केंचुआ खाद, जैविक कृषि के लिए एक जरूरी सामग्री
वर्तमान परिदृश्य में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी में जीवांश कार्बन का स्तर लगातार कम हो रहा है, तथा कृषि रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा जीव भी नष्ट होते जा रहे हैं। अतः भविष्य में मृदा उर्वरता को संरक्षित रखनेे तथा इसकी निरन्तरता को बनाये रखने के लिए जीवांश खाद उपयोग को बढ़ावा देने की नितान्त आवश्यकता है।
जीवांश खादों में वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) का विशिष्ट स्थान है, क्योंकि इसे तैयार करने की विधि सरल एवं गुणवत्ता काफी अच्छी होती है। केंचुआ खाद जैविक कृषि के लिए एक प्राचीन एवं उत्तम जैविक खाद है।
पूरे विश्व में केंचुए की लगभग 3000 प्रजातियाँ पायी जाती है। इनमें से भारत में लगभग 509 प्रजातियाँ उपलब्ध है।
केंचुआ खाद क्या है ? - केंचुओं द्वारा निगला हुआ गोबर, घास-फूस, कचरा आदि कार्बनिक पदार्थ इनके पाचन तंत्र से पिसी हुई अवस्था में बाहर आता है, उसे ही केंचुआ खाद कहते हैं। केंचुआ खाद जल घुलनशील पोषक तत्वों से युक्त होता है।
यह पोषक तत्व से भरपूर जैविक खाद और मृदा अनुकूलक है जो पौधों के द्वारा अपेक्षाकृत आसानी से अवशोषित किए जाते है। चूंकि केंचुए साधारण रूप में खनिजों को पीस कर समान रूप से मिश्रित करते हैं, पौधों को उन्हें प्राप्त करने के लिए न्यूनतम प्रयास की आवश्यकता होती है।
केंचुए के पाचन तंत्र अनुकूल वातावरण बनाते हैं जो कुछ प्रजातियों के सूक्ष्मजीवो को पनपने देते हैं और इस तरह पौधों के लिए जीवित मृदा का वातावरण बन जाता है। मृदा का अंश जो केंचुओं के पाचन तंत्र से होकर गुजरा है, उसे ड्रिलोस्फीयर कहा जाता है।
खाद बनाने के लिए सही स्थान -
केंचुआ खाद बनाने हेतु छायादार व नम वातावरण की आवश्यकता होती है। अतः घने छायादार पेड़ के नीचे या हवादार फूस के छप्पर के नीचे केंचुआ खाद बनाना चाहिये। नम वातावरण में केंचुआ की बढ़वार शीघ्रता से होती है। स्थान के चुनाव के समय उचित जल निकास व पानी की समुचित व्यवस्था का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
खाद बनाने का उचित समय-
किसान भाई केंचुआ खाद वर्ष भर बना सकते हैं, लेकिन 15-20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर केंचुए अधिक कार्यशील होते हैं।
केंचुओं की प्रजाति का चुनाव-
केंचुआ खाद बनाने में कई प्रजातियों को काम में लाया जाता है, लेकिन यहा की जलवायु हेतु आइसीनिया फोटिडा एवं यूड्रिलस यूजिनी प्रजाति ज्यादा उपयुक्त माना जाता हैं। इस प्रजाति का रख-रखाव भी आसान होता है।
केंचुआ खाद बनाने हेतु उपयोगी कार्बनिक पदार्थ-
केंचुआ खाद बनाने में वह सभी कार्बनिक पदार्थ जो आसानी से सड़ गल सके, उपयुक्त होते हैं। इस हेतु पशुओं का गोबर, फसल अवशेष, सब्जी अवशेष आदि को काम में लाया जाता हैं। सामान्यतः गोबर आधा तथा कचरे आदि का आधा भाग मिलाकर मिश्रण को केंचुओं की खाद्य सामग्री के रूप में तैयार किया जाता है।
खाद बनाने हेतु कार्बनिक पदार्थों का प्रारंभिक उपचार-
केंचुए की खाद को शीघ्रता से बनाने एवं उसकी दक्षता को बढ़ाने के लिए कार्बनिक पदार्थों की प्रारंभिक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। फसल अवशेष, वानिकी अवशेष एवं अन्य कार्बनिक व्यर्थ पदार्थों को खुली धूप में फैलाकर रख देना चाहिये। इससे बहुत सारे अवांछनीय जीव नष्ट हो जाते है।
इसके बाद पेड़ की छाया में प्रत्येक 10-20 कि.ग्रा. पदार्थ को आधा कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर खाद से मिश्रित कर दिया जाता है। यह केवल जीवाणुओं को निषेचित करने के उद्देश्य से किया जाता है। इन मिश्रित पदार्थों को (प्रति 20 कि.ग्रा. पदार्थ) ढेर लगाकर 5 लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिये।
इन ढेर को 3 दिन की अंतराल में नम बनाते हुए, बीच-बीच में पलटते रहना चाहिये। तीन से चार सप्ताह बाद ढेर केंचुए की खाद बनाने के लिए तैयार हो जाता है।
केंचुआ खाद बनाने हेतु गड्ढे (पिट) का निर्माण -
केंचुआ खाद बनाने हेतु सामान्यतः 3 फीट चैड़ाई, आवश्यकता एवं सुविधानुसार 10 से 40 फीट लम्बाई तथा 2 फीट गहराई का पक्का गड्ढा बनाने की आवश्यकता होती है। गड्ढे की फर्श (सतह) को कांक्रीट से पक्का कर दिया जाता है। जल निकास हेतु पिट में एक छिद्र बनाया जाता है।
इसको और प्रभावी बनाने हेतु दो गड्ढों का निर्माण एक साथ किया जाता है तथा बीच की दीवार में छिद्र छोड़ दिये जाते हैं, जिससे आसानी से केंचुए एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे में जा सके। चींटियों से केंचुओं को बचाने के लिए गड्ढे के चारों ओर एक ईंट की नाली बना कर उसमें पानी भर दिया जाता है।
प्रथम परत |
5-7 से.मी. मोटी परत के रूप में जैव-अपघटनीय पदार्थों एवं गाय के गोबर को बिछाना चाहिये। |
दूसरी परत |
दूसरी परत के रूप में आंशिक रूप से या प्रारंभिक उपचार किये हुए कार्बनिक पदार्थों की 5-7 से.मी. मोटी परत बिछाकर 40ः तक नम कर देना चाहिए। (25 ली. पानी प्रति क्विंटल कार्बनिक पदार्थ की दर से) |
तीसरी परत |
तीसरी परत के रूप में प्रति 3 घन मीटर के हिसाब से 1000 केंचुओं को छोड़ना चाहिये। |
चैथी परत |
इस परत में रसोई एवं अध सड़े एवं बारीक वानस्पतिक कचरे की 25 से 30 से.मी. मोटी परत डालकर पानी का छिड़काव करना चाहिये। |
ऊपरी परत |
इस प्रकार केंचुओं के भोज्य पदार्थ के ढेर को जूट के पुराने बोरों से ढक देना चाहिये। |
केंचुआ खाद बनाने की विधि-
केंचुआ खाद के गड्ढे को कार्बनिक ध् वनस्पति अपशिष्ट, गोबर आदि से अलग-अलग परतों में भरे जाते हैं।
एक माह पश्चात ढेर को हाथों या लोहे के पंजे की सहायता से धीरे-धीरे पलटते रहना चाहिये। पिट में 40 प्रतिशत नमी बनाये रखने हेतु आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी का छिड़काव करना चाहिये। इस प्रकार लगभग 50-60 दिनों में वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाती है।
केंचुआ खाद बनाने की ढेर विधि-
- आवश्यकतानुसार पक्का फर्श का निर्माण ।
- घास फूस का शेड या पक्का शेड का निर्माण।
- फर्श पर 1 मीटर चैड़ी आवश्यकतानुसार लम्बी व 5 से 2 फीट ऊँचाई की क्यारी (ढेर)।
- आंशिक रूप से सडे़ गोबर व जैविक कचरे (1:1) के मिश्रण में उपयोग।
- 1 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र मं केंचुआ छोड़ना।
- ढेर को जूट की गीली बोरी या घास फूस व पुआल आदि से ढकना।
- खाद बनने में 50 से 60 दिन का समय।
केंचुआ खाद संग्रह करना
लगभग छः-सात सप्ताह में ढेर का रंग काला भुरभुरा दानेदार चाय पत्ती जैसा दिखाई देने लगता है। यह अवस्था आने पर पिट में पानी देना बंद कर देते हैं। चार-पांच दिनों पश्चात् केंचुए नमी की ओर पिट की निचली सतह पर चले जाते हैं, अतः तैयार खाद की ऊपरी परत को दो-तीन बार में धीरे-धीरे एकत्रित कर 12-24 घंटे के लिए ढेर लगा देना चाहिए।
निचली परत जिसमें केंचुए मौजूद हैं, उसे एक स्थान पर एकत्रित कर लेते हैं तथा गड्ढे को पुनः आंशिक रूप से सडे़ गोबर व कचरे के मिश्रण से भर देते हैं, तथा तैयार खाद की निचली परत जिसमें केंचुए मौजूद है, ढेर की ऊपरी परत पर पहले की भांति छोड़ देते हैं, तथा ढेर को जूट के बोरों से ढंक देते हैं।
बाहर निकाली गई केंचुआ खाद को छानकर बोरियों में भरकर उपयोग करने तक किसी छायादार स्थान पर रख देते हैं।
केंचुआ खाद के गुण
अ. भौतिक गुण
- केंचुआ खाद दानेदार गहरे भूरे, काले रंग का मुलायम ह्यूमश पदार्थ है। यह बदबू, खरपतवारों एवं हानिकारक जीवाणुओं से रहित होता है।
- यह मृदा में हवा का आवागमन एवं जलधारण क्षमता बढ़ाती है, तथा भारी मृदाओं में जल निकास में सहायक है।
ब. रासायनिक गुण
केंचुआ खाद के रासायनिक गुण इसको तैयार करने में उपयोग किये गये कच्चे पदार्थ (कार्बनिक पदार्थ) की गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं।
क्रमांक |
पोषक तत्व |
मात्रा |
मुख्य तत्व |
||
1 |
नाइट्रोजन |
2.5-3.0 प्रतिशत |
2 |
फॉस्फोरस |
1.5-2.0 प्रतिशत |
3 |
पोटाश |
1.5-2.0 प्रतिशत |
सूक्ष्म तत्व |
||
1 |
लोहा |
21.6 (पी.पी.एम.) |
2 |
जिंक(जस्ता) |
12.7 (पी.पी.एम.) |
3 |
मैगनीज |
19.2 (पी.पी.एम.) |
4 |
तांबा |
5.8 (पी.पी.एम.) |
स. जैविक गुण
- जीवाणुओं (एजोटोबैक्टर, फास्फेट सोल्यूबिलाइजर एवं नाइट्रोबेक्टर ) की संख्या - 1010 से अधिक
- एक्टीनोमायसिटीज की संख्या - लगभग 105 से 107 तक
- जिबरेलिन्स, आक्सीन्स, साइटोकायनिन - पर्याप्त मात्रा में कई प्रकार के लाभप्रद फफूंद
केंचुआ खाद बनाम डी.ए.पी.
विवरण | केंचुआ खाद | डी.ए.पी. (रासायनिक खाद) |
खाद बनने में लगने वाला समय | 1.5 से 2.5 माह, जो कृषक खेत पर स्वयं तैयार कर सकता है। | कारखाना में तैयार होता है। |
उत्पादन | 36 क्विंटल/पिट, एक वर्ष मे 3-4 बार उत्पादन किया जा सकता है।(10x3x1.5 घन फीट) | डी.ए.पी. का उत्पादन बाजार की मांग व कारखाना की क्षमता पर निर्भर करता है। |
कच्चा पदार्थ | पशुओं का गोबर व कार्बनिक पदार्थ | रासायनिक पदार्थ |
पोषक तत्व | नाइट्रोजन फॉस्फोरस पोटाश के साथ गंधक, आयरन, जस्ता, मोलीब्डेनम, बोरान, मैगनिज, कापर व अन्य पोषक तत्वों के साथ जैविक अम्ल भी प्राप्त होते हैं। | केवल नाइट्रोजन व फॉस्फोरस |
मुख्य पोषक तत्वों की प्रतिशत मात्रा | नाइट्रोजन-2.5%फास्फोरस- 2.0%पोटाश- 1.8% | नाइट्रोेजन-18%फास्फोरस-46% |
कीमत | केंचुआ खाद तैयार करने पर कृषक को प्रति किलो 1.5 रूपये खर्च आती है, लगभग 1250 रूपये में 8-10 क्विंटल केंचुआ खाद तैयार होता है। | लगभग 1250 रूपये में एक बैग (50 कि.ग्रा.) डी.ए.पी. बाजार से प्राप्त होती है। |
लगभग 1250.00 रूपये खर्च करने पर पोषक तत्वों की उपलब्धता | नाइट्रोजन-18 कि.ग्रा.फास्फोरस- 20 कि.ग्रा.पोटाश- 14 कि.ग्रा.सूक्ष्म पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं। | नाइट्रोजन- 9 कि.ग्रा.फास्फोरस- 23 कि.ग्रा. |
तत्वों की उपलब्धता | 3 से 4 वर्ष तक पौधों के लिये उपलब्ध होते हैं। | केवल एक फसल हेतुउपलब्ध होते हैं। |
भूमि की उर्वरा क्षमता | भूमि की उर्वरा क्षमता बढाने के साथ जैविक कार्बन व टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में सक्षम। | पौधों के लिये केवल नाइट्रोजन व फास्फोरस तत्वों की पूर्ति होती है। |
केंचुआ खाद बनाने में सावधानियां-
- केंचुआ कम व अधिक नमी दोनों के प्रति संवेदनशील होता है अतः उचित नमी (40 प्रतिशत) हमेशा बनाये रखें।
- केंचुआ खाद जिस कचरे से तैयार किया जाना है उसमे से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक हैं।
- ढेर को मुर्गी, चूहों तथा दीमक से बचाये। दीमक से बचाव हेतु 4 प्रतिशत नीम के कीटनाशक का उपयोग करें अथवा 500 ग्राम निम्बोली को रात भर पानी में भिगोंकर बारीक पीसकर एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- बेड पर ताजे गोबर को न डाले, क्योंकि ताजे गोबर से गर्मी उत्पन्न होती है, जिससे केंचुओं के मरने की संभावना रहती है।
- गड्ढे के ऊपर मचान बनाकर छाया रखें तथा वर्षा व बहते पानी से गड्ढों को बचायें।
- गड्ढों में साबुन, दवाईयां या किसी प्रकार के रसायनयुक्त पानी का प्रवेश न होने दें।
- पूरी प्रक्रिया के दौरान बेड की ऊपरी सतह की समय - समय पर गुड़ाई अवश्य करें, जिससे वायुसंचार सुचारू रूप से बना रहें।
- केंचुओं को मेंढक, सांप, चिड़ियों, चींटी आदि से बचाना चाहिये।
- तैयार केंचुआ खाद को छायादार स्थान में रखना चाहियें।
केंचुआ खाद का उपयोग-
केंचुआ खाद पूर्णतः जैविक खाद है। इसके उपयोग से फसल की उपज के साथ-साथ रोग एवं कीटरोधी क्षमता भी बढ़ती है। जैव रासायनिक क्षमता में गुणोत्तर विकास होता है। केंचुआ खाद उपयोग की मात्रा खाद्यान्न फसलों के लिए 3-5 टन/हे., सब्जी फसलों में 4-6 टन/हे., छोटे फलदार वृक्षों हेतु 2-3 किग्रा/वृक्ष, बडे़ फलदार वृक्षों के लिए 4-5 किग्रा/वृक्ष, गमलों हेतु 100-150 ग्राम एवं सब्जी पौधशाला हेतु 2-3 किग्रा/वर्गमीटर की दर से उपयोग करना चाहिए।
केंचुआ खाद के लाभ-
- केंचुआ खाद के उपयोग से यह भूमि की उर्वरकता, वायु संचारण व जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।
- मिट्टी में केचुओं की सक्रियता के कारण पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बना रहता हैं, जिससे पौधों का सही विकास होता हैं।
- केंचुआ खाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा व जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करता हैं तथा भूमि में जैविक क्रियाओं को निरंतरता प्रदान करता हैं।
- केंचुआ खाद का उपयोग भूमि का उपयुक्त तापक्रम बनाने में सहायक होता है।
- इसके उपयोग से भूमि में खरपतवार कम उगते हैं तथा पौधों में रोग कम लगते हैं।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से उत्पादन लागत में कमी आती है।
सारांश एवं निष्कर्ष:
वैज्ञानिक विधि से केचुआं खाद तैयार कर न केवल आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है बल्कि बढ़ते रासायनिक उर्वरकों की कीमत एवं उर्वरकों की कालाबाजारी से छुटकारा पाने का एक अच्छा विकल्प है। वर्मी कम्पोस्ट के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि यह न केवल जैविक खेती का महत्वपूर्ण अवयव है अपितु टिकाऊ कृषि के उद्देश्य जैसे - मृदा उर्वरता, उत्पादकता एवं पर्यावरण को सुदृढ़ बनाने में सर्वेपरि है। जैविक खेती को बढ़ावा देने में केचुआं खाद का महत्वपूर्ण स्थान है जिससे प्राप्त कृषि एवं उद्यानिकी फसलोंत्पाद उच्च पोषण एवं गुणवत्ता युक्त होती है, फलस्वरूप उपभोक्ताओं को पौष्टिक भोजन की प्राप्ति होती हैं।
Authors
श्रीमती रिंकी राय*, श्री चंदन कुमार राय, श्री खगेश जोशी, श्री संतोष कुमार साहू
मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान विभाग
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,रायपुर, छत्तीसगढ़
Email: