भारत में हरित क्रांति की सफलता का एक मुख्य कारण  की फसल सुरक्षा के उपायों के रूप में सिंथेटिक कीटनाशकों का उपयोग था। हालांकि, कीटनाशकों के गलत एवं अत्यधिक उपयोग के कारण पर्यावरण और उसपर निर्भर मवेशिओं के लिए बहुत सारी समस्याएं खड़ी हो गई हैं।

फसल संरक्षण उपायों में कल्चरल, मैकेनिकल, बायोलॉजिकल और केमिकल जैसे विभिन्न उपयोगो में से कीटनाशकों का उपयोग अभी भी कीट प्रबंधन के लिए सबसे सुविधाजनक, आसान और प्रभावी साधन है। इसलिए, कृषि उत्पादन प्रणालियों में कीटनाशकों का उपयोग एक अभिन्न अंग हैं।

कीटनाशकों के अधिकांश अणु और/ या उनसे बनने वाले प्रदार्थ जहरीले होते हैं और इन प्रदार्थो की विषाक्ता  से  स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं जैसे की कैंसर, भ्रूण में विरूपता, उत्परिवर्तजनीयता, कोशिका के भीतर नुकसान,  तंत्रिका तंत्र को क्षति जैसे और कई अन्य प्रभाव होने की सम्भावना होती है।

शब्द 'कीटनाशको के अवशेष' को परिभाषित करते हुए ये कहा जा सकता है की कोई भी विशिष्ट प्रदार्थ जो की भोजन, कृषि वस्तु या पशु आहार में कीटनाशको के उपयोग से उत्पन्न हुआ हो। इस शब्द में कीटनाशक से उत्पन्न हुआ कोई भी प्रदार्थ जैसे की रूपांतरण उत्पाद, चयापचय के दौरान उत्पादित मध्यवर्ती उत्पाद, प्रतिक्रिया उत्पाद और विषाक्त महत्व वाली अशुद्धियों को शामिल किया गया है।

जब भी कीट, रोग, खरपतवार आदि को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों को फसल पर लगाया जाता है, तो वे अनिवार्य रूप से उस फसल एवं मिट्टी पर विषाक्त अवशेष छोड़ते हैं जिस पर वे लगाए जाते हैं। चारा, पानी, हवा और अन्य स्रोतों से कीटनाशकों के अवशेष जानवरों तक पहुँचते हैं और फिर दूध और/या मांस उत्पादों के माध्यम से यह मनुष्य के शरीर में जमा हो जाते हैं।

कुछ सस्ते और बहुत पहले से उपयोग होने वाले कीटनाशक, जैसे की डाइक्लोरोडिफेनिलट्रिक्लोरोइथेन (डीडीटी) और लिंडेन, कई वर्षों तक मिट्टी और पानी में  रह सकते हैं। 2001 के स्टॉकहोम कन्वेंशन पर हस्ताक्षर के बाद कई देशों ने इन रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया है ।

किसी भी कीटनाशक की विषाक्तता कई कारणो पर निर्भर करती है जैसे की शाकनाशियों की तुलना में कीटनाशक मनुष्यों के लिए अधिक दुष्प्रभाव होते हैं। विषाक्तता इस पर भी निर्भर करती है की किस मार्ग से कीटनाशक शरीर के अंदर गया है, जैसे कि निगलने, साँस लेने या त्वचा के सीधे संपर्क में आने से।

एक ही कीटनाशक के अलग-अलग सेवन  पर अलग-अलग प्रभाव हो सकते हैं । बड़ी मात्रा में कीटनाशकों के संपर्क में आने पर परिणाम, तीव्र विषाक्तता या दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं जिनमें कैंसर और प्रजनन पर  प्रभाव शामिल हो सकते हैं।

कीटनाशक अवशेषों से बचाव के उपाय

  • कृत्रिम कीटनाशकों का उपयोग बिल्कुल आवश्यक होने पर और सटीक मात्रा में ही किया जाना चाहिए।
  • उचित कीटनाशक का उपयोग विशिष्ट स्थिति में एवं सही तरीके के अनुसार ही किया जाना चाहिए।
  • कटाई के तुरंत पहले कीटनाशकों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • कटाई से पहले के सुरक्षित प्रतीक्षा अवधि (फसल/पशु पर कीटनाशक के अंतिम प्रयोग और कटाई या चराई/पशुधन को खिलाने या मानव उपयोग के लिए पशु को दूध देने/वध करने के बीच निर्धारित न्यूनतम समय अंतराल) को सख्ती से बनाए रखा जाना चाहिए।

फसलों को कीटनाशकों के अवशेष से मुक्त करने के उपाए

  • कुछ दिनों तक फसलों को धूप में सुखाने से कुछ अवशेष निकल सकते हैं।
  • हरे चारे के मामले में अवशेषों के कुछ प्रतिशत को हटाने के लिए साधारण धुलाई और नमक या अम्ल या चूने के घोल में डुबाकर प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • साइलेज (हरे चहरे का अचार ) बनाने की प्रक्रिया भी ताजे हरे चारे में कीटनाशकों के अवशेषों की सघनता को कम कर सकती है।
  • यदि जानवर किसी तरह कीटनाशक अवशेषों से दूषित चारा सामग्री का सेवन कर लेते है , तो उस पशु को चारकोल (कोयला) जिसकी खुराख 1-2 ग्राम/किलोग्राम पशु के शरीर के वजन के हिसाब से दिया जा सकता है, जो कीटनाशक के प्रभाव को पशु में कम सकता है।

Authors :

Dr. Prince Chauhan and Dr. Amninder Singh
Asst. professor, KCVAS-Amritsar
Ph.D.-Animal Nutrition (NDRI)
ICAR-National Dairy Research Institute, Karnal, Haryana. 132001

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