Citrus fruit cultivation in Malwa region
भारत में, केले एवं आम के बाद नीबू वर्गीय फलों की सर्वाधिक खेती की जाती है। पिछले तीन दशको से नींबू वर्गीय फलों के क्षेत्र एवं उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है। मध्यप्रदेश, देश का चौथा सबसे बड़ा नींबू उत्पादक राज्य है और देश के कुल उत्पादन में मध्य प्रदेश की 10.7% हिस्सेदारी हैं।
राज्य में नींबू वर्गीय फलों की खेती मुख्यतः मंदसौर, शाजापुर, बैतूल, उज्जैन, छिंदवाडा, खण्डवा और होशंगाबाद में होती हैं। मौसम्बी की खेती मंदसौर, नीमच, राजगढ़ जिलों में लगातार बढ़ रही है। मध्य प्रदेश में नींबू वर्गीय फलों का औसत उत्पादन अन्य उत्पादक राज्यों की तुलना में चिंताजनक रूप से कम है।
नींबू वर्गीय फलों की खेती और राष्ट्रीय महत्व:-
देश भर में नींबू वर्गीय फलों की खेती व्यापक रूप से की जाती है। इसकी खेती में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे: खेती की सीमित जगह, सीमित जल स्रोत और पौध रोपण से फलन तक पौधों को विभिन्न बीमारियो एवं विभिन्न कीटो से बचाना, सीमित उत्पादन अवधि आदि ।
नींबू वर्गीय फलों के लिए मिट्टी एवं जलवायु: -
नीबू वर्गीय फल एक सदाबहार, उप-उष्णकटिबंधीय समूह से संबंधित है, इनकी खेती पाले रहित अर्द्ध उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में भी अच्छी तरह से की जा सकती है।
इसकी खेती 13-370C के तापमान सीमा के बीच सबसे अच्छी होती है। – 40C से कम तापमान युवा पौधों के लिए हानिकारक हैं।
नीबू वर्गीय फलों की खेती के लिए हल्की मिट्टी जो गहरी और अच्छी जल निकासी के गुणों वाली हो एवं जिसका पीएच 5.5 से 7.5 तक हो उपयुक्त है।
नींबू वर्गीय फलों का पौध रोपण: -
रोपण के लिए सबसे अच्छा मौसम जून से अगस्त होता है रोपण के समय 15-20 किलो गोबर की खाद और 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट प्रति गड्ढे के हिसाब से डालते है।मालवा क्षेत्र में निम्नलिखित नींबू वर्गीय फलों की खेती की जाती है।
फसल | वैज्ञानिक नाम | पौधे से पौधे की दुरी | प्रति हैक्टयर पौधों की संख्या |
संतरा | साइट्रस रेटिकुलाटा ब्लांको . | 6मी.x6मी. | 277 |
नारंगी | साइट्रस साइनेंसिस ल . औस्बेक | 5मी.x5मी. | 400 |
नींबू | साइट्रस ओरंटिफोलिया स्विंग . | 6मी.x6मी. | 277 |
लेमन | साइट्रस लीमोन बुरम . | 5मी.x5मी. | 400 |
नींबू वर्गीय फलों में खाद एवं उर्वरक: -
खाद, साल में तीन बार फरवरी, जून और सितंबर में, क्रमशः तीन बराबर मात्रा में दिया जाता है, साथ ही विभिन्न अंतरशस्य क्रियाये जैसे: खरपतवार नियंत्रण, क्यारिया बनाना, निराई-गुड़ाई करना आदि महत्वपूर्ण हैं।
गोबर की खाद की वर्षवार आवश्यकता (किलो / पौधा / वर्ष)
गोबर की खाद | 1 वर्ष | 2 वर्ष | 3 वर्ष | 4 वर्ष | 5 वर्ष | 6 वर्ष | 7 वर्ष व इससे बड़े |
किलो / पौधा | 20 | 20 | 25 | 30 | 35 | 40 | 45 |
विभिन्न पोषक तत्वों की वर्षवार आवश्यकता (ग्राम / पौधा / वर्ष)
पोषक तत्व | 1 वर्ष | 1 वर्ष | 1 वर्ष | 1 वर्ष | 1 वर्ष | 6वर्ष व इससे बड़े |
नाइट्रोजन | 100 | 200 | 300 | 400 | 450 | 500 |
फॉस्फोरस | 50 | 100 | 150 | 200 | 200 | 250 |
पोटाश | 25 | 50 | 75 | 200 | 200 | 250 |
नींबू वर्गीय फलों मेें खरपतवार नियंत्रण:-
खरपतवार नियंत्रण विभिन्न तरीकों से किया जाता है, जैसे: मल्चिंग, व्यक्तिगत रूप से और खरपतवारनाशियों के द्वारा। आजकल प्लास्टिक मल्चिंग सामान्य रूप से की जाती है।
विभिन्न खरपतवारनाशियों जैसे:- सिमाज़ीन (4 किलो / हैक्टेयर ), ग्लाइफोसेट @ 4 ली /है , पेराकुआट (2 ली./है) आदि का उपयोग खरपतवार नियंत्रण में करते है।
नींबू वर्गीय फलों मेें सिंचाई: -
भूमिगत जलस्तर घटने के कारण , सिंचाई पानी में कमी आ गयी इसलिए बूँद-बूँद सिंचाई पद्धति का उपयोग जरुरी हो गया है।मार्च अप्रैल मई जून जुलाई अगस्त सितम्बर अक्टूबर नवम्बर दिसम्बर
बून्द-बून्द सिंचाई पद्धति में सन्तरा के पौधे की जल की आवश्यकता(लीटर प्रति पौधा)(आयु के अनुसार)
महिना | 0-2 वर्ष | 3-4 वर्ष | 5-6 वर्ष | 7-8 वर्ष | 9 वर्ष एवं इससे ज्यादा |
जनवरी | 3 | 6 | 9 | 12 | 15 |
फरवरी | 6 | 12 | 18 | 24 | 30 |
मार्च | 9 | 18 | 27 | 36 | 45 |
अप्रैल | 13 | 25 | 39 | 52 | 62 |
मई | 16 | 32 | 48 | 64 | 80 |
जून | 17 | 34 | 51 | 68 | 85 |
जुलाई | 13 | 26 | 39 | 54 | 65 |
अगस्त | 12 | 24 | 36 | 48 | 60 |
सितम्बर | 11 | 22 | 33 | 44 | 55 |
अक्टूबर | 8 | 16 | 24 | 32 | 40 |
नवम्बर | 5 | 10 | 15 | 20 | 25 |
दिसम्बर | 3 | 6 | 9 | 12 | 15 |
कटाई-छंटाई: -
फलन वाले पौधों को कटाई-छंटाई की आवश्यकता कम होती है। शुरूआती वर्षो में पौधे के मूल तने को बढ़ने दिया जाता है एवं पौधे पर टहनियां जमीन से 40-50 सेमी. के ऊपर ही बढने दी जाती है।
पौधे का मध्य भाग खुला होना चाहिए और शाखाये सभी दिशाओ अच्छी तरह से वितरित होनी चाहिए । क्रॉस टहनियाँ और वाटर सकर्स को जल्द ही हटा देना चाहिए । सभी रोगग्रस्त ,घायल, झूलती हुई और मृत टहनियों को समय समय पर हटा देना चाहिए।
फलों की तुड़ाई एवं उपज: -
सामान्यत: संतरा एवं नारंगी फल परिपक़्व होने में 240-280 दिन लेते है। परिपक़्व फलों की 2 से 3 तुड़ाई 10 से 15 दिन के अंतराल पर (फलों के रंग परिवर्तन अवस्था पर) की जाती है। नींबू एवं लेमन 150-160 दिन में परिपक़्व हो जाते है ।
नींबू एवं लेमन की तुड़ाई हरी परिपक़्व अवस्था पर की जाती है, ताकि उनकी अम्लता उच्चतम स्तर पर बनी रहे। सामान्यत: नींबू वर्गीय फलों की उपज क्रमश: नारंगी (500 फल), नींबू एवं लेमन (1000-1500 फल) एवं संतरा (700-800फल) प्रति पौधे से प्राप्त होते है ।
प्रमुख कीट एवं प्रबंधन
पत्ती माइनर(Leaf minor):- ये छोटे शलभ या डिम्ब होते है,जो पत्तियों एवं प्ररोहों पर अण्डे देते है। ये पत्तियों में पदातिक अवस्था में छेद करता है ,जिससे वे मुरझाने लगती है। वर्षा ऋतु में इसका प्रकोप बढ़ जाता है।
रोकथाम :- निकोटिन सल्फेट या नीम की खली का घोल (1किलो प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर) या क्विनैल्फोस (1.25 मिलीलीटर) या मोनोक्रोटोफॉस (1.0 मिलीलीटर /1 लीटर पानी के साथ ) के छिड़काव द्वारा रोकथाम कर सकते हैं।
नीम्बू साइला(Citrus psylla) :- यह कीट बसंत एवं वर्षा ऋतु में पौधे पर आक्रमण करके रस को चूसता हैं।
उपचार :- इसके लिए तम्बाकू का 0.05% मेलाथियान , 0.25% पैराथियान घोल का छिड़काव करना चाहिए।
साइट्रस थ्रिप्स :- इसका रोकथाम फल की बेरी अवस्था पर 1.5 मिली लीटर डाइमेथोएट या मोनोक्रोटोफॉस 1 मिली लीटर/ लीटर पानी के साथ छिड़काव करे।
प्रमुख रोग एवं प्रबंधन
नीम्बू का कैंकर (Citrus canker) -
यह एक बैक्टीरियल रोग हैं जो जेन्थोमोनास साइट्री द्वारा पैदा होती हैं ।इस बीमारी में सबसे पहले पिला सा दाग पड़ता हैं तथा बाद में भूरे रंग में बदल जाता हैं। नीम्बू के फलों पर खुरदरे भूरे रंग के दाग पड़ जाते हैं ।फल भद्दे नजर आने के कारन बाजार में कीमत कम मिलती हैं। कागज़ी नीम्बू में यह रोग ज्यादा लगता हैं।
उपचार :- रोगग्रस्त भाग को काट कर पौधे पर बोर्डेक्स मिश्रण का छिड़काव करते हैं ।
फायटोफ्थोरा गमोसिस :-
यह रोग बहुत से कवकों द्वारा पैदा होती हैं लेकिन फायटोफ्थोरा द्वारा अधिक फैलती देखी गयी हैं। इस बीमारी में तने से गोंद जैसी वस्तु बाहर निकलने लगाती हैं। तत्पश्चात तने में बड़ी बड़ी दरारें पड़ने से छाल नीचे गिरने लगती हैं तथा पेड़ की उपज घट जाती हैं।
उपचार :- प्रभावित भाग को ऊपर से छीलकर 450 ग्राम जिंक सल्फेट, 450 ग्राम कॉपर सल्फेट ,900 ग्राम चूने को 9 लीटर पानी में घोलकर लगाना चाहिए। क्रिओसोट तेल 25-30% लगाना भी उचित हैं।
एन्थ्रक्नोज:-
यह कोलेटोट्राइकम स्पी. के कवक द्वारा पैदा होता हैं। इसमें पत्तिया एवं शाखाएँ धूसर हो जाती हैं कुछ महीने बाद पूरा पौधा सूख जाता हैं। फलों के डंठल पर आक्रमण होने से फल गिरने लगते हैं ।
नियंत्रण :- पेड़ की सूखी टहनियों को काटकर जला देना चाहिए तथा पौधों पर वर्ष में 2-3 बार बोर्डो मिश्रण या कार्बेन्डाजिम (1ग्राम /लीटर ) का छिड़काव करना चाहिए।
नीबू वर्गीय फल भंडारण: -
क्र.स. |
फसल का नाम |
भंडारण तापमान (0C) |
सम्बंधित आर्द्रता (%) |
भंडारण अवधि (सप्ताह) |
1. |
संतरा |
5- 7 |
85-90 |
4-8 |
2. |
नारंगी |
7-8 |
85-90 |
4-8 |
3. |
नींबू |
9-10 |
80- 90 |
6-8 |
4. |
लेमन |
9-10 |
80- 90 |
6-8 |
नीबू वर्गीय फलों की वैक्सिंग: -
फल वैक्सिंग, कृत्रिम वैक्सिंग सामग्री के साथ फल को कवर करने की प्रक्रिया है। प्राकृतिक मोम आमतौर पर धोकर हटा दिया जाता है। वेक्सिंग सामग्री या तो प्राकृतिक या पेट्रोलियम आधारित हो सकती है। वैक्सिंग करने का प्रमुख कारण फल में होने वाले जल ह्रास को रोकना है।
जिसके फलस्वरूप फल में संकुचन व सड़न की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और फल अधिक समय तक स्वस्थ एवं ताजा रहता है। ये सभी वैक्स सामग्रियां मुख्यतः खाने योग्य सामग्रीयो से निर्मित होते है। बाजार में उपलब्ध वैक्सिंग सामग्री में मुख्यतः Tal -Prolong, Semper-fresh, Frutox, Waxol ,आदि।
नीबू वर्गीय फल विपणन (marketing):-
नीबू वर्गीय फल जल्दी ख़राब होने वाले फल हैं इनका विपणन सावधानी-पूर्वक किया जाता हैं। मौसम्बी, नीम्बू तथा लेमन परिवेश की स्थिति के तहत ताजा रहते हैं और इसलिए विपणन के लिए दूर के स्थानों के लिए ले जाया जा सकता है।
सन्तरा फल को अधिक देखभाल तथा सावधानी की जरुरत हैं। मालवा क्षेत्र में को लिए प्रमुख मंडिया जैसे: इंदौर,उज्जैन ,भवानीमंडी,मंदसौर, रतलाम , जावरा आदि है जहाँ फलो को अच्छे दामो में बेचा जा सकता है ।
लेखक: -
रमेश चन्द चौधरी, सानिया खान और डॉ. ज्योति कंवर*
विद्यार्थी, सहायक प्रोफेसर*, फल विज्ञान विभाग
के.एन.के. उद्यानिकी महाविद्यालय, मंदसौर (मध्य प्रदेश)