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Major seed borne diseases of cereal crops and their prevention बीज-जनित रोगजनक खेत में फसल अंकुर स्थापना के लिए एक गंभीर खतरा है।इसलिए फसल की विफलता में संभावित कारक के रूप में योगदान कर सकते हैं।बीज न केवल इन रोगजनकों के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुरक्षित बनाते हैं, बल्कि नए क्षेत्रों में उनके आगमन और उनके व्यापक प्रसार के लिए वाहन के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। बीज-जनित, फफूंद, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि आदि रोगजनक अनाज वाली फसलों में विनाशकारी नुकसान का कारण बन सकते हैं और इसलिए सीधे खाद्य सुरक्षा को प्रभावितकरते हैं। पौधों के संक्रमित वायवीय भागों के विपरीत, संक्रमित बीज लक्षण-रहित हो सकते हैं, जिससे उनकी पहचान असंभव हो...

कृषि फसलों के बीज उत्पादन क्षेत्र का चयन एवं प्रबंधन Seed is basic input of agriculture because it decides future in term of growth and yield of every crop. Quality seed production of agricultural crops is need of hour to increase agricultural production and to mitigate stresses to be occur in nearby future due to climate change. Use of quality seeds instead of farm-saved seeds increases production of various agricultural crops from 10 to 35% considering other factors constant. Seed production technology is a skill required programme and it also needs heavy investment of capital so to make it successful selection and management of seed production area is very critical because it...

संरक्षित खेती के तहत हाईटेक सब्जी उत्पादन Protected cultivation is the finest alternative and drudgery-free strategy for managing land and other resources more efficiently in the current context of everlasting need for vegetables and significantly shrinking land holdings. The natural environment is changed to optimal circumstances for optimum plant growth in a protected environment (greenhouse, glasshouse, or polyhouse), resulting in high-quality veggies. Greenhouses are often coated with plastic film that allows solar radiation to flow through while trapping the thermal radiation emitted by the plants inside. The CO2 generated by the plants at night is kept inside, increasing photosynthesis rates throughout the day. The humidity inside is also raised by evaporation from the...

 पोल्ट्री फीड के लिए वैकल्पिक प्रोटीन The poultry sector has experienced difficult times during the last two years because of poor feed ingredient availability and the increasing price of protein sources, a major concern nowadays and which has been further compounded by the COVID-19 pandemic. The cost of poultry feed is a major limitation, with protein sources being the most expensive ingredient added in feed formulations representing over 50% of the total production cost. The sector recently started going towards new alternative protein sources as well as sustainable sources of energy. 25-40% of the feed is based on protein sources while 50-65% is based on energy in poultry feed and it's high time...

12 Major diseases of Chickpea & their Management चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग उखेड़ा, रतुआ, एस्कोकाइटा ब्लाईट, तना गलन, सूखा जड़ गलन, आद्र जड़ गलन, ग्रे मोल्ड, अल्टरनेरिया ब्लाईट, एन्थ्रेक्नोज, स्टेमफाइलियम पत्ता धब्बा रोग, फोमा पत्ता ब्लाईट व स्टंट रोग हैं। इस लेख में इन सभी रोगों के नैदानिक लक्षण व नियंत्रण का वर्णन किया गया है। चना सबसे अधिक खेती की जाने वाली दाल की फसलों में तीसरे स्थान पर है। यह एक वार्षिक फसल है और प्रोटीन का समृद्ध स्त्रोत है। इसका वैज्ञानिक नाम सिसर एरीटिनम है। भारत चने के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है तथा कुल उत्पादन का 65 प्रतिशत (9 मिलियन टन) भारत...

Carnation - Introduction, Significance, Diseases & their Management कारनेशन की खेती के दौरान नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग उखेड़ा (फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम ), काला धब्बा रोग/ शाखा गलन (अल्टरनेरिया डायनथी ), तना गलन (राइजोक्टोनिया सोलानी ), रतुआ रोग (यूरोमाइसेस डायनथी ), जड़ गलन/ साउदर्न ब्लाईट (स्क्लेरोटियम रोल्फसई ), ग्रे मोल्ड (बोट्रीटिस सिनेरिया ), फेयरी रिंग स्पाॅट (माइकोस्फेरेला डायनथी ), और कारनेशन मोटल विषाणु हैं। इस लेख में कारनेशन के रोगों के लक्षण व प्रबधंन का वर्णन किया गया है। कारनेशन एक महत्वपूर्ण बारहमासी फूल है। यह आमतौर पर इसके वैज्ञानिक नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम डायनथस कैरीयोफिलस है। इसका यह नाम यूनानी वनस्पति शास्त्री थियोफैरास्टस ने दिया था। डायनथस शब्द दो यूनानी शब्दों से मिलकर बना...

Consuming Spiny gourd for good health कंटोला (मोमोर्डिका डायोइका) एक बारहमासी कुकुरबिटेसी कुल की लता है, जिसे आमतौर पर काकरोल, कंकोड़ा, ककोरा, पपोरा, खेक्सा, कांक्रों, चठैल, कारटोली, कंटोली, बन करौला, भात करोला, काक्सा, स्पाइनी लौकी एवं जंगली करेला आदि के नाम से जाना जाता है। यह पादप जगत में खाद्य पौधों के अनुवांशिक विविधता वाले समूहों में से एक है। इस परिवार का पौधा वन-संवेदनशील, सूखा सहिष्णु, नम एवं खराब जल निकासी वाली मिट्टी के प्रति असहिष्णु होता है। समय के साथ-साथ उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग के कारण कंटोला के उत्पादन में वृद्धि हुई है। यह फाइटोकेमिकल (अल्कलॉइड) की उपस्थिति के कारण कड़वे स्वाद के लिए जाना जाता है, तथा इनमें औषधीय...

12 Major pests and diseases of soybean and their management सोयाबीन विश्व की एक प्रमुख फसल है, यह लगभग विश्व की 25 वानस्पतिक तेल की मांग को पूरा करता है, सोयाबीन अपने उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन (38.45) और वानस्पतिक तेल के लिए जाना जाता है। भारत में भी इसका उपयोग अधिकांशतः वानस्पतिक तेल के लिए ही होता है, मध्यप्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है। देश में सोयाबीन उत्पादन में मध्यप्रदेश अग्रणी है, परंतु हाल ही के कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में मध्यप्रदेश में भारी गिरावट आयी है, जिसके प्रमुख कारणो मे मौसम की विपरीत परिस्थितियां है, जैसे फसल अवधि में अधिक वर्षा होना या बहुत कम...

कठिया (डयूरम) गेहूँ की विशेषताएं, उत्पाद एवं उन्नतशील प्रजातियाँ  भारत के लगभग सभी प्रान्तों मे गेहूँ की खेती सफलतापूर्वक की जाती है। भारत मे खेती करने के लिए मुख्य रूप मे दो तरह के गेहूँ प्रचलित है एक साधारण गेहूँ जिसको एस्टीवम कहते है और दूसरा कठिया गेहूँ जिसे डयूरम कहते है। गेहूँ के कुल उत्पादन में सामान्य गेहूँ (एस्टीवम) 95 प्रतिशत, एवं कठिया गेहूँ (डयूरम) का लगभग 4 प्रतिशत योगदान है। कठिया गेहूँ ट्रिटिकम परिवार मे दूसरे स्तर का महत्वपूर्ण गेहूँ है। गेहूँ के तीनो उप-परिवारो (एस्टीवम, डयूरम, डायकोकम) मे उत्पादन की दृष्टि से डयूरम का दूसरा स्थान है। भारतवर्ष मे कठिया गेहूँ की खेती लगभग 25 लाख हैक्टर में की...

Quality Seed Production technologies in Barley  जौ (होर्डियम वल्गेयर एल.) एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है जिसका स्थान भारत मे चावल, गेहूँ, एवं मक्का के बाद आता है। जौ का खाद्य, चारा और पोषण सुरक्षा मे बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। जौ की खेती प्रतिकूल जलवायु मे भी आसानी से की जा सकती है। रबी मौसम की यह फसल लवणीय, शुष्क मृदा मे तथा सीमान्त भूमि पर भी उगाई जा सकती है। जौ की खेती हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश उत्तराखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में करते है। जौ की चारे की श्रेष्ठ गुणवत्ता होती है, इस फसल दोबारा उगने की क्षमता के साथ साथ अनाज के रूप में पौषणिक महत्व होता...