Bayod disease of date palm and its management.
बायोड अरबी भाषा के शब्द ’अबीआध’ से बना है जिसका अर्थ होता है- ’खजूर की अपुष्प-पर्ण (Fronds) का सफेद होना। 1870 में इस रोग की सूचना सबसे पहले जगोरा-मोरक्को में मिली थी। 1940 तक, यह रोग व्यावहारिक रूप से सभी मोरक्को ताड़ पेड़ों के साथ-साथ पश्चिमी और मध्य अल्जीरिया सहारा के क्षेत्रों में होने लगा था।
बायोड रोग ने जब अपना मारक महामारी रूप प्रस्तुत किया था, तब इससे बहुत तबाही मची थी। बायोड रोग ने एक सदी में बारह लाख से अधिक मोरक्को में और तीन लाख से अधिक अल्जीरिया में खजूर के पेड़ों को नष्ट कर दिया था।
दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और उच्च गुणवत्तायुक्त फलोपज देने वाली किस्मों (मेडजूल, डेगलेट, नूर, बोउ और फैगस) को बायोड रोग ने नष्ट कर दिया था। यह मरुस्थलीकरण की एक विध्वंसकारी घटना थी।
इसके परिणामस्वरूप किसानों को मजबूर होकर अपनी जमीनें छोड़कर बड़े शहरों की ओर पलायन करना पड़ा था। अल्जीरिया में रोगनिरोधी उपायों की खोज के लिए नियमित रूप से प्रयास किए जा रहे हैं ताकि बायोड रोग का समूल उन्मूलन किया जा सके।
यह निश्चित रूप से, दुनिया के खजूर उत्पादक क्षेत्रों में मानव की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है। बायोड रोग प्लेग की तरह है अतः इसके लिए एक संगठन का गठन किया गया है जो इस रोग के क्षेत्र एवं दुनिया के अन्य खजूर उत्पादक क्षेत्रों में इस रोग के उन्मूलन के लिए काम करेगा।
बायोड रोग के लक्षण
इस रोग का संक्रमण परिपक्व और युवा पौधों से साथ-साथ प्रशाखाओं (आफशूट्स) पर होता है।
बाहरी लक्षण
इस बीमारी के लक्षण सबसे पहले पेड़ के ऊपरी सीरे पर (क्राउन) की पत्तीयों के बीच में प्रकट होते हैं। इस रोग के कारण पत्तीयों पर विशेष तरह के धब्बे राख की तरह मटमैले रंग में दिखाई देते हSa। इसके प्रभाव से पत्तीयां नीचे से ऊपर की ओर सूखने लगती हैं। इसके साथ ही फ्रोंडस (अपुष्प पर्ण) के एक तरफ से या कांटों के नीचे से ऊपर की ओर सूखना शुरू होते है और धीरे-धीरे पूरा सूख जाते हैं।
इसके बाद फ्रोंडस की विपरीत दिशा के पंख और कांटे भी सूखना आरंभ हो जाते हैं तथा कुछ समय में लगभग पूरे ही सूख जाते है। पुष्पक्रम के पृष्ठीय पक्ष में भूरे रंग के दाग बनना शुरु होते हैं। जो उग्र अवस्था में फ्रोंडस पर भी आधार से सिरे की तरफ बढ़ता जाता है।
अंत में संवहनी बंडलों पर फफूंद लगने से गीले होकर तने पर लटक जाते है। पर्णों के मरने की प्रक्रिया कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक होती है। रोग का विकास मुख्य रूप से रोपण की स्थिति और विविधता पर निर्भर करता है।
आंतरिक लक्षण
जब संक्रमित पेड़ की जड़ों को उखाड़ने पर छोटे-छोटे लाल रंग के धब्बे बने हुए दिखाई देते हैं, जो तने के आधार की ओर बड़े होते जाते हैं। स्वस्थ ऊतकों के अंदर भी इनका रंग स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। फ्रोंडस को काटने पर भी लाल भूरे रंग के लक्षण दिखाई देते है।
रोगजनक (पैथोजन)
बायोड रोग एक सूक्ष्म कवक के कारण होता है जो मिट्टी की कवकीय वनस्पति (माइकोफ्लोरा) के अंतर्गत आता है। इसका वैज्ञानिक नाम -फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम फॉर्मा स्पेशलिस् एल्बेढिनिस (Fusarium oxysporum forma specialis albedinis) है।
उत्तरजीविता
इस रोग के क्लैमिडोबीजाणु (क्लैमिडोस्पोरस) विशेष रूप से मिट्टी में पड़े संक्रमित मृत ऊतकों में संरक्षित रहते हैं।
खजूर के पेड़ों में बायोड रोग का प्रसार
दूषित जल द्वारा नियमित सिंचाई और दूषित जल मात्रा और बारम्बारता के कारण यह रोग तेजी से बढ़ता है। इसके लक्षण मूल संक्रमित क्षेत्र में प्रकट न होकर दूसरी जगह पर दिखाई देते हैं। इसका संचार मुख्य रूप से संक्रमित ऑफसूट या फंगस को शरण देने वाले खजूर के टुकड़े के द्वारा होता है।
मेजबान पौधे
इस रोग के बीजाणु मूख्य रूप से रिजका (ल्यूसर्न Medicago sativa L-; alfalfa), मेंहदी (Lawsonia inermis L-) और विभिन्न सब्जी फसलों आदि में पनपते हैं।
बायोड रोग का नियंत्रण एवं प्रबंधन
- बायोग रोग के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है।
- प्रशाखाओं और सभी अन्य पौधे सामग्री (खजूर के टुकड़े, खजूर से बनी कोई भी कलाकृतियों, खाद और संक्रमित मिट्टी आदि) या बायोड रोग संक्रमित गैर लक्षणित अल्फला (ल्यूसर्न) और हिना के बीज और असंसाधित उत्पादों को संक्रमित देशों या क्षेत्रों से आयात न करें।
- उन्मूलन तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
- अधिक उपज के लिए सिंचाई और उर्वरक जितने महत्वपूर्ण है, उतने ही ये कवक के विकास के लिए भी हैं। इसलिए मई के गर्म दिनों और अक्टूबर के महीने में सिंचाई कम करें अथवा बिल्कुल भी नहीं करें।
- वर्तमान में, कृत्रिम परिवेशीय ऊतक संवर्धन (स्वपात्रे सूक्ष्म संवर्धन) पौधे ही इस रोग से बचाव का एक मात्र सुगम उपाय है। इन पौधों से न केवल बायोड रोग द्वारा नष्ट किये गए खजूर के बागों का पुनर्गठन किया जा सकता है बल्कि, इनसे उच्च गुणवत्ता के फल और प्रतिरोधी किस्में बनाकर खजूर के नये बढ़ते क्षेत्रों को रोगमुक्त भी बनाया जा सकता है।
- मिट्टी को मिथाइल ब्रोमाइड या क्लोरोपिक्रिन से उपचारित करने पर भी इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
Authors:
विधा भाटी1, जगन सिंह गोरा2,मुकेश नेतड़3 और प्रकाश महला4
1डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी छात्रा (बागवानी), स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर
2वैज्ञानिक (फल विज्ञान), केंद्रीय शुष्क बाग़वानी संस्थान, बीकानेर (राजस्थान)
3एम. एस. सी. प्रसार शिक्षा,.एस.के.एन कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर
4वरिष्ठ अनुसंधान फेलो,केंद्रीय शुष्क बाग़वानी संस्थान, बीकानेर (राजस्थान)
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