Optimal planting geometry and fertilizer application method for drip irrigated vegetable crops
फसलों की सिंचाई की विधियों में टपक सिंचाई पध्दति सर्वाधिक कुशल विधि है जिसमें जल का 80-90 प्रतिशत कुशल उपयोग होता है। इस पध्दति से सभी प्रकार की भूमि में कम समय एवं कम जल में सिंचाई की जा सकती है।
टपक सिंचाई पध्दति द्वारा सिंचाई में पौधों के सीमित नम क्षेत्र के कारण रोग की सम्भावना कम होती है तथा फसलों की पंक्तियों में खर-पतवार नहीं उग पाते हैं। सिंचाई की इस विधि का उपयोग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है।
सीमित जल संसाधनों और दिनों-दिन बढ़ती हुई जलावश्यकता के कारण टपक सिंचाई तकनीक सर्वाधिक उपयुक्तहै। टपक तंत्र एक अधिक आवृति वाला ऐसा सिंचाई तंत्र है जिससे जल को पौधों के मूल क्षेत्रजड़ाें के आसपास दिया जाता है। टपक सिंचाई पध्दति द्वारा सिंचाई में पौधों को आवश्यकतानुसर जल दिया जा सकता हैं।
टपक सिंचाई पध्दति वाली फसलों के उत्पादन में पर्याप्त वृध्दि (20-80%) एवं गुणवत्ताा में सुधार देखा गया है। टपक सिंचाई वाली फसलों में 30-40 प्रतिशत तक उर्वरक की बचत, 80-90 प्रतिशत तक जल की बचत के साथ उत्पादन में 20-80 प्रतिशत तक की वृध्दि हो सकती है।
इसके अतिरिक्त खरपतवारों में कमी, उर्जा की खपत में बचत और उत्पाद की गुणवता में बढ़ोत्तारी भी होती है।
टपक सिंचाई पध्दति
टपक सिंचाई पध्दति द्वारा जल एवं पोषक तत्व सीमित मात्रा में पौधे की जड़ाें तक भूमि की ऊपरी अथवा भीतरी सतह में ड्रिपर द्वारा धीरे-धीरे (0.5-2.4 ली. प्रति घंटे की दर से) पहुँचाये जाते हैं। सिंचाई की बारम्बारता एवं धीमी गति इसे अन्य सिंचाई विधियों से अलग करती है।
इस पध्दति में मेन लाइन, सब-मेंस एवं इमिशन प्वाइंट युक्त लैटेरल्स होते हैं। जल की र्आपूत्तिा विशिष्ट स्थानों पर बने इमिटर्स द्वारा लैटेरल्स में की जाती है। प्रत्येक ड्रिपर अथवा इमिटर नपी-तुली मात्रा में जल, पोषक तत्व एवं वृध्दि के लिए आवश्यक अन्य पदार्थ सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है।
टपक सिंचाई पध्दति के सफल संचालन के लिए समुचित डिजाइन, सही घटकों का चयन समुचित रूपरेखा एवं संस्थापन तथा समुचित देखभाल आवश्यक है।
रोपण ज्यामिति
किसान सब्जियों की खेती, सतही सिंचाई पध्दति के लिए विकसित अंतरालन एवं ज्यामिति के अनुसार कर रहे हैं जो टपक सिंचाई पध्दति के लिए उपयुक्त नहीं है।
टपक सिंचाई पध्दति में फसलों को ड्रिप लैटेरल्स के पास विशेष प्रकार की ज्यामिति में लगाना आवश्यक है। पौधों की जड़ों एवं उनके छत्रक के फैलाव के आधार पर चौकोर, आयताकार अथवा त्रिकोणाकार ज्यामिति में एकल पंक्ति अथवा द्विपंक्ति बुआई का चुनाव किया जा सकता है।
अलग-अलग पौध ज्यामिति में पौधों की संख्या एवं घनत्व अलग-अलग होते हैं। अनुकूलतम पौध ज्यामिति में पौधे एवं पंक्तियों का अंतराल इस प्रकार का होता है कि पौधों के बीच जल, पोषक तत्व तथा प्रकाश के लिए प्रतिद्वंद्विता से फसल की उपज एवं गुणवत्ताा एक साथ बढ़ती हैं।
टपक सिंचाई के साथ फर्टिगेशन
टपक सिंचाई में जल के साथ-साथ उर्वरकों को भी पौधों तक पहुॅचाना फर्टीगेशन कहलाता है। इस विधि में रासायनिक उर्वरकों को भी सिंचाई जल में मिश्रित कर उर्वरक अन्त: क्षेपक यंत्रा की सहायता से ड्रिपरों द्वारा सीधे पौधों के पास तक पहुॅचाया जाता है।
फर्टीगेशन,उर्वरक देने का सर्वोत्तम तथा अत्याधुनिक विधि है। फर्टीगेशन, फसल एवं मृदा की आवश्यकताओं के अनुरूप उर्वरक व जल का समुचित स्तर बनाये रखने के लिए अच्छी तकनीक है। जल और पोषक तत्वों का सही समन्वय अधिक पैदावार और गुणवत्ता की कुंजी है।
फर्टीगेशन द्वारा उर्वरकों को कम मात्रा में जल्दी-जल्दी और कम अन्तराल पर पूर्वनियोजित सिंचाई के साथ दे सकते हैं, इससे पौधों की आवश्यकता अनुसार पोषक तत्व मिल जाते हैं और उर्वरकों का निस्छादन द्वारा अपव्यय नहीं होता है।
जल-उर्वरक अनुप्रयोग कार्यक्रम
यह तर्कसंगत है कि सम्पूर्ण ऋतु में पौधे की पोषक-आवश्यकता एक समान नहीं होती है। यह फसल की आयु एवं अवस्था के साथ-साथ बदलती रहती है। टपक सिंचाई पध्दति से फसल की आवश्यकता तथा पौधे की अवस्था के अनुसार पोषक तत्तव की आपूर्ति का उपयुक्त कार्यक्रम बनाना सम्भव है।
इस प्रकार फसलों में विविध चरणों में अनुशंसित मात्रा में उर्वरक प्रयोग की विशिष्ट रूपरेखा बनायी जा सकती है।
फसल विशिष्ट ज्यामिति एवं जल-उर्वरक अनुप्रयोग रूप रेखा
पूर्वी क्षेत्र के लिए भा. कृ. अनु. प. का अनुसंधान परिसर अनुसंधान केन्द्र राँची में विभिन्न फसल ज्यामिति एवं जल-उर्वरक अनुप्रयोग रूपरेखा का परीक्षण किया गया तथा टमाटर, मिर्च, ब्रोकोली तथा स्वीट कॉर्न की फसलों के लिए अनुशंसायें की गयीं।
प्रत्येक फसल में उसके लिए अनुशंसित उर्वरक को उसकी विशिष्ट रूपरेखा के अनुसार डाला जा सकता है। इस प्रसार पुस्तिका में कुछ सब्जियों के लिए अनुकूलतम रोपण ज्यामिति एवं जल-उर्वरक अनुप्रयोग रूपरेखा प्रस्तुत की जा रही है।
1. टमाटर
टमाटर में उर्वरक की अनुशंसित मात्रा 120:60:60 किग्रा. एन.पी.के प्रति हेक्टेयर है। इसमें सम्पूर्ण फसल ऋतु के दौरान 18 बार सिंचाई करना सम्भव है जैसा कि यहाँ बताया गया है। टमाटर की अधिकतम उपज फसल को 40 x 50 x 60 सेमी. के अंतराल पर त्रिकोणाकार रोपण ज्यामिति (40,000 पौधे प्रति हेक्टेयर) में रोपाई करके प्राप्त की जा सकती है।
फसल ऋतु में प्रारम्भिक एवं विकासशील अवस्था में पोषक की कम मात्रा तथा मध्य एवं परिपक्वता के अवधि में (बुआई के दसवें सप्ताह के उपरान्त) पोषक की अधिक मात्रा के प्रयोग से बेहतर पैदावार प्राप्त होती है।
पौध ज्यामिति एवं जल-उर्वरक अनुप्रयोग रूपरेखा के संयोग से 80.9 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन तथा 34.8 किग्रा. /मी.3जल उत्पादकता प्राप्त हुई तथा रु. 1,58,000/- प्रति हेक्टेयर का लाभ प्राप्त हुआ।
सप्ताह की संख्या | घुलनशील उर्वरक (किग्रा./15 डिस्मिल) | यूरिया(किग्रा./15 डिस्मिल) |
1-6 | 0.380 | 0.156 |
7-9 | 0.760 | 0.313 |
10-12 | 1.516 | 0.623 |
13-16 | 1.896 | 0.780 |
17-18 | 1.136 | 0.460 |
फर्टिगेशन द्वारा टमाटर की फसल अवधि में उर्वरकों का साप्ताहिक प्रयोग
2. मिर्च
मिर्च में उर्वरक की अनुशंसित मात्रा 50:60:60 किग्रा. एन.पी.के प्रति हेक्टेयर है। दीर्घ अवधि की फसल होने के कारण मिर्च में 21 सप्ताह के लिए उर्वरक अनुप्रयोग कार्यक्रम बनाया जा सकता है। उर्वरक की साप्ताहिक मात्रा तथा अनुकूलतम रोपण ज्यामिति यहाँ दी गयी है।
सप्ताह की संख्या | घुलनशील उर्वरक(किग्रा./15 डिस्मिल) | यूरिया(किग्रा./15 डिस्मिल) |
1-4 | 1.300 | 0.82 |
5-7 | 1.516 | 0.939 |
8-9 | 2.275 | 1.107 |
10-11 | 1.706 | 1.056 |
12-14 | 0.379 | 0.234 |
फर्टिगेशन द्वारा मिर्च की फसल अवधि में उर्वरकों का साप्ताहिक प्रयोग
प्रत्येक अनुप्रयोग में उर्वरक की मात्रा एक समान रखना मिर्च के लिए सर्वश्रेष्ठ रणनीति है। मिर्च के पौधों को त्रिकोणाकार ज्यामिति में रोपना चाहिए जिसमें पौधों के बीच 50 सेंमी. एवं पंक्तियों के बीच 40 सेंमी. की दूरी होनी चाहिए।
इस प्रकार मिर्च की पौध ज्यामिति एवं उर्वरक अनुप्रयोग द्वारा 14.4 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन तथा 5.2 किग्रा./मी.3जल उत्पादकता प्राप्त हुई। लाभ एवं लागत का अनुपात 1.69 तथा रु.1,45,000/- प्रति हेक्टेयर का शुध्द लाभ प्राप्त हुआ।
3. ब्रोकोली
ब्रोकोली जल्दी तैयार होनेवाली फसल है। इसके लिए उर्वरक की अनुशंसित मात्रा 150:60:60 किग्रा. एन.पी.के प्रति हेक्टेयर है जिसे 14 सप्ताह में बाँटकर प्रयोग किया जा सकता है। यदि प्रारम्भिक एवं विकास की अवस्थाओं में घुलनशील उर्वरक की मात्रा बढ़ाकर डालने से उत्पादन में वृध्दि प्राप्त की जा सकती है।
विकास की अवस्थाओं में (बुआई के 8 से 11 सप्ताह पश्चात्) अधिक मात्रा में उर्वरक डालने से ब्रोकोली में 31.3 टन/हे. तक की उपज प्राप्त की जा सकती है।इसके पौधों को त्रिकोणाकार ज्यामिति में पौधों के बीच 40 सेंमी. एवं पंक्तियों के बीच 30 सेंमी. की दूरी में रोपने की अनुशंसा की जाती है।
इस प्रकार की ज्यामिति से ब्रोकोली पौधों की संख्या प्रति हेक्टेयर 66,600 रही। इस विधि से क्रमश: 31.3 टन/हे. एवं 15.8 किग्रा./मी.3 ब्रोकोली उपज एवं जल उत्पादकता प्राप्त हुई। इससे 1.51 का लाभ-लागत अनुपात तथा रु.1,06,000/- प्रति हेक्टेयर का शुध्द लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
सप्ताह की संख्या | घुलनशील उर्वरक(किग्रा./15 डिस्मिल) | यूरिया(किग्रा./15 डिस्मिल) |
1-6 | 0.946 | 0.078 |
7-9 | 1.578 | 0.130 |
10-14 | 0.631 | 0.050 |
15-21 | 0.315 | 0.026 |
फर्टिगेशन द्वारा ब्रोकोली की फसल अवधि में उर्वरकों का साप्ताहिक प्रयोग
4. स्वीट कॉर्न
स्वीट कॉर्र्न के लिए उर्वरक की अनुशंसित मात्रा 150:60:60 किग्रा. एन.पी.के प्रति हेक्टेयर है जिसे 14 सप्ताह में बाँटकर प्रयोग किया जा सकता है। प्रारम्भिक छ: सप्ताह में घुलनशील उर्वरक की कम मात्रा डालने से भी फसल की वृध्दि अच्छी होती है।
बुआई के 7 से 12 सप्ताह के दौरान अधिक मात्रा में उर्वरक डालने की सलाह दी जाती है। स्वीट कॉर्न के पौधों को आयताकार ज्यामिति में पौधों के बीच 15 सेंमी. एवं पंक्तियों के बीच 50 सेंमी. की दूरी में प्रति हेक्टेयर 1,33,000 पौधों की रोपाई अनुशंसा की जाती है।
इस प्रकार की ज्यामिति एवं विधि से स्वीट कॉर्न की 21.3 टन/हे. की उपज प्राप्त हुई तथा 2.05 का लाभ-लागत अनुपात एवं रु.1,12,000/- प्रति हेक्टेयर का शुध्द लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
सप्ताह की संख्या | घुलनशील उर्वरक(किग्रा./15 डिस्मिल) | यूरिया(किग्रा./15 डिस्मिल) |
1-3 | 1.516 | 0.938 |
4-6 | 2.275 | 1.407 |
7-9 | 3.033 | 1.876 |
10-12 | 3.792 | 2.346 |
13-14 | 3.033 | 1.876 |
फर्टिगेशन द्वारा स्वीट कॉर्न की फसल अवधि में उर्वरकों का साप्ताहिक प्रयोग
Authors:
एस.एस. माली , बी.के. झा, एस.के. नायक, ए.के. सिंह
वैज्ञानिक (मृदा एवं जल संरक्षण इंजीनियरिंग)
आईसीएआर - रिसर्च काम्पल्ैाक्स पूर्वी क्षेत्र, पलांदू , रांची-834010
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