Vertical Farming: Current Status and Future Prospects
विश्व की जनसंख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है साथ ही साथ बहुत बड़ी तादात में लोग कृषि छोड़कर बड़े शहरों की और पलायन कर रहे है । कृषि छोड़ने के कई कारणों में से एक कारण खेती योग्य भूमि में कमी है।
खेती योग्य भूमि की कमी को देखते हुए भविष्य में आने वाले भुखमरी एवं कुपोषण का अनुमान लगाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन ने परम (एक्सट्रीम) मौसम घटनाओं की आवृत्तिओ को बढ़ा दिया है जोकि परंपरागत कृषि के लिए ख़तरा पैदा करता है ।
वर्टीकल फार्मिंग (खड़ी खेती) जैसी आधुनिक तकनीक संभावित रूप से लोगों के लिए पर्यावरण-सतत, आसानी से उपलब्ध, पौष्टिक और सस्ती भोजन प्रदान करने का समाधान हो सकती है। वर्टीकल फार्मिंग (खड़ी खेती) की मुख्य बात यह है की इसमें रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है ।
इस खेती का मदद से आम आदमी अपनी छतो और छोटी से जगह में भी अपने प्रयोग के हिसाब से सब्जियां पैदा कर सकेंगे । इस खेती के लिए ना तो मिट्टी की जरुरत है ना तो अधिक धूप की।
Source: weburbanist.com
एक वर्टीकल खेत के साथ आत्मनिर्भर गांव का सचित्र प्रदर्शन
वर्टीकल खेत बनावट
वर्टीकल फार्मिंग (खड़ी खेती) में पौधों को बहुसतही ढांचों में उगाया जाता है। यह तकनीक प्रायः नियंत्रित वातावरण में होता है जिसमे पौधों को किसी आधार में लगा के पम्प की सहायता से पानी दिया जाता है ।
पौधों के बढ़ाने के लिए इसमें पोषक तत्वों के भी मिलाया जाता है । एल इ डी बल्ब की सहायता से इसमें प्रकाश उत्पन्न किया जाता है । वर्टीकल फार्मिंग में मुख्यतः तीन प्रणालियाँ सम्मिलित है यानि हायड्रोपोनिक्स, ऐरोपोनिक्स एवं अक्वापोनिक्स। हायड्रोपोनिक्स अर्थात जल कृषि में पौधों की जड़ें पानी तथा पोषक तत्वों के घोल में में डूबी रहती है। यह पानी की कम लागत में ही सब्जियों के बहुत अधिक पैदावार के लिए प्रचलित है।
हायड्रोपोनिक्स व ऐरोपोनिक्स का सचित्र प्रदर्शन
(Source: Birkby, Jeff (January 2016). "Vertical Farming’’. ATTRA Sustainable Agriculture Program. )
ऐरोपोनिक्स तकनीक में किसी भी माध्यम की जरुरत नहीं होती । इसमें पौधों की जड़ो को किसी सहारे के साथ बांधा जाता है । जिसमे पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाता है । यह खेती बहुत कम से कम जगह में ही हो सकती है ।
अब तक, एरोपोनिक्स सबसे टिकाऊ कम-मिट्टी में उगने वाली तकनीक है, क्योंकि यह पारंपरिक हाइड्रोपोनिक सिस्टम की तुलना में 90% कम पानी का उपयोग कुशलता पूर्वक करता है ।
तीसरी प्रणाली याने एक्वापोनिक्स एक बायोसिस्टम विधि है जिसमे मछली पालन एवं जल कृषि के मिश्रण से सब्जी, फल व औषधि का उत्पादन होता है । इस प्रणाली में एक ही पारिस्थिकी तंत्र में मछलियाँ और पौधे साथ में वृद्धि करते है ।
मछलियों का मल पौधों को जैविक खाद उपलब्ध करता है और साथ ही साथ पौधे मछलियों के लिए जल को फिल्टर व शुद्ध करने का काम करती है ।
एक्वापोनिक्स का सचित्र प्रदर्शन
Source: Birkby, Jeff (January 2016). "Vertical Farming’’. ATTRA Sustainable Agriculture Program.
भारत में वर्टीकल फार्मिंग की सम्भावना कँहा कँहा है।
भारत में ७०% लोग कृषि पर आधारित है । जिसमे वो सभी तरह की खेती करते है । इनमें फल, फूल, अनाज, सब्जियां इत्यादि सम्मिलित है । भारत में वर्टीकल फार्मिंग का चलन अभी ही शुरू हुआ है जिसमे भारतीय कृषि अनुसन्धान केंद्र या और दूसरी कृषि संस्थानों द्वारा इसका प्रयोग खेती में किया जा रहा है। जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आये है ।
नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों में मिट्टी- रहित व कीटनाशक- रहित खेती कर वर्टीकल फार्मिंग का अच्छा परिणाम मिला है । वर्टीकल फार्मिंग की मदद से पंजाब में आलू व नदिअ में बेंगन तथा टमाटर की खेती में सफलता मिली है ।
भारत में धीरे-धीरे इस तकनीक को लोगो तक पहुचाया जा रहा है ताकि लोग कृषि की नयी तकनीक सीख अच्छा उत्पादन कर सकें । भारत में अधिक से अधिक संख्या में वर्टिकल फार्मिंग स्टार्ट-अप शुरू हो रहे हैं।
आईडीया फार्मस (Idea farms), ग्रीनपीएस (Greenopiais), यु-फार्म (U-Farm), अर्बन किसान (Urban Kisaan) जैसे कई वर्टिकल फार्मिंग स्टार्ट अप उच्च गुणवत्ता वाले फलो एव सब्जियों को ऊगा कर बड़े शहरों में आपूर्ति करते है।
वर्टिकल फार्मिंग के फायदे
- यह एक बहुत ही उच्च उत्पादक खेती है प्रति इकाई क्षेत्र से लगभग 70-80 प्रतिशत अधिक फसल उत्पाद आता है। इसके अलावा, वर्ष में 3-4 बार फसल चक्र के साथ, पारंपरिक खेती की तुलना में काफी मुनाफा होता है।
- वर्टीकल फार्मिंग के माध्यम से कम जमीन में अधिक फसल का उत्पादन कर सकते है।
- वर्टीकल फार्मिंग में नियंत्रित वातावरण का उपयोग किया जाता है जिसके कारण मौसम का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता और फसल भी ख़राब नहीं होती।
- वर्टीकल फार्मिंग में कम पानी में खेती हो जाती है।
- कीटनाशक दवाओं व रसायनिक खादों क बिना फसल होती है।
- वर्टीकल फार्मिंग में जंहा खपत हो उसी के पास उगाया जा सकता है। जिससे लम्बी दुरी में परिवहन का खर्चा बच जाता है।
- यह शहरी क्षेत्रों की हरियाली को बढ़ावा देगा और बढ़ते तापमान को कम करने में मदद करेगा।
वर्टिकल फार्मिंग के नुकसान
- वर्टीकल फार्मिंग प्रणाली की स्थापना के लिए प्रारंभिक उच्च लागत ही प्रमुख समस्या है।
- बढ़ते हुए पौधे पूरी तरह से कृत्रिम रोशनी व नियंत्रित वातावरण में निर्भर होते है जिससे ऊर्जा की लागत भी अधिक होती है।
- एलईडी लाइटिंग सिस्टम गर्मी का उत्सर्जन करते हैं हालांकि छोटी मात्रा भी तापमान बनाए रखने में समस्या पैदा करती है, विशेष रूप से गर्मी के महीनों में और एयर कंडीशनिंग सिस्टम में अधिक भार हो सकता है जो फिर से उच्च ऊर्जा लागत को उकसाएगा।
- यदि देखभाल न की जाए तो वर्टीकल फार्मिंग में उपयोग किए जाने वाले अतिरिक्त पोषक तत्व शहरों के मुख्य जल प्रणाली को हस्तक्षेप और दूषित कर सकते हैं।
- कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मी की आवश्यकता होगी।
- खेती भवनों के चारों ओर कचरे के ढेर, पौधे के अवशेष आदि को ठीक से निपटाने की जरूरत है।
निष्कर्ष और भविष्य की गुंजाइश
वर्टिकल फार्मिंग निश्चित रूप से भारतीय खेती में महत्वपूर्ण समस्याओं का हल है, जैसे कि खेत की उपज की आपूर्ति या निरीक्षण, कीटनाशकों के अति प्रयोग, उर्वरकों का अति प्रयोग, कमजोर मिट्टी और यहां तक कि बेरोजगारी। लेकिन भारतीय कृषक समुदाय द्वारा इस खेती को स्वीकार करने जैसी चुनौतियाँ हैं।
तथापि कृषि संस्थानों में वैज्ञानिक वर्टीकल फार्मिंग को ज्यादा से ज्यादा प्रभावी और कुशल लागत बनाने में प्रयास कर रहे है। साथ ही साथ बहुत सारे वर्टीकल फार्मिंग स्टार्ट-अप भारत के कोने-कोने में भारतीय किसानों को जागरूक, तकनीक की जानकारी तथा स्थापित करने में मदद कर रहे है। यदि सभी प्रयास सफल रहे तो वर्टिकल फ़ार्म सिर्फ 2050 तक सब्ज़ी उत्पादन के लिए आदर्श बन सकते हैं।
References
Madhuri Shrikant Sonawane. Status of Vertical Farming in India. Int. Arch. App. Sci. Technol; Vol 9 [4] December 2018. 122-125.
Birkby, Jeff. "Vertical Farming’’. ATTRA Sustainable Agriculture Program. January 2016.
Wikipedia contributors. "Vertical farming." Wikipedia, The Free Encyclopedia. Wikipedia, The Free Encyclopedia, 10 Apr. 2020. Web. 13 Apr. 2020.
Author
Jyotsana Tilgam
Scientist, Agricultural biotechnology,
National Bureau of Agriculturally Important Micro-organism,
Maunath Bhanjan, Kushmaur, Uttar Pradesh 275101.
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