केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है।

तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।

केंचुआ, कृषकों का मित्र एवं भूमि की आंत कहा जाता है। यह सेन्द्रिय पदार्थ (ऑर्गैनिक पदार्थ), ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अन्दर अन्य परतों में फैलाता है इससे जमीन पोली होती है व हवा का आवागमन बढ़ जाता है, तथा जलधारण की क्षमता भी बढ़ जाती है।

केचुँए के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, उससे भूमि में पाये जाने वाले नत्रजन, स्फुर (फॉस्फोरस), पोटाश, कैलशियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। ऐसा पाया गया है कि मिट्टी में नत्रजन 7 गुना, फास्फोरस 11 गुना और पोटाश 14 गुना बढ़ता है।

केचुँए अकेले जमीन को सुधारने एवं उत्पादकता वृद्धि में सहायक नहीं होते बल्कि इनके साथ सूक्ष्म जीवाणु, सेन्द्रित पदार्थ, ह्यूमस इनका कार्य भी महत्वपूर्ण है।

केचुँए सेन्द्रिय पदार्थ, एवं मिट्टी खाने वाले जीव है जो सेप्रोफेगस वर्ग में आते है। इस वर्ग में दो प्रकार के केचुँए होते हैं :-

(1) डेट्रीटीव्होरस- डेट्रीटीव्होरस जमीन के ऊपरी सतह पर पाये जाते है। ये लाल चाकलेटी रंग, चपटी पूँछ के होते है इनका मुख्य उपयोग खाद बनाने में होता है। ये ह्यूमस फारमर केचुँए कहे जाते है।

(2) जीओफेगस- जीओ फेगस केचुँए जमीन के अन्दर पाये जाते है। ये रंगहीन सुस्त रहते हैं। ये ह्यूमस एवं मिट्टी का मिश्रण बनाकर जमीन पोली करते है।

केंचुआ खाद की विशेषताएँ : 

इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है। इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।

  • इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है।
  • प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है।
  • केचुँआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।

केंचुआ खाद तैयार करने की विधि

  • जिस कचरे से खाद तैयार की जाना है उसमे से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक हैं।
  • केचुँआ को आधा अपघटित सेन्द्रित पदार्थ खाने को दिया जाता है।
  • भूमि के ऊपर नर्सरी बेड तैयार करें, बेड को लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का व समतल बना लें।
  • इस तह पर 6-7 से0मी0 (2-3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी की तह बिछायें।
  • बालू रेत की इस तह पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की तह बिछायें। दोमट मिट्टी न मिलने पर काली मिट्टी में रॉक पाऊडर पत्थर की खदान का बारीक चूरा मिलाकर बिछायें।
  • इस पर आसानी से अपघटित हो सकने वाले सेन्द्रिय पदार्थ की (नारीयल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल एवं अन्य) दो इंच मोटी सतह बनाई जावे।
  • इसके ऊपर 2-3 इंच पकी हुई गोबर खाद डाली जावे।
  • केचुँओं को डालने के उपरान्त इसके ऊपर गोबर, पत्ती आदि की 6 से 8 इंच की सतह बनाई जावे। अब इसे मोटी टाट् पट्टी से ढांक दिया जावे।
  • झारे से टाट पट्टी पर आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी छिड़कते रहे, ताकि 45 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे। अधिक नमी/गीलापन रहने से हवा अवरूद्ध हो जावेगी और सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुएं कार्य नहीं कर पायेगे और केचुएं मर भी सकते है।
  • नर्सरी बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए।
  • नर्सरी बेड में गोबर की खाद कड़क हो गयी हो या ढेले बन गये हो तो इसे हाथ से तोड़ते रहना चाहिये, सप्ताह में एक बार नर्सरी बेड का कचरा ऊपर नीचे करना चाहिये।
  • 30 दिन बाद छोटे छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जावेंगे।
  • 31 वें दिन इस बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी तह बिछायें और उसे नम करें।
  • इसके बाद हर सप्ताह दो बार कूडे-कचरे की तह पर तह बिछाएं। बॉयोमास की तह पर पानी छिड़क कर नम करते रहें।
  • 3-4 तह बिछाने के 2-3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे कर देवें और नमी बनाए रखें।
  • 42 दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें।
  • इस पद्धति से डेढ़ माह में खाद तैयार हो जाता है यह चाय के पाउडर जैसा दिखता है तथा इसमें मिट्टी के समान सोंधी गंध होती है।
  • खाद निकालने तथा खाद के छोटे-छोटे ढेर बना देवे। जिससे केचुँए, खाद की निचली सतह में रह जावे।
  • खाद हाथ से अलग करे। गैती, कुदाली, खुरपी आदि का प्रयोग न करें।
  • केंचुए पर्याप्त बढ़ गए होंगे आधे केंचुओं से पुनः वही प्रक्रिया दोहरायें और शेष आधे से नया नर्सरी बेड बनाकर खाद बनाएं। इस प्रकार हर 50-60 दिन बाद केंचुए की संख्या के अनुसार एक दो नये बेड बनाए जा सकते हैं और खाद आवश्यक मात्रा में बनाया जा सकता है।
  • नर्सरी को तेज धूप और वर्षा से बचाने के लिये घास-फूस का शेड बनाना आवश्यक है।

केंचुआ और केंचुआ खाद के उपयोग

मिट्टी की दृष्टि से

  • केचुँए से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
  • भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती है।
  • भूमि का उपयुक्त तापक्रम बनाये रखने में सहायक।
  • भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा। अतः सिंचाई जल की बचत होगी। केचुँए नीचे की मिट्टी ऊपर लाकर उसे उत्तम प्रकार की बनाते हैं।
  • केचुँआ खाद में ह्यूमस भरपूर मात्रा में होने से नाइट्रोजन, फास्फोरस पोटाश एवं अन्य सूक्ष्म द्रव्य पौधों को भरपूर मात्रा में व जल्दी उपलब्ध होते हैं।
  • भूमि में उपयोगी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है।

कृषकों की दृष्टि से

  • सिंचाई के अंतराल में वृद्धि होती है।
  • रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने के साथ काश्त-लागत में कमी आती है।

पर्यावरण की दृष्टि से

  • भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती है।
  • मिट्टी खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
  • कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से बीमारियों में कमी होती है।

अन्य उपयोग

  • केचुँए से प्राप्त कीमती अमीनों ऐसिड्स एवं एनजाइमस् से दवाये तैयार की जाती है।
  • पक्षी, पालतू जानवर, मुर्गियां तथा मछिलयों के लिये केचुँए का उपयोग खाद्य सामग्री के रूप में किया जाता है।
  • आयुर्वेदिक औषधियां तैयार करने में इसका उपयोग होता है।
  • पाउडर, लिपिस्टिक, मलहम इस तरह के कीमती प्रसाधन तैयार करने हेतु केचुँए का उपयोग होता है।
  • केचुँए के सूखे पाउडर में 60 से 65 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जिसका उपयोग खाने में किया जाता है।

केंचुआ खाद का महत्व

  • यह भूमि की उर्वरकता, वातायनता को तो बढ़ाता ही हैं, साथ ही भूमि की जल सोखने की क्षमता में भी वृद्धि करता हैं।
  • वर्मी कम्पोस्ट देने से अधिक पैदावार होती हैं |
  • वर्मी कम्पोस्ट वाली भूमि में खरपतवार कम उगते हैं तथा पौधों में रोग कम लगते हैं।
  • पौधों तथा भूमि के बीच आयनों के आदान प्रदान में वृद्धि होती हैं।
  • वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करने वाले खेतों में अलग अलग फसलों के उत्पादन में 25-300% तक की वृद्धि हो सकती हैं।
  • मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती हैं।
  • वर्मी कम्पोस्ट युक्त मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का अनुपात 5:8:11 होता हैं अतः फसलों को पर्याप्त पोषक तत्व सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं।
  • केचुओं के मल में पेरीट्रापिक झिल्ली होती हैं, जो जमीन से धूल कणों को चिपकाकर जमीन का वाष्पीकरण होने से रोकती हैं।
  • केचुओं के शरीर का 85% भाग पानी से बना होता हैं इसलिए सूखे की स्थिति में भी ये अपने शरीर के पानी के कम होने के बावजूद जीवित रह सकते हैं तथा मरने के बाद भूमि को नाइट्रोजन प्रदान करते हैं।
  • वर्मी कम्पोस्ट मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि करता हैं तथा भूमि में जैविक क्रियाओं को निरंतरता प्रदान करता हैं।
  • इसका प्रयोग करने से भूमि उपजाऊ एवं भुरभुरी बनती हैं।
  • यह खेत में दीमक एवं अन्य हानिकारक कीटों को नष्ट कर देता हैं। इससे कीटनाशक की लागत में कमी आती हैं।
  • इसके उपयोग के बाद 2-3 फसलों तक पोषक तत्वों की उपलब्धता बनी रहती हैं।
  • मिट्टी में केचुओं की सक्रियता के कारण पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बना रहता हैं, जिससे उनका सही विकास होता हैं।
  • यह कचरा, गोबर तथा फसल अवशेषों से तैयार किया जाता हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता हैं।
  • इसके प्रयोग से सिंचाई की लागत में कमी आती हैं।
  • लगातार रासायनिक खादों के प्रयोग से कम होती जा रही मिट्टी की उर्वरकता को इसके उपयोग से बढ़ाया जा सकता हैं।
  • इसके प्रयोग से फल, सब्जी, अनाज की गुणवत्ता में सुधार आता हैं, जिससे किसान को उपज का बेहतर मूल्य मिलता हैं।
  • केंचुए में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव मिट्टी का pH संतुलित करते हैं।
  • उपभोक्ताओं को पौष्टिक भोजन की प्राप्ति होती हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में इसके उपयोग से रोजगार की संभावनाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
  • यह बहुत कम समय में तैयार हो जाता हैं।
  • केंचुए नीचे की मिट्टी को ऊपर लाकर उसे उत्तम प्रकार की बनाते हैं।

केंचुआ खाद के उपयोग में सावधानियाँ

  • जमीन में केचुँआ खाद का उपयोग करने के बाद रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा का उपयोग न करें।
  • केचुँआ को नियमित अच्छी किस्म का सेन्द्रिय पदार्थ देते रहना चाहिये।
  • उचित मात्रा में भोजन एवं नमी मिलने से केचुँए क्रियाशील रहते है।

केंचुआ खाद और कम्पोस्ट खाद की तुलना

 

केंचुआ खाद

कम्पोस्ट खाद

पकने की अवधि

1-1.5 माह

4 माह

पोषक तत्व

नाइट्रोजन

2.5-3.0 प्रतिशत

0.5-1.5 प्रतिशत

फास्फोरस

1.5-2.0 प्रतिशत

0.5-0.9 प्रतिशत

पोटाश

1.5-2.0 प्रतिशत

1.2-1.4 प्रतिशत

सूक्ष्म एवं अन्य पदार्थ

अपेक्षाकृत मात्रा अधिक

मात्रा कम

प्रति हेक्टेयर आवश्यकता

2 टन

5 टन

वातावरण पर प्रभाव

खाद में बदबू नहीं होती। मक्खी, मच्छर आदि भी नहीं बढ़ते। अतः वातावरण दूषित नहीं होता। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील/सक्रिय रहते है।

खाद बनाते समय प्रारंभिक अवस्था में बदबू होती है और मक्खी, मच्छर आदि बढ़ जाते है जिससे वातावरण दूषित होता है। तापमान नियंत्रित नहीं रहने से जीवाणुओं की क्रियाशीलता/सक्रियता कम हो जाती है।


Authors:

प्रीति वशिष्ठ एवं प्रहलाद

पादप रोग विज्ञान विभाग

केंद्रीय कपास अनुसन्धान केंद्र, क्षेत्रीय स्टेशन , सिरसा (हरियाणा) 

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