Five major diseases of soybean and their prevention

हरियाणा की खरीफ की तिलहनी फसलों मे सोयाबीन का महत्वपूर्ण स्थान है। सोयाबीन प्रोटीन का भी उच्च स्त्रोत हैं। यह एक दलहनी फसल हैं जिसमें 20 प्रतिशत तेल था 40 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है जो कुपोषण की समस्या का निदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सोयाबीन में कैल्शियम तथा विटामिन ए भी भरपुर मात्रा मे पाया जाता है। इसका प्रयोग औषधि, खाद्य पदार्थ व वनस्पति घी बनाने में किया जाता है। सोयाबीन की मुख्यतः खेती अमेरिका, चीन, इंडोनेशिया, जापान, ब्राजील, थाईलैंड, कनाडा में की जाती हैं, पर अब भारत में भी सोयाबीन एक ऐसी फसल के रूप में विकसित हुई है जिससे किसान व्यापारी एवं उद्यमी वर्ग के लोग भरपुर लाभ/ मुनाफा ले रहे है।

भारत में इसके मुख्य उत्पादक राज्य उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान है।

सोयाबीन की फसल में निम्न प्रमुख बीमारियां पाई जाती हैं।

1 पीला मोजेक रोग-

यह रोग मूंग के पीला मोजेक वायरस द्वारा उत्पन्न होता है तथा बै मौसिया टेबेकाई नाम सफेद मक्खी द्वारा स्वस्थ पौधे तक फैलता है।

संक्रमण-

सफेद मक्खी साल भर सक्रिया रहती है तथा जब ये एक बार वायरस को ग्रहण कर लेती है तो उम्र-भर रोग फैलाती है। यह वायरस सफेद मक्खी द्वारा अन्य दलहनी फसलो व खरपतवारो पर भी रोग फैलाता है। इस कारण ये रोग सोयाबीन का विनाशकारी रोग माना जाता हैं।

लक्षण-

इस रोग मे सर्वप्रथम पतियों पर गहरे पीले रंग के धब्बो के रूप में प्रकट होता है। ये धब्बे धीर धीरे फैलकर आपस में मिल जाते है जिससे पुरी पत्ती ही पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के पीले पड़ने के कारण अनेक जैविक क्रियांए प्रतिकुल रूप से प्रभावित होती है तथा पौधो में आवश्यक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण नही हो पाता है। अतः पौधो पर पुष्पन कम होता हैं एवं फलियां लगती भी है तो उनमें दानो का विकास नही हो पाता हैं।

रोकथाम-

रोग अवरोधी किस्म PK 416/ 472/ 1024/ 1042, हरा सोया, पूसा-37 की बिजाई करें।

सफेद मक्खी इस रोग को फैलाती हैं। अतः इसकी रोकथाम के लिए खेत में बिजाई के 20-25 दिनों के बाद 10-15 दिनो के अन्तर 250 मि0लि0 डाईमैथोएट 30 ई.सी. या रोगोर या 250 मि0लि0 आक्सीडैमेटान मिथाईल 25 ई.सी (मैटासिस्टाॅक्स) या 250 मि0लि0 फार्मेथियान 25 ई.सी. (एथियो) या 400 मि.लि. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

रोगी पौधो को जड़ से उखाड कर नष्ट कर दें। खरपतवारो को फसल में से समय पर निकाल दे।

इसके अतिरिक्त भूमि या फसलो पर विसक्रमंण के लिए समय-समय पर नीम के सुखे पत्तों के पावडर, नीम के बीजों के पावडर या निबौली के पावडर का पांच प्रतिशत (100 लि0 पानी में 5 किलो ग्राम से छिड़काव करते रहना चाहिए।

2 सामान्य मोजेक (मोजेक रोग)-

इस रोग का सोयाबीन उगाने वाले सभी क्षेत्रों में साधारण प्रकोप होता है। यह बीजोढ़ रोग है क्योंकि इस रोग का वायरस बीजो के अन्दर होता है।

सक्रमंण-

पौधों में बीजो से प्राथमिक सक्रमंण होने के बाद इस रोग का फैलाव ऐफिड कीट द्वारा ही होता है। रोगग्रस्ति बीज बोने पर पौधा इस रोग से संक्रमित हो जाता है तथा ऐफिड कीट इस वायरस का वाहक बनकर स्वरूप बनकर पौधो को भी सकं्रमित कर देता है।

लक्षण-

इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों व फलियों मे ही देखने को मिलते हैं। पत्तिया सकुंचित होकर नीचे की और मुड़ जाती है जिससे कलियों में बीज कम लगते है।

रोकथाम-

इस रोग के नियन्त्रण के लिए ग्रसित पौधो को तुरन्त उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। इसके रोकथाम के लिए प्रति हैक्टर 100-125 मि. ली. इमिडाक्लोपरीड- 17.8 ैस्ध्0ण्625.1कि. ग्रा. ऐसीफेट-75 ैच्ध्100 ग्रा थायामेथोक्साम 25ॅळ आदि मे से किसी एक का छिडकाव करें।

भूमि में या फसल पर विसंक्रमण के लिए समय समय पर नीम के सूखे पतों पा पाउडर नीम के बीजो के पाउडर या निबौली के पाउडर का 5 प्रतिशत (100 लीटर पानी मे 5 किलो गा्रम) से छिड़काव करते रहना चाहिए।

3 सोयाबीन का अंगमारी रोग 

यह एक बीजोड़ रोग है जो स्यूडोमोनास ग्लाइसीनिया नामक जिवाणु से फैलाता हैं।

संक्रमण-

यह जिवाणु मुख्यतः बीजों मे पाया जाता है लोकिन रोगग्रस्त फसलों के अवशेष, जो खेती मे रह जाते है, मे भी जिवित रह सकता है। परोषियों मे यह बीजो के दवारा संक्रमण करता है एवं हवा या पानी के दवारा फसल अवशेषों से पुर्णरन्ध्र से भी प्रवेश कर सकता हैं।

लक्षण-

परपोषियों मे प्रवेश के कुछ दिनों पश्चात ही पौधो की संक्रमित मे छोटे-छोटे नल रिसते हुए पीलापन लिए भुरे रंग के कोणीय धब्बे प्रकट हो जाते है। ये धब्बे आपस मे मिलकर संक्रमित भाग को ऊतकक्ष्य परिवर्तित कर देते है

अत्यधिक सक्रमंण होनी की सिथति मे पत्तियां सूख कर लटक जाती है एंव पौधे की जैविक क्रियाएं प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है। सामन्यता यह रोग पत्तियो मे ही विशेष रूप से पाय जाता है लेकिन कभी-कभी तनों मे भी यह फैल जाता है।

रोकथाम-

फसल के अवशेषो व खरपतवारो को नष्ट कर देना चाहिए। बीजो का गर्म पानी मे लगभग 10 मिनट तक उपचार करने से बाधा तथा आंतरिक संक्रमण की संभावना हो जाती है। बीजो मे जिवाणु लगभग एक वर्ष तक जीवित रह सकते है।

0.1 प्रतिशत स्टेªप्टोसाइिक्लन से बीज उपचार करना चाहिए।

भूमि मे या फसलो पर विसंक्रमण के लिए समय-समय पर नीम के सूखे पत्तो के पावडर का निवौली के पाउडर का 5 प्रतिशत (100लीटर पानी मे 5 कि.ग्रा.) से छिड़काव करते रहना चाहिए।

4 सोयाबीन का स्फोट रोग

यह एक बीजोढ़ रोग है जो जैन्थोमोनास वैरा सोजेन्स नामक जीवाणु से फैलता है।

सक्रमंण-

पौधो मे प्राथमिक यही से होता है तथा इसके बाद हवा पानी या पर्णरन्ध्रो द्वारा स्वस्थ पौधे मे सक्रमंण फैलता है। वर्षा के समय यह रोग उग्र रूप् धारण कर लेता है।

लक्षण-

नवोद भिद पौधे के उगते ही इस रोग के लक्षण मुख्यतः पतियो की उपरी सतह पर छोटे-छोटे हरिमापन लिए पीलेरंग के धब्बे दिखाई देते है। इन धब्बो का मध्य भाग लाल-भूरा रंग लिऐ उभरा हुआ होता है। इस कारण इन्हें स्फोट कहा जाता है।इन स्फोटों से अंगभारी रोग की तरह रिसाव नही होता है एवं ये सामान्यत पत्तियों की निचली सतह पर पाऐ जाते है।

धीरे-धीरे ये स्फोट आपस में मिलकर बडे़ धब्बों का रूप धारण कर लेते हे जिससे पत्तियां मुरझाकर गिर जाती है।

यह रोग मुख्यतः पत्तियों पर ही पाया जाता है। लेकिन कभी-कभी यह रोग फलियों पर भी पहुंच जाता हे। जिससे फलियां लाल-भूरे रंग से ग्रसित हो जाती है तथा फलियों के दानों का वाणिज्य मूल्य कम हो जाता है।

रोकथाम-

खेतो में उपस्थित फसल के अवशेष एवं खरतपतवार नष्ट कर देना चाहिए। बीजों को गर्म पानी से लगभग 10 मिन्ट तक 52 डिग्री सैल्सियस में उपचार करने से बाहरी तथा आंतरिक संक्रमण की संभावाना क्षीण हो जाती है।

बीजों में सामान्यतः जीवाणु लगभग 30 महिनों तक जीवित रह सकते है प्रति किलो बीज उग्रा थायरम 75ॅच् या 0.1 प्रतिशत स्टेप्टोसाइक्लिन से उपचार करना चाहिए।

खड़ी फसल पर इस रोग के रोकथाम के लिए प्रति ली0 पानी में 1-15 ग्राम कार्बोक्सीन 75ॅच् का छिड़काव करें। भूमि मे या फसलों पर विसंक्रमण के लिए समय समय पर नीम के सूखे पतों का पाउडर नीम के बीजो के पाउडर या निबौली के पाउडर का 5 प्रतिशत (100 लीटर पानी मे 5 किलो ग्राम) से छिड़काव करते रहना चाहिए।

5. गेरूआ रोग

रोकथाम-

बे-मौसम सोयाबीन उगाना बन्द करना चाहिए। अपने आप उगने वाले सोयाबीन के पौधों को नष्ट करें। रस्ट प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। गहरी जुताई करें। एक ही तरह के फसल उगाने मे बदलाव करें।

सोयाबीन के बदले ज्वार मक्का, अरहर ले सकते है। इसके अलावा इन्ही फसलों को सोयाबीन के साथ अन्तर्वर्ती के रूप मे ले। बुआई के समय उच्च कोटी के बीज का प्रयोग करना चाहिए। रोग से ग्रमित पौधो को शुरूवाती अवस्था में ही उखाडकर नष्ट करना चाहिए।

रस्ट को रोकने के लिए मेनकोझेब 75 प्रतिशत को 1.5 से 2 किलो ग्राम 1 हैक्टर अथवा प्रोपेवोना जाल (टिल्ट) 1 मि ली या टाईडिमेफान एक ग्राम दवा प्रति लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें। रोग की अधिकता पर दूसरा छिड़काव 15 दिनों के बाद पुनः करें। 


Authors

अराधना सागवाल, कुशल राज एवं अभि़षेक कुमार

पादप रोग विभाग,

चैधरी चरण सिंह हिरयाणा कृषि विश्वद्यिालय, हिसार

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