Application of Aeroponics in Seed Potato Production
आलू एक वनस्पतिक रूप से पैदा होने वाली फसल हैं जिसके फलस्वरूप आलू के कंद विभिन्न वेक्टर प्रेषीत वायरल संक्रमणों से ग्रस्त हो जाते है, जो साल दर साल इसकी उत्पादकता को गंभीरता से प्रभावित करते हैं।
इसलिए लाभदायक उत्पादन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करना आवश्यक है। लेकिन, मुख्य रूप से विकासशील देशों में आलू के उत्पादन में गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता एक प्रमुख बाधा है।
आलू के बीज उत्पादन के लिए पिछले पांच दशकों से भारत में " सीड प्लॉट तकनीक" पर आधारित पारंपरिक बीज उत्पादन तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। इसमें सभी प्रमुख विषाणुओं के लिए कंद अनुक्रमण (ट्यूबर इंडेक्सिंग) और प्रजनन बीज उत्पादन के लिए चार चक्रों में विषाणु मुक्त मातृ कंदों के क्लोनल गुणन शामिल हैं।
इसके उपरांत केंद्रीय आलू अनुसन्धान संस्थान (सीपीआरआई) द्वारा उत्पादित इस ब्रीडर सीड को सख्त स्वास्थ्य मानकों के तहत तीन और चक्रों, फाउंडेशन सीड 1 , फाउंडेशन सीड 2 और प्रमाणित बीज में आगे गुणन के लिए विभिन्न राज्य सरकार संगठनों, निजी बीज उत्पादन संस्थानों व किसानों को दिया जाता है। गुणन किया गया प्रमाणित बीज किसानों को आलू की फसल लगने हेतु उपलब्ध करवाया जाता हैं।
वर्तमान में, भारत में आलू का कुल क्षेत्रफल लगभग 2.1 मिलियन हेक्टेयर है, जिसके लिए लगभग 8.0 मिलियन टन बीज कंदों की आवश्यकता होती है। ब्रीडर सीड के तीन गुणकों (फाउंडेशन I, फाउंडेशन II और प्रमाणित बीज के रूप में) तथा प्रत्येक वर्ष एक तिहाई गुणवत्ता वाले बीज के प्रतिस्थापन (राज्य एजेंसियों / किसानों द्वारा)को ध्यान में रखते हुए, ब्रीडर बीज की आवश्यकता लगभग 7400 टन है।
वर्तमान में आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, ब्रीडर सीड के उत्पादन के लिए एकमात्र एजेंसी है, जो प्रति वर्ष लगभग 2600 टन ब्रीडर बीज का उत्पादन करती है। हालाँकि, मांग और आपूर्ति के विकल्पों के बीच की खाई को भरने के लिए आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान और निजी बीज कंपनियों दोनों द्वारा बीज उत्पादन का वैकल्पिक तरीका खोजा गया है, जिसके लिए हाल के वर्षों में उत्पादकों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।
भारत जैसे देश में, कम आलू उत्पादकता का एक प्रमुख कारण खराब गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग है और वर्तमान में देश की राज्य और केंद्रीय बीज उत्पादन एजेंसियां केवल 20-25% गुणवत्ता बीज की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम हैं।
इस व्यापक अंतर को घटाने के लिए, पारंपरिक और उच्च तकनीक उत्पादन प्रणालियों के बड़े पैमाने पर एकीकरण की आवश्यकता है, जहां वाणिज्यिक स्तर पर नियंत्रित सुविधाओं के तहत ऊतक संवर्धन प्रयोगशालाओं, नेट हाउस, और एयरोपोनिक इकाइयों द्वारा, समय की न्यूनतम अवधि और उच्च उत्पादकता के साथ पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ बीज कंदों का उत्पादन किया जा सके।
भारत के भविष्य के अनुमानों से पता चलता है कि 2050 में कुल बीज आलू की आवश्यकता 122 मिलियन टन आलू की आवश्यकता के उत्पादन के लिए 18 मिलियन टन की होगी।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किफायती मूल्य पर उच्च उपज व उत्तम गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की उपलब्धता महत्वपूर्ण कारक है। हाई टेक बीज उत्पादन प्रणाली, विशेषकर एरोपोनिक्स तकनीक को अपनाने से यह बढ़ी हुई मांग साध्य प्रतीत होती है।
इस बात को मध्यनज़र रखते हुए, आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने टिशू कल्चर और माइक्रोप्रॉपैगनेशन तकनीकों के आधार पर कई उच्च तकनीक वाले बीज उत्पादन प्रणालियों का मानकीकरण किया है।
इस संस्थान द्वारा विकसित हाई-टेक बीज आलू उत्पादन की सबसे प्रभावशाली तकनीकों में से एक एयरोपोनिक्स तकनीक है।
एरोपोनिक्स गुणन प्रणाली खेत में बीज आलू गुणन की 2 पीढ़ियों को समाप्त करने की क्षमता रखती है और इस प्रकार लागत को कम करती है और खेत में पहली उत्पादित फसल की पौध स्वास्थ्य गुणवत्ता को बढ़ाती है। इसके अलावा, गुणन दर भी कई गुना बढ़ जाती है।
एरोपोनिक्स सिस्टम:
एयरोपोनिक्स तकनीक बिना मिट्टी के वातावरण में बीज आलू पैदा करने की वर्तमान में सबसे नवीनतम, उन्नत एयवम विकसित प्रौद्योगिकि है, नवीनतम । एरोपोनिक्स के पीछे मुख्य सिद्धांत वाष्पीकृत पोषक तत्वों की मदद से पौधों को एक बंद वातावरण में बढ़ाना है| ।
एयरोपोनिक प्रणाली का मुख्य लाभ यह है कि पौधों की जड़ें ऑक्सीजनकृत होती हैं जिससे मेटाबोलिज्म और विकास दर बढ़ जाती है। एरोपोनिक्स के साथ ग्रीनहाउस में हम नमी, तापमान, प्रकाश, पीएच और पानी की विद्युत चालकता को नियंत्रित कर सकते है। इस पद्धति में पौधों को कंटेनर के ऊपर निलंबित कर दिया जाता है, केवल उनकी जड़ें अंदर अंधेरे कक्ष में लटकी हुई रहती है, ताकि कुंहासे से पोषक तत्वों को अवशोषित कर सकें।
इस प्रणाली में मुख्य रूप से एक विद्युत इकाई, दो प्रकाश प्रूफ (अंधेरे) ग्रोथ चैम्बर, एक पोषक तत्व घोल कक्ष, एक उच्च दबाव पंप, फिल्टर और स्प्रे नलिका होते हैं। पौधों के जड़ क्षेत्र में प्रकाश के प्रवेश से बचने के लिए ग्रोथ चैम्बर के ऊपरी हिस्से को काले रंग की परत से ढंका जाता है।
प्राकृतिक परिस्थितियों या नियंत्रित पर्यावरण स्थितियों के तहत एयरोपॉनिक यूनिट को कीट रहित नेट हाउस में रखा जाताहै।
एरोपोनिक्स सिस्टम में विधिवत कठोर माइक्रोप्लांट्स को ग्रोथ चैम्बर की छत में बने छिद्रों में लगाया जाता है। विधिवत कठोर करने की विधि में 15 से 21 दिन के लगभग 15 सेमी ऊंचाई के इन विट्रो माइक्रोप्लांट्स का उपयोग किया जाता हैं।
माइक्रोप्लांट के दृढ़ीकरण के लिए, पीट मॉस, वर्मीक्यूलाईट या रेत में प्रत्यारोपित किया जाता है और नियंत्रित कक्ष में लगभग 27 डिग्री सेल्सियस पर 15 दिनों के लिए दृढ़ किया जाता है।
एरोपोनिक्स सिस्टम में लगाने के उपरांत पौधों को वृद्धि के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व, पोषक टैंक (घोल कक्ष) के पानी में घोले जाते हैं, जिसका पीएच पूरे फसल अवधि में 5.6-6.2 पर बनाए रखना चाहिए।
स्वचालित रूप से संचालित पंप की मदद से, वांछित अंतराल पर वांछित अवधि के लिए कक्ष के अंदर पोषक तत्व घोल को पोधों की जड़ों पर ग्रोथ चैम्बर के अंदर से छिड़काव किया जाता है। समय-समय पर पोषक तत्व घोल को बदला जाता हैं ।
पोषक तत्व घोल उच्च दबाव पंप द्वारा नलिका के माध्यम से संपीड़ित होता है, जो ग्रोथ चैम्बर में एक अच्छी धुंध बनाकर रखता है। जिससे चौबीसों घंटे की वृद्धि से 100% सापेक्षिक आर्द्रता पर बनी रहती हैं।
जड़ तंत्र एक सप्ताह के बाद ग्रोथ चैम्बर के अंदर विकसित होने लगती है। स्टोलन और कंद निर्माण समय मिट्टी के समान ही किस्म विशिष्ट होते हैं। एक महीने के बाद, असेप्टिक ब्लेड के साथ निचली पत्तियों को हटाने की जरूरत होती है और पौधों को नीचे किया जाना चाहिए।
पौधों को नीचे करने की प्रक्रिया उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी खेत में अर्थिंग अप (मिट्टी चढ़ाना) है। रात का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं जाना चाहिए और दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए। जब ट्यूबराइज़ेशन शुरू होती है, तो अधिकतम रात का तापमान 10-15 डिग्री सेल्सियस और दिन का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के आसपास होना वांछनीय है।
कंदों की तुड़ाई 45-65 दिनों के बाद शुरू होती है, जब कुछ कंद 15-17 मिमी व्यास प्राप्त करते हैं। इस प्रणाली में, जब कंद वांछित आकार प्राप्त कर लेते हैं तब कंदों की तुड़ाई नियमित अंतराल पर की जाती है । सामान्यतः कंदों की तुड़ाई सप्ताह में दो बार की जाती है|
नेट हाउस से 8-10 मिनी कंदों की तुलना में एयरोपोनिक्स तकनीक के तहत किस्मों के आधार पर, एक पौधे से औसतन 35-60 मिनी कंद प्राप्त किये जा सकते है।(छवि1) मिनीट्यूबर्स को शीत गृह में रखने से पहले दस से पंद्रह दिनों तक रोशनी में रख कर हरा या ग्रीनिंग (छवि 2) करना चाहिए। इसके उपरांत मिनी कंदों को 2- 4 °C पर संग्रहीत कर अगली पीढ़ी के रोपण के लिए उपयोग किया जाता है ।
एरोपोनिक सिस्टम सामान्यतः हाइड्रोपोनिक सिस्टम से कई अधिक लाभदेयक होता है, क्योंकि इसमे पौधों की जड़ों का बहुत बेहतर ढंग से ऑक्सीकृत किया जाता है, जिससे उन्हें बेहतर विकसित होने में सहायता मिलती है।
एयरोपोनिक तकनीक का एक और विशिष्ट लाभ यह है कि यदि कोई विशेष पौधा किसी बीमारी से ग्रसित हो जाता है तो उसे अन्य पौधों को बाधित या संक्रमित किए बिना जल्दी से संयंत्र संरचना से हटाया भी जा सकता है।
एरोपोनिक्स का उपयोग करके बीज आलू उत्पादन
एरोपोनिक्स गुणन प्रणाली, खेत में बीज आलू गुणन की 2 पीढ़ियों को समाप्त कर देती है जो उत्पादन की लागत को कम करता है और उच्च गुणवत्ता वाले रोपण सामग्री का उत्पादन सुनिश्चित करता है। एरोपोनिक सिस्टम आलू के प्री-बेसिक बीज उत्पादन के लिए अधिक कुशल व उच्च गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन के तरीकों की बढ़ती मांग के बाद स्थापित किए गए हैं। यह एक अभिनव तकनीक है जो बायोमास और कंद की पैदावार को बढ़ाती है, रूट ऑक्सीजनेशन और विकास का अनुकूलन करती है और पानी और उर्वरकों की खपत को कम करती है| पारंपरिक बीज कंद उत्पादन प्रणालियों की तुलना में एरोपोनिक खेती अधिक लाभदायक हो सकती है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत एक-रूप और रोगज़नक़ मुक्त कंदों के ग्रीनहाउस में अनुक्रमिक उत्पादन तथा ऊर्ध्वाधर (वर्टीकल स्पेस) में बेहतर स्थान का उपयोग करने की अनुमति देता है।
मौसम का नियंत्रण कर मिनी कंदों को पूरे वर्ष उत्पादित किया जा सकता है और मुख्य रूप से सीधे खेत में रोपण करके स्वस्थ बीज के उत्पादन में उपयोग किये जा सकता हैं। बीज कार्यक्रम में मिनी कंदों का उपयोग खेत में वांछित प्रति हेक्टर बीज आलू दर को काफी कम करता है।
इससे बीज उत्पादन के सहयोग में वृद्धि हो सकती है, बुनियादी बीज की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार हो सकता है, और नई किस्मों से पर्याप्त मात्रा में बीज कम समय में बन सकता है। फ़रान और मिंगो-केस्टेल (2006) ने बताया कि मिट्टी रहित उत्पादन तकनीक, जैसे कि एरोपोनिक्स, को सफलतापूर्वक बीज उत्पादन प्रणालियों में प्रमाणन की अच्छी संभावनाओं के साथ, कंद उत्पादन योजना में नियोजित किया गया है।
बीज उत्पादन की एरोपोनिक प्रणाली में संस्थान द्वारा " सीड प्लॉट तकनीक" की शुरुआत के लगभग 50 वर्षों के बाद एक बार फिर से आलू बीज उत्पादन क्षेत्र में क्रांति लाने की क्षमता है।
एरोपोनिक्स तकनीक को पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय जलवायु परिस्थितियों के अनुसार मानकीकृत किया गया है। अब तक आईसीएआर-सीपीआरआई और लगभग 15 अन्य बीज कंपनियाँ एरोपोनिक्स के माध्यम से मिनिटूबर्स का उत्पादन कर रही हैं जो कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों में आगे खेत में गुणित किया जाता है। हैं।
देश में अनुमानित मिनिटूबर्स उत्पादन लगभग 35 मिलियन प्रति वर्ष है। कुल मिलाकर, बीज कंपनियाँ खुले खेतों में शुरुआती पीढ़ी के बीज उत्पादन के साथ किसानों को लगभग 10.0 मिलियन मिनिटूबर्स बेच रही हैं।
हाई टेक बीज प्रणाली दृष्टिकोण, मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को आंशिक रूप से भरने में सक्षम रहा है और इसने भविष्य में किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज आपूर्ति के लिए एक नई उम्मीद दी है।
पारंपरिक बनाम एरोपोनिक बीज उत्पादन
पारंपरिक प्रणाली काफी प्रभावी है लेकिन इसमें कम गुणन दर और ज्यादा समय तक खेत के संपर्क के कारण वायरल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। एरोपोनिक्स के माध्यम से आलू बीज का उत्पादन, स्वस्थ बीज आलू की उपलब्धता को बढ़ावा देता है।
इसके अलावा, एरोपोनिक्स में रोगग्रस्त पौधों की पहचान और रोगिंग आसान है। इसके अलावा, इस विधि के माध्यम से उत्पादित आलू के बीज जड़ों के बेहतर वातन (वायु संचारण) और ऑटोमाइज़्ड पोषक घोल से प्राप्त अनुकूल पोषक तत्व के कारण त्वरित विकास का आनंद ले सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन की टिश्यू कल्चर आधारित प्रणाली को प्रजनक (ब्रीडर) बीज उत्पादन कार्यक्रम के साथ एकीकृत किया गया।
सूक्ष्म संवर्धन (माइक्रोप्रोपेगेशन) के माध्यम से आलू मिनी कंदों के उत्पादन का पारंपरिक तरीका, कीट प्रूफ़ नेट हाउस में इन विट्रो सामग्री को गुणा करना है। पारंपरिक विधि मिट्टी से बने सब्सट्रेट और विभिन्न घटकों के मिश्रण का उपयोग करती है। यह विधि आमतौर पर किस्म के आधार पर प्रति पौधे 10-12 मिनी कंदों का उत्पादन करती है। एरोपोनिक प्रणाली प्रति पौधा मिनिटूबर्स की संख्या को तीन से चार गुणा के अनुसार उत्पादन बढ़ाने की क्षमता रखती है।
बीज प्रणाली के एरोपोनिक प्रौद्योगिकी को अपनाकर स्वस्थ बीज उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक जबरदस्त गुंजाइश है जहां 5: 1 से 50: 1 से गुणन दर में वृद्धि हासिल की जा सकती है। खास बात यह है कि हमें एरोपोनिक आधारित स्वस्थ बीज उत्पादन के लिए किसी अतिरिक्त क्षेत्र की आवश्यकता नहीं है।
आलू के प्री-बेसिक बीज उत्पादन के लिए अपनाई गई विभिन्न प्रणालियाँ, कई मायनों में हाई-टेक प्रणाली सबसे अच्छी लगती हैं। संभावित लाभों को ध्यान में रखते हुए इस प्रणाली में आलू बीज उत्पादन उद्योग में क्रांति लाने की क्षमता है।
एरोपोनिक्स सिस्टम के फायदे
- कम समय में अधिक मात्रा में (10 गुना तक) उत्पादित रोग मुक्त बीज आलू
- जड़ों और पूर्वज कंदों के वातन और विकास के लिए ऊर्ध्वाधर (वर्टीकल) में बेहतर स्थान की उपलब्धता
- एरोपोनिक प्रणाली से लाभ होता है कि कंदों की तुड़ाई समय समय पर उपयुक्त आकर के अनुसार की जा सकती है जिससे मिनी कन्द का उत्पादन ज्यादा होता है|
- पोषक तत्व घोल को आसानी से समायोजित किया जा सकता है, और बीज-आलू के उत्पादन को और अधिक कुशल बनाने के लिए पोषक तत्वों और पीएच मान की सटीक निगरानी की जा सकती है।
- इस विधि से बीजोत्पादन उन क्षेत्रों में भी किया जा सकता है जहां पर जुताई योग्य मिटटी उपलब्ध नहीं है और पानी की उपलब्धता भी बहुत कम है|
- इस विधि से साल में एक की बजाय दो फसलें भी पैदा की जा सकती है|
- बीज का आकर बहुत छोटा (2-4 ग्राम) होने के कारण परिवहन खर्च में भी बहुत कम लागत आती है|
- प्राकृतिक, स्वस्थ पौधों और फसलों के उत्पादन के लिए एरोपोनिक्स सुरक्षित और पारिस्थितिक अनुकूल माना जाता है।
- एरोपोनिक्स के मुख्य पारिस्थितिक लाभ पानी और ऊर्जा का संरक्षण हैं।
कमियां
एरोपोनिक्स का उपयोग करके व्यापक पैमाने पर आलू के पूर्व-मूल (प्री-बेसिक) बीज की आर्थिक रूप से व्यवहार्य प्रस्तुतियों को इस तकनीक की उच्च लागत और सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए। हालांकि, कई अध्ययन इस बात के पुख्ता सबूत देते हैं कि उष्ण कटि बंधीय और गर्म-समशीतोष्ण परिस्थितियों के तहत मिनीट्यूबर के उत्पादन के लिए एरोपोनिक्स एक पर्याप्त विकल्प है।
आलू के पौधे को विकसित रखने के लिए निरंतर छिड़काव की आवश्यकता को बनाए रखने के लिए एरोपोनिक्स उत्पादन का मुख्य नुकसान इसकी विद्युत शक्ति पर निर्भरता है और पानी पंपों को बिजली के किसी भी लंबे समय तक रुकावट से पौधों को अपरिवर्तनीय नुकसान हो सकता है।
एरोपोनिक्स का प्रबंधन करने वाले तकनीशियनों को फसल शरीर विज्ञान का अतिरिक्त ज्ञान होना आवश्यक है।
छवि 1: एरोपोनिक मिनीट्यूबर उत्पादन छवि 2: ग्रीनिंग के बाद एरोपोनिक मिनीट्यूबर
Authors:
सुगनी देवी, मो.अब्बास शाह, रत्ना प्रीती कौर और सुखविंदर सिंह
वैज्ञानिक
आईसीएआर- केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र, जालंधर
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