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How to grow strawberries स्ट्राबेरी एक महत्वपूर्ण नरम फल है। जिसको विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु में उगाया जा सकता है। इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल दे सकता है। इस फसल का उत्पादन बहुत लोगों को रोजगार दे सकता है। स्ट्रॉबेरी  एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन 'सी' , प्रोटीन और खनिजों का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोतों है। स्ट्राबेरी की किस्में स्ट्राबेरी की बहुत सी किस्में उगाई जाती हैं। परन्तु मुख्यत: निम्नलिखित किस्मों का उत्पादन हरियाणा में किया जाता है। कैमारोजा यह एक कैलीफोर्निया में विकसित की गई किस्म है व थोड़े दिन में फल देने वाली किस्म है। इसका फल बहुत बड़ा व मजबूत होता है। इस फल की महक अच्छी होती है। यह किस्म लंबे समय...

रसभरी या केप करौदा: भारत में एक नई नकदी फसल Introduction and adaptations of new crops contribute to an increase in diversity of agricultural systems. It offers new opportunity and alternatives to farmers and markets. New crops can result in an increase of income for farmers. The Cape gooseberry (Physalis peruviana L.) करौदा is a new herbaceous crop which comes under minor fruit. The genus Physalis, of the family Solanaceae, contains around more than 100 species of annual and perennial herbs. Several species of Physalis are grown for their edible fruits like, P. peruviana L. (Cape gooseberry) , P. pruinosa L. (strawberry tomato), or P. ixocarpa Brot. (husk tomato). This crop can be grown successfully in kitchen garden....

पोर थ्रू निष्कर्षण विधि का उपयोग कर फूलों की फसलों की पीएच और ईसी की माप Providing a proper nutritional program is essential for growing top quality plants. Sampling the root substrate for pH and electrical conductivity (EC) with the PourThru extraction method is a quick and simple. The pour-through method has been shown to be as satisfactory as other more expensive and time consuming methods of measuring EC. Unlike sampling methods that require removal of medium from containers, the pour-through method does not disturb plant roots. The values provide clues about a crop’s performance before deficiency or toxicity symptoms appear. As nurseries implement more environmentally and economically sound growing regimes, the pour-through...

Improved technology for cluster bean cultivation ग्वार, लेग्युमिनेसी कुल की, खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली एकवर्षीय फसल है। ग्वार यानि‍ क्‍लस्‍ट्रबीन का वैज्ञानिक नाम साइमोपसिस टेट्रागोनोलोबा  है। इसका पौधा बहु-शाखीय व सीधा बढ़ने वाला है। पौधे की लम्बाई 30-90 सेमी तक होती है। इसकी जड़ें मृदा में काफी गहराई तक जाती हैं। ग्वार के फूल आकार में छोटे व गुलाबी रंग के होते हैं। फलियां लम्बी व रोएंदार होती हैं। ग्वार एक स्वपरांगित फसल है। ग्वार की फसल में बुवाई के 70-75 दिनों बाद फलियां आनी शुरू हो जाती हैं। सामान्यतः 110-133 फलियां प्रति पौधा आ जाती हैं। ग्वार की खेती कम वर्षा और विपरीत परिस्थितियों वाली जलवायु में भी आसानी की जा...

Integrated disease and pest management in Vegetable crops. भारत मे  भिन्न-भिन्न जलवायु होने के कारण हर प्रकार की सब्जियाँ उगाई जाती है। सब्जी उत्पादकता कम होने का प्रमुख कारण सब्जियों की फसल में लगने वाले रोग एवं कीट हैं। सब्जियों में रोग उत्पन्न करने के लिए बहुत से रोगकारक जैसे- कवक, जीवाणु, विषाणु, फाइटोप्लाज्मा, सूत्रकृमि इत्यादि जिम्मेदार हैं, जिनकी वजह से सब्जी के उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता में कमी आती है। सब्जियों में अधिकतर रोग, कवकों द्वारा उत्पन्न होता है। पौध तैयार करने से लेकर उत्पादन, भण्डारण एवं विपणन तक सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाली व्याधियाँ सब्जी उत्पादन में मुख्य बाधाएँ हैं। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुये यह सबसे बड़ी चुनौती है कि सब्जी...

Scientific cultivation of Cowpea and its integrated disease and pest management. लोबिया एक महत्वपूर्ण सब्जी की फसल है लोबिया की खेती मैदानी क्षेत्रों में फरवरी से अक्टूबर तक सफलतापूर्वक की जाती है। दलहनी फसल होने के कारण यह वायुमण्डलीय नत्रजन को भुमि में संचित करती है जिससे जमीन की उर्वरता बढ़ती है एवं आगामी फसल को इस नत्रजन का लाभ मिलता है। लोबिया प्रोटीन के लिहाज से एक उत्तम फसल है तथा इसकी खेती दानें, सब्जी (हरी फली), चारे एवं हरी खाद के  लिये की जाती है। कुपोषण दूर करने के लिए शाकाहारी भोजन में लोबिया का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें अन्य हरी सब्जियों की तुलना में प्रोटीन, फास्फोरस एवं...

Optimal planting geometry and fertilizer application method for drip irrigated vegetable crops फसलों की सिंचाई की विधियों में टपक सिंचाई पध्दति सर्वाधिक कुशल विधि है जिसमें जल का 80-90 प्रतिशत कुशल उपयोग होता है। इस पध्दति से सभी प्रकार की भूमि में कम समय एवं कम जल में सिंचाई की जा सकती  है। टपक सिंचाई पध्दति द्वारा सिंचाई में पौधों के सीमित नम क्षेत्र के कारण रोग की सम्भावना कम होती है तथा फसलों की पंक्तियों में खर-पतवार नहीं उग पाते हैं। सिंचाई की इस विधि का उपयोग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। सीमित जल संसाधनों और दिनों-दिन बढ़ती हुई जलावश्यकता के कारण टपक सिंचाई तकनीक सर्वाधिक उपयुक्तहै। टपक तंत्र एक...

Integrated crop disease and pest management in Papaya  पपीता एक प्रमुख उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय फल है। पपीते की  खेती गर्म एवं नम जलवायु में सफलता पूर्वक की जा सकती है। पपीता की अच्छी वृद्धि के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त पाया गया है। पपीता पकने के समय शुष्क एवं गर्म मौसम होने से फलों की मिठास बढ़ जाती है। पपीता का उपयोग कच्चे एवं पके फल के रूप में किया जाता है। कच्चे फल का उपयोग पेठा, बर्फी, खीर, रायता, सब्जी आदि बनाने के लिए किया जाता है, जबकि पके फलो से जैम, जैली, नेक्टर एवं कैंडी इत्यादि बनाये जाते हैं । क्षेत्रफल की दृष्टि से पपीता हमारे देश का पाँचवा...