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पशुओ में ऋणात्मक और घनात्मक आहार का महत्त्व खनिज, हड्डी के निर्माण से लेकर इलेक्ट्रोलाइट संतुलन तक सभी जैविक प्रक्रियाओं में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं। खनिज, घनायन और ऋणायन के रूप में आहार में पाये जाते हैं और आहार में खनिजों का सही अनुपात, विशेष रूप से जानवरों के उत्पादन के लिए घनायन और ऋणायन के बीच संतुलन आवश्यक होता है। जानवरों द्वारा ग्रहण किए गए खनिज आयन तेजी से परिसंचरण (रक्त) में पहुच जाते हैं और रक्त के समग्र पीएच को प्रभावित करते हैं। घनायन रक्त को थोड़ा क्षारीय करते हैं (पीएच को बढ़ाते हैं), जबकि ऋणायन रक्त को थोड़ा अम्लीय करते हैं (पीएच में कमी)। पशु...

Blue Green Algae Generated Biofertilizer भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रखने तथा इसे बढ़ाने के लिए एक जैव उर्वरक जो नील हरित शैवालों के संवर्धन से बनाया जाता है अति महत्वपूर्ण है। यह जैव उर्वरक खरीफ सीजन में 20-25 कि.ग्रा. नेत्रजन प्रति हे. पैदा करता है तथा मिट्टी के स्वास्थ्य को ठीक रखता है। इसके अतिरिक्त भूमि के पानी संग्रह की क्षमता बढ़ाना एवं कई आवश्यक तत्व पौधों को उपलब्ध कराता है। भूमि के पी.एच. को एक समान बनाये रखने में मदद करता है तथा अनावश्यक खरपतवारों को पनपने से रोकता है। इसे जैव उर्वरक के लगातार प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है तथा धान एवं गेहूं की उपज...

ग्वार की वैज्ञानिक खेती तकनीक दलहन फसलों में ग्वार (क्लस्टर बीन) का विशेष योगदान है। यह गोंद (गम) और अन्य उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण औद्योगिक फसल है। ग्वांर का उपयोग हरे चारे एंव इसकी कच्ची फलियों को सब्जी के रूप में किया जाता है। इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में की जाती है। भारत में राजस्थान ग्वार के क्षेत्र और उत्पादन में पहले स्थान पर है। ग्वार से ग्वार गम का उत्पादन होता है और जिसका निर्यात किया जाता है। इसके बीजों में 18 प्रतिशत प्रोटीन, 32 प्रतिशत फाइबर और भ्रूणपोष में लगभग 30-33 प्रतिशत गम होता है । खेत का चुनाव एंव तैयारी ग्वार की खेती मध्यम से हल्की बनावट...

बागवानी फसलों के शेल्फ जीवन विस्तार के लिए बायोडिग्रेडेबल नैनो फॉर्म्यूलेशन Horticulture crops play important role in economic development of the country and it contributes 30.4 per cent to GDP of agriculture. But the post-harvest loss reduced the quality of commodities, in India the estimated loss ranges from 14-36% in fruits and 10-25% in vegetables. Every year we lost approx 1 lakh crore Rs due to post harvest losses in horticulture crops. Ripened fruits are terribly spoil and prone to transport harm which consequently leads to loss of quality and quantity. This is particularly common in developing countries because of poor post-harvest handling systems, storage facilities and transportation. Various factors responsible for post-harvest losses can be categorized into two major categories. First, pre harvest...

बायोएजेंट ट्राइकोडर्मा: वैश्विक बदलते परिवेश में एक उम्मीद  Over the decades, rampant use of fungicides in plant disease management has led to irreparable damage to environment and also a health hazard. Therefore, the need of the hour is to accelerate adoption of sustainable agricultural practices that have minimal adversarial effect on environment, humans and other living beings. In this context, adoption of organic agricultural practices that excludes application of the chemicals in agriculture is suggested to reduce the cost of cultivation thereby enhancing profitability of the agricultural produce and could play a great role in doubling of farmers income in India by 2022. Among the available disease management strategies, microbial fungicides are considered...

Management of Whitegrub in Kharif Crops सफ़ेद लट (whitegrub) खरीफ की फसलों जैसे मूंगफली, मूंग, मोठ, बाजरा, सब्जियों इत्यादि पौधों की जड़ो को काटकर हानि पहुँचती है। ये मूंगफली जैसी मुसला जड़ो वाली फसलों में,  बाजरा जैसे झकड़ा जड़ वाली फसलों की अपेक्षा अधिक नुकसान करती है । राजस्थान के हल्के बालू मिटटी वाले क्षेत्रो में होलोट्राइकिया नामक भृंगो की सफ़ेद लटें अत्यधिक हानि करती है । सफ़ेद लट का जीवन चक्र :  राजस्थान के हल्के बालू मिटटी वाले क्षेत्रो में होलोट्राइकिया नामक भृंगो की सफ़ेद लटें एक वर्ष में केवल एक ही पीढ़ी पूरी करती है । मानसून अथवा मानसून पूर्व की पहली अच्छी वर्षा के पश्चात इस किट के भृंग सांयकाल गोधूलि वेला के...

बाजरे की वैज्ञानिक तरीके से खेतीे बाजरा गरीब का भोजन कहा जाता है। मोटे दाने वाली खाद्यान फसलों में बाजरे का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खेती दाने व चारे दोनो के लिए कि जाती है। शुष्क व कम वर्षा वाले क्षैत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है। और यह राजस्थान की मुख्य फसल है। बाजरे का 90 प्रतिशत क्षैत्रफल राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उतर प्रदेश, एवं हरियाणा राज्यों के अन्तर्गत आता है। बाजरे के दानों में लगभग 12.4 प्रतिशत नमी, 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट एवं 27.0 प्रतिशत लवण होते है। खेत कि तैयारी:- खेत की तैयारी फसल की समय से बुवाई सुनिश्चित करती है। खेत की तैयारी इस प्रकार...

7 major diseases of Paddy and their management हमारे देश की सबसे प्रमुख धान्य फसल धान है। धान की फसल पर अनेक तरह की समस्याएँ आ सकती हैं, रोग आक्रमण कर सकते हैं तथा इन रोगों के रोगकारक जीव की प्रकृति में विभिन्नता होने के कारण इनकी रोकथाम के उपाय भी भिन्न-भिन्न होते हैं। अतएवः रोगों का निदान एवं उसके प्रबन्धन के विषय में जानकारी अत्यावश्यक है। सबसे पहले हमें स्वस्थ बीज की बात करनी चाहिए क्योंकि अगर किसान भाइयों के पास स्वस्थ बीज उपलब्ध हो तो आधी समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं। अगर आपके पास स्वस्थ बीज की उपलब्धता नहीं है तो आप बीजोपचार करके आधी से अधिक समस्याओं से...

Seed treatment: the basis of prosper farmers हमारेे देश में ऐसे किसानों की संख्या ज्यादा है जिनके पास छोटे-छोटे खेत है और प्रायः खेती ही उनके जीवन-यापन का प्रमुख साधन है। आधुनिक समय मे खाधान्न की मांग बढ़ती जा रही है तथा आपूर्ति के संसाधन घटते जा रहे है।  विज्ञान के नवीन उपकरणों, तकनीकों तथा प्रयोगों से किसानों की स्थिति मे सुधार हुआ है। नवीन तकनीकों के प्रयोग करने से उनकी जीवन शैली में तीव्र बदलाव आये है। इन्ही में से एक तकनीक बीचोपचार है। जिसको सुनियोजित तरीके से अपनाने से खेती की उत्पादकता बढ़ सकती है। बीजोपचार एक सस्ती तथा सरल तकनीक है, जिसे करने से किसान भाई बीज जनित एवं...

Bakanae disease of rice in basmati rice: Symptoms and control measures बकाने रोग, धान (ओरायजा सटाइवा एल.) की फसल के उभरते हुए रोगों में से एक है। भारत में यह रोग रोग पहली बार थॉमस (1931) द्वारा सूचित किया गया था। यह रोग देश के विभिन्न भागों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, असम, महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ओडिशा आदि से रिपोर्ट किया गया है। भारत में बकाने रोग पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंण्ड में अधिक गंभीर सूचित किया गया है जहाँ बासमती की किस्में उगाई जाती हैं। जापानी भाषा में ‘बकाने’ का शाब्दिक अर्थ बुरी या बेवकूफीपूर्ण पौध होता है जो इस रोग के विशिष्ट लक्षण, सामान्य से...