Integrated Pest Management in Brinjal Crop
विभिन्न सब्जियों के बीच, बैंगन प्रचलित है और देश भर में बड़े पैमाने पर पैदा किया जाता है। इसके उत्पादन में एक प्रमुख पहचान की कमी, कीटों,रोगों और नेमाटोड में वृद्धि के रूप में की गयी है, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी उपज में बहुत घाटा होता है। इसकी नरम और कोमल प्रकृति तथा उच्च नमी और लागत के क्षेत्रों के अधीन इसकी खेती के कारण, बैंगन पर कीट हमले का खतरा अधिक होता है और एक अनुमान के अनुसार कम से कम 35-40% का नुकसान होता है।
कीट नाशकों के अधिक उपयोग से संबंधित समस्याएं
इन कीटों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, बैंगन पर कीटनाशक की एक बड़ी मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
- जो सब्जियां कम अंतराल पर काटी जाती हैं उनमें टाले ने जा सकने वाले कीटनाशक के अवशेष उच्च स्तर पर बाकी रह सकते हैं जो उपभोक्ताओं के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।
- रसायनों पर अत्यधिक निर्भरता से प्रतिरोध, पुनरुत्थान, पर्यावरण प्रदूषण और उपयोगी पशुवर्ग और वनस्पति की तबाही की समस्या जनित हुई है।
बैंगन के 9 प्रमुख कीट।
1. बैंगन का हरा भृंग:
वयस्क हल्के भूरे रंग के और कई काले धब्बों के साथ होते हैं, जबकि युवा पीले रंग के होते हैं। अंडे सिगार के आकार के, रंग में पीले और समूहों में पाये जाते हैं।युवा और वयस्क हरी पत्तियों को खुरचते हैं, हरा पदार्थ खाते हैं और पत्तियों को पूरी तरह से ढांचे में बदल देते हैं।
2. बैंगन का माहो
युवा और वयस्क पत्तों से रस चूसते हैं और प्रभावित पौधे पीले पड जाते हैं, विकृत हो जाते हैं और सूख जाते हैं। माहो भी मधुरस का रिसाव करते हैं जिस पर काली फफून्द लगती है, जो संश्लेषक गतिविधि को बाधित करती है।
3. बैंगन का तना और फल छेदक :
आरंभिक चरणों में,लार्वा तने में छेद कर देते हैं जिससे विकास का बिन्दु मर जाता है। मुर्झाये, झुके हुए तने का दिखाई देना इसका प्रमुख लक्षण है। बाद में लार्वा फल में छेद कर देते हैं जिससे वह खपत के लिए अयोग्य हो जाता है।
4. बैंगन की लाल मकड़ी:
लार्वा, युवा और वयस्क पत्तियों की निचली सतह को खाते हैं। प्रभावित पत्तियां धीरे-धीरे मुडना शुरु हो जाती हैं और अंत में झुर्रीदार हो जाती हैं।
5. बैंगन का फ़ॉम्पोसिस झुलसा और फल गलन
पत्तों पर, रोग गोल भूरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होता है। पीले, धँसे हुए बिन्दु फल की परत पर विकसित होते हैं, जो बढकर पूरे फल की सतह को घेर लेते हैं और फल का आंतरिक भाग सड जाता है।
6. बैंगन में पर्ण कुन्चन :
विशिष्ट लक्षण हैं पत्तियों का छोटा होना, डंठलों तथा तने की गांठों के बाच का हिस्सा छोटा होना और पत्तियां संकीर्ण, मुलायम,चिकनी और पीली हो जाती हैं। पौधा एक झाड़ी की तरह दिखाई देता है। फल लगना दुर्लभ होता है।
7. बैगंन का स्क्लेरोटिनिआ झुलसा :
टहनियां ऊपर से मुख्य तने की ओर नीचे की तरफ कमजोर पड़ जाती हैं। गंभीर मामलों में जोड़ों के निकट फफून्द लग जाती है। अंततः पूरा पौधा कमज़ोर हो जाता है
8. जड-गाठ सूत्र क्रमि :
सबसे प्रमुख लक्षण होता है जड़ प्रणाली पर गांठ बन जाना। पौधों का विकास अवरुद्ध दिखाई देता है। प्रभावित खेतों में टुकडों में विकास होता है और पौधे खराब/ अवरुद्ध तरीके से विकसित दिखाई देते हैं।
बैंगन में एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियां
नर्सरी की स्थापना
- अच्छी जल निकासी हेतु हमेशा जमीनी स्तर से 10 सेमी ऊपर नर्सरी तैयार करें।
- जून के दौरान तीन हफ़्तों के लिए नर्सरी बेड को धूप सन्शोधन करने के लिए 45 गेज (0.45 मिमी) की पॉलिथीन शीट से ढंक दें जिससे मिट्टी के कीड़े, जीवाणु जनित उक्टा तथा सूत्र क्रमि जैसी बीमारियों को कम करने में मदद मिलेगी। हालाँकि, ध्यान रखा जाना चाहिए कि धूप सन्शोधन करने के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद हो।
- तीन किलो सडी गोबर की खाद में 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विराडी मिलाकर पौधों के संवर्धन के लिए लगभग सात दिनों के लिए छोड़ दें। सात दिनों के बाद मिट्टी में 3 वर्ग मीटर के बेड में मिला दें।
- F1-321 जैसे लोकप्रिय संकर किस्मों की बेड में बुवाई जुलाई के पहले हफ्ते में होनी चाहिए। बुवाई से पहले, बीज को ट्राइकोडर्मा विराडी 4 ग्राम /किलोग्राम बीज की दर से उपचार किया जाना चाहिए।
- निराई समय-समय पर की जानी चाहिए और संक्रमित पौधों को नर्सरी से बाहर कर देना चाहिए।
बैंगन की मुख्य फसल
- हिंसक पक्षियों को खेत में आकर्षित करने के लिए 10 प्रति एकड की दर से उनके ठिकाने खडे किये जाने चाहिये।
- डेल्टा और पीले चिपचिपे जाल 2 - 3 प्रति एकड की दर से टिड्डे, माहो और सफेद मक्खी आदि के लिये स्थापित किये जाने चाहिये।
- चूसने वाले कीटों के खिलाफ 5% नीम की निबोली सत्व के 2 से 3 छिडकाव करें।
- नीम की निबोली सत्व का छिडकाव भी तना छेदक के प्रकोप को बहुत हद तक कम कर देता है। तना छेदक के संक्रमण को कम करने के लिये, भले ही यह कुछ हद तक हो, नीम के तेल (2%) का प्रयोग सहायक होता है।
- टिड्डे और अन्य चूसने वाले कीटों का संक्रमण अब भी निर्धारित संख्या से ऊपर हो, तो प्रति हेक्टेयर 150 मि.ली. की दर से इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. का प्रयोग करें।
- तना एवं फल छेदक ल्यूसिनोड्स ओर्बोनालिस की निगरानी और बडे पैमाने पर उन्हें फँसाने के लिए 5 प्रति एकड़ फेरोमोन ट्रैप स्थापित किये जाने चाहिए। हर 15-20 दिन के अंतराल पर उन्हें ललचा कर आकर्षित करने का चारा बदलें।
- तना एवं फल छेदक के नाश के लिये प्रति सप्ताह के अंतराल पर 1-1.5 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से अंडानाशक टी.ब्रासिलिएंसिस छोडें।
- सूत्रक्रमि और छेदक से नुकसान को रोकने के लिये मिट्टी में 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से (दो भागों में) नीम का केक पौधों की पंक्तियों पर पौध लगाने के 25 और 60 दिन बाद डालें। जब तापमान 30 डिग्री से. से अधिक या हवा का भारी वेग हो तो नीम के केक का इस्तेमाल नहीं करें।
- छेदक द्वारा नुकसान किये गये तनों को कतरना और खराब हो चुके फल को इकट्ठा कर नष्ट करना अर्थात स्वच्छ खेती छेदक तथा फोमोसिस बीमारी के प्रभावी प्रबन्धन में मदद करती है।
- यदि छेदक का प्रभाव निर्धारित संख्या (5% संक्रमण) से अधिक हो जाये,तो 200 ग्राम a.i. प्रति हेक्टेयर की दर से साइपरमेथ्रिन EC (0.005%) या 3ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से कार्बराइल 50 WP या 0.07% की दर से एंडोसल्फान 35 EC डालें।
- बैंगन की सतत खेती से छेदक और उक्टा का अधिक संक्रमण होता है। इसलिये गैर कन्द फसलों द्वारा फसल बदलने का पालन किया जाना चाहिए।
- समय समय पर अंडे, लार्वा और हड्डा भ्रंग के वयस्कों को इकट्ठा कर नष्ट करें।
- समय-समय पर पर्ण कुंचन से प्रभावित पौधों को निकाल बाहर करें। छोटी पत्ती प्रभावित पौधों समय समय पर बाहर निकाले
- हरी खाद का प्रयोग, पॉलिथीन के साथ आधी सडी घास, ब्लीचिंग पाउडर के साथ मिट्टी डालना जीवाणु जनित उक्टा रोग का संक्रमण कम कर देगा।
प्राकृतिक शत्रु (लाभकारी कीडे)
क्या करें और क्या न करें
क्या करें |
क्या न करें |
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Authors
SANTOSH DEVI SAMOTA
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