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मेंथा (पुदीना) की उन्नत खेती मेंथा का तेल व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण योगदान रखता है। इसका व्यापक रूप से प्रयोग दवा उद्योग में किया जाता है। प्राचीन काल से ही मेंथा (पुदीना) को किचन गार्डनिंग में प्रयोग किया जाता था। प्राथमिक रूप से मेंथा के तेल में मेंथाल पाया जाता है। मेंथा के तेल का प्रयोग ज्यादातर टूथपेस्ट के स्वाद के रूप में , नहाने के साबुन में, चबाने वाली चिंगम तथा अन्य बहुत से खाद्य पदार्थों में इसका प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है, कि मेंथा का जन्म स्थान भूमध्यसागरीय क्षेत्र के आसपास से हुआ है। और वहां से यहां विभिन्न देशों में समय-समय पर पहुंचाया जाता रहा है।...

Yellow rust of wheat (Causal organism: Puccinia striiformis) पीला रतुआ रोग गेहूं के सबसे खतरनाक और विनाशकारक रोगों में से एक है। इसे धारीदार रतुआ भी कहते हैं जो पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है। पीला रतुआ फसल की उपज में शत प्रतिशत नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। इस बीमारी से उत्तर भारत में गेहूं की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है। फसल सत्र के दौरान उच्च आर्द्रता और हल्की बारिश पीला रतुआ के संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करती हैं। पौधों के विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में इस रोग के संक्रमण से अधिक हानि हो सकती है। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र जिसमें मुख्यतः पंजाब, हरियाणा,...

Biological Controller - An environmentally friendly way of managing various plant diseases वर्तमान समय मे पादप रोग के प्रबंधन मे विभिन प्रकार के जैव नियंत्रक उपयोग किए जा रहे है और इनकी भूमिका रोगो के उपचार मे बढ़ती जा रही है। इसका एक महत्व पूर्ण करना यह है कि ये  जैव नियंत्रक पर्यावरण को नुकसान नही पाहुचते है और मिट्टी कि उर्वरक क्षमता बनाए रखते है। पौधों की बीमारी वह अवस्था होती है जिसमे पौधे अपनी वास्तविक स्थिति को खो देते है परिणाम स्वरूप पौधों की आकृति बिगाड़ जाती है और उपज में कमी आ जाती है। पादप-रोग, विभिन्न प्रकार के रोगजनको (पथोजेंस) के द्वारा उत्पन्न होते है। ये रोग जनक विषाणु, जीवाणु,...

सामान्य बीमारियों के लिए प्रमुख औषधीय पौधे प्राचीन काल से ही मनुष्य सामान्य रोगों के शमन के लिए अपने दैनिक जीवन में औषधीय पौधों का प्रयोग करते आ रहा है। इस आधार पर सामान्य रोगो के चिकित्सा को सर्वसुलभ तथा सस्ता बनाया जा सकता है। अपने पूरे जीवनकल में हम इन औषधीय पौधों का उपयोग किसी न किसी रूप में करते हैं। इनमें मारक गुण काम और शोधक अधिक होता है। ये औषधीय पौधे रोगों को दबाती नहीं, वरन उखाड़ती और भागती हैं।  जीवन-शक्ति संवर्धक औषधीय पौधे हमारे आस-पास ही खेतों, जंगलों में बहुताय उपलब्ध हैं। सही औषधीय पौधे उपुक्त क्षेत्र से, उपयुक्त मौसम में एकत्र की जाए, उन्हें सही ढंग से...

जीर्ण उद्यान का कायाकल्‍प करके उत्पादकता में सुधार Fruit tree start decline with their yield and also decline of tree starts with sparse appearance, yellowing and different type foliage symptoms, undergrowth and sickly appearance, dried-up top growth with small and less number of fruits. The branches of trees start to die from the top to downwards, ultimately resulted poor quality fruits (rough surface, thick skin and less juice). Such type of decline may be seen in whole orchards, on in a single tree or patches. The fruit growers do not adopt the proper management practices in terms of plant protection, manuring, irrigation, mulching, pruning etc. and the orchards become sick. In general, canopy of...

Precision Agriculture, Present Status & Scope: A Review भारत में 328.7 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें से 182 मिलियन हेक्टेयर भूमि, भूमि क्षरण से प्रभावित होती है, 141.33 मिलियन हेक्टेयर भूमि जल के क्षरण के साथ-साथ हवा के कटाव, जल-जमाव और रासायनिक क्षरण अर्थात लवण और क्षरण के कारण प्रभावित होती है। प्रौद्योगिकी में क्रांति ने भारतीय परिवेश को बदल दिया है और साथ ही साथ खेती के लिए नई उम्मीदें पैदा की हैं। इसलिए, स्थिरता और आर्थिक दृष्टिकोण से, इन विकासशील नई तकनीकों पर काबू पाने और कृषि क्षेत्र में संसाधनों के समुचित उपयोग के साथ कुशलतापूर्वक लागू किया जाना आवश्यक है। सटीक कृषि एक ऐसी नई और अत्यधिक आशाजनक तकनीक...

जायद में मूंग का उत्पादन दलहनी फसलों में मूंग की बहुमुखी भूमिका है। इससे पौष्टिक तत्व प्रोटीन पर्याप्त होने के कारण स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मूंग के दानों में 25 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 13 प्रशित वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। इसमें वसा की मात्रा कम होती है और इसमें विटमिन बी कम्पलेक्स, कैल्शियम, खाद्य रेशा एवं पोटेशियम भरपूर होता है। मूंग की दाल से दही बडे, हल्वा, लड्डू, खिचड़ी, नमकीन, चीला, पकोडे़ आदि बनाये जाते हैं। बीमार होने पर डाॅक्टर मूंग की खिचड़ी या मूंग की दाल खाने का परामर्श देते हैं क्योकि यह जल्दी पच जाती है। फली तोड़ने के बाद फसलों...

मसूर की उन्नतशील खेती दलहनी वर्ग में मसूर सबसे प्राचीनतम एवं महत्वपूर्ण फसल है। प्रचलित दालों में सर्वाधिक पौष्टिक होने के साथ-साथ इस दाल को खाने से पेट के विकार समाप्त हो जाते है यानि सेहत के लिए फायदेमंद है। मसूर के 100 ग्राम दाने में औसतन 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेड, 3.2 मिग्रा. रेशा, 38 मिग्रा0, कैल्शियम, 7 मिग्रा0 लोहा, 0.21 मिग्रा, राइबोफ्लोविन, 0.51 मिग्रा0 थाईमिन तथा 4.8 मिग्रा0 नियासिन पाया जाता है अर्थात मानव जीवन के लिए आवश्यक बहुत से खनिज लवण और विटामिन्स से यह परिपूर्ण दाल है। रोगियों के लिए मसूर की दाल अत्यन्त लाभप्रद मानी जाती है क्यांेकि यह अत्यन्त पाचक है। दाल...

सब्‍जी माइक्रोग्रीनस - पोषण का एक संभावित स्रोत Microgreens are young and tender edible seedlings produced using the seeds of different species of vegetables, herbaceous plants, aromatic herbs and wild edible plants (Di Gioia and Santamaria 2015a, b). The edible portion constitutes single stem, the cotyledon leaves and, often, the emerging first true leave (Di Gioia et al. 2017). A few days of photosynthesis of microgreen is known to provide nearly 4-9 times more nutrients including antioxidants, vitamins and minerals than their mature counterparts. Microgreens first appeared in the menus of the chefs of San Francisco, in California, at the beginning of the 1980s. By geography, North America contribute ~50% of market share in...

सरसो में खरपतवार प्रबंधन  तिलहनी फसलों में राई-सरसों का मूंगफली के बाद दूसरा स्थान है। देश में राई-सरसों की खेती मुख्यत: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, असम, गुजरात, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों में की जाती है I इस समय कुल खाद्य तेल उत्पादन का लगभग एक तिहाई तेल राई-सरसों द्वारा प्राप्त होता है इसकी खेती हमारे देश में लगभग 62.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है जिससे लगभग 59 लाख टन उत्पादन होता है।  खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्व, नमी, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके राई-सरसों की पैदावार एवं तेल प्रतिशत में कमी कर देते है। राई-सरसों की पैदावार में खरपतवारों की संख्या...