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आम के बौर (फूल) के रोग और उनका प्रबंधन Mango production is seriously hampered by many diseases particularly in recent days. About 140 disease-causing pathogens are known to inflict damage to mango crop at various stages of its production. Among them, diseases on inflorescences or blossoms, if unchecked, take heavy toll on yield of mango. Powdery mildew and blossom blight or anthracnose are the most notorious diseases infecting mango in India at the time of flowering and fruit set. Powdery mildew of Mango blossoms Powdery mildew affecting  mango inflorescence is characterised by greyish white or whitish colour talc like haze and it may cover the inflorescence partially or entirely, leading to reduced fruit set...

गेंहू के व्‍यवसायि‍क संकर बीज उत्पादन के लिए गेहूं में मेल स्टेरिलिटी सिस्टम Exploitation of hybrid vigour at commercial level through development of hybrid wheat is considered as one of the promising approach for increasing wheat productivity. Work on hybrid wheat started world over in 1962 and utilization of heterosis through hybrid breeding has given very high dividends in many field crops including horticulture. The discovery of an effective cytoplasmic male sterility and pollen fertility restoration systems in wheat opened up new avenues for commercial hybrid seed production. Kihara (1951) pointed out the possibility of using male sterility by transferring the nucleus of common wheat into the cytoplasm of Aegilops caudata. Among the...

Nursery management of hybrid rice seed production संकर धान बीज उत्पादन की नर्सरी के लिए चिकनी दोमट, 35 पी.एच. वाली मिट्टी उप्युक्त होती है। धान का शुध्द संकर बीज में मिलावट रोकने के लिए पिछले मौसम में उगाये गये धान का क्षेत्र या खेत नहीं होना चाहिए। संकर धान की नर्सरी विधि धान की नर्सरी तैयार करने की कई विधियां होती है। लेकिन संकर बीज उत्पादन के लिए नमी (वैट) या आर्द्र विधि का अपनाना उचित होता है अथवा वहां पानी की समुचित सुविधा होनी चाहिए। नमी क्यारी नर्सरी विधि पारम्परिक विधि के 10 प्रतिशत के मुकाबले एक हैं, क्षेत्रफल के लिए भूमि की कुल आवश्यकता 2.5-3.0 प्रतिशत ही होगी। नमी क्यारी विधि...

Production technique of Blue Green Algae (BGA) and its usage. पौधों के समुचित विकास के लिए नाइट्रोजन एक आवश्यक पोषक तत्व है।  रासायनिक उर्वरकों के अलावा शैवाल तथा जीवाणु की कुछ प्रजातियां वायुमंडलीय नाइट्रोजन (80 प्रतिशत) का स्थिरीकरण कर मूदा तथा पौधों को देती है और फसल के उत्पादकता में वृद्वि करती है। इस क्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं।  इन सूक्ष्म जीवाणुओं को ही जैव उर्वरक कहते हैं।  नील-हरित शैवाल एक विशेष प्रकार की काई होती है। नील हरति शैवाल उत्‍पादन की वि‍धि‍ इस प्रकार है  नील-हरित शैवाल की प्रजातियांः जलाक्रान्त दशा, जिसमें धान उगाया जाता है, नील-हरित शैवाल की औलोसिरा, ऐनाबिना, ऐनाबिनाप्सिम, कैलोथ्रिक्स, कैम्पाइलोनिया, सिलिन्ड्रो स्पमर्म फिश्येरला, हैप्लोसीफान, साइक्रोकीटे, नास्टोक, वेस्टिलोप्सिम...

Green fodder production technique पशुओं की उत्पादन क्षमता उनको दिए जाने वाले आहार पर निर्भर करती है। पशुओं को संतुलित आहार दिया जाय तो पशुओं की उत्पादन क्षमता को निश्चित ही बढ़ाया जा सकता है।  हरे चारे के प्रयोग से पशुओं को आवश्यकतानुसार शरीर को विटामिन ’ए’ एवं अन्य विटामिन मिलते हैं।  इसलिए प्रत्येक पशुपालक को अपने पशुधन से उचित उत्पादन लेने के लिए वर्ष पर्यन्त हरा चारा खिलाने का प्रबन्ध अवश्य करना चाहिए। पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए किसान भाईयों को चाहिए कि वे ऐसी बहुवर्षीय हरे चारे की फसले उगाऐं  जिनसे पशुओं को दलहनी एवं गैरदलहनी चारा वर्ष भर उलब्ध हो सकें।  रबी एवं खरीफ के लिए पौष्टिक हरा चारा...

Importance of sulfur in oilseed crops तिलहनी फसलें भारतीय आहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं है।  इसका उत्पादन लगभग 24 मिलियन टन हो रहा है। तिलहन फसल के लिए संतुलित उर्वरक का प्रयोग आवश्यक है, जिसमें नत्राजन, फास्फोरस, पोटाश, गंधक, जिंक व बोरान तत्व अति आवश्यक है।  गत वर्षों में सन्तुलित उर्वरकों के अन्तर्गत केवल नत्राजन, फास्फोरस एवं पोटाश के उपयाेग पर बल दिया गया।  सल्फर के उपयोग पर विशेष ध्यान न दिये जाने के कारण मृदा के नमूनों में 40 प्रतिशत गंधक (सल्फर) की कमी पाई गई।  आज उपयोग में आ रहे गंधक रहित उर्वरकों जैैसे यूरिया, डी0ए0पी0, एन0पी0 के0 तथा म्यूरेट आफ पोटाश के उपयोग से गंधक की कमी निरन्तर...

तेल ताड (एलियस गिनेन्सिस जैक) के हाइब्रिड बीज उत्पादन की तकनीक Oil palm  (Elaeis guineensis Jacq.) is a perennial crop and cultivation has been expanded rapidly in recent years. It is the highest edible oil yielding crop giving up to 5-6 tonnes of oil per ha per year.  This crop offers viable solution for meeting the ever increasing shortage of vegetable oils in the country. In order to harness the full potential of oil palm, Government of India is keen in increasing the area under oil palm to a tune of 2 million ha by 2025. To achieve this proposed target, nearly twenty lakh germinated seeds need to be produced per year. Public and...

Successful cultivation of Safed musli  सफेद मूसली (asparagus abscendens) की खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष में (ज्यादा ठंडे क्षेत्रों को छोडकर) सफलता पूर्वक की जा सकती है। सफेद मूसली  को सफेदी या धोली मूसली के नाम से जाना जाता है जो लिलिएसी कुल का पौधा है। यह एक ऐसी “दिव्य औषधि“ है जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है सफेद मुसली एक महत्वपूर्ण रसायन तथा एक प्रभाव वाजीकारक औषधीय पौधा है। इसका उपयोग खांसी, अस्थमा, बवासीर, चर्मरोगों, पीलिया, पेशाब संबंधी रोगों, ल्यूकोरिया आदि के उपचार हेतु भी किया जाता है। हालांकि जिस प्रमुख उपयोग हेतु इसे सर्वाधिक प्रचारित...

Grow Milk or Dudhia mushroom in the summer season to earn good returns दूधिया मशरूम एक स्वाटिष्ट प्रोटीनयुक्त तथा कम कैलोरी प्रदान करने वाला खाद्य पदार्थ है। इसमे पायी जाने वाली प्रोटीन में आवश्यक अमीनो अम्ल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि वृ़ध्दि और विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है ताजे मशरुम में पाये जाने वाला प्रोटीन, दूघ के प्रोटीन के बराबर होता है व अत्यधिक सुपाच्य होता है। इसके साथ ही यह विटामिन व खनिज लवण का अच्छा स्त्रोत है। मशरुम में वसा कम व प्रोटीन ज्यादा होता है। अतः यह ह्रदय रोगियो के लिए उपयोगी है। इसमे स्टार्च नहीं होता यह डायबिटीज के मरीजो को फायदा करता है। यह...

Bayod disease of date palm and its management.  बायोड अरबी भाषा के शब्द ’अबीआध’ से बना है जिसका अर्थ होता है- ’खजूर की अपुष्प-पर्ण (Fronds) का सफेद होना। 1870 में इस रोग की सूचना सबसे पहले जगोरा-मोरक्को में मिली थी। 1940 तक, यह रोग व्यावहारिक रूप से सभी मोरक्को ताड़ पेड़ों के साथ-साथ पश्चिमी और मध्य अल्जीरिया सहारा के क्षेत्रों में होने लगा था। बायोड रोग ने जब अपना मारक महामारी रूप प्रस्तुत किया था, तब इससे बहुत तबाही मची थी। बायोड रोग ने एक सदी में बारह लाख से अधिक मोरक्को में और तीन लाख से अधिक अल्जीरिया में खजूर के पेड़ों को नष्ट कर दिया था। दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और...