Author: rjwhiteclubs@gmail.com

Growing trends towards farming in educated youth एक दौर था जब लोग गाँवों से शहरों की और पलायन करने लगे थे लगता था गावं खाली हो जाएगें, खेती किसानी कौन करेगा, कैसे मिलेगा सबा करोड़ आबादी वाले भारत को अनाज,किंतु प्रकृति का नियम है कि सब समय एक सामान समय नहीं रहता हैI कहते हैं “ कहीं धूप कहीं छाया, भगवान् तेरी माया ’’मनुष्य का स्वभाव है कि वह बदलाव चाहता है, उससे उसे तुष्टि मिलती है इसके विपरीत अवस्था में मन ऊब जाता हैIइसी क्रम में इस लेख में मानवीय सोच में बदलाव देखने को मिलेगेंI नौकरी अगर अच्छी हो तो खेती-किसानी करने के बारे में भला कौन सोचता है। लेकिन...

Effects and control of Parthenium grass  प्रकृति में अत्यंत महत्त्व पूर्ण वनस्पतियों के अलावा कुछ वनस्पतियाँ ऐसी भी हैं, जो कि धीरे-धीरे एक अभिशाप का रूप लेती जा रही हैं बरसात का मौसम शुरू होते ही गाजर के तरह की पत्तियों वाली एक वनस्पति काफी तेजी से बढ़ने और फैलने लगती है। जिसे पार्थेनियम हिस्टेरोफोरोस यानी कोंग्रस ग्रास या गाजर घास क नाम से जाना जाता है । यह  Asteraceae कुल का सदस्य है। यह वर्तमान में विश्व के सात सर्वाधिक हानिकारक पौधों में से एक है तथा इसे मानव एवं पालतू जानवरों के स्वास्थ्य के साथ-साथ सम्पूर्ण पर्यावरण के लिये अत्यधिक हानिकारक माना जा रहा है। गाजर घास अमेरिका, एशिया, अफ्रीका व...

Soil health card: Today’s requirement of farmers  कृषि एवं इससे संबंधित गतिविधियां भारत में कुल सकल घरेलु उत्पाद में 30 फीसदी का योगदान करती है। कृषि सीधे तौर पर मिट्टी से जुडी है। किसानों की उन्नति मिट्टी पर निर्भर करती है, मिट्टी स्वस्थ तो किसान स्वस्थ। इसी सोच के आधार पर  भारत सरकार ने 19 फरवरी 2015 को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ में किसानों के लाभ हेतु राष्ट्रव्यापी "मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना" का शुभारंभ किया। इस योजना में, किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किया जाता है,जिसमें उनके खेत की मिट्टी की पूरी जानकारी लिखी होती है जैसे  उसमे कितनी -कितनी मात्रा किन -किन पोषक तत्वों की है और कौन-...

Green fodder production with guinea grass  बहुवर्षीय हरे चारे के लिए गिनी घास का महत्वपूर्ण योगदान है| गिनी घास (Panicum maximum Jacq.) का जन्म स्थान गिनी, अफ्रीका को  बताया जाता है| ये बहुत ही तेजी से बढने वाली और पशुओ के लिए  एक स्वादिस्ट घास है|   इससे वर्ष मैं 6-8 कटाई तक कर सकते है| भारत में यह घास 1793 में आई| इसमें 10-12 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, रेशा 28-36 प्रतिशत, NDF 74-75 प्रतिशत , पत्तो की पाचन क्षमता  55-58 %, लिगनिन  3.2-3.6 प्रतिशत होती है| गिनी घास के लि‍ए जलवायु गिनी घास  गर्म मौसम की फसल है घास के लिए उपयुक्त तापमान, 31 डिग्री सेंटीग्रेड  चाहिए और 15 डिग्री सेंटीग्रेड के नीचे इसकी...

Nematodes problems, symptoms and management in rice crop चावल दुनिया के एक बड़े हिस्से में  अनाज के रूप मे खाया जाता है। यह मानव पोषण और कैलोरी सेवन के लिए महत्वपूर्ण अनाज है, दुनियाभर में मनुष्यों द्वारा खपत की गई कैलोरी का 1/5 से अधिक हिस्सा है। चावल भारत की प्रसिद्ध फसल है जो देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों के लोगों का मुख्य भोजन है। कई निमेटोड प्रजातियां चावल की फसल को सक्रंमित करती है जैसे उफरा (डिटाइलेकस डिप्सेकी), व्हाइट टिप बिमारी (एफेलेनकोआइड बसेई) और जड़ गांठ रोग (मेलोडेगायनी ग्रमिनिकोल) है। दुनिया के सभी कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कुछ निमेटोड प्रजातियां जैसे कि प्रटिलेकंस स्पी. सबसे खतरनाक है। चावल रूट...

Improved technology for cultivation of Mungbean मूंग भारत में उगायी जाने वाली, कम समय मे पकने वाली, महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इन फसल में वातावर्णीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाने की अदभुत क्षमता होती हैं। जिससे पौधों को कम उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है, और उत्पादन लागत कम हो जाती है। इनकी खेती लगभग सभी राज्यों मे की जाती है। परन्तु महाराष्ट, आन्ध्र प्रदेश,  उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश तमिलनाडु तथा उड़ीसा, मूंग तथा उड़द उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं। मूंग की खेती के लि‍ए भूमि की तैयारी मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी...

Multi harvesting sorghum fodder crop cultivation techniques  भारत में  मात्र 4 प्रतिशत भूमि पर चारे की खेती की जाती है तथा एक गणना के अनुसार भारत में 36 प्रतिशत हरे चारे एवं 40 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है | अत: बढती हुई आबादी एवं घटते हुए कृषि क्षेत्रफल को ध्यान में रखते हुए हमें उन चारा फसलों की खेती करनी होगी जो लम्बे समय तक पशुओं को पोष्टिक चारा उपलब्ध कराने के साथ साथ हमारी जलवायु में आसानी से लगाई जा सके | शरद ऋतू में बरसीम, जई, रिजका, कुसुम आदि की उपलब्धता मार्च के पहले पखवाड़े तक बनी रहती है किन्तु बहु कट चारा ज्वार से पशुओं को लम्बे समय...

Mustard cultivation with scientific technique सरसों राजस्थान की प्रमुख तिलहनी फसल हैं। सरसों की फसल सिंचित क्षेत्रों एवं संरक्षित नमी के बारानी क्षेत्रों में ली जा सकती हैं। यह फसल कम सिंचाई सुविधा और कम लागत में भी अन्य फसलों की तुलना में अधिक लाभ प्रदान करती है। इसकी पत्तियॉ हरी सब्जि के रूप में प्रयोग की जाती है तथा सूखे तनो को ईधन के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। सरसों के तेल में तीव्र गंध सिनिग्रिन नामक एल्केलॉइड के कारण होती हैं। मृदा :- सरसों की खेती रेतिली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती हैं। बुलई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती हैं। खेत की तैयारी :- खरीफ फसल की कटाई्र...