Author: rjwhiteclubs@gmail.com

Importance of Soil Testing and Method of Soil Sampling in Agricultural and Horticultural Crops जिस प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भिन्न-भिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार पौधों के संपूर्ण विकास हेतु कम से कम 17 किस्म के पोषक तत्व आवश्यक हैं इनमें से गैर खनिज तत्व पौधे हवा और पानी से स्वयं लेते हैं लेकिन शेष 14 तत्व पौधे जड़ों द्वारा मिट्टी से ही प्राप्त करते हैं। पौधों के पोषक तत्‍वों को 4 समुहों मे बांटा जा सकता है। गैर खनिज पोषक तत्व - कार्बन, हाईड्रोजन और ऑक्सीजन। प्रधान खनिज पोषक तत्व - नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश। गौण खनिज पोषक तत्व - कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर। सूक्ष्म पोषक तत्व - लोहा,...

उन्नत तकनीक से गुणवतायुक्त फील्ड मटर की खेती मटर (पाइसम सटाइवम उप-प्रजाति अरवेंस एल.) की खेती विभिन्न उपयोग के आधार पर की जाती हैं जैसे सब्जी, दाल व बीज के लिये इसमें फील्ड मटर की खेती मुख्यत दाल व बीज के लिये की जाती हैं | भारत में 7.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर 8.3 लाख टन मटर का उत्पादन होता हैं, राजस्थान में इसका क्षेत्र 2.6 हजार हेक्टेयर में 4.7 हजार टन पैदावार होती हैं | रबी मौसम में दलहनी फसलों में इसका प्रमुख स्थान हैं, ये केवल प्रोटीन का ही अच्छा स्त्रोत नहीं बल्कि इसमें विटामिन्स, फोस्फोरस और लोहा भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं | दाल मटर का प्रयोग...

ढेलेदार त्वचा रोग (एलएसडी): हजारों डेयरी किसानों के बीच प्रसंगि‍क परेशानी  The viral lumpy skin disease (LSD) has spread to cattle and buffalo in about a dozen big Indian states triggering concerns among thousands of dairy farmers. It was first reported from Mayurbhanj, Odisha in August 2019,” said Dilip Rath (Chairman, NDDB) but now already been reported in many states of our country such as Karnataka, West Bengal, Chhattisgarh, Jharkhand, Assam, Maharashtra, Madhya Pradesh, Kerala, Tamil Nadu, Telangana and Andhra Pradesh. It is still not clear how many animals have been infected so far in the country. After the arrival of monsoon in India, the level of humidity become very high during...

जौ उत्पादन की आधुनिक तकनीकियाँ भारत में जौ की खेती प्राचीनतम काल से की जा रही है। भारत के उत्तर पश्चिमी एवं पूर्वी मैदानी क्षेत्रों की जौ एक महत्वपूर्ण रबी फसल है। वर्ष 2019-20 के दौरान भारत में जौ का 16.9 लाख टन उत्पादन 6.20 लाख हैक्टर भूमि पर 26.17 किलोग्राम/हैक्टर उत्पादकता के साथ किया गया। प्राचीन काल से जौ का उपयोग मनुष्य के खाद्य पदार्थों (आटा, दलिया, सत्तू व पेय पदार्थ), पशु आहार एवं इसके अर्क व सीरप का प्रयोग व्यावसायिक रूप से तैयार किए गए खाद्य एवं मादक पेय पदार्थों में स्वाद, रंग या मिठास जोड़ने के लिए किया जाता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर जौ को औषधीय रूप में...

Red chilli: Harvest and Post Harvest Handling भारत मिर्च का विश्व में सबसे बड़ा निर्माता एवं उपभोक्ता है। इसका योगदान वैश्विक उत्पादन का लगभग २५ प्रतिशत है। इसकी खेती भारत के विभिन्न भागों में होती है और यह सालभर उपलब्ध रहता है। इसकी तुड़ाई ज्यादातर दिसंबर से मार्च तक होती है तथा इसकी आपूर्ति फरवरी से अप्रैल तक चरम पर होती है। इसके रोपाई का मुख्य समय खरीफ का मौसम है।  लाल मिर्च की तुड़ाई: लाल मिर्च की तुड़ाई सवेरे करनी चाहिए.  बारिश या बारिश के पश्चात् तुड़ाई से बचना चाहिए. तुड़ाई के समय फलों के डंठल को मजबूती से पकड़ कर ऊपर के तरफ खींचना चाहिए. इससे फलों का टूटना बचाया जा सकता...

जैवशाकनाशी:  जैविक कृषि में खरपतवार प्नबंधन हेतू उपकरण   In irrigated agriculture, weed control through chemical herbicides, creates spray drift hazards and adversely affects the environment. Besides, pesticide residues (herbicides) in food commodities, directly or indirectly affect human health. These lead to the search for an alternate method of weed management, which is eco-friendly. In this regard the biological approach is gaining momentum. Utilization of plant pathogens for weed control was first reported in the early 1900s, but the concept of using bioherbicides to control weeds attracted wide interest among weed scientists and plant pathologists after the Second World War. The earliest experiments simply involved fungus Fusarium oxysporum against prickly pear cactus (Opuntia...

Increase dietary quality with nutritious Samai or barnyard millet वर्तमान समय में जहाँ एक तरफ कोविड-19 महामारी अपने पैर पसारती जा रही है वहीं दूसरी तरफ लोग जीवन शैली संबंधी बीमारीयों जैसे - मधुमेह, मोटापा, हृद्यघात, ब्लडप्रेशर आदि से जूझ रहे हैं. अत: इनसे बचने हेतु उत्तम गुणवत्ता युक्त आहार का सेवन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. आहार की गुणवत्ता विभिन्न प्रकार के पोष्टिक खाद्य पदार्थो का समावेश द्वारा बढ़ाई जा सकती है. सांवा या सामा या सांवक के चावल (sanwa rice) जिसे अंग्रेजी में बार्नयार्ड मिलेट (barnyard millet) नाम से जाना जाता है, पोष्टिकता से भरपूर एक छोटा मिलेट (उपेक्षित अनाज) है. इसमें पर्याप्त प्रोटीन, उच्च फाइबर, बी-विटामिन एवं उपयोगी मिनरल्स पाए है....

गौंवंश ब्रुसेलोसिस: भारत में संक्रामक गर्भपात की व्‍यापकता Brucellosis is one of the most common but often neglected zoonotic diseases in the India. The disease occurs worldwide, but in some countries, the disease is often underreported and there is little or no control, which leads to major health, economic and livelihood burdens. Despite its brutal impact on economic loss, it is also associated with high morbidity, both for humans and animals in developing countries like India. Brucellosis is a contagious, costly disease of ruminant (E.g. cattle, bison and cervids) animals that also affects humans. Although brucellosis can attack other animals, its main threat is to cattle, bison, cervids (E.g. elk and deer),...

कीवी फल की मुख्य प्रजातियां 1. एबट - यह एक अगेती किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के तथा इनका औसत वजन 40-50 ग्राम होता है। 2. एलिसन - इसके फल पतले और लंबे होते हैं जिनमें खट्टापन जरा ज्यादा होता है। 3. ब्रूनो - इसके फलों का आकार मध्यम एवं रंग भूरा होता है। फलों में अम्लता कम होती है तथा इस प्रजाति को अपेक्षाकृत कम तापमान की आवश्यकता होती है। 4. हेवर्ड - इसके फल ज्यादा आकर्षक दिखते हैं तथा इन्हें ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। इसमें घुलनशील शर्करा 14% तक होती है जो अन्य प्रजातियों से काफी अधिक है। कम ताप वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र इसके लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रजाति...

परवल या पॉईटि‍ड गोड की उन्‍नत कि‍स्‍में। परवल की कि‍स्‍में :  परवल की प्रमुख उन्नतशील किस्मे निम्नवत है  किस्मे          विशेषता एफ. पी- 1 इसके फल गोल एवं हरे रंग के होते है, तथा यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश एवं बिहार में उगाई जाती है | एफ. पी- 3 इस प्रजाति के फल पर्वल्याकार होते है तथा इनपर हरे रंग की धारियां होती है | तथा ये पूर्वी एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त प्रजाती है | एफ. पी- 4 इस प्रजाती के फल हलके हरे रंग के एवं पर्वल्याकार होते है, तथा उसर भूमी के लिए उपयुक्त किस्म है, प्रति हेक्टेयर 100-110 कुंतल उपज प्रदान करती है | राजेन्द्र परवल-1 यह किस्म मुख्या रूप से बिहार के दियारा क्षेत्र...