How to irrigate and manage weeds in cotton crop

गंगानगर एवं हनुमानगढ़ क्षेत्र के विभिन्न फसलों मे नरमा – कपास खरीफ की मुख्य रेशेवाली नगदी फसल है| यह फसल इन जिलों के सिंचित क्षेत्रों  में लगाई जाती है। इन जिलों में अमेरिकन कपास (नरमा) तथा देशी कपास दोनों को लगभग बराबर महत्व दिया जाता है।

देशी कपास की बिजाई ज्यादातर पड़त या चने की फसल के बाद की जाती है जबकि अमेरिकन कपास की बिजाई पड़त, गेहूं, सरसों, चना आदि के बाद की जाती है। नरमा/कपास – गेहू गंगानगर एवं हनुमानगढ़ क्षेत्र का मुख्य फसल चक्र है | इस क्षेत्र मे रबी मे गेहू तथा खरीफ मे नरमा – कपास से प्राप्त लाभ ही किसान का आर्थिक आधार तैयार करता है|

नरमा तथा कपास मे किसान पोध संरक्षण पर होने वाले मुख्य खर्चे को कम कर व अच्छे रेशे की गुणवता वाली किस्मे बोकर अधिक बाजार भाव प्राप्त कर अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकता है| नरमे की बीटी किस्मे जो की गंगानगर एवं हनुमानगढ़ क्षेत्र के लिए भारत सरकार द्वारा अनुमोदित की गई है उनमे हरी सुंडी से नुकसान नही होता है|

अत: इस सुंडी को मारने के लिए महंगे रसायनों का प्रयोग नही करना पड़ता है| इसके रेशे की गुणवता भी प्रचलित आम किस्मो से अच्छी है बीटी नरमे मे प्रति पोधा अधिक उत्पादन होता है अत: इसकी जल मांग भी साधारण किस्मो की अपेक्षा अधिक है| भूमि जिसकी जल धारण क्षमता अधिक हो तथा जहा पर पानी के अधिक संसाधन उपलब्ध हो  वहा बीटी का उत्पादन अधिक होता है|

कपास फसल में सिंचाई

कपास गहरी जड़ वाली फसल है। इसकी जड़े 1 मीटर से भी ज्यादा गहराई तक जाती है। अतः खेत में गहरी जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। पलेवा (रोणी) के समय गहरी सिंचाई करे। गहरी रोणी करने पर फसल में गर्मी (लू) सहने की क्षमता बढ़ जाती है तथा पौधे तेज गर्मी में भी कम मरते हैं। जिससे इकाई क्षेत्र में पौधों की पूरी संख्या रहती है और पैदावार अच्छी प्राप्त होती है।

कपास फसल में सिंचाई विधि

इस क्षेत्र में कपास में सतही सिंचाई ही प्रचलित है सतही सिंचाई में क्यारों का आकार 5 मीटर लंबा तथा 0.8 से 1 मीटर चौड़ा रखा जाता है। इस क्षेत्र के ज्यादातर मृदाएं रेतीली दोमट है। अतः सतही सिंचाई से रिसाव तथा बहाव द्वारा सिंचाई जल की काफी हानि होती है। क्यारे का तल एकसार न होने के कारण जल वितरण दक्षता सतही सिंचाई से कम होती है।

खेत के खाले कच्चे होने के कारण जल वहन में भी काफी पानी रिसाव द्वारा बर्बाद हो जाता है। इन सब कारको की वजह से सतही सिंचाई की दक्षता 4 से 5% ही रह पाती है। लगभग 5 से 6% पानी बेकार चला जाता है। सिंचाई जल की कमी को देखते हुए यह आवश्यक है कि इसका अधिकतम सदुपयोग किया जाये।

कपास में सिंचाई की क्रांतिक अवस्थाएँ

  • सिम्पोडिया, शाखाएँ निकलने की अवस्था एवं 45-50 दिन फूल पुड़ी बनने की अवस्था।
  • फूल एवं फल बनने की अवस्था 75-85 दिन
  • अधिकतम घेटों की अवस्था 95-105 दिन
  • घेरे वृद्धि एवं खुलने की अवस्था 115-125 दिन

देशी कपास मे सिंचाई-

पलेवा के अतिरिक्त 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है| पहली सिंचाई, बुवाई के 35-40 दिन बाद करे| बाद की सिंचाई 25-30 दें के अंतर पर करे| अंतिम सिंचाई सितम्बर के दूसरे सप्ताह मे करे|

अमेरिकन कपास मे सिंचाई -

पलेवा के अतिरिक्त 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है| पहली सिंचाई, बुवाई के 30-35 दिन बाद करे| बाद की सिंचाई 20-25 दें के अंतर पर करे| अंतिम सिंचाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह मे करे| एकान्तर (कतार छोड़ ) पद्धति अपना कर सिंचाई जल की बचत करे। बाद वाली सिंचाईयाँ हल्की करें, अधिक सिंचाई से पौधो के आसपास आर्द्रता बढ़ती है व मौसम गरम रहा तो कीट एवं रोगों के प्रभाव की संभावना बढ़तीहै।

बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति

इस जल का उपयोग मंदगति से, बूंद- बूंद करके, फसल के जड़ क्षेत्र में किया जाता है। इसके लिए जिस उपकरण का उपयोग किया जाता है, उसके तीन प्रमुख भाग होते हैं पहला भाग एक पम्पिंग यूनिट है जो लगभग 2.5 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर का जल दाब उत्पन्न करती है। इसका दूसरा भाग एक पाइप लाइन होता हैं जो पी.वी.सी. का बना होता है और तीसरा भाग ड्रिप लाइन तथा इस पर ड्रिपर लगे हैं जिनसे पानी पौधों के पास टपकता है।

जल को कुए या डिग्गी से उठाकर पाइप लाइन के माध्यम से ड्रिपर तक निश्चित दाब पर पहुंचाया जाता है, जिससे जल बून्द-बून्द करके पौधे के पास टपकता है और भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है| इस विधि से पौधों को जल की पूर्ति लगातार जारी रहती है जिससे पौधे की बढ़वार तथा विकास अच्छा होता है। इससे अधिक पैदावार के साथ-साथ उत्पाद की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।

इस विधि में जल का उपयोग वहन द्वारा, रिसाव द्वारा तथा भूमि सतह पर वाष्पन द्वारा जल हानि नहीं होती है। अतः इस विधि में सिंचाई दक्षता अत्यधिक हैं। यह विधि शुष्क क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह विधि बाग़ों, सब्जियों तथा चौड़ी कतार वाली फसलों जैसे कपास, गन्ना आदि के लिए अत्यंत उपयोगी है।

अमेरिकन (नरमा) कपास में बूंद- बूंद सिंचाई

फसल विन्यास को बदलकर कपास में बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति के लागत कम किया जा सकता है | संकर अमेरिकन कपास (नरमा) में कतार से कतार की दूरी 67.5 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखने की सिफारिश हैं। जोड़े में बिजाई करने पर एकल लाइन की बजाए लगभग 1% अधिक पैदावार प्राप्त हुई है।

दोनों के बीच 4 फीट की दूरी होता होने के कारण हवा तथा प्रकाश का आवागमन अच्छा होता है। साथ ही कीटों से सुरक्षा के लिए ज्यादा ढंग से होने के कारण कीटों का प्रभावकारी नियंत्रण होता है। इसमें लेटरल की संख्या भी आधी रह  जाती है।

हाइब्रिड नरमा मे बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति से सिफारिश किये गये नाइट्रोजन तथा पोटैशियम (फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय) की मात्रा 6 बराबर भागों मे दो सप्ताह के अंतराल पर ड्रिप संयत्र द्वारा देने से सतही सिंचाई  की तुलना मे ज्यादा उपयुक्त पाई गई| सिंचाई जा निम्न सारणी के अनुसार एक दिन के अंतराल पर बुवाई के दिन बाद से शुरू कर देवे|

माह

पानी देने का समय
  घंटा मिनट
मई 2 -
जून 2 30
जुलाई 3 -
अगस्त 3 30
सितम्बर 2 20
अक्टूबर 1 20

बीटी कपास में बूंद- बूंद सिंचाई

बीटी कपास में बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति से सिफारिश किये गये नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम (जल मे घुलनशील) की 80% मात्रा 6 बराबर भागों दो सप्ताह के अंतराल पर ड्रिप द्वारा देवे| नरमा की प्रत्येक कतार मे ड्रिप लाइन डालने की बजाय कतारों के जोडें मे ड्रिप लाइन डालने से ड्रिप लाइन का खर्चा आधा हो जाता है| इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी.रखते हुए कतार से कतार की दूरी 60 सेमी रखे तथा जोड़े से जोड़े को दूरी 120 सेमी. रखे|

प्रत्येक जोड़े मे एक ड्रिप लाइन डाले| ड्रिप लाइन मे ड्रिपर की दूरी 30 सेमी हो तथा प्रत्येक ड्रिपर से पानी रिसने की दर 2 लीटर प्रति घंटा हो| सूखे मे बिजाई करने के बाद लगातार 5 दिन तक 2 घंटे प्रति दिन के हिसाब से ड्रिप लाइन चला देवे|  इससे उगाव अच्छा होगा| बुवाई के 15 दिन बाद बूंद- बूंद सिंचाई प्रारंभ करे|

बूंद- बूंद सिंचाई का समय संकर नरमा की सारणी के अनुसार ही रखे| वर्षा होने पर वर्षा की मात्रा के अनुसार सिंचाई उचित समय के लिए बंद कर दे| पानी एक दिन के अंतराल पर लगावे| 

कपास में खरपतवार प्रबंधन

नरमे के खेत मे खरपतवार नही पनपने दे| इसके लिए निराई-गुड़ाई सामान्यत: पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर कसिये से करनी चाहिये| इसके बाद एक और निराई-गुड़ाई त्रीफाली से करे| रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डामेथलिन (30 ई.सी.) 1250 मिली. प्रति बीघा के दर 125-150 लीटर पानी मे घोल कर  फ्लेटफेन नोजल से बीजाई से पूर्व या बीजाई के तुरन्त बाद छिड़काव करे प्रथम सिंचाई के बाद एक बार निराई-गुड़ाई करना लाभदायक रहता है|    


 Authors:

रुपेश कुमार मीना*, रघुवीर सिंह मीना1 

*कृषि विज्ञान केंद्र, श्रीगंगानगर

   1सहायक प्राध्यापक (सस्य विज्ञान), कृषि अनुसंधान केंद्र, श्रीगंगानगर

*Corresponding E-mail: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.