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ड्रैगन फ्रूट: स्वास्थ्य लाभ और खेती The dragon fruit commonly refers as Pithaya, ‘wonderous Fruit’ is to ring in a revolution in the Indian horticulture scenario. In the last few years fruit has become very popular among farmers as well as consumers due to its enormous health benefits. The fruit originally native to Central America and extensively cultivated around the world including Thailand, Malaysia, Vietnam, Sri Lanka, Bangladesh and now knocking at our door in India. The tree belongs to the genus hylocereus and a cactus vine by nature. The tree grows fast and requires a support system (a vertical pole) to grow vertically and a ring-like umbrella structure to supports its hanging...

Motivating and Attracting Youth in Agriculture Entrepreneurship भारत मे 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं की जनसंख्या लगभग पचास प्रतिशत है और 15 से 29 वर्ष के युवाओं का भारत के सकल राष्ट्रीय आय (GNI) में योगदान लगभग 34% है। कृषि गतिविधियों में उनकी भागीदारी और भी बढ़ाने और रचनात्मक रूप से उन्हें संलग्न करके इस समूह के योगदान को और अधिक बढ़ाने की एक बड़ी क्षमता मौजूद है । भारत सरकार ने इस महत्वपूर्ण समूह पर ध्यान दिया है, जिसे राष्ट्र निर्माण में लगाया जा सकता है, यदि वे कौशल प्रशिक्षण पाकर और कौशल उन्मुख नौकरियों में संलग्न हो सकें। ICAR ने 2015-16 में युवाओं को आकर्षित करने और कृषि में बने...

Increasing Incidence of Tick transmitted Diseases In Eastern Region of India पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार एवं झारखंड राज्य शामिल हैं । इन सभी राज्यों में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र, आजीवि‍का का एक महत्वपूर्ण माध्यम है । इन राज्यों में पशुपालन का भी बहुत महत्व है। किलनी तथा मच्छर-मक्खी को सक्रिय रहने एवम् बीमारियों के प्रसार के लिए कम से कम 85% आर्द्रता तथा 7°C  से अधिक तापमान वाले जलवायु के इलाकों की आवश्यकता होती है। पूर्वी भारत एक उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला क्षेत्र है जिसके कारण यहां किलनी से प्रसारित बीमारियों का मवेशियों में प्रकोप बढ़ता जा रहा है। पूर्वी भारत की  बनस्पतियाँ (नम पर्णपाती वन) भी इन सन्धिपाद की वृद्धि...

सब्जी फसलों में आनुवांशिक विविधता का दोहन हेतु भ्रूण बचाव तकनीक  आधुनिक युग में बढ़ते यातायात के साधन एवं औद्योगिकरण के फलस्वरुप वातावरण प्रदूषण काफी बढ़ा है। कृषि मे विशेषकर सब्जी फसलों में रासायनिक कीटनाशकों, उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा व मानव स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा है। इस स्थिति में आवश्यक है कि ऐसी तकनीकी व किस्मों को विकसित किया  जाये जिसे किसान अपनाकर कम लागत में स्वस्थ्य उत्पादन के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य में भी वृद्धि कर सकें। सब्जी फसलें आनुवंशिक विविधता की दृष्टि से काफी सम्पन्न है। जाति उद्भव के दौरान एक सब्जी फसल उसी परिवार या वंश की सब्जी फसल से भिन्नता के साथ-साथ कुछ समानता भी दर्शाती...

Pig rearing why and how? वर्तमान में शूकर पालन पशुधन उद्यमियों के लिए एक उभरता हुआ लाभदायक विकल्प है। व्यावसायिक शूकर पालन को बढ़ावा देने के लिए , विद्यार्थियों, पशु-चिकित्सकों, विभिन्न विकास संगठनों और उद्यमियों को वैज्ञानिक ज्ञान एवं कौशल प्रदान  करना है शूकर की नस्लें, उनके आवास, आहार, प्रजनन, रख-रखाव और स्वास्थ्य प्रबन्धन की महत्वपूर्ण जानकारी  एवं शूकर पालन प्रोजेक्ट के बारे में आर्थिक विश्लेषण एवं मूल्यांकन की जानकारी भी प्राप्त करना महत्वपूर्ण है शूकर पालन कम कीमत पर , कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय साबित हो सकता हैं, शूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं| इस पशु को पालने का लाभ...

जैविक खेती में जैव उर्वरकों की भूमिका जैविक कृषि एक उत्पादन प्रणाली है जो मिट्टी, पारिस्थितिक तंत्र और लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखती है। यह पारिस्थितिक प्रक्रियाओं, जैव विविधता और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल चक्रों पर निर्भर करता है। जैव उर्वरक प्राकृतिक खाद हैं जिसमें जीवाणुओं, शैवाल के सूक्ष्म जीवाणु , बीजाणु के रूप में रहते हैं। अकेले कवक या उनका संयोजन पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि करते हैं। कृषि में जैव उर्वरक की भूमिका विशेष महत्व रखती है, विशेष रूप से वर्तमान में रासायनिक उर्वरक की बढ़ती लागत और मिट्टी के स्वास्थ्य पर उनके खतरनाक प्रभावों के संदर्भ में। आधुनिक कृषि,  संकर बीज और उच्च उपज देने वाली...

शीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाले दस प्रमुख औषधीय पोधें  भारतवर्ष में जड़ी-बूटियों का इतिहास बहुत पुराना है। हमारे ग्रन्थों, वेदों व पुराणों में इनका विस्तृत वर्णन है। अनादिकाल से हम वनौषधियों के लिए वनों पर निर्भर रहे हैं। जड़ी-बूटियां कई लोगों की आजीविका का वैकल्पिक आधार भी रही हैं। जलवायु, मिट्टी व तापमान में विविधता के कारण औषधीय महत्व की अधिकांश जड़ी-बूटियां भारतवर्ष में पाई जाती हैं। शीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाले मुख्य जड़ी-बूटी पौधों की विस्तृत जानकारी नीचे दी जा रही है। 1. चिरायता  वानस्पतिक नाम: स्वर्शिया चिरायता (Swertia chirayita) प्रचलित नाम: चिरायता, चिराता, अर्धतिक्ता, किरातिक्त नाढीतिक्ता                   औषधीय महत्व: चिरायता भारत वर्ष का एक बहुमूल्य औषधीय पौधा है तथा ज्वर रोग में इसके...

 Soil and Groundwater Management to Improve Agriculture भारत की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु कृषि पर ही निर्भर है। कृषि की सकल घरेलू उत्पादन में भागीदारी लगभग 22 प्रतिशत है। किसानों और मजदूरों को आजीविका प्रदान करने के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है। कृषि उत्पादकता कई कारकों पर निर्भर करती है। इनमें कृषि इनपुट्स, जैसे जमीन, पानी, बीज एवं उर्वरकों की उपलब्धता और गुणवत्ता, कृषि ऋण एवं फसल बीमा की सुविधा, कृषि उत्पाद के लिए लाभकारी मूल्यों का आश्वासन, और स्टोरेज एवं मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर इत्यादि शामिल हैं। पिछले कुछ दशकों में खाद्य उत्पादन का स्तर बढ़ा है लेकिन इसके साथ कई समस्याएं भी खड़ी हुई हैं जैसे...