Importance and factors affecting of earthworms in soil

मृदा मानव जाति की सबसे बड़ी विरासत है और सबसे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन भी है। इंसान ऐतिहासिक रूप से शिकार पर निर्भर थे और जीवनयापन के लिए भोजन का संग्रह  मृदा  से करते थे। हमारे मृदा के साथ संबंध मृदा की जुताई से जुड़े है। जिसके कारण आज मानव सभ्यता का विकास हुआ है और ये मानव और मृदा के संबंध को देख कर हम कह सकते है की मृदा कृषि के लिए एक आधारभूत हिस्सा है ।

आज-कल देखा जा रहा है की वन कटाई, अधिक चराई, फसल जलाना, अधिक मात्रा में कृषि रसायन एवं कम कार्बनिक खाद का प्रयोग और कृषि योगय भूमि का अन्य कामो में उपयोग करने के कारण कृषि उत्पादन व मृदा के उपजाऊपन में कमी आयी है। परिणामस्वरूप मृदा ऑर्गेनिक कार्बन (SOC),  नत्रजन, फॉस्फोरस जैसे मुख्य पोषक तत्व एवं अन्य सूक्ष्मपोषक तत्वों में भी कमी आयी है अतः इन सब परिस्तिथियों को ध्यान में रखते हुए मृदा की उपजता को बढ़ाने की दिशा में हमारे प्रयास होने चाहिए ताकि हम आने वाले समय एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा और संधारणीय फसल उत्पादन कर सकेंगे।

हम उपलब्ध मृदा का सही तरीके से उपयोग एवं सरंक्षण तभी कर सकेंगे जब हम  सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से मृदा को संरक्षित करेंगे। मृदा संरक्षण में केंचुआ की भूमिका मुख्य मणि जाती है। केंचुआ मृदा में इसलिये पोषक तत्व वृद्धि करते है क्योकि केंचुआ का मुख्य काम कार्बनिक पदार्थो का अपघटन व खनिजीकरण करते है।

केंचुआ इस प्रकार से मृदा में कई मुख्य कार्य करता है, जैसे मृदा उपजाऊपन में वृद्धि, पोषक तत्व पुन:चक्रण, विखंडन, खनिजीकरण, पोषक तत्व गतिकी और मृदा का मिश्रण इत्यादि। इसीलिए केचुओं को पारिस्थितिकी तंत्र का इंजीनियर भी कहा जाता है। मृदा के कई कारक है जो केचुओं की संख्या को निर्धारित करते है जैसे मृदा कार्बनिक पदार्थ, कुल नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटेसियम, मृदा पीएच, मृदा सरचना एवं  मृदा बनावट इत्यादि।  

मिट्टी की उर्वरता में केंचुओं की भूमिका

केचुओं की जनसंख्या को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं जिनमे से कुछ कारक सकारात्मक प्रभाव डालते और कुछ नकारात्मक। मृदा कार्बनिक पदार्थ (SOM), कुल मृदा नत्रजन, उपलब्ध फास्फोरस, उपलब्ध पोटेशियम, मृदा की बनावट एवं पीएच केंचुओं की जनसंख्या नियमित करते हैं।

प्राकृतिक वास में परिवर्तन के कारण केंचुओं की जनसंख्या पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा रासायनिक उर्वरकों एवं रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग भी मृदा, केंचुए एवं अन्य लाभकारी जीवों के लिए खतरा पैदा करते हैं।

केंचुए हजारों सालों से मृदा में कार्येरत है एवं हमारी मृदा को उपजाऊ बनाते हैं। अतः केंचुओं की इष्टतम वृद्धि एवं विकास के लिए ये जानना बहुत जरूरी है की केचुओं का स्थायी प्रबंधन किस तरीके से किया जाये ताकि हम मृदा की उर्वरा  शक्ति को बढ़ा सकें।

मृदा की उर्वरता में केंचुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और विभिन्न तरीकों से मृदा की उर्वरता में सुधार करते। उदाहरण के लिये केंचुए पोषक तत्व गहराई से लाकर सतह पर जमा करते हैं; मृदा की संरचना में सुधार करके मृदा की उर्वरता में वृद्धि करते है

केंचुए बड़ी मात्रा में कूड़ा खाते हैं जबकि पाचन का एक छोटा सा हिस्सा (5-10%) ही इनके द्वारा संग्रहित  किया जाता है और बाकि का  बचा हुआ मिट्टी में मिला दिया जाता है इस प्रकार से  केंचुओं का पचित पदार्थ अधिक मात्रा में होता है और इसमें अधिक मात्रा में पोषक तत्व मिले होते है।  

केंचुआ और मृदा के कार्बनिक पदार्थ

केंचुए प्रारंभिक तोर से  कार्बनिक पदार्थों  के अपघटन और उपलब्धता एवं चक्रीकरण में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।  केंचुआ मृदा सतह पर सबसे ज्यादा कार्बनिक पदार्थ खाने वाला जीव है अर्थात अन्य जीव केंचुए की तुलना में कम मात्रा में कार्बनिक पदार्थ खाते हैं इसीलिए केंचुआ मत्वपूर्ण है एवं  केंचुओं द्वारा पचितमें  अधिक मात्रा में पादप पोषक तत्व पाए जाते है।

केंचुआ और मृदा नाइट्रोजन

केंचुए कार्बनिक पदार्थो के खनिजीकरण में वर्द्धि करते है जिससे मृदा में नत्रजन की मात्रा बढ़ती है। अच्छी मात्रा में नत्रजन मृदा में मिल जाती है ऐसा केवल केंचुआ ही कर सकते। इसे पोधे आसानी से प्राप्त कर सकते है। इस प्रकार, लगभग 60-70 किलो नत्रजन हर साल मृदा में मिल जाती है। इसके अलावा केंचुओं के मृत शरीर भी  मृदा में मिल जाते जिससे अतिरिक्त मात्रा में पोषक तत्व मृदा में मिल जाते है।

केंचुआ और मृदा फास्फोरस

फास्फोरस एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जो ऊर्जा को सग्रहण करता है और अनेक उपापचय क्रियाओं में योगदान देता है। ये पादपों में कायिक वृद्धि व बीज अंकुरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फास्फोरस, अन्य पोषक तत्वों की तुलना में कम घुलनशीन एवं कम गतिशील तत्व है।

मृदा पीएच और विरोधी धनायन तत्वों की उपस्थिति में  मृदा में फॉस्फोरस की मात्रा काम रहती है इसिलए पादपों के लिए फॉस्फोरस की मात्रा, सीमित पोषक की तरह काम करती है। कई अनुसंधान दर्शाते है कि केंचुए युक्त मृदा में फोस्फोरस् की मात्रा अधिक पायी जाती है क्योकि केंचुए मृदा में फॉस्फोरस की क्रिया में वृद्धी करता और फॉस्फोरस की घुनलशीलता को बढ़ता है।

निम्न कारणों के कारण केंचुआ फास्फोरस की मात्रा को वृद्धि करता है।  

  • केंचुओं की आंत में पीएच का मान अधिक होता है जिससे फॉस्फोरस की घुलनशीलता में वृद्धि होती है।
  • केंचुओं की आंत में कार्बोक्सिलिक पदार्थ ज्यादा पाए जाते है जिससे फॉस्फोरस की घुलनशीलता में वृद्धि होती है।
  • केंचुओं में पाचन से सूक्ष्म  जीवो की संख्या में वृद्धि होती है जिसे फॉस्फोरस की घुलनशीलता में वृद्धि होती है।

केंचुओं की आबादी को प्रभावित करने वाले कारक

कई वातावरणीय कारक केचुओं के मृदा में वितरण ,घनत्व एवं केंचुओं की संख्या को प्रभावित करते है जिससे अलग-अलग मृदाओं में केंचुओं की संख्या अलग-अलग पायी जाती है। मृदा पीएच, कार्बन की मात्रा, नमी और मृदा के प्रकार, ये सब केंचुए की संख्या को निर्धारित करते है । वातावरणीय एवं जैविक कारक केंचुओं की संख्या को सबसे ज्यादा प्रभावित करते है।  

1. कार्बनिक पदार्थ

कार्बनिक पदार्थ केचुओं का मुख्य भोजन है, कई अनुसंधान दर्शाते है  की कार्बन की मात्रा व केचुवों की संख्या, एवं जैविक भार में धनात्मक संबंध पाया जाता है। जिस मृदा में कार्बन की मात्रा कम पायीजाती है उनमे  केंचुओं की भी अपेक्षकृत मात्रा कम पायी जाती है दूसरी तरफ जिसमे कार्बन अधिक पाया जाता है वहां अधिक मात्रा में केंचुए पाए जाते हैं।

 कार्बन: नत्रजन (C:N)  अनुपात केंचुओं एवं अन्य सूक्षम जीवो की संख्या एवं जैवभर को  निर्धरित करता है। कम कार्बन: नत्रजन  अनुपात को केंचुए ज्यादा पसंद करते है।

2. मिट्टी के प्रकार

मृदा प्रकार केंचुओं के वितरण, संख्या, व्यवहार एवं केंचुओं के प्रकार को निर्धारित करता हैं। चिकनी बलुई मृदा में केंचुए की मात्रा ज्यादा पाई जाती है जबकि भारी चिकनी मृदा में केंचुओं की संख्या कम पायी जाती है।

3. मृदा नमी

केंचुओं की वृद्धि एवं विकास के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होना अतिआवश्यक होता है। केंचुओं का शरीर लगभग 75-90% पानी से बना होता है इसलिए केंचुए नम मृदा में ज्यादा वृद्धि एवं विकास करते है जबकि सुखी मृदा में इसका विपरीत होता है।

लगभग 60-70% मृदा नमी में केंचुए अधिक वृद्धि एवं विकास करते है। इसके विपरीत अधिक नमी केंचुओं को नुकसान करती है क्योकि अधिक नमी से , मृदा में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्र में कमी  हो जाती है ।  

4. तापमान

तापमान केंचुओं की श्वसन क्रिया, पाचन, प्रजनन, वृद्धि एवं  विकास को प्रभावित करता है। उच्च तापमान केंचुओं  को मार देता है। मध्यम तापमान वृद्धि व विकास के लिए अनुकूल होता है। केंचुआ नमी एव ठंडा मौसम ज्यादा पसंद करता है जबकि सूखा व गर्म मौसम इनपर प्रतिकूल प्रभाव डालता है

5. मृदा पीएच

केंचुआ मृदा की पीएच के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। मृदा की पीएच केंचुओं के वितरण और घनत्व निर्धारित करता है। उदासीन पीएच पर केंचुओं की प्रजातियां ज्यादा जीवित रहती है। जबकि ज्यादा कम और अधिक पीएच,  केंचुओं के लिए हानिकारक होता है जिससे इनकी वृद्धि एवं  विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

6. खेती के प्रभाव

फसल एवं  मृदा के प्रकार केंचुओं की संख्या एवं जैवभर को प्रभावित करते है। मृदा में केंचुओं की मात्रा फसल अपशिष्ट और फसल अपशिष्ट के गुणों पर भी निर्भर करता है। फसल चक्रण पर्याप्त मात्रा में अवशेषों को मिट्टी में छोड़ता है जिससे केंचुओं की आबादी बढ़ती है।

निम्न C:N अनुपात वाले फसल अवशेष केंचुओं द्वारा ज्यादा पसंद किये जाते है। उच्च C:N अनुपात वाले फसल अवशेषों जैसे परिपक्व घास और अनाज की प्रजातियां की तुलना में अधिकांश केंचुओं की प्रजातियों द्वारा  आम तौर पर फलीदार, कम C:N  वाले फसल अवशेष अधिक पसंद किए  जाते हैं।

7. उर्वरकों का प्रभाव

अकार्बनिक उर्वरकों का प्रभाव केंचुओं पर हर जगह अलग-अलग होता है। केंचुओं पर अकार्बनिक उर्वरक का लाभदायक और हानिकारक दोनों प्रभाव होते हैं। अकार्बनिक उर्वरक जब मृदा में उपयोग किये जाते है तो मिट्टी का पीएच और वनस्पति भी बदल देते है जबकि रासायनिक खाद पीएच कम करके केंचुओं की संख्या को कम कर देते है पर दूसरी और वे वानस्पतिक में वृद्धि करके केंचुओं की संख्या वृद्धि कर देते है। जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति में विकास होता है।

कुछ शोधकर्ता ने पाया की सिंगल सुपरफॉस्फट के उपयोग करने पर केंचुओं की संख्या में चार गुना वृद्धि हो गई है। लाइम (चुना) का उपयोग करने पर केंचुए अम्लता से प्रभावित नहीं हो पाते  और उनको कैल्शियम की आवश्यकता की भी पूर्ति हो जाती है।

जैविक खाद से केंचुओं की संख्या बढ़ती है जिससे मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि है। जैविक खाद केंचुओं के भोजन के रूप में काम करती है और ये कम C:N अनुपात वाली जैविक खाद को ज्यादा पसंद करते है।

8. रसायनों का प्रभाव

कीटनाशक, भारी धातुएं, पॉली क्लोरिनेटेड बाइफिनाइल एवं कृषि रसायन जो मृदा में मिलाये जाते है,केंचुओं के वितरण, संख्या, क्रियाशीलता, जन्म दर इत्यादि को कम कर देते है जिससे केंचुओं की प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष

केंचुआ मृदा की अलग-अलग परतों को मिलाते हैं और कार्बनिक पदार्थों को मृदा में संग्रहण करते हैं। मृदा में कार्बनिक पदार्थ के वितरण में योगदान देते हैं जिससे मृदा की उर्वरता में विकास होता है। केंचुए मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणो में वृद्धि करते है। साथ -साथ मृदा में कंडीशनर का काम करते है जिसके पुनः मृदा की कई अभिक्रियाएँ नियंत्रण होती है। केंचुआ मृदा में विखंडन, वातन, ऑर्गेनिक पदार्थों का अपघटन, और पादप पोषक तत्वों को मृदा में छोड़ते है साथ ही साथ पादप हार्मोन्स की भी मृदा वृद्धि करते है।

केंचुआ नाइट्रोजन स्थरीकरण, कार्बन गतिकी, और फॉस्फोरस की उपलब्धता में वृद्धि करते है। कुछ कृषि गतिविधियों के कारण मृदा में केंचुओं की संख्या में कमी आयी है जैसे भारी मशीनरी एवं  गतिकी । लेकिन कुछ वातावरणीय कारकों के कारण भी मृदा में केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है।

केंचुए किसान के मित्र होते हैं और वे ऊपरी और निचली मृदा की परतों को मिलाते है जिससे फसल के पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है एवं फलस्वरूप फसल की उत्पादकत में वृद्धि होती है और साथ -साथ मृदा की उत्पादकता एवं उर्वरता में भी विकास होता है। इसलिए केंचुओं को हमें सरक्षित करना चाहिए और मृदा में केंचुओं की मात्रा को बढाने के प्रयास करने चाहिए तभी हम किसान मित्र और पारिस्थितिकी तंत्र के  इंजीनियर (केंचुआ) को बचा पाएंगे।


Authors

Basta Ram1*, Sonu Kumar Mahawer2

1Ph.D. Scholar, Soil science and agricultural chemistry, G.B. Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand, 263145

2Ph.D. Scholar, Agricultural Chemicals, G.B. Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand, 263145*

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