मकोय का सेवन किया जाए तो रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनती है। मकोय का फल फाइबर से भरपूर होता है इसलिए पेट को साफ रखने में मददगार होता हैं। ठंड़क के मौसम में सर्दी-खांसी होने पर मकोय का सेवन करने से लाभ मिलता हैं।

मकोय के पत्ते  के रस को लेप के रूप में लगाए इससे दाद, खाद, तथा जीवाणु से पैदा होने वाले धावो में लाभ होता हैं। 

5. भूमि आँवला (फाइलैन्थस फ्रातेर्नुस) -

भूमि आँवला भारत के सभी प्रांतो में जंगली रूप में पाया जाता है; किन्तु वर्षा ऋतू में यह अधिक मात्रा में सभी स्थानों पर उगता देखा जा सकता हैं। इसके पूरे पंचांग का प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता हैं। यह कफ विकार, पेशाब से सम्बन्धी बीमारी, भूख की कमी को दूर करने और कामोत्तेजना को बढ़ाने में मदद करता हैं।

भूमि आँवला से बनी दवाइयों का इस्तेमाल लिवर से जुड़ी बीमारियों के लिए किया हैं। यह गैस्ट्रिक एसिड को भी कम करता हैं। साथ ही, यह अल्सर को रोकने में भी मदद करता हैं। आयुर्वेद के अनुसार, भुई आँवला पित्त का संतुलन बनाए रखता हैं जिससे अपच और एसिडिटी की समस्या नहीं होती हैं।

यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमन्द हैं क्योंकि यह रक्तशर्करा के स्तर को संतुलित रखता हैं। यह रक्त शोधक यानी खून को साफ करने की दवा भी हैं। खून साफ होने की वजह से त्वचा की समस्या ख़त्म हो जाती है। 

6. सर्पगन्धा (रौवोल्फिया सर्पेन्टाइना) -

सर्पगंधा भारत में सदियों से पारंम्परिक आयुर्वेद में प्रयोग किया जा रहा हैं। यह औषधि सर्पदंश में बहुत लाभदायक है इसलिए इसका नाम सर्पगंधा हैं। सर्पगंधा की जड़ों का रस तथा अर्क उच्च रक्तचाप के लिए बहुमूल्य औषधि है। यह धमनियों का सख्त होना, दिल का दौरा स्ट्रोक जैसी स्थितियों को रोकने में मदद कर सकता है।

घबराहट तथा पागलपन के उपचार में सर्पगंधा की जड़ो का प्रयोग किया जाता है। भारतीय सर्पगंधा अनिद्रा, बेचैनी या सामान्य थकान से पीड़ित लोगो को अपने नियमित कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है। इसके अलावा सर्पगंधा का उपयोग ज्वर, हैजा तथा अतिसार के उपचार के लिए किया जाता हैं।

7. अशोक (सराका असोका) -

जिस वृक्ष के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे 'अशोक' कहते हैं अथवा जो स्त्रियों के समस्त शोकों को दूर भगाता है, वह वृक्ष दिव्य औषधि अशोक ही हैं - ऐसा मत हैं। इसे संस्कृत में हेमपुष्प (स्वर्ण वर्ण के फूलों से लदा) तथा ताम्रपल्ल्व नाम से भी जानते हैं। अशोक वृक्ष को नेपाल, भारत और श्रीलंका में पवित्र माना जाता हैं।

अशोक की छाल कसैली, रूखी और स्वभाव से ठंढी होती हैं। अशोक मुख्य रूप से स्त्री रोग, रक्त बहने के विकारों और मूत्र रोगों में काफी फायदेमन्द हैं। इसकी छाल महवारी के समय होने वाला कष्ट हो या श्वेत प्रदर की समस्या, दोनों में ही यह लाभकारी हैं।

अशोक के छाल का काढ़ा बनाकर इसे सरसो के तेल के साथ मिलाकर लगाने से फोड़े-फुंसियों में फायदा होता हैं और त्वचा साफ होती हैं। इसके छाल का उपयोग दर्द से राहत पाने में भी लाभदायक है। जोड़ो के दर्द के लिए भी पेस्ट का प्रयोग कर सकते है।

8. चंदन (सैंटेलम ऐल्बम) - 

भारतीय चन्दन का संसार में सर्वोच्च स्थान है। यह एक परोपजीवि पेड़ हैं। इसका पेड़ मुख्यतः कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा भारत के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता हैं। चन्दन आयुर्वेद में एक बहुत अच्छा सौंदर्य सामग्री हैं, जो प्राकृतिक, भरोसेमंद और प्रभावी है।

चन्दन में मौजूद प्रकृतिक तेल सनबर्न के कारण स्किन में होने वाली जलन को भी कम करता है। इसका तेल उच्च रक्तचाप से निपटने और तनाव कम करने के लिए अरोमाथेरेपी में इस्तेमाल किया जा सकता हैं। चन्दन का तेल नियमित रूप से प्रयोग करने से मांसपेसियों की संकुचन और ऐठन से बचाता हैं।

चन्दन के पेस्ट को किसी कीट के काटने या त्वचा पर खुजली कम करने के लिए उपयोग किया जा सकता हैं।

9. आंवला (पांईलैन्थस एम्बलिका) -

आंवला एक बहुपयोगी फल हैं इसके अनगिनत लाभ हैं। यह त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद हैं तथा कई तरह के रोगों के लिए औषधि के रूप में भी काम करता हैं। आंवला में प्रचुर मात्रा में विटामिन, खनिज और पोषक तत्व होते हैं।

आंवला को आयुर्वेद में अधोभागहर संशमन औषधि बताया गया है, इसका मतलब है कि आंवला वह औषधि है, जो शरीर के दोष को मल के द्वारा बाहर निकलने में मदद करता हैं। यह खून को साफ, दस्त, मधुमेह, जलन की परेशानी, पीलिया, रक्त की कमी, सांसो की बीमारी, खांसी और कफ सम्बन्धी रोगों, वात-पित्त के साथ-साथ बवासीर में भी फायदेमंद होता हैं।

अम्लीय गुण होने के कारण यह गठिया में भी लाभ पहुँचाता हैं। 

10. पत्थरचूर (कोलियस फोर्सकोली) -

इसे पाषाण भेद अथवा पत्थरचूर भी कहा जाता हैं। आयुर्वेद के अनुसार इसमें कई औषधीय गुण होते है, ये किडनी में पथरी की समस्या को खत्म करने में बेहद कारगर होता हैं। इसका स्वाद खाने में खट्टा, नमकीन और स्वादिष्ट होता है।

इसमें रेचक गुण होता हैं जिससे यह बवासीर की समस्या से राहत प्रदान करता हैं। इसके अलावा यह त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) का शमन करता हैं। पत्थरचट्टा पेट फूलने की समस्या, अल्सर, घावों को ठीक करने और रक्त को शुद्ध करने में भी मदद करता हैं।

11. पिप्पली (पाइपर लांगम) -

पिप्पली अनेक औषधीय गुणों से संपन्न होने के कारण आयुर्वेद की एक प्रमुख औषधि हैं। पिप्पली एक औषधि के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण मसाला भी है तथा औद्यौगिक उत्पादों के निर्माण में भी इसे प्रयुक्त किया जाता है उदाहरणार्थ राईस बीयर के किण्वन (फर्मेन्टेशन) हेतु बखुबी उपयोग किया जाता हैं।

पिप्पली की लता भूमि पर फैलती हैं। कच्चे फलो का रंग हल्का पीलापन लिए और पकने पर गहरा रंग और उसके बाद कला हो जाता हैं। खांसी और सांसो से सम्बंधित बीमारी में पिप्पली का सेवन लाभप्रद हैं। अनेक लोग मोटापा और कोलेस्ट्रॉल से ग्रसित रहते है, इसका सेवन करना फायदेमंद हैं।

दस्त और पेट दर्द में भी पिप्पली का सेवन लाभकारी हैं। पिप्पली का सेवन अस्थमा के लक्षणो को कम करने की एक अचूक औषधि है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार पिप्पली में कफ को शांत करने का गुण होता हैं, इसलिए ये कफ को शांत कर अस्थमा के लक्षणों को कम करता हैं। 

12. गुग्गल (कौमीफोरा वाइटिआइ) -

आयुर्वेद में गुग्गल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। गुग्गल के तने को काटने से एक गोद जैसा पदार्थ राल निकलता है और ठंडा होने के बाद ठोस हो जाता है।  यह गाढ़ा सुगन्धित, अनेक रंग वाला, आग में जलने वाला तथा धुप में पिधलने वाला, गर्म जल में डालने से दूध के समान हो जाता है। 

इसका तासीर गर्म और कड़वा होता हैं यह अल्सर, बदहजमी, पथरी, कुष्ठ, मुँहासे, बवासीर, कृमि, खांसी, मुँख तथा आँख सम्बन्धी रोग दूर करने में सहायता करता है। गुग्गल में एन्टीसेप्टिक और एस्ट्रिजेंट गुण होते हैं।

इसका उपयोग मौखिक समस्याओ जैसे मसूड़ों की कमजोरी, पाइरिया आदि का इलाज करने के लिए कर सकते है। गुग्गल फेफड़े के स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है और यह पुरानी खांसी, ब्रोन्काइटिस, अस्थमा और तपेदिक के इलाज में बहुत उपयोगी होती है।

13. सनाय (कैसिया अंगुस्टीफोलिआ) -

सनाय को कई और नाम से जानते है। इसे स्वर्णमुखी, सोनामुखी, तो कही सुनामुखी भी कहते है। सनाय की पत्ती मृदु रेचक (हल्की दस्तावर) तथा शरीर को शुद्ध करने वाली हैं और पेट के रोग, पेट की गांठ, कृमि, सूजन, बुखार, वायु, आमशूल, विष, दुर्गन्ध, और खांसी का नाश करती है।

यह गले और आंतो में जमा बलगम और मल को दस्त के साथ बाहर निकल देता हैं। यह बवासीर के इलाज में प्रभावी है क्योंकि यह सूजन को कम करता है। इसका सेवन करने से यह पेट को साफ रखता है वजन कम करने के लिए पेट का साफ होना बहुत जरूरी है। जिस वजह से यह आपके तरल पदार्थ का सेवन बढ़ाने में मदद करता है और मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है।

14. ईसबगोल (प्लैन्टैगो ओवेटा) -

ईसबगोल देखने में बिल्कुल गेंहू के जैसा होता हैं। जिसमें छोटी -छोटी पत्तियां और फूल होते हैं। ईसबगोल की भूसी में कई औषधीय गुण पाए जाते है हुए और यह सेहत के लिए बहुत गुणकारी है। ईसबगोल एक तरह से लैक्सेटिव की तरह काम करता है। इसमें फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है साथ ही वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बिल्कुल भी नहीं होती हैं।

ईसबगोल का सेवन हर उम्र के लोग कर सकते है। ईसबगोल पेचिस, कब्ज, दस्त, मोटापा, डिहाइड्रेशन, डायबिटीज आदि रोगों में बहुत गुणकारी है। आयुर्वेदिक और एलोपैथी दोनों ही चिकित्सा पद्धति में ईसबगोल को औषधि या दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

ईसबगोल की तासीर ठंड़ी होती हैं यह शरीर में अधिक गर्मी बढ़ने की वजह से हुए रोगो को ठीक करने में मदद करता है।  ईसबगोल फाइबर से समृद्ध होने के कारण मधुमेह वाले लोगो में रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकती हैं। 

15. गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) -

गिलोय को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता हैं गुडुची, अमृता, चक्रांगी आदि। इसे ज्वर की बहुत महत्वपूर्ण औषधि माना गया है एवं जीवन्ति का नाम दिया गया हैं। यह एक लता है जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है उसके गुण भी इसमें समाहित रहते है। इस वजह से नीम पर चढ़ी गिलोय उत्तम औषधि मानी जाती है। गिलोय स्वाद में कसैले, कड़वे और तीखे होते है। गिलोय का उपयोग कर वात-पित्त और कफ को ठीक किया जा सकता है।

यह पचने में आसान होती है, भूख बढ़ती है साथ ही आखों के लिए भी लाभकारी होती है। आप गिलोय के इस्तेमाल से प्यास, जलन, डायबिटीज, कुष्ठ और पीलिया रोग में लाभ ले सकते है इसके साथ ही वीर्य और बुद्धि बढ़ती है और बुखार, उल्टी, सूखी खांसी, हिचकी, बवासीर, टीबी, मूत्र रोग में प्रयोग की जाती हैं। महिलाओं की शारीरिक कमजोरी की स्थिति में यह बहुत लाभ पहुँचाती हैं।

16. गुड़मार (जिमनामा सिल्वेस्टर) -

यह एक औषधीय पौधा है जो की बेल लता के रूप में होता है। इसकी पत्ती को खा लेने पर किसी भी मीठी चीज का स्वाद लगभग कुछ देर के लिए समाप्त हो जाता है। इसको खाने पर रेत के समान लगता हैं। गुड़मार का उपयोग डायबटीज के अलावा अन्य बीमारियों के उपचार के लिए भी किया जा सकता है। जैसे वजन कम करने और लिपिड कम करने में मदद करना आदि। इसके अलावा इसमें एंटीएलर्जेनिक और एंटीवायरल गुण भी होते हैं। गुड़मार से बने पूरक पदार्थ लिवर की सुरक्षा के लिए टॉनिक का काम करते है।

संदर्भ-

१. डॉ. दीनानाथ तिवारी, जड़ी-बूटियों का संसार (२००२), प्रभात प्रकाशन, दिल्ली। 

२. https://www.myupchar.com/herbs

३. https://www.1mg.com/hi/patanjali/category/जड़ी-बूटी/


Authors

पंकज चौधरी1, डी. एस. राठी2,  तनुजा1, विवेक सिंह1, डी. के. राणा1, राजकुमार3, अक्षय3

1उद्यानिकी विभाग, हे. न. ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड

2गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड

3 के. मृ. ल. अनु. सं. , करनाल

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