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Importance of nutraceuticals in human health मनुष्य के जीवित रहने के लिए तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं भोजन, वस्त्र और आश्रय। इन सबमें भोजन सबसे ऊपर आता है। प्रारंभिक समय में मनुष्य जीवित रहने के लिए खाना इकट्ठा करना, शिकार और मछली पकड़ता था व बाद में खेती करने लगा। समय के परिवर्तन के साथ विभिन्न खोजों ने उन्हें खाद्य संग्राहक से उत्पादक बना दिया। अनाज के प्रसंस्करण के साथ फाइबर मुक्त अनाज पैदा करने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर बाहरी परतों को हटा देता है। इसके साथ ही अनाज की कुल खपत में भी गिरावट आई है। परिष्कृत चीनी, मांस और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि हुई है जिससे...

Gel Feed: An Innovative Approach for Ornamental Fish जैल फ़ीड विस्कोइलास्टिक पदार्थ होते हैं। और कई जैल फ़ीड का उत्पाद दुनिया भर में निर्मित होते हैं। एक जैल फ़ीड ठोस और तरल के बीच मध्यवर्ती पदार्थ का एक रूप है। और यांत्रिक कठोरता प्रदर्शित करता है।  जैल एक तरल चरण को घेरने वाली एक फर्म त्रि-आयामी संरचना से बने कोलाइड का एक रूप है। जब एक जैल (ठोस) पदार्थ से एक सोल (तरल) के रूप में परिवर्तन होता है तब जैल उत्पन्न होते हैं। ये बहुलक अणुओं से मिलकर बने होते हैं जो आपस में उलझे हुए और आणविक नेटवर्क क्रॉस-लिंक से परस्पर जुड़े हुए होते हैं। जैल फ़ीड एक पदानुक्रमित संरचना...

Effect of weather on major diseases of gram and their effective control भारत विश्व का सबसे अधिक चना (लगभग 75%) उत्पादन करने वाला देश है| सारे भारत का लगभग तीन चौथाई उत्पादन तीन राज्यों –म.प्र., उ. प्र. तथा राजस्थान में होता है| भारत में मध्यप्रदेश चने की सर्वाधिक उत्पादन (उत्पादन का 47%) करने वाला प्रदेश है| चने की फसल एक अच्छी आमदनी वाली रवी की फसल है| मध्यप्रदेश में चने की औसत उपज 864.0 kg/ha है जो देश में चने की औसत उपज से (932.0 kg/ha) और विश्व के औसत उपज (982.0 kg/ha) दोनों से कम है| चने के उत्पादकता में कमी के मुख्य कारक इसमें लगने वाले रोग तथा कीट हैं| जैविक...

गेहूँ की उन्नत किस्में एवं उत्पादन तकनीकी भारत में चावल के बाद गेंहूँ एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है जिसकी खेती शीत ऋतू में की जाती है| गेहूँ के दानों का उपयोग अनेकों प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाने में किया जाता है| इसके दानों में कार्बोहाइड्रेट (60-68%) और प्रोटीन (8-12%) मुख्य रूप से पाए जाते है| इसकी भूसी का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है| गुणवत्ता व उपयोग के आधार पर गेंहूँ को दो श्रेणियों मे विभाजित किया गया है-मृदु गेहूँ (ट्रिटिकम ऐस्टिवम) एवं कठोर गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम)। ट्रिटिकम ऐस्टिवम की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि डयूरम की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में...

Wonderful world of agricultural useful organisms, the basis of good and advanced agriculture सूक्ष्मजीवों का संसार अनदेखा, विस्मयकारी और अद्भुत हैं। नग्न आँखों से नजर न आने वाले ये जीव धरती पर जीवन की निरंतरता को बनाये रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि ये सूक्ष्मजीव कृषि के क्षेत्र में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार कि जैव-रासायनिक प्रकियाओं में सहभागी बनकर फसलों के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये सूक्ष्म जीव विभिन्न प्रकार के एंटीबायोटिक्स का स्त्राव कर अन्य रोगकारक जीवों की वृद्धि को या तो रोक देते हैं या फिर उनको मार देते है। दूसरे कुछ सूक्ष्मजीव पौधे की...

Thrips and their integrated pest management थ्रिप्स सूक्ष्म, पतले और मुलायम शरीर वाले कीड़े होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की कोशिकाओं को बेध कर रस को अंतर्ग्रहण करते हैं । कुछ थ्रिप्स प्रजातियां ऐसी होती हैं जो अन्य दूसरी थ्रिप्स प्रजातियों, घुन (माइट), मांहू (अफिड्स) जैसे कीड़ों पर अपना भोजन करती हैं । थ्रिप्स का लाभकारी पहलु यह है कि वे फूलों के परागण में सहायता करते हैं । अधिकतर, थ्रिप्स प्रजातियां कृषि कीट के रूप में पहचानी जा चुकी हैं, जो की कई महत्वपूर्ण फसलों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाती हैं। अब तक थ्रिप्स की लगभग 7,700 प्रजातियां दर्ज की गई हैं, जिसमें 1 प्रतिशत से...

जलीय कृषि में स्वदेशी तकनीकी ज्ञान की भूमिका The Indigenous technological (ITK) in aquaculture predominantly related to farm inputs has been developed by the farmers themselves, based on their experiences. Farmer’s innovation is based on their indigenous knowledge. The indigenous knowledge is the accumulated knowledge, skills and technology of the local farmer derived from the interaction of the ecosystem. The knowledge has been inherited from generation to generation. This radically changes the use of fertilizers and devised some unique right-hand thumb rule for disease diagnosis and treatment without the costly antibiotics and chemotherapeutic agents which is mostly useful for middle fish farmers. 1. Garlic and Fenugreek- As a fish attractant - Some farmers...

हिमाद्री (बीएच एस 352): उत्तरी-पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जौ की छिलका रहित प्रजाति  जौ एक महत्वपूर्ण अनाज है जो विभिन्न जलवायु और मिट्टी के लिए अनुकूल है और विभिन्न उपयोगों के लिए उपयुक्त है। जौ अनाज फसलों में चौथे स्थान में आती है और विश्व के अनाज उत्पादन में 7प्रतिशत का सहयोग देती है । भारत में उत्तरी मैदानी औरउत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती सर्दियों ( रबी ) में की जाती है । इसकी खेती देश के पर्वतीय राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू एवं कश्मीर में एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल के रूप में की जाती है। इन पहाड़ी राज्यों के अत्यधिक ऊँचाई वाले इलाकों में जौ की खेती गर्मियों में...

Finger Millet (Ragi) essential diet for today रागी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण मिलेट है। रागी  सबसे पौष्टिक और स्वस्थ अनाज में से एक है। अक्सर, आपने भी ऐसा सुना होगा की दूध के सेवन से हड्डियों को मजबूती मिलती है। साथ ही आपने यह भी सुना होगा की दूध के साथ कुछ पौष्टिक पदार्थ मिलाकर पिने से शरीर को ज्यादा मात्रा में ताकत मिलती है।  हम आज बात करेंगे रात के समय दूध में रागी मिलाकर पीने के क्या फायदे है। जैसा की आप सभी को यह बात विदित है की दूध हमारे शरीर के लिए एक अमृत वरदान से कम नहीं है...

PPR Disease in Sheep and Goats  भेड़ व बकरियां ज्यादातर समाज के कमजोर एवं गरीब वर्ग द्वारा पाली जाती है इसलिए पी.पी.आर. रोग बीमारी मुख्यतः छोटे व मध्यम वर्गीय पशुपालकों को ज्यादा प्रभावित करती है, जिसका आजीविका का मुख्य स्रोत भेड़ व बकरी पालन है। यह रोग एक विषाणु (मोरबिलि विषाणु ) जनित रोग है। इस रोग में मृत्युदर बहुत अधिक होती है। यह रोग भेड़ व बकरियों में फैलता है। भेड़ की तुलना में बकरी में पी.पी.आर. रोग अधिक होता है। यह रोग सभी उम्र व लिंग की भेड़ बकरियों को प्रभावित करता है लेकिन मेमनों में मृत्युदर बहुत अधिक होती है। यह रोग पशुओं में बहुत तेजी से फैलता है...