Author: rjwhiteclubs@gmail.com

फलदार बागीचे की स्थापना एवं प्रबंधन बागबानी एक दीर्घकालीन निवेश है अतः एक फलदार बागीचे की स्थापना एवं प्रबंधन बहुत ही सावधानीपूर्वक और योजनाबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए। अधिकतम पैदावार और ज्यादा से ज्यादा लाभ सुनिश्चित करने हेतु बागीचे के लिए उपयुक्त स्थान का चयन, सही रोपण प्रणाली, उचित रोपण दूरी, पौधों की अच्छी किस्मों का निर्धारण, नर्सरी से स्वस्थ पौधों का चुनाव, पौधों की देखभाल, फसल की मार्केटिंग इत्यादि बहुत से महत्वपूर्ण कारक हैं। बागीचे के लिए उपयुक्त भूमि और स्थान का चुनाव एक अच्छा बागीचा लगाने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहां पाला कम पड़े और जो प्राकृतिक विपदाओं व जंगली जानवरों से सुरक्षित हो। स्थान ऐसा हो...

बागवानी फसलों में कीटनाशकों के दुष्प्रभाव को कम करना - एक समाधान उद्यानिक फसलों में कीटनाशी रसायनों के अधिक प्रयोग से कई तरह की आर्थिक, पर्यावरणीय एवं स्वास्थ संबंधी समस्यायें सामने आ रही हैं। इन फसलों में फसल सुंरक्षा के लिए रसायनिक कीटनाशियों पर आवश्यकता से आधिक निर्भरता के कारण खेती के लागत खर्च बढ़ते चले जा रहे है जिससे किसानों का आर्थिक मुनाफा कम हो रहा है। कीटनाशकों के अनियमित एवं अनियंत्रित प्रयोग के कारण कई तरह के पर्यावरणीय समस्यायें उत्पन्न हो रही है यथा हानिकारक कीटाे के कीटनाशकोे के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना, हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं एवं परभक्षी जीव जन्तुओं की संख्या में कमी होना एवं...

रबी मौसम में जलजमाव वाले क्षेत्रों में बोरो धान एक विकल्प  धान भोजन का एक प्रमुख फसल के साथ.साथ कार्बोहाड्रेट का मुख्य श्रोन्न है जिससे मनुष्य अपने भोजन का अधिकांश भाग पूरा करता है। धान की खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है परन्तु इस मौसम में कीट-पतंग, बीमारीयों तथा मौसमी खरपतवार का प्रकोप होने के कारण फसल की वांछित उपज प्राप्त नहीं होती है। इसके बिपरीत रबी मौसम की बोरो धान  में लगने बाली कीट-पतंग, बीमारियाँ तथा मौसमी खरपतवार कम लगने के साथ-साथ सूर्य की अबधि खरीफ मौसम की तुलना में प्रति इकाई अधिक होती है।  परिणमतः प्रति पौधों में किलों की संख्या अधिक होती है जिसके कारण प्रति वर्गमीटर...

रासायनिक उर्वरको के उपयोग से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का अल्पीकरण भारत में बढ़ती आबादी के लिए उर्वरक का बढ़ता उपयोग दोगुना कृषि उत्पादन के लिए अपरिहार्य हो गया है। हालांकिए कृषि में उर्वरक की बढ़ती खपत भी पर्यावरण प्रदूषण के लिए चिंता का कारण है। पर्यावरण पर उर्वरक उपयोग के विभिन्न प्रभाव ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, भूजल में नाइट्रेट प्रदूषणए कृषि भूमि में भारी धातु का निर्माण और यूट्रोफिकेशन हैं। विभिन्न पर्यावरणीय प्रभावों के बीच, उर्वरक उपयोग से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वैश्विक और भारतीय जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण ड्राइवरों में से एक है। वायुमण्डलीय ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती हुई सघनता के कारण जलवायु परिवर्तन होना निष्चित है।...

फलदार पौधों में पत्ती विश्लेषण द्वारा पोषक तत्व प्रबंधन फलदार बागीचों के विभिन्न खण्ड (ब्लाक) या खेत फल उत्पादकता में प्राय: एक दूसरे से भिन्न होते हैं। इसके बहुत से कारण हैं जैसे कि पौधों की किस्म और आयु, भूमि की किस्म एवं उसमें विद्यमान पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा इत्यादि में असमानता होना। पौधों के समुचित विकास हेतु इनमें पोषक तत्वों की न्यूनतम एंव संतुलित मात्रा का होना आवश्यक है जो कि काफी हद तक भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। भूमि में उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग पौधों में पोषण संबंधी असंतुलन पैदा करता है जो फसल की पैदावार और फलों की गुणवत्ता को गंभीर रूप से...

Different types of organic fertilizer for healthy soil and more crop production वर्तमान में भारत की जनसंख्या 1.35 अरब (विश्व बैंक, 2018) है तथा खाद्यान्न उत्पादन 285 मिलियन टन (2017-18) है। एक अनुमान के अनुसार भारत की जनसंख्या 2050 तक 1.67 अरब हो जायेगी। भारत की इस बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने के लिए खाद्यान्न उत्पादन को 2050 तक 333 मिलियन टन तक बड़ाना पडेगा। बडती हुई खाद्यान्न माॅग की पुर्ति के लिए अधिक से अधिक खाद्यान्न उत्पादन के प्रयास कि‍ए जा रहे है। खाद्यान्न उत्पादन बढाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध  प्रयोग किया जा रहा है जिससे प्रकृति में उपस्थित जैविक व अजैविक चक्र प्रभावित हो रहे...

13 Major Anola Disease and their Management आँवला में लगने वाले प्रमुख रोग टहनी झुलसा, पत्ती धब्बा रोग, रतुआ, सूटी मोल्ड, लाइकेन, ब्लू मोल्ड, श्यामवर्ण, गीली सड़न, काली गीली सड़न, फोमा फल सड़न रोग, निग्रोस्पोरा फल सड़न रोग , पेस्टालोसिआ फल सड़न रोग व इंटरनल नेक्रोसिस हैं। जिसके रोकथाम क उपाय संक्षेप में इस लेख में उलेखित हैं। यह वृक्ष हिमालय में 1350 मीटर तक आरोही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाया जाता हैं और पुरे भारत वर्ष में उगाया जाता हैं। यह वृक्ष यूफोर्बीआयसी कुल का सदस्य हैं जिसे इंडियन ग्रूज़ वेर्री नाम से भी जाना जाता हैं। संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में इण्डियन गूजबेरी तथा लैटिन में...

फलदार पौधों में प्रसार तकनीक Fruit plants, as basic input have vital importance in the development of fruit industry. However, long gestation period of fruit crops calls for utmost care in selection of planting material and adoption of right technology for its mass multiplication, as any mistake committed during the initial establishment of an orchard may result in huge economic loss at a later stage. In commercial fruit production, planting material should be of high quality, uniform and true to the type. Most of the fruit plants do not produce true to the type progeny when propagated through seed. Since fruit crops are cross pollinated, the progeny produced through seeds are not exactly...