पौधों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व नाइट्रोजन है जिसकी आवयश्कता बड़ी मात्रा में होती है अतः कमी से बचने के लिए इसे उर्वरक के द्वारा मिट्टी में डालना अति आवश्यक है। वर्त्तमान समय में, किसानों द्वारा अंधाधुन उर्वरकों का प्रयोग उत्पादन सीमा में वृद्धि के लिए किया जा रहा है।
दक्षिण पूर्व एशिया में यूरिया सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली उर्वरकों की श्रेणी में है इसका एक कारण इसमें मौजूद उच्च नाइट्रोजन की मात्रा और दूसरा इसके उत्पादन में अपेक्षाकृत कम लागत का होना है। हालांकि, पारम्परिक उर्वरकों से नाइट्रोजन का लगभग 40-70% पर्यावरण में नष्ट हो जाता है, जो भारी आर्थिक और संसाधन हानि के साथ-साथ गंभीर पर्यावरण प्रदूषण का भी कारण है।
इन अपर्याप्तताओं की भरपाई, ऐसे उर्वरक जो नियंत्रित गति से मृदा में पोषक तत्त्व छोडते है, से की जा सकती है। ऐसे उर्वरकों को स्लो रिलीज़ फ़र्टिलाइज़र कहते है। स्लो रिलीज़ फ़र्टिलाइज़र उर्वरकों की दक्षता में भी बढ़ोतरी लाते है। ये पौधों की आवश्यकता अनुरूप पोषक तत्त्व स्त्रावित करते है एवं उर्वरकों को नष्ट होने से भी बचाते है।
चूँकि पानी को कृषि के उत्पादन को सीमित करने वाले मुख्य कारकों में से एक माना जाता है, इसलिए जल संसाधन का उपयोग भी बहुत कुशलता पूर्वक किया जाना चाहिए। हाल ही में, कृषि में सुपर बसॉर्बेंट का प्रयोग जल प्रबंधन तकनीक के रूप में वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।
सुपरबसॉर्बेंट पॉलीमर क्रॉस-लिंक्ड जलस्नेहि ऐसा पॉलीमर है जो पानी, खारा पानी तथा अन्य तरल प्रदार्थों को अपने स्वयं के वजन के सैकड़ों गुना तक अवशोषित कर सकते है। कृषि में उपयोग के नजरिये से सुपरबसॉर्बेंट और स्लो रिलीज़ फ़र्टिलाइज़र के मिश्रण से जल धारण छमता में वृद्धि के साथ मिटटी के पोषक तत्त्व प्रतिधारण की छमता में भी वृद्धि की जा सकती है।
ऐसे पॉलीमर उर्वरकों की जल व पोषक तत्त्व धारण करने की क्षमता अथवा उत्पादन लागत में कमी लाने के लिए इनमें इनऑर्गेनिक क्ले (केओलिन, बेंटोनाइट, मॉन्टमोरीलोनाइट, एटापुलगाइट, और माइका) को भी सम्मिलित किया जा सकता है। इस प्रकार शुद्ध सुपरबसॉर्बेंट पॉलीमर एवं नैनोक्ले कण के संयोजन से बनने वाले प्रदार्थ को नैनोक्ले पॉलीमर कम्पोजिट(एनसीपीसी)कहते है।
एनसीपीसी, एक साथ उर्वरकों को नियंत्रित रूप से छोड़ने तथा जल संरक्षण करने के लिए एक प्रभावी प्रबंधन विधि हो सकती है। मुख्यत: सुपरबसॉर्बेंट कृत्रिम जलस्नेहि पॉलीमर का उपयोग करके उत्पादित किये जाते है, उधारणत: पॉली (एक्रिलिक एसिड ) या पॉली (एक्रील एमाइड ) के साथ इसके को-पॉलीमर।
जब इन कृत्रिम पॉलीमर्स का प्रयोग किया जाता है तो पूर्णत: क्षरित न हो पाने के कारन इनका संचय समय के साथ मिट्टी में पाया गया है, इसलिए सुरक्षित पर्यावरण के दृष्टिकोण से आजकल पूर्णत: क्षरित होने वाले सुपरबसॉर्बेंट पॉलीमर्स की मांग लगातार बढ़ रही है।
स्टार्च, लिग्निन, सेल्यूलोज और चिटिन कुछ ऐसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक बायोपॉलिमर है जिनमें कम लागत, पर्यावरण के लिए हानि रहित एवं पूर्णत: क्षरित होने के गुण पाए जाते है। अतः इनका प्रयोग उर्वरक उद्योग में आसानी से किया जा सकता है।
इस तरह के उर्वरकों से पोषक तत्वों की निष्कासन की गति इनके क्षरण दर द्वारा नियंत्रित होती है, जो की विभिन्न कारकों द्वारा प्रभावित होती है: पॉलीमर (बहुलक) का आणविक भार, मृदा का पीएच, तापमान, मिट्टी में आयन अथवा सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति इत्यादि।
मृदा-पादप-वायुमंडल प्रणाली में बायोडिग्रेडेबल एनसीपीसी उर्वरक का प्रभाव
कई एग्रोनोमिक अध्ययनों से पता चला है कि सुपरबॉशबेंट नैनोकम्पोजिट उर्वरक, पारंपरिक उर्वरकों से बेहतर हैं। सरकार और दत्ता (2014) ने ऐक्रेलिक एसिड और एक्रिल एमाइड मोनोमर्स का उपयोग करके उर्वरक से तैयार नैनो-सुपरबॉर्बेंट पॉलीमर कंपोजिट (एनसीपीसी) तैयार किया।
उन्होंने बताया कि NCPC-H (उच्च खुराक) और NCPC-L (कम खुराक) के अलावा पारंपरिक उर्वरक उच्च और निम्न खुराक पर क्रमशः बाजरा का 18% और 26% अतिरिक्त बायोमास उपज हुआ।
सौरभ (2016) ने कई बायोडिग्रेडेबल एनसीपीसी का संश्लेषण किया। इस प्रकार निर्मित एनसीपीसी को यूरिया के जलीय घोल में अवशोषित कराया गया जिससे की वो स्लो रिलीज़ फ़र्टिलाइज़र की तरह काम करे। निर्मित एनसीपीसी का यंत्रीकरण स्कैनिंग इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी (SEM), ट्रांसमिशन इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी (TEM), फॉरिएर ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (FTIR), एक्स- रे डिफ्रैक्शन (XRD) तकनीकों का प्रयोग करते हुए लक्षण वर्णन किया गया ।
ग्रीनहाउस प्रयोग के परिणाम से ये संकेत मिला की बायोडिग्रेडेबल एनसीपीसी उर्वरकों की नाइट्रोजन उपयोग दक्षता पारम्परिक उर्वरक (यूरिया) से अधिक है।
धान एवं गेंहू के दानों में मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता भी एनसीपीसी उर्वरकों में ज्यादा पाई गयी। मिट्टी में जहाँ बायोडिग्रेडेबल एनसीपीसी का उपयोग किया गया उसमे उच्चतम सूक्ष्मजीवी तथा एंजाइम गतिविधियों का संकेत मिला।
नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन पारम्परिक उर्वरक में बायोडिग्रेडेबल उर्वरक की अपेक्षा अधिक पाया गया। 90दिनों मेंयोडिग्रेडेबलएनसीपीसीकाक्षरण दर 32.8% तक पाया गयाजबकि कृत्रिम एनसीपीसी में 11.2% तक क्षरण दर पाया गया।
अतः प्राकृतिक बहुलकों एवं बेंटोनाइट नैनोक्ले द्वारा बने एनसीपीसी उर्वरक, पोषक तत्वों को धीमी गति से छोड़ते है और प्राकृतिक रूप से बायोडिग्रेडेबल हैं । इनके प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। इस प्रकार,पर्यावरण और तकनीकी दृष्टिकोण से बायोडिग्रेडेबल एनसीपीसी कृषि के लिए बहुत उपयोगी व महत्वपूर्ण हैं।
Authors:
कीर्ति सौरभ1, के. एम. मन्जाइअह2, एस. सी. दत्ता2
1 वैज्ञानिक, फसल अनुसंधान संभाग
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना - 800014 (बिहार)
2भाकृअप - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नई दिल्ली-110012
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