स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु घर में लगाएं सेहत की बगिया 

साग-सब्जियों का हमारे दैनिक भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि ये विटामिन, खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन व एण्टी-आक्सीडेंट के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। इसलिए आप अपने घर के आंगन में, घर की छत पर, बालकनी या आपके पास कोई खाली पड़ी जमीन है तो आप आसानी से पोषण बगीचा (किचन गार्डन) बना सकते हैं। इससे आपको रासायनिक दवाओ से मुक्त शुद्ध ताज़ी सब्जियां एवं फल प्राप्त होगी ।

आहार विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार संतुलित भोजन के लिये एक वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जियां एवं 85 ग्राम फल का सेवन करना चाहिए, जिसमें लगभग 125 ग्राम हरी पत्तेदार सब्जियां, 100 ग्राम जड़ वाली सब्जियां और 75 ग्राम अन्य प्रकार की सब्जियों का सेवन करना चाहिये । इसके अतिरक्त गर्भवती महिला एवं अधिक क्रियाशील व्यक्ति को 50 ग्राम अधिक हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए।

नगरीय क्षेत्रो में छत में यदि ऐसी कोई उपलब्ध खुली जगह हो जंहा पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो, गमला प्लास्टिक शीट, बॉटल्स, घर की पुरानी प्लास्टिक की बाल्टियों, ड्रम, टब इत्यादि में मिटटी व जैविक खाद / आवश्यक उर्वरक का मिश्रण भरकर सब्जी उगा सकते हैं।

इससे न सिर्फ रासायनिक दवाओ से मुक्त ताज़ी सब्जियां मिलेंगी बल्कि घर में हरियाली मन को प्रसन्नता की अनुभूति कराएगी और शारीरिक व्यायाम भी होगा । साथ ही घर में स्वस्थ्य एवं शुद्ध प्राण वायु का भी संचार होगा। इसके अतिरिक्त करोनाकॉल में धनात्मक सोच रहेगी और मन प्रसन्न चित्त रहेगा।

गृह बगिया लगाने की तैयारी: 

ग्रामीण क्षेत्रों में  घर के आस-पास कई ऐसी जगह उपलब्ध होती है जिसका उपयोग हम सब्ज़ियां उगाने के लिए कर सकते हैं। जिन किसान भाई या महिला के घर के आस-पास ऐसी जगह उपलब्ध  है जहाँ सब्ज़ियां उगाने का किया जा सकता है तो मई –जून का महिना नई गृह बगिया लगाने स्थापित करने का उत्तम समय है ।

यदि वहां की मिट्टी ठोस हो तो पहले उसे खुदाई/ जुताई कर के खेत जैसा बना ले और संभव हो तो उसमें किसी तालाब की उपजाऊ मिट्टी डालकर समतल करके और गोबर की खाद् आदि डालकर सिचाई कर दें। उसके बाद उपलब्ध स्थान एवं परिवार की आवश्यकता के अनुसार उसमें छोटी-छोटी क्यारियां निम्नानुसार बना कर उसमे आप अपनी मन-पसंद सब्जियों को लगा सकते है. यदि आपके पास सिंचाई के पानी की कमी हो तो किचन से निकले व्यर्थ पानी को आप पाइप के द्वारा सब्जियों की सिंचाई कर सकते हैं।

शहरी क्षेत्रों में हमारे घर के आस-पास जगह का आभाव होता हैं। शहरीय क्षेत्रों में गमले में सब्जी उगाने के लिए आपको ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है, बालकनी या ऐसी थोड़ी सी भी खाली जगह जहां गमला रख सकते हैं और धूप आती हो वहां बहुत आसानी से गमले में सब्जियों को उगा सकते हैं। गमला मिट्टी का हो तो यह काफी अच्छा रहेगा। इसके इलावा आप अपने घर पर पड़ी खराब बाल्टियां, तेल के पीपे, लकड़ी की पटरियां/ बोरियां पुतने टायर आदि भी उपयोग कर सकते हैं बस उनके नीचे 2 या 4 छेद कर के पानी की निकासी जरूर कर दें।

गमलो में टमाटर, बैंगन, मिर्च, गोभी जैसी सब्ज़ियां आसानी से उगाई जा सकती हैं. टिन या प्लास्टिक ट्रे जिसमे 3 या 5 इंच मिटटी आती हो उसमें हम हरा धनिया, मेथी, पुदीना आदि सब्ज़ियां उगा सकते है। इसके अतिरिक्त शहरी क्षेत्रों में घर की छत पर सब्ज़ियां लगाने से पहले छत पर एक मोटी प्लास्टिक चादर बिछा दें फिर इटों या लकड़ी के पट्टियो से चारदीवारी बना लें उसमे सामान रूप से मिटटी बिछा दे और पानी की निकासी भी रखें. छत पर सब्जी लगाने से गर्मी के दिनों में आपका घर भी ठंडा रहता है जिससे आपको काफी राहत भी मिलेगी।

Nutrition garden layout

किस मौसम में कोन सी सब्जी लगायें-

गृह बगिया में पूरे वर्ष भर ताजी सब्जी हेतु विभिन्न मौसम में निम्न सब्जियां लगे जा सकती हैं -

खरीफ मौसम की सब्ज़ियाँ:

खरीफ़ में लगाने का समय जून-जुलाई है। इस समय टमाटर, बैगन, मिर्च, लोबिया, अरबी, करेला, लौकी, तरोई, कद्दू, खीरा, सेम, शकरकंद आदि सब्जियों को लगा सकते है।
रबी मौसम की सब्ज़ियां: रबी में सब्ज़ियां सितम्बर-अक्टूबर में लगा सकते है जैसे- फूल गोभी, पत्तागोभी, शलजम, बैंगन, मुली, गाजर, टमाटर, मटर, सरसों, प्याज़, लहसुन, पालक, मेथी, आदि।

जायद मौसम की सब्ज़ियां:

जायद में सब्ज़ियां फरवरी-मार्च और अप्रैल में लगाई जाती है. इसमें टिंडा, खरबूजा, तरबूज, खीरा, ककड़ी, टेगसी, करेला, लौकी, तरोई, भिन्डी जैसी सब्जी लगा सकते है।

बीज कहां से खरीदें:

सब्जियों के बीज किसी सरकारी संस्थान जैसे – भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली, भारतीय सब्जी अनुसन्धान संस्थान वाराणसी, शेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय या अधिकृत संस्था, अथवा अपने जिले/ क्षेत्र के किसी विश्वसनीय दुकान से ही ले।

प्रजातियों का चयन एवं समय सारणी कैसे करें :

गृह वाटिका हेतु ऐसी प्रजाति का चयन करना चाहिए जो कम से कम जगह ले और अधिक से अधिक उत्पादन मिले। कुछ सब्जियों की प्रजातिया  निम्नलिखित  है -

सब्जियां उन्नत किस्मे बुआई का समय पौध रोपण का समय कतार से कतार की दूरी(सेमी) पौध से पौध की दूरी(सेमी)
फूलगोभी गोभी-25, पूसा दीपाली, पूसा शरद अगस्त – सितम्बर, जनवरी – फ़रवरी सितम्बर-अक्तूबर,  फ़रवरी- मार्च 45- 60 30- 40
पत्ता गोभी पूसा मुक्ता अगस्त – सितम्बर, जनवरी – फ़रवरी सितम्बर-अक्तूबर,  फ़रवरी- मार्च 30- 45 30- 45
गांठ गोभी सफ़ेद वियना अगस्त – सितम्बर सितम्बर-अक्तूबर,   30- 45 30- 45
ब्रोकली पूसा के टी एस-1 अगस्त – सितम्बर, सितंबर - अक्टूबर 45- 60 30- 40
टमाटर काशी अमन, काशी चयन, कशी अमृत, पूसा रूबी, पंजाब छुहारा अगस्त – सितम्बर, जनवरी – फ़रवरी सितम्बर-अक्तूबर,  फ़रवरी- मार्च 50- 60 45- 60
बैगन काशी सन्देश, कशी उत्तम, पूसा पर्पल अगस्त – सितम्बर,जनवरी – फ़रवरी सितम्बर-अक्तूबर,  फ़रवरी- मार्च 75- 90 60- 70
मिर्च पूसा ज्वाला, काशी अनमोल, काशी गौरव अगस्त – सितम्बर,जनवरी – फ़रवरी सितम्बर-अक्तूबर,  फ़रवरी- मार्च 45- 60 30- 45
पालक  आल ग्रीन जुलाई अगस्त,सितम्बर- अक्टूबर, फ़रवरी- मार्च   15- 20 7- 8
चौलाई पूसा कीर्ति, पूसा किरण, पूसा लाल चौलाई सितम्बर-अक्टूबर,फ़रवरी- मार्च - 15- 20 7- 8
धनिया पन्त हरितमा, वरदान सितम्बर- अक्टूबर - 15- 20 5- 10
मेंथी पूसा पि ई वी, पूसा कसूरी सितम्बर- अक्टूबर - 15- 20 5- 10
भिन्डी काशी प्रगति, काशी क्रांति, कल्यानपुर विजय जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 40- 45 25- 30
लौकी  काशी गंगा, काशी बहार, पूसा नविन, पूसा समर, काशी किरण जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 200 100
चिकनी तरोई काशी दिव्या, पूसा चिकनी , पूसा सुप्रिया जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 200 100
नसदर तरोई काशी  शिवानी, पूसा नसदार, पंजाब सदाबहार जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 200 100
कद्दू काशी हरित, पूसा विश्वास, नरेन्द्र अमृत जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 200 100
करेला पूसा दो मौसमी, पूसा विशेष, प्रिया, नरेन्द्र करेला-1 जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 200 100
खीरा  पूसा उदय, पूसा  संयोग जून – जुलाई, फरवरी – मार्च - 200 100
 लोबिया काशी कंचन, कशी निधि, पूसा ऋतुराज जून – जुलाई, फरवरी – मार्च - 200 100
ग्वार पूसा सदा बहार, पूसा नौ बहार जून – जुलाई,फरवरी – मार्च - 40- 45 25- 30
मूली  काशी श्वेता,  पूसा श्वेता सितम्बर- अक्टूबर,फ़रवरी- मार्च - 30- 40 7- 8
शलजम पूसा श्वेती सितम्बर- अक्टूबर - 30- 50 8- 10
गाजर कशी अरुण, कशी कृष्णा, पूसा रुधिरा सितम्बर- अक्टूबर - 30 8- 10
टिंडा पूसा रौनक,  अर्का टिंडा जून – जुलाई - 200 100
खरबूजा काशी मधु, दुर्गापुर मधु , हरा मधु, पूसा सरवती फरवरी – मार्च - 200 100
सब्जी मटर काशी उदय, काशी नन्दिनी, आजाद पि -3 सितम्बर- अक्टूबर - 30- 45 20- 30
प्याज एग्री फाउंड डार्क रेड, हिसार -2  मई – जून  जून – जुलाई, 20- 30 10- 15
 लहसुन  यमुना सफ़ेद सितम्बर- अक्टूबर - 15- 20 5- 10
 परवल  काशी अलंकर जून – जुलाई, फरवरी – मार्च   200 100
सेम  कशी हरितमा जून – जुलाई   200 100

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में या जिनके पास पर्याप्त स्थान उपलब्ध है वहां फलदार वृक्ष जैसे – आम, अमरुद, आंवला, अनार, नीबू, मुसम्मी, कारोदा, पपीता, सहजन, इत्यादि लगा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ औषधीय पौधे एवं एयर प्यूरीफायर इनडोर प्लांट भी लगा सकते हैं ।

ले आउट करने के लिए अप्रैल -मई बहुत अच्छा होता है इस समय जिस स्थान पे फल वाले पौधे लगाना चाहते हैं उस स्थान पर गढ्ढा बना ले । जून माह में गड्डे में सडी हुई गोबर की खाद फसल अवशेष डाल दे एवं जुलाई के प्रथम सप्ताह में पौधे की रोपाई करे  तो पौधे का समुचित विकास होगा ।

औषधीय पौधे/ एयर प्यूरीफायर इनडोर प्लांट

औषधीय पौधे एवं हवा को फिल्टर करने वाले पौधे जहरीली गैसों को कम करने के लिए कुछ पौधे बेहद काम आ सकते हैं। इन पौधों को एयर फिल्टरिंग प्लांट भी कहा जाता है। खुजली, जलन, लगातार जुकाम, एलर्जी और आंखों में जलन से बचाव में ये पौधे आपकी सहायता करेंगे।

करी पत्ता:

करी पत्ता न सिर्फ खाने के स्वाद बढ़ाता है बल्कि इसमें आयरन, फोलिक एसिड, फॉस्फोरस, विटमिन सी, बी, ए और ई जैसे गुणकारी तत्व होते हैं । अगर इसका इस्तेमाल बालों पर किया जाए तो हेयरग्रोथ तेज होने के साथ ही बाल हेल्दी और काले बनते हैं।

एलोवेरा:

एलोवेरा में कई सारे औषधीय गुण होते हैं। इस पौधे को उगने के लिए पानी की जरूरत भी कम होती है। इसके पत्ते काफी मोटे और मजबूत होते हैं। पत्ते के अंदरूनी भाग को काटने पर एक तरह का रस इंग्लिश आइवरी निकलता है। इस रस से का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों के इलाज में होता है। इसके अलावा ख़ास बात है कि इस पौधे को आसानी से घर और बाहर दोनों जगह लगा सकते हैं जो हवा को शुद्ध रखता है।

तुलसी:

कहा जाता है कि तुलसी के पौधे को आंगन में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। सर्दी जुकाम में भी राहत मिलती है और इससे इम्यूनिटी भी बढ़ती है। वहीं विज्ञान भी मानता है कि तुलसी में सैकड़ों फ़ायदेमंद गुण होते हैं और यह एक सबसे बेहतरीन एयर प्यूरीफायर इनडोर प्लांट है और ऑक्सीजन भी मिलती है तुलसी का पौधा वातावरण को शुद्ध करता है, क्योंकि यह ही एकमात्र ऐसा पौधा बताया गया है, जो ओजोन छोड़ता है, जो कि सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है। इसकी गंध से मच्छर भी भाग जाते है।

गिलोय:

इसे अमृता भी कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ‘टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है। इसका उपयोग पीलिया, रक्त संबंधी विकार, मधुमेह एनीमिया, डेंगू, पाचन शक्ति में दिक़्क़त, खांसी, सर्दी, चर्मरोग, कमज़ोरी, पेट के रोग, सीने में जकड़न, जोड़ों में दर्द, खांसी और भूख बढ़ाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में होता है। गिलोय का प्रयोग सभी प्रकार के बुख़ार में किया जाता है। इन्हीं औषधीय गुणों के कारण यह त्रिदोष शामक का कार्य करती है। सम्पूर्ण शरीर के कायाकल्प के लिए भी गिलोय बेहतर औषधि साबित होती है।

पुदीना:

पुदीने की भीनी खुशबू और स्वाद से भला कौन परिचित नहीं होगा। चटनी हो या आम पना, रायता हो या पुलाव, हर किसी के साथ मिक्स होकर यह अनोखा स्वाद देता है मिनरल्स से भरपूर पुदीना विटामिन-सी का भी अच्छा स्रोत है। आयुर्वेद में पुदीने को वायुनाशक जड़ी-बूटी के रूप में देखा जाता है, जो सीने में जलन, मितली आदि में राहत देता है। इसके पत्ते को चबाकर खाने से पेट दर्द और आंतों की ऐंठन में आराम मिलता है।

लेमन ग्रास:

लेमन ग्रास एक औषधीय पौधा है, इसकी महक नींबू जैसी होती है और इसका ज्यादातर उपयोग चाय में अदरक की तरह किया जाता है। लेमन ग्रास के औषधीय गुण जैसे एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इन्फ्लेमेटरी व एंटी-फंगल आदि आपको कई तरह की बीमारियों और संक्रमण से बचाते हैं।

एरेका पाम:

एरेका पाम एक ऐसा पौधा है जो कार्बन डाई ऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल देता है। हर व्यक्ति के लिए इस तरह के एक पौधे की जरूरत होती है जिसकी ऊंचाई कंधे के बराबर होनी चाहिेए। इस पौधे की देखभाल के लिए पत्तियों को हर रोज साफ करना जरूरी है। इसके अलावा हर तीन-चार महीने में इनको बाहर रखने की भी जरूरत पड़ती है। हवा को फिल्टर कर उसे शुद्ध बनाने में ये पौधा सहायक है।

मनी प्लांट:

मनी प्लांट एक बेल वाला पौधा है। यह पौधा अधिकतर भारतीय घरों में आसानी से मिल जाता है। इसकी ख़ास बात है कि यह पौधा बहुत कम रोशनी में भी जिंदा रह सकता है और इसे किसी खाली बोतल में भी उगाया ज सकता है। इस पौधे में वायु में मौज़ूद कार्बन डाई ऑक्साइड को ग्रहण करने की क्षमता होती है और यह ऑक्सीजन बाहर निकालता है। यह हवा में सीओ2 कम कर हमारे सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन देता है।

स्नेक प्लांट:

यह पौधा देखने में भी सांप की तरह लगता है इसलिए इसका नाम स्नेक प्लांट है। नासा ने भी इस पौधे को बहुत अच्छा एयर प्यूरीफायर बताया था। इस पौधे को बहुत ज्यादा धूप की जरूरत नहीं होती है साथ ही पानी भी कम ही दिया जाता है। इस पौधे को आप आसानी से अपने कमरे या ऑफिस केबिन में एक कोने में उगा सकते हैं।

पीस लिली:

पीस लिली घरों में प्रयोग होने वाला एक आम पौधा है, जो हर तरह की हानिकारक गैसों को खत्म करता है. यह धूल को भी समाप्त करता है और घर की हवा को शुद्ध रखता है।

पाइन प्लांट:

घर की हवा को शुद्ध बनाने के लिए देवदार का पौधा काफी मशहूर है। इस पौधे की पत्तियां छोटी-छोटी होती हैं।इसे बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती। लेकिन समय-समय पर इसकी काट-छांट करने की जरूरत होती है ।

डम्ब केन:

इस पौधे में डबल शेड वाले पत्ते होते हैं जो देखने में काफी सुंदर लगते है। इस पौधे से घर में ऑक्सीजन का लेवल एकदम ठीक रहता है।

मदन-इन-लॉ टंग:

यह एक ऐसा पौधा है जो किसी भी परिस्थिति में फलता-फूलता है। यह काफ़ी मजबूत होता है। खास बात यह है कि यह रात में ऑक्सीजन तो छोड़ता ही है बल्कि कई अन्य तरह की हानिकारिक गैसौं को भी खत्म करता है।

रोगों एवं कीटों का प्रबंधन

रोग एवं कीट नियंत्रण हेतु फसल की मेंढ़ पर गेंदा, तुलसी,सरसों आदि  के पौधे  लगाने चाहिए। ओजपूर्ण बीजों का प्रयोग करें तथा फफूँदनाशी से उपचारित बीज ही बोएं। टमाटर, मिर्च एवं बैंगन को एक साथ न लगाएं क्योंकि एक साथ लगाने से बिषाणु जनित रोग होने की संभावना रहती है।

बाजार में उपलब्ध रोगनाशकों (ट्रोईकोडर्मा) एवं वानस्पतिक कीटनाशकों (निम्बीसीडीन, नीम का तेल) का प्रयोग करना चाहिए।

दीमक के नियंत्रण के लिए निम्बीसीडीन का प्रयोग करना चाहिए। रोगग्रस्त एवं कीटग्रस्त पौधों (कीट के अंडे, शंखी, इल्ली आदि के साथ रोगग्रस्त पत्ती, फल एवं शाखाएं आदि) को चुनकर नष्ट करें।

इस प्रकार पोषण बगिया की परिकल्पना जिससे शुद्ध ताजी सब्जी मिलती है,शरीर स्वस्थ रहता है, पारिवारिक व्यय मे बचत होती है, सब्जी खरीदने के लिये कंही जाना नहीं पड़ता और संक्रमण से बचाव भी होता है। वैज्ञानिकों का कहना है की खुद से उगाई हुई सब्जी के उपयोग से जो संतुष्टि मिलाती है उससे 25 फीसदी बीमारी का खतरा भी कम हो जाता है।


Authors:

 डॉ फूलकुमारी

विषय वस्तु विशेषज्ञ (गृह विज्ञान)

कृषि विज्ञान केन्द्र, कुरारा, हमीरपुर

प्रसार निदेशालय, बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बाँदा (उ०प्र०)
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