Major agricultural activities in fruit crops in July
जुलाई का महीना फल वाली फसलों व अन्य फसलों के लिए महत्वपूर्ण महीनों में से एक है क्योकि, जुलाई का महीना जिसे आषाढ़-श्रावण भी कहते है। एक लम्बी गर्मी या सूखे मौसम के पश्चात तपती हुई धरती को ठंडा करने के लिए मानसून लेकर आता है व पेड़-पौधों को प्रकृति के आशीर्वाद स्वरुप वर्षा जल की प्राप्ति होती है। वर्षा के पश्चात सारा खेत-खलिहान हरियाली से भर उठता है।
फल वाली फसलों में अनेक कृषि कार्य जुलाई के महीने में किये जाते है, जैसे- अनेक फल पौधों की रोपाई, बीजू पौधों के बीज की बुवाई, जल निकास की व्यवस्था, उर्वरक प्रबंध, खरपतवार नियंत्रण, अंतर्वर्ती फसलों की बुवाई, फल पौधों में कटिंग, बडिंग, कलम बांधने का काम, बरसात के मौसम में लगने वाले कीट व रोगो का नियंत्रण आदि कार्य किये जाते है, जिनका विवरण इस प्रकार से है-
फल पौधों की रोपाई
फल पौधों के नये बाग़ लगाने के लिए उचित दूरी पर उचित आकर के गड्ढे मई-जून के महीने में खोद लिए जाते हैं। इनमें बरसात के ठीक पहले दीमक के प्रकोप से बचने हेतु प्रत्येक गड्ढे में 200 ग्राम क्लोरवीर की धुल डालें। जो फल पौधे कलिकायन द्वारा तैयार किये जाते हैं वे लगभग एक साल में रोपाई योग्य हो जाते हैं। पौधे लगाने के लिए बरसात का मौसम अति उत्तम है।
पौधे लगाने से पहले प्रत्येक गड्ढे की मिट्टी में 20-25 कि०ग्रा० या एक टोकरी गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद और एक किलो सुपर फ़ॉस्फ़ेट मिलाना लें अच्छा रहता है। पौधे लगाते समय गड्ढे के मध्य से थोड़ी मिट्टी हटाकर उसमें पौधा लगा देना चाहिए और उस स्थान से निकली हुई मिट्टी जड़ के चारों ओर लगाकर दबा देनी चाहिए।
जुलाई की वर्षा के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए तभी पौधा लगाना चाहिए। पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जमीन में इनकी गहराई उतनी ही रहे जितनी में रोपी गई थी। पौधे लगाने के बाद तुंरत ही पानी दे देना चाहिए। संतरा, नींबू, चीकू, अनार, कटहल, बेर, आँवला, आदि रोपण की किृया करें।
बीजू पौधों के बीज की बुवाई
नये फल पौधों का उत्पादन साधारणतया वानस्पतिक प्रवर्धन के द्वारा किया जाता है। पौध तैयार करने के लिए मूलवृंत की आवश्यकता होती है जिसके लिए फल के बीजू पौधों का प्रयोग किया जाता है।
फल पौधों को मुख्य रूप से बीज द्वारा तैयार किये गये मूलवृंत पर कालिकायन या ग्राफ्टिंग द्वारा बनाये जाते हैं। जून के महीने में जब फल पकने लगता है, पके फल के बीजों को निकालकर तुरन्त नर्सरी में 15-20 सें.मी. ऊँची 1 x 10 मीटर आकार की क्यारियों में 1-2 सें.मी. गहराई पर बो देना चाहिए या 25 x 12 x 12 सें.मी. आकार वाली काली पॉलीथीन को थैलियों में बुआई करना चाहिए।
थैलियों को बालू, चिकनी मिट्टी या बागीचे की मिट्टी तथा गोबर की सड़ी खाद को बराबर मात्रा में मिलाकर बुवाई से पहले ही भर देना चाहिए। पहले बीजों को लगभग 12-14 घंटों के लिए पानी में भिगो दिया जाता है और फिर हवा में सुखाया जाता है फिर इनको बोया जाता है।
बुवाई का उत्तम समय जून-जुलाई का महीना होता है। कलिकायन या ग्राफ्टिंग के लिए 1 वर्ष पुराने पौधे उपयुक्त पाये गये है। उचित देख-रेख करने से मूलवृंत लगभग 8-10 माह में बंडिंग/ग्रैफ्टिंग योग्य तैयार हो जाते है।
जल निकास की व्यवस्था
अचानक भारी बरसात होने की संभावना होती है तथा नुकसान से बचने के लिए फल बागानों में सिंचाई के लिए बनाई नालियां को जल-निकास के काम में ला सकते है । बगीचे में या फल पौधों के नीचे पानी जमा होने से फलों का भारी नुकसान हो सकता है। अतः फालतू पानी के निकास की व्यवस्था करें। बरसात के पानी को तालाब आदि में एकत्रित करें तथा जरूरत पड़ने पर सिंचाई के काम में लाएं ।
पोषक तत्व (उर्वरक) प्रबंधन
जुलाई माह में नत्रजन खाद देते समय वर्षा का विशेष ध्यान रखें । जमीन में काफी नमी होनी चाहिए ताकि यूरिया पूरी तरह घुल जाय । परन्तु अधिक नमी या तुरंत बरसात होने की स्थिति में यूरिया तब तक न डालें जब तक मौसम व जमीन में नमी उचित मात्रा में नहीं रह जाती अन्यथा बहुत सी नत्रजन पानी के साथ बह जायेगी ।
छोटे फल पौधों में 50 ग्राम नत्रजन प्रति पौध आयु के हिसाब से दें। जल निकास की व्यवस्था करें। प्रत्येक पौधे को 20-30 किग्रा. गोबर की सड़ी हुई खाद, 1-1.5 किग्रा. यूरिया,1-1.5 किग्रा. सि.सु.फा. तथा 0.5-0.6 किग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष देने चाहिए |
इसके साथ ही साथ फल देने वाले पौधों को जिंक सल्फेट (200 ग्रा./पौधा) तथा बोरान (100 ग्रा./पौधा) भी दिया जाना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
पौधों के थालों में समय-समय पर खरपतवार निकाल कर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। निंदाई-गुड़ाई करके पौधे के थाले साफ़ रखने चाहिए। बड़े पेड़ों के बागों की वर्ष में दो बार जुताई करनी चाहिए। फल बगीचे में बरसात आदि में पानी बिल्कुल नहीं जमना चाहिए।
अंतर्वर्ती फसलों की बुवाई
शुरू के कुछ वर्षों तक फल पौधों के बीच काफी जगह खाली पड़ी रहती है। इसलिए 3 से 6 वर्ष तक बरसात के मौसम में अंतर्वर्ती फसलों के रूप में सब्जिया आदि लगाया जा सकता हैं।
सिंचाई की उपलब्धता और जलवायु के आधार पर अनानास और कोकोआ, टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, मटर, कद्दू, केला और पपीता को अंतरफसली के तौर पर उगाया जा सकता है। पेड़ बड़े हो जाने पर भी इनके बीच अदरख और हल्दी की खेती अंतरफसल के रूप में की जा सकती है।
फल पौधों में बडिंग या ग्राफ्टिंग
बडिंग या ग्राफ्टिंग वह क्रिया है दो एक ही जाती या प्रजाति के पौधो के कटे भाग इस प्रकार बांधे जाते है की दोनों एक दुसरे से जुड़ जाये और फल देने की और वृद्धि जल्दी से कर सके, तथा नए पौधे के रूप में बढ़ने लगे।
इस तकनीक को अपनाने से पहले हम बीजू आम का रूटस्टॉक यानि मूलवृंत तैयार करते है। रूटस्टॉक यानी की उगाने के बाद जिस पौधे की कलम तैयार करनी है वह पौधे का जड़ के साथ वाला भाग।
बड-स्टिक तैयार करना
कलम बाँधने के लिए बड-स्टिक को तैयार करने के लिए हम आम के मधर प्लांट से नयी निकली शाखाओ में सबसे स्वस्थ शाखा का चयन करते है। शाखा की अग्र भाग से पत्तियो को सिकेटिअर की मदद से काट ले, और उसे एक सप्ताह के लिए पेड़ में लगा कर छोड़ देते है।
एक सप्ताह के बाद पत्ती का निचला भाग झड जाता है, और अग्र भाग से कलिया फूटने लगते है। इस अवस्था में बड-स्टिक के 10-12 सेंटीमीटर लम्बाई में काट लेते है। यह बड-स्टिक कलम बाँधने के लिए एकदम तैयार है।
कलम बांधना
कलम बांधने के लिए मूलवृंत (Rootstock) को सेकेटीअर की मदद से जमीन से 15 से 18 से.मी ऊंचाई पर काटने के बाद तने के मध्य भाग में 4 से 5 से.मी. गहरा कट ग्राफ्टिंग चाकू की मदद से लगाते है। इतनी ही लम्बाई का बड-स्टिक के निचले भाग में वी (V) आकार छिलते है।
इस छीले हुवे बड-स्टिक को मूलवृंत के कटे हुवे भाग में लगा देते है। लगाने के बाद इसे अच्छी तरह दबा देते है, ताकि पौधे का बड-स्टिक और मूलवृंत का कैम्बियम अच्छी तरह से संपर्क में आ जाये।
इस जोड़ को अच्छी तरह बाँधने के लिए पोलीथिन की पट्टी का इस्तेमाल करते है, जिसकी चौड़ाई 2 सेंटीमीटर और लम्बाई तक़रीबन 25-30 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इस पोलीथिन को हाथ की मदद से जोड़ के आसपास बाँध लेना है। इस जोड़ को जुड़ने में डेढ़ से दो महिना लगता है। इस जोड़ से तैयार की हुई पौध कलमी पौध कहलाती है। यहाँ कलम बांधने की प्रक्रिया पूर्ण होती है।
बरसात के मौसम में लगने वाले कीट व रोगो का नियंत्रण
- नीबू जाति के पौधों को प्स्यल्ला, लीफ माईनर व सफेद मक्खी से बचाव के लिए 750 मि.ली. आक्सीडीमेटॉन-मिथाइल 25 ईसी 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें ।
- तने व फल के गलने का बचाव बरसात की पहली बारिश के तुरंत बाद 3% कापर आक्सी-क्लोराईड का छिडकाव करें ।
- आम के बागों में सभी बेढंगे फूलों के गुच्छे काट दें तथा पौधों को अच्छी तरह खाद दें ।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
कुछ महत्वपूर्ण फलो में जुलाई माह के मुख्य कृषि कार्य
आम में मुख्य कृषि कार्य
- पूरी-खाद एवं आधी उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें एवं शेष आधे उर्वरक को सितम्बर माह में वृक्ष के क्षत्रक के नीचे गोलाई में देकर अच्छी तरह से मिला दें |
- नए बाग़ लगाने हेतु रोपाई का कार्य प्रारंभ करें |
- फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें |
- बाग़ में जल निकास की व्यवस्था करें |
- आम में गूटी बांधें।
- आम में कलम बांधने का काम करें।
- आम की गुठली का रोपण कार्य करें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
लीची में मुख्य कृषि कार्य
- अधिक ओजपूर्ण एवं स्वस्थ क्ल्लों के विकास के लिये खाद, फ़ॉस्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण एवं नत्रजन की दो तिहाई मात्रा फल की तोड़ाई एवं वृक्ष के काट-छांट के साथ-साथ देना चाहिये |
- बाग़ में जल निकास का प्रबंध करें |
- नए बाग़ की रोपाई कार्य करें |
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
नींबू वर्गीय फल में मुख्य कृषि कार्य
- संतरा और मौसमी के प्रत्येक पौधे को 20-30 किग्रा. गोबर की सड़ी हुई खाद, 1-1.5 किग्रा. यूरिया, 1-1.5 किग्रा. सि.सु.फा. तथा5-0.6 किग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष देने चाहिए |
- इसके साथ ही साथ फल देने वाले पौधों को जिंक सल्फेट (200 ग्रा./पौधा) तथा बोरान (100 ग्रा./पौधा) भी दिया जाना चाहिए ।
- मूलवृंत उत्पादन हेतु रफलेमन, रंगपुरलाइम की बोनी करें।
- नींबू में गूटी बांधें।
- संतरे एवं मौसम्बी में बडिंग करें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
काजू में मुख्य कृषि कार्य
- प्रथम वर्ष में 300 ग्राम यूरिया, 200 ग्रा. रॉक फ़ॉस्फेट, 70 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधा की दर से दें।
- दूसरे वर्ष इसकी मात्रा दुगुनी कर दें और तीन वर्ष के बाद पौधों को 1 किग्रा यूरिया, 600 ग्रा. रॉक फ़ॉस्फेट एवं 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष जून-जुलाई और सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में आधा-आधा बांटकर देते रहें |
- बीजू फलों के बीज बोयें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
पपीता में मुख्य कृषि कार्य
- रिंग स्पाट वायरस तथा मोजैक के नियंत्रण के लिए पौधों के छोटी अवस्था में ही वायरस फैलाने वाले कीटों (एफिड) के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास25 मि.ली./ली. का 2-3 छिड़काव करें।
- जुलाई में पपीता की किस्में हनीड्यू, कुर्ग हनीड्यू, पूसा ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, लगा सकते हैं ।
- पपीता के बीज बोयें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
केला में मुख्य कृषि कार्य
- नए बाग़ लगाने हेतु रोपाई का कार्य प्रारंभ करें।
- अवांछित पत्तियों को निकाल दें व पेड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें।
- केले का धुन (बनाना विविल) अधिक प्रकोप होने पर एक मिली फास्फोमिडान प्रति 3 लीटर पानी अथवा डाईमिथोएट0 मिली अथवा ऑक्सी डीमेटॉन मिथाइल 1.25 मिली का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए ।
- आवश्यकता पड़ने पर 15-20 दिन बाद यह छिड़काव दुबारा कर देना चाहिए ।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
- केला की फसल में सकर पृथक करें तथा पत्तियों पर सिगाटोका की रोकथाम हेतु इण्डोफिल-45, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
अमरुद में मुख्य कृषि कार्य
- उकठा रोग के रोकथाम के लिए कालीसेना (एस्पर्जिलस नाइजर के व्यावसायिक स्वरूप) नामक जैव कीटनाशी का पौधरोपण के समय प्रयोग करने से आंशिक सफलता मिली है।
- इस जैव कीटनाशी की 50 ग्रा. मात्रा व 5 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ गड्ढे में मिलाकर पौध रोपाई करें।
- पौधों में पोटेशियम एवं करंज की खली के प्रयोग से उकठा रोग की उग्रता में कमी पायी गयी है ।
- अमरूद में कलम बांधने का काम करें।
- नए बाग़ रोपण का कार्य करें ।
- जुलाई में अमरूद की किस्में इलाहबादी सफेदा, बनारसी सुखाय, लखनऊ - 49 लगा सकते हैं ।
- बीजू फलों के बीज बोयें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
आँवला में मुख्य कृषि कार्य
- काली फफूंद के प्रकोप को 2% स्टार्च के छिड़काव के द्वारा रोका जा सकता है ।
- यदि प्रकोप अधिक हो तो स्टार्च में05% मोनोक्रोटोफ़ॉस तथा 0.2% घुलनशील गंधक मिला कर छिड़काव करना चाहिए।
- जुलाई में आप आवंला की किस्में बनारसी व चकैया लगा सकते हैं ।
- बीजू फलों के बीज बोयें।
- आवंला में बडिंग करें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
चीकू में मुख्य कृषि कार्य
- चीकू में कलम बांधने का काम करें।
- मूलवृंत उत्पादन हेतु खिरनी की बोनी करें।
- बीजू फलों के बीज बोयें।
- बीमारीग्रस्त फलों एवं शाखाओं को पौधे से पृथक करें।
Authors:
संगीता चंद्राकर, प्रभाकर सिंह एवं हेमन्त पाणिग्रही
फल विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर ( छ.ग.)
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