Prevention and care of livestock from bloating during rainy season

गर्मी के जाने के बाद और बारिश के मौसम में पशुओं को कई तरह के रोगों के होने की संभावना बनती है। मौसम में परिवर्तन होने के कारण तथा इस मौसम में पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे में अचानक बदलाव से पशुओं में अफारा या गैस होने की संभावनाये एक प्रमुख समस्या है। आफरा पशुओं में सबसे अधिक रूप से होनी वाली एक समस्या है जो की कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है। आफरा पशुओं को आम तौर पर अचानक रूप से होने वाला रोग है।

अफारा रोग पशुओं में अधिक खाने, तेज़ी से खाने, ज्यादा गीला हरा चारा खाने या दूषित खाने के कारण होता है। इस रोग में पशुओं के पेट में अमलता अथवा गैस अधिक मात्रा में बन जाती है,  गैस का दबाव पशु की छाती पर पड़ता है और पशुओं को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। जिसके कारण पशु बेचैन होकर एक तरफ लेट जाता है तथा पैर पटकने लगता है। साथ ही कभी कभी उठता एवं बैठता है। यदि इस अवस्था में तुरंत उपचार नहीं किया जाए तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है।

मवेशियों मे अफारा या गैस के प्रमुख कारण

  • पशुओं द्वारा अत्यधिक पानी युक्त हरा चारा खाना।
  • पानी युक्त हरा चारा तेज़ी से खाना । इसे खाते समय मुह से गैस भी चारे के साथ मिल कर आफरे का कारण बनती है ।
  • अधिक मात्रा में हरा और सूखा चारा एवं दाना खा लेना ।
  • पशुओं को फलीदार दाना अथवा फलीदार चारा एक बार में अत्यधिक मात्रा में खिलाना ।
  • कम समय में एक साथ कार्बोहायड्रेट अथवा प्रोटीन युक्त चारा दाना जैसे चना, ग्वार, चावल, बाजरा, खल इत्यादि ।
  • फलीदार चारा को सीधा खेत से काट कर लाना और पशुओं को खिलाना ।
  • गर्मी व बरसात में उचित तापमान न मिलना और पाचन क्रिया गड़बड़ाना और अपच होना ।

आफरा के मुख्य लक्षण

पशुओं में आफरा की पहचान के लिए पशुपालकों को निम्नलिखित लक्षणों का ध्यान रखना चाहिए ।

  • इस रोग में पेट में गैस बनने लगता है और पेट में एकत्रित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप बाया तरफ का पेट फूला हुआ दिखता है।
  • फूले हुए पेट पर अंगुलिओं से हल्की- हल्की चोट मरे तो ढोल जैसी डब डब की आवाज़ सुनाई देती है ।
  • इसके परिणाम स्वरुप पशु के फेफड़ो पर अधिक दबाव पड़ने के कारण श्वास लेने में कठिनाई होती है तथा नथुने फूल जाते है। अथवा पशु मुँह खोल कर श्वास लेने लगता है।
  • पीड़ित पशु के मुँह से झाग एवं लार निकलने लगती है तथा जीभ मुँह से बाहर निकल आती है।
  • पशु पेशाब व मल करना बंद कर देता है ।
  • गहरी व लम्बी श्वास लेने के साथ साथ पशु पैर पटकता है. यदि इस अवस्था में भी चिकित्सा न की गयी तो पशु की मृत्यु हो जाती है।
  • पशु बहुत बेचैन हो जाता है और बेचैनी से बार बार उठता बैठता है।
  • रोगी पशु खाना-पीना व जुगाली करना बंद कर देता है।

आफरा से बचाव

  • हरा चारा काट कर तुरंत न खिलाये, फलीदार चारा जैसे बरसीम, रिजका इत्यादि काट कर थोड़े देर पड़ा रहने दे उसके बाद खिलाये ।
  • फलीदार चारा जिसकी टहनी नली जैसी हो उसे काट कर ही पशुओं को खाने के लिए दे।
  • पशु को लगातार हरा चारा ना दे,कम से कम ३० मिनट का अंतराल जरुर रखे।
  • हरा चारा को सही समय पर ही काटे ताकि वो ज्यादा नरम या रेशेदार ना रहे ।
  • हरा व सुखा चारा को मिला कर पशुओं को खाने के लिए दे ।
  • चारा भूसा इत्यादि खिलाने से पहले पशुओं को पानी पीने क लिए दे ।
  • चारा व दाना में एकदम से परिवर्तन ना करे ।
  • कभी भी सिर्फ दाना बाटा जिसमे की फलिदार दाना हो वो उसे पशुओं को ऐसे ही खाने को ना दे बल्कि दाना बाटा को पानी में गला कर सूखे के साथ मिलाकर दे।
  • सड़ा गला या फफूंद लगा दूषित आहार पशुओं को न खिलायें।

 आफरा में प्राथमिक उपचार

  • सबसे जरुरी है की पशुओं को बैठने ना दे उसे घुमाते फिराते रहे, ताकि उसके पेट का गैस निकल सके।
  • बाएं पेट पर हल्के से मालिश करें और उसकी जीभ पकड़कर मुँह से बाहर खींचे ताकि गैस बाहर निकल सके ।
  • फेफड़ो पर गैस का दबाव कम करने के लिए रोगी पशु को ढलान वाले स्थान पर इस प्रकार बांधे जिससे उसका धड कुछ ऊँचा रहे ।
  • ३० मि.ली तारपीन के तेल को 500 मि.ली. मीठे तेल में मिलाकर पिलायें।
  • एक लीटर छाछ में 50 ग्राम हिंग और 20 ग्राम काला नमक मिला कर पिलाने से भी पशु को आराम मिल सकता है।
  • आपातकालीन स्थिति में पशु के बाये ओर के पेट पर त्रिकोने स्थान के बीचो बीच चाक़ू या ट्रोकार कैनयुला की सहायता से छेद कर पेट में से गैस को धीरे धीरे बाहर निकाला जा सकता है। ऐसा करने से पशु को बहुत जल्द आराम मिल जाता है। परन्तु ये तकनीक किसी विशेषज्ञ द्वारा ही करवायें।

Authors:

डॉ शिल्पी केरकेट्टा, डॉ सनत कुमार महंता, डॉ पंकज कुमार सिन्हा, दीपक कुमार गुप्ता एवं डॉ कृष्णा प्रकाश

वैज्ञानिक, आई. सी. ए. आर - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, बरही, हजारीबाग (झारखण्ड)

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