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कृषि में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मिशन Nanotechnology is an emerging field of science, capable of resolving problems that are impossible to tackle with engineering and biological sciences. Nano Mission provides critical funding to competent groups (preferably from a group of Institutions) to carry out very focused research in Nanoscience and develop nanotechnology based applications aimed at delivering breakthroughs in Nano S&T and applications in a concerted manner Nano Mission (Nano Science and Technology Mission – NSTM) The Government of India launched the Nano Mission in 2007 under the Department of Science and Technology. The Ministry of Science and Technology allocated up to Rs 1000 crores to this mission to fulfill its following...

जैविक खेती के जरिए युवाओं का विकास एवं सशक्तिकरण  सर अल्बर्ट हॉवर्ड, एफएच किंग, रुडोल्फ स्टेनर और अन्य लोगों द्वारा 1900 के दशक की शुरुआत में जैविक कृषि की अवधारणाओं को विकसित किया गया था, जो मानते थे कि पशु खाद , फसलों को कवर, फसल रोटेशन, और जैविक आधारित कीट नियंत्रण। हावर्ड, भारत में एक कृषि शोधकर्ता के रूप में काम कर रहे थे, उन्होंने पारंपरिक और टिकाऊ खेती प्रथाओं से बहुत प्रेरणा प्राप्त की, जो उन्होंने वहां सामना किया और पश्चिम में उनके गोद लेने की वकालत की। इस तरह की प्रथाओं को विभिन्न अधिवक्ताओं ने आगे बढ़ाया - जैसे कि जे.आई. रोडले और उनके बेटे रॉबर्ट, 1940 और उसके...

सोयाबीन की सटीक खेती  सोयाबीन को बोनलेस मीट भी कहते है, जो कि लैग्यूम परिवार से है। इसका मूल उत्पति स्थान चीन माना जाता है। यह प्रोटीन के साथ साथ रेशे का भी उच्च स्त्रोत है। सोयाबीन से निकाले हुए तेल में कम मात्रा में शुद्ध वसा होती है। जलवायु :- सोयाबीन गर्म एवं नम जलवायु की फसल है। बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 25° सेल्सियस तथा फसल की बढोत्तरी के लिए लगभग 25-30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। सोयाबीन की अच्छी फसल के लिए वार्षिक वर्षा 60-70 सें.मी. होनी चाहिए। उन्नतशील सोयाबीन किस्में :-  एस एल 525, एस एल 744, एस एल 958, अलंकार,अंकुर, ली , पी के  262, पी के...

Air breathing fish (magur) seed production method वायु श्वासीय (मागुर) मछली सिलुरिफोर्मिस वर्ग में आता है। यह मछली भारतीय मागुर (कैट फिशेष) के नाम से जाना जाता है। यहॉ मागुर की तीन प्रजाती पायी जाती है। क्लेरिअस मागुर, क्लेरिअस गरिएपिनस, क्लेरिअस मेक्रोसिफेलस (Clarias magur, C. gariepinus, C. macrocephalus), ये मछली देरेलिक्ट पानी में पायी जाती है जिसमे घुलनशील ऑक्सीजन कम और बहुत अधीक मात्रा में कार्बनडाइ-आकसाईड, मेथेन, अमोनिया पायी जाती है। इन मछलियो मे सहायक शवसन (Accessory respiratory organ) अंग पाया जाता है इस मछलीयों कम पानी में बहुत अच्छा उत्पादन होता है। यह मछली छह से आठ माह में २०० – २५० ग्राम की हो जाती है और एक वर्ष बाद...

Emergence of weed management issues in changing climatic conditions जलवायु परिवर्तन को तापमान, वर्षा या हवा के बदलाव के रूप में परिभाषित किया जाता है, अन्य प्रभावों के साथ, जो कई दशकों (न्यूनतम 30 वर्ष) या उससे अधिक समय में होते हैं। 195 देशों में से, भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पीड़ित शीर्ष दस देशों में से एक है। जलवायु परिवर्तन का प्रसार, जनसंख्या की गतिशीलता, जीवन चक्र की अवधि और कृषि कीटों की घटना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सभी कृषि कीटों में, हमारी मुख्य चिंता खरपतवार पर है क्योंकि इससे कृषि फसल उत्पादन प्रणाली को अधिकतम लगभग 45% नुकसान होता है। खरपतवार कृषि कीटों में से एक हैं जो...

Agriculture in India, challenges and opportunities for global food security विकासशील और विकसित दोनों देशों के लिए कृषि हमेशा से एक महत्वपूर्ण स्तंभ और विकास और अर्थव्यवस्था का चालक रहा है। भारत भी, 1960 के दशक में हरित क्रांति की गति के कारण उत्पादन और उत्पादकता के मामले में कई गुना बढ़ गया है। हालांकि, अब समय आ गया है कि हम हरित क्रांति के बाद के कृषि परिदृश्य और मिट्टी, पौधे और मानव स्वास्थ्य की उभरती चिंता पर फिर से विचार करें। हमें अपनी वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक चुनौतियों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। भारत में कृषि की वर्तमान स्थिति 1.27 बिलियन की आबादी और 159.7 मिलियन हेक्टेयर भूमि...

माइक्रोग्रीन्स - आधुनिक कृषि के कार्यात्मक भोजन का एक नया वर्ग Microgreens are young vegetable greens that are approximately 1–3 inches (2.5–7.5 cm) tall. They have an aromatic flavor and concentrated nutrient content and come in a variety of colors and textures. Microgreens are considered baby plants, falling somewhere between a sprout and baby green. That said, they shouldn’t be confused with sprouts, which do not have leaves. Sprouts also have a much shorter growing cycle of 2–7 days, whereas microgreens are usually harvested 7–21 days after germination, once the plant’s first true leaves have emerged. Microgreens are more similar to baby greens in that only their stems and leaves are considered edible....

Major diseases of garlic and onion and their integrated disease management प्याज़ एवं लहसुन भारत में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसले हैं लहसुन और प्याज एक कुल की प्रजाति का पौधे माने जाते है, दुनियाभर में लहसुन और प्याज का प्रयोग व्यंजनों को अलग स्वाद देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है इनको सलाद, सब्जी, अचार या चटनी बनाने के लिए प्रयोग किया जाता हैं प्याज एवं लहसुन की खेती रबी मौसम में भी की जाती है लेकिन इनको खरीफ वर्षा ऋतु मौसम में उगाया जाता है| लहसुन को औषधीय रूप में जैसे पेट, कान तथा आंख की बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग में लाया जाता है| प्याज़ और लहसून में नुकसान...

आम में अत्यधिक ऊतक गलन, इसके कारण और प्रबंधन Mango the king of fruit occupies approximately 50% of all tropical fruits produced worldwide. Mango is growing in many countries like India, Indonesia, Brazil, China, Egypt, Mexico, Phillipines, Pakistan, Vietnam and Thialand. Mango is nutritionally rich and its pulp contains good dietary fiber, pro-vitamin A, Vitamin C and diverse polyphenols Further, India share approx. 49.62 per cent of area and nearly 42.06 per cent of world’s mango production. Moreover, mango production in Uttar Pradesh was the highest i.e. 23.85 per cent in country. Various varieties of mango are cultivated in India but Dashehari stood first in terms of choice particularly in U.P. Dashehari fruit...

राजस्थान में मूँग की उन्नत खेती  मूँग एक फलीदार फसल है जिसे मुख्य रूप से दाल के लिए प्रयोग किया जाता है। दाने के साथ-साथ फसल की पत्तियों और तने से पर्याप्त मात्रा में भूसा प्राप्त होता है, जो जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत में लगभग 308 मिलियन हेक्टेयर में मूंग की खेती की जाती है तथा इसका उत्पादन 1.31 मिलियन टन प्रति वर्ष है। मूंग की औसत उत्पादकता 4.25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। मूंग को हरी खाद के लिए भी प्रयोग किया जाता है। मूंग की जड़ों में सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को एकत्रित करते हैं जो अगली फसल के द्वारा प्रयोग की जाती है। इसे मृदा अपरदन अवरोधी तथा कैच क्रॉप के रूप में प्रयोग करते हैं। राजस्थान में मूंग खरीफ एवं...