Major insects and disease of cucurbit seed crop and their control in
बीज उत्पादन फसल में विभिन्न प्रकार के कीडों का आक्रमण होता है। कद्दू जातीय सब्जी फसलों में बीज उत्पादन के दौरान लगने वाले कीडों तथा उनका नियंत्रण
कद्दू जातीय बीज फसलों के प्रमुख कीट
कटवर्म:
यह कीट नन्हे या उगने वाले पौधों के बीजपत्रों या पोधें के शीर्ष को काट देते हैं जिससे खेत में पौधों की संख्या कम हो जाती है। इसके नियंत्रण के लिए बीजों की बुवाई के समय या पौध रोपाई के समय दो चम्मच कार्बोफ्यूरान प्रति थमला (यानि 1.5 किग्रा/हैक्टेयर) के हिसाब से मिलाना चाहिऐ।
लाल भृंग:
यह चमकीले लाल रंग का कीट पौधे की पत्तियों को, विशेषकर प्रारम्भिक अवस्था में, खाकर छलनी जैसा बना देता है। ग्रसित पत्तियां फट जाती हैं तथा पौधों की बढवार घट जाती है। इसके नियंत्रण के लिए कार्बिरिल (सेविन) का 0.2 % के घोल का छिडकाव प्रभावी रहता है।
लीफ माइनर:
यह पत्तियो के ऊपरी भाग पर टेढे मेढे भूरे रंग की सुरंग बना देता है। इसके नियंत्रण के लिए नीम के बीजों का सत (5%) या वर्टीमैक्स या ट्रायोफोस 0.05% का तीन सम्ताह के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिये।
ब्लीस्टर बिटिल:
यह आर्कषक चमकीले रंग तथा बडे आकार का भृंग है। इसके पंखों के ऊपर तीन काले एवं तीन पीले रंग की पटिटयां होती हैं। यह पुष्प कलियों तथा फूलों को खाकर नष्ट कर देता है। अगर खेत में इनकी संख्या कम है तो हाथ से पकडकर नष्ट कर देते हैं। लेकिन अधिक प्रकोप होने पर 0.2% कार्बरिल का छिडकाव करना चाहिऐ।
फल मक्खी:
यह कद्दू जाति की सब्जी फसलों में फलों पर आक्रमण करने वाला कीट है। इसके मैगट छोटे फलों में अधिक नुकसान करते हैं। इसके प्रकोप को करेले व तोरई में आसानी से देखा जा सकता है। इसके मैगट का सीधे नियंत्रण सम्भव नही है। परन्तु वयस्क नर मक्खियों को नियंत्रित करके प्रकोप को कम किया जा सकता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं।
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खेत में रात के समय प्रकाश के ट्रैप (light trapes) लगायें तथा उनके नीचे किसी बर्तन में चिपकने वाला पदार्थ जैसे सीरा अथवा गुड का घोल भर कर रखे। 2-3 दिन बाद घोल को बदलते रहें।
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नर वयस्कों को फेरामोन के ट्रेप लगाकर नियंत्रित करें।
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एण्डोसल्फान या थायोडान का 6 मिली प्रति 4.5 ली पानी में घोलकर छिडकाव करने से भी फलमक्खी की संख्या में कुछ कमी की जा सकती है।
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कीट की निगरानी हेतु फसल में गन्धपाश 2 प्रति एकड के अनुसार लगायें तथा उसमें वाले ल्योर को 15-20 दिन के अन्तराल पर बदलते रहें।
चेपा:
ये छोटे आकार के काले एवं हरे रंग के होते हैं तथा कोमल पत्तियों, पुष्पकलिकों का रस चूसते हैं। इसके नियंत्रण के लिए डाईमिथोयेट या फोसफोमिडोन (0.05%) के घोल का 10 दिन के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिये।
लाल मकडी घुन:
यह गर्मी के मौसम में खरबूजे एवं खीरे में अधिकतर आक्रमण करता है। यह बहुत छोटा तथा लाल रगं का कीट है तथा पत्तियों कि निचली सतह पर अधिकतर मिलते हैं। इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक (0.2%) या डाईकोफोल (1 मिली प्रति लीटर) पानी में घोलकर छिडकाव करें।
प्लू मोथ:
हल्के हरे रंग के लार्वा पत्तियों एवं फलों पर दिखाई देते हैं। छूने से लार्वा तेज गति करता है। लार्वा को हाथ से पकडकर नष्ट करना चाहिए।
पत्ति खाने वाली इल्ली:
इल्ली पत्तियों को खाकर नुकसान पॅहुचाती है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरोफोस (0.05%) के घोल का छिडकाव करना चाहिए।
कद्दू जातीय बीज फसलों में प्रमुख रोग
बीज उत्पादन फसल में विभिन्न प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है। जिससे पौधों की बढवार, पुष्पन,फलन, फलों के विकास एवं पकने पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। कद्दू जातीय सब्जी फसलों में बीज उत्पादन के दौरान होन वाले प्रमुख रोगों का नियंत्रण निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
चुर्णिल आसिता:
इस रोग के शुरू में पत्ती की नीचली सतह पर छोटे छोटे गोलाकार सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। रोग के अधिक प्रकोप होने पर धब्बे आपस में मिलकर पत्ती की ऊपरी सतह, तनो व डंठल पर भी फैल जाते हैं। पत्तियां भूरी हो जाती हैं तथा सिकुडकर गिर जाती हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बन्डेजिम (0.1% घोल) का 10 दिन के अंतराल पर छिडकाव करें या कैराथेन की 6ग्रा. मात्रा को 10 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें या घुलनशील गंधक(सल्फर) 0.2% धोल का रोग के लक्षण दिखाई पडते ही, 10 दिन के अंतराल पर, 2-3 बार छिडकाव करें।
मृदुल आसिता :
इस रोग का आक्रमण अधिक आद्रता वाले स्थानो, विशेषकर जहां गर्मी में वर्षा होती है, में अधिक होता है। इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह पर कोणीय आकार के पीले धब्बे बन जाते है और पत्तियों की निचली सतहपर बैंगनी रंग के स्पोर्स दिखाई देते हैं अधिक प्रकोप होने पर पौधों के पत्ते झड जाते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए रिडोमिल एम जैड (0.3% घोल) के तीन छिडकाव या डाईथेन एम -45 के 0.2% धोल के पांच छिडकाव 10 दिन के अंतराल पर करने चाहिए।
उकटा रोग:
इस रोग से ग्रस्त होने पर नवोदमिद पौधे मुरझाकर गिर जाते हैं तथा पुराने पौधे रोग होने पर अचानक सूख जाते हैं। रोग ग्रस्त पौधों के कोलर क्षेत्र के वैसकुलर बंडल पीले या भूरे हो जाते हैं। इस रोग का नियंत्रण कठिन होता है क्योकि यह भूमिगत रोग है इस रोग से बचाव के लिए पौधो को कैप्टान (0.2%) के घोल से अच्छी प्रकार भिगोना चाहिऐ।
एन्थक्नोज:
आरम्भ में इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों, तनो व डंठलों पर छोटे पीले रंग या जल भरे धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में मिलकर बडे धब्बे बन जाते हैं। लौकी व तरबूज में यह रोग फलों पर भी लगता है। फलों पर खुरदरे, गोलाकार, सिकुडे हुए जलभरे धब्बे बन जाते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए मैनकोजैब (0.25% घोल) या कार्बन्डेजिम (0.1% घोल) का 15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करें
विषाणु रोग:
विषाणु रोग का फैलाव चेपा या श्वेत मक्खी द्वारा होता है। रोग ग्रस्त पौधों की पत्तियां सिकुड जाती है या उनमें काले रंग के धब्बे या पत्तियों की सिराएं पीले रंग की हो जाती हैं। रोग की अधिकता में पौधो की बढवार रूक जाती है और फलन भी नही होता है। इस रोग से बचाव के लिए बुआई के समय ही कार्बोफयूरान 1.5 कि./है. की दर से थमलो में मिलाना चाहिए। पौधे में आरम्भिक लक्षण दिख्ाते ही उसे उखाडकर नष्ट कर देना चाहिये। रोग के फैलाव को रोकने के लिए डाईमिथोयेट या फोसफामिडोन (0.05%) के घोल का छिडकाव 10 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
Authors:
डा. बी.एस.तोमर,
वरिष्ठ वैज्ञानिक,
बीज उतपादन ईकाई, भा.क्.अ.सं., नई दिल्ली-12