Earthworms manure (Vermicompost) - one step towards organic farming
वर्तमान समय मे बढती हुई आबादी की पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए सघन खेती तथा मृदा स्वास्थ्य बनाऐ रखने पर जोर दिया जा रहा है। रासायनिक खादों, कीटनाशको का बहुतायत में प्रयोग करने से हमारी मृदा का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है । रासायनिक खाद व कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से मृदा गुणवत्ता को बनाऐ दखना आने एक चुनौतिपुर्ण कार्य बन गया है|
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए प्राकृतिक अथवा कार्बनिक खादों का प्रयोग करना चाहिए। इन कार्बनिक खादों में केंचुए की खाद, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद प्रमुख है| पिछले कुछ वर्षो से प्राकृतिक खाद के रूप में केंचुए की खाद का बहुतायत से प्रयोग हो रहा है|
केंचुआ खाद
केंचुआ को कृषकों का मित्र एवं 'भूमि की आंत' कहा जाता है| केंचुए की कुछ प्रजातिया भोजन के रूप में मुख्यतः कार्बनिक पदार्थों का ही प्रयोग करती है कार्बनिक मात्रा का कुल 5 से 10 प्रतिशत भाग इनकी आंतो द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है शेष मल के रूप में विसर्जित कर देते है इस मल को ही वर्मीकास्ट कहते है।
नियंत्रित परिस्थिति में कार्बनिक पदार्थो से तैयार वर्मीकास्ट एवं केचुए के ककून अंडे मृत अवशेष आदि के मिश्रण को वर्मीकम्पोस्ट कहते है नियंत्रित दशा में केंचुओं द्वारा केंचुआ खाद उत्पादन करने की विधि को वेर्मीकम्पोस्टिंग और केचुआ पालन की विधि को वर्मीकल्चर कहते है।
कृषि के लिए केचुए की खाद का महत्व :
केंचुओं को किसान का मित्र हलवाहा के नाम से भी जाना जाता है | यह कार्बनिक और अपशिष्ट पदार्थ को खाकर मिटटी को पोला बना देता है जिससे वायु तथा जल का संचार बहुत अच्छे से होता है और मिटटी की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है यह खाद बद्बूरहित तथा चाय की पत्ती की तरह होती है केंचुआ प्रति वर्ष एक से पांच मिमी परत का निर्माण करते है|
1. मिटटी की भौतिक दशा सुधारने में :
सतह पर पाए जाने वाले केचुए कार्बनिक तथा अपशिष्ट पदार्थों को मिटटी के अन्दर ले जाकर उसे खाते है फिर मल त्याग करते है जिससे भूमि में रंध्रावकाश बढ़ता है और वायु का आवागमन तीब्र गति से होता है एवं तापमान संतुलित रहता है |
मिटटी की लगातार उलट पुलट करने से मृदा की संरचना में भी सुधार होता है जो जल धारण क्षमता तथा तत्वों के धारण क्षमता को बढ़ता है | मिट्टी में पाए जाने वाले लाभकारी जीवाणु जैसे राइजोबियम, स्यूडोमोनास, बैसिलस आदि की वृद्धी होती है जो नत्रजन स्थरीकरण, फोस्फोरस विलायक और सल्फर की उपलब्धता को बढ़ाते है |
2. मिटटी की रासायनिक दशा सुधारने में:
भूमि को पोषक तत्वों की उपलब्धता करने की क्षमता को भूमि उर्वरता कहते है| केंचुए की खाद मृदा के पी.एच. को उदासीन बनाने में मदद करती है| यह खाद कम्पोस्ट तथा गोबर की खाद की तुलना में पौधों के लिए अधिक लाभदायक होती है| मिटटी में पाए जाने वाले आवश्यक तत्व जैसे नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर और सूक्ष्म्तत्व को भी बढाती है|
3. मिट्टी की जैविक दशा सुधारने में:
जैविक कार्बन मृदा के स्वास्थ्य का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूचक है| जो मिट्टी में नत्रजन की उपलब्धता को बढाने में सहयोगी है| कार्बनिक पदार्थ केंचुए तथा सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धी करता है जिससे मिट्टी में पाए जाने वाले लगभग सभी तत्वों को पौधों के लिए आसानी से उपलब्ध होते है |
भूमि में उपलब्ध फसल अवशेष केंचुए और सूक्ष्मजीवों की मदद से अपघटित होकर कार्बन को ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रदान करता है एवं लगातार पोषक तत्वों की आपूर्ती बनाये रखता है | ये भूमि में विटामिन्स, एन्जाइम, एमिनो एसिड, ह्यूमस आदि का निर्माण कर इसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाते है|
केंचुए की प्रजातियाँ:
केंचुए की खाद बनाने के लिए उपयुक्त प्रजातियाँ आइसीनिया फोटिडा, यूड्रिलस यूजेनी एवं फेरेटिमा पोस्थुमा है| इन प्रजातियों को रेड वर्म भी कहते है यह भूमि की उपरी सतह पर पाए जाते है| यह प्रकाश, ताप, रासायनिक के लिए काफी संवेदनशील होते है|
इनका प्रमुख भोजन गोबर, फसलों के अवशेष, रद्दी कागज तथा अन्य कार्बनिक पदार्थ है| इनकी वृद्धी और प्रजनन क्षमता बहुत अधिक होती है| एक केंचुआ 24 घंटे में अपने वजन का 3-5 गुना भोजन खा जाते है|
केंचुए की खाद बनाने की विधि:
केचुए की खाद कई कार्बनिक पदार्थों से बनायीं जाती है उनमे से गोबर, कूड़ा करकट, रद्दी पेपर, रसोई घर का व्यर्थ खाना, पौधों की पत्तियां, डंठल, प्रमुख है| प्रायः देखा गया है की केंचुए की खाद बनाने के लिए गोबर का प्रयोग किया जाता है|
परन्तु गोबर की कमी या उपलब्धता न होने के कारण रद्दी पेपर भी कार्बनिक पदार्थ का अच्छा विकल्प है| रद्दी पेपर या कार्टन नये उपकरण, नये फर्नीचर, शिक्षण संस्थान, सरकारी दफ्तर से निकले व्यर्थ उत्पाद होते है| जिनको बहुत ही कम मूल्य पर बेंच दिया जाता है, किन्तु यदि इस उत्पाद से केंचुए की खाद बनायीं जाये तो मूल्य में वृद्धी तो होगी ही साथ ही पौधों के लिए पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में मिलेंगे|
केंचुए की खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम उपयुक्त स्थान का चुनाव करना चाहिए जो की पेड़ के नीचे अथवा खेत के आस पास छायादार हो| हम अपनी आवश्यकतानुसार गड्डा बना सकते है| एक सामान्य गड्डा 10 फुट लम्बा, 6 फुट चौड़ा एवं 1.5 फुट गहरा होता है और सतह पक्की होनी चाहिए|
कच्चे गड्ढे में प्लास्टिक की शीट बिछा देनी चाहिए जिससे तत्वों का निछालन नहीं होता तथा केंचुए गड्ढे से बहार नहीं जाते| इसके बाद गड्ढे की भराई करते है|
सबसे पहले नीम की पत्ती, डंठल की लगभग 5 सेमी की एक पर्त बिछाते है जो दीमक के प्रकोप को रोकने में मदद करता है|
इसके बाद दूसरी पर्त गोबर की बिछाते है| तीसरी पर्त रद्दी पेपर के रूप में जिसको छोटे छोटे टुकड़ों में फाड़ लिया जाता है, गड्डे में बिछा देते है और पानी भर देते हैं| फिर उसको लगभग 15 दिन तक सड़ने देते है| गड्डे को जूट के बोरे से धक देना चाहिए ताकि वस्पोत्सर्जन कम हो सके|
15-20 दिन के बाद जब रद्दी के सड़ने से उत्पन्न गर्मी निकल जाये तब इसमें केंचुए गड्ढे में छोड़ देना चाहिए| अब इसमें नमी बनाये रखने के लिए प्रतिदिन पानी का छिडकाव करना चाहिए ताकि लगभग 60-70 प्रतिशत नमी बने रहे|
इसकी पलटाई हर 4 से 5 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए जिससे केंचुओ को भरपूर मात्रा में आक्सीजन मिलती रहे| इसके बाद हम 30 से 35 दिन के बाद देखेगे की रद्दी पेपर का रंग काला हो रहा है, आयतन घट रहा है तथा भुरभुरापन आ रहा है|
यह अच्छी केंचुए की खाद बनने के प्रतीक है| इस प्रकार 45 से 60 दिनों में चाय की पत्ती की तरह हल्के भूरे काले रंग की गंध रहित खाद बनकर तैयार हो जाती है| अब एक छन्ने से इस खाद को छानते है जिससे केंचुए और खाद अलग हो जाते है|
केंचुआ खाद का रासायनिक संगठन:
केंचुए की खाद का रासायनिक संगठन केंचुओं के प्रकार, कार्बनिक तथा अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत, बनाने की विधि पर निर्भर करता है| सामान्यतः इस खाद में पौधों के लिए लगभग सभी पोषक तत्व संतुलित एवं आसानी से प्राप्त हो जाते है| केचुए की खाद में गोबर की खाद की तुलना में 5 गुना नत्रजन, 8 गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटेशियम, 3 गुना मैग्नीशियम तथा अन्य सूक्ष्म तत्व संतुलित मात्रा में पाए जाते है|
क्रमांक |
मानक |
मात्रा |
1 |
पी एच |
6.5 – 7.0 |
2 |
ई सी (mmhos/cm) |
11.70 |
3 |
कुल नत्रजन |
0.5-10 % |
4 |
फोस्फोरस |
0.15-0.56 % |
5 |
पोटेशियम |
0.06-0.30 % |
6 |
कैल्सियम |
2.0-4.0 % |
7 |
मैग्नीशियम |
0.46 % |
8 |
आयरन |
7563 पीपीएम |
9 |
जिंक |
278 पीपीएम |
10 |
मैंगनीज |
475 पीपीएम |
11 |
कापर |
27 पीपीएम |
12 |
बोरान |
34 पीपीएम |
स्रोत: डी. कुमार आदि
केंचुआ खाद के लाभ
- केंचुआ खाद के प्रयोग करने से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, जिससे मिट्टी में हवा का आवागमन अच्छा रहता है तथा तापमान भी नियंत्रित रहता है|
- इस खाद को मिट्टी में मिलाने से ह्यूमस की मात्रा बढती है साथ ही भूमि की पोषक तत्व एवं जल धारण क्षमता भी बढ़ जाती है|
- कम्पोस्ट की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट में फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है।
- केंचुआ खाद के प्रयोग से फसल, मौसम एवं अन्य कारकों के आधार पर उत्पादकता में 30-60 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।
- इस खाद का प्रयोग करके किसानो की आय दो गुनी कर सकते है|
- यह खाद मृदा की संरचना को भी सुधारने में मदद करता है|
- वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से गांव का स्वावलम्बी विकास हो सकता है। अर्थात् बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त हो सकता है।
- केंचुआ खाद बहुत ही कम समय में तैयार हो जाती है|
- मृदा में पाए जाने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीवो की भी वृद्धी होती है|
- इस खाद के प्रयोग करने से रोग तथा कीटों की समस्या में कमी आती है|
- इस खाद को खेत में डालने से पौधों को तुरंत लाभकारी पोषक तत्वों की पूर्ती होती है|
- केंचुआ खाद के लगातार प्रयोग से खरपतवार की वृद्धि कम हो जाती है|
- केंचुआ खाद बनाने में चूंकि गोबर, फसल अवशेष, कुड़ा-करकट व सड़े-गले सब्जियों का उपयोग किया जाता है जिससे गंदगी में कमी आती है व पर्यावरण सुरक्षित व संतुलित रहता है।
Authors
डॉ. अरबिन्द कुमार गुप्ता1, रुबीना खानम2, डॉ. विनीता बिष्ट3, डॉ. श्वेता सोनी4
1सहायक प्राध्यापक, बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा-210001
2वैज्ञानिक, राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक, उड़ीसा-753006
3 सहायक प्राध्यापक, वानिकी महाविद्यालय, बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा-210001
4सहायक प्राध्यापक, औद्यानिकी महाविद्यालय, बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा-210001
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