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How to choose the right water pump for domestic use वर्षों से पानी के पंप हमारे आवासीय सेटअप का एक अभिन्न हिस्सा साबित हुए हैं। इन शक्तिशाली और कुशल उपकरणों की वजह से जमीन के स्तर से पानी को ऊंची इमारतों की ऊपरी मंजिलों तक ले जाना बिना किसी विशेष मानवीय हस्तक्षेप के संभव हो गया है। भूमिगत स्रोतों से पानी निकालने और इसे ओवरहेड टैंक में स्थानांतरित करने के लिए पानी के पंपों का उपयोग ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बढ़ रहा है। एक कुशल पानी का पंप खरीदना न केवल आपको अधिक दक्षता और अच्छा प्रदर्शन प्राप्त करने में मदद कर सकता है, बल्कि ऊर्जा की बचत भी कर सकता...

गागर निम्बू की खेती गागर निम्बू जिसे अंग्रेजी में पोमेलो कहा जाता है, तथा जिसका वैज्ञानिक नाम साइट्रस मैक्सिमा है, साइट्रस जाति का सबसे बड़ा फल है| साइट्रस फलों का एक बड़ा जाति है| जिसमे कई प्रमुख फलों कि प्रजाति शामिल हैं, उनमे से संतर और गागर निम्बू प्रमुख प्रजाति हैं| जीन अनुक्रम के आधार पर संतरा (साइट्रस चीनेंसिस),  गागर निम्बू (साइट्रस मक्सिमा) तथा मैंडरिन (साइट्रस रेटिकुलाटा) के बीच का एक संकर है| इसकी संरचना मूलतः संतरा जैसी होती है जो पूर्णतः पक जाने पर बाहरी छिलका पीला तथा अन्दर की पेशियां गुलाबी,लाल अथवा उजाले रंग की होती हैं| परन्तु इसका बाहरी छिलका संतरा की तुलना में मोटा होता है और पेशियां...

Protection of Sugarcane Crop from Fall Armyworm  फाॅल आर्मी वर्म नामक कीटका बिहार में कुछ दिनों से मक्के की फसल पर प्रकोप देखने को मिल रहा है। साथ ही यह भी सम्भावना है कि मक्का फसल की कटाई के बाद भोजन की अनुउपलब्धता में गन्ने की फसल पर इसका प्रकोप हो सकता है। अतः किसान भाईयों (विशेषकर गन्ना उत्पादकों) से  अनुरोध है कि गन्ना फसल की लगातार निगरानी करते रहें जिससे समय रहते आवश्यक कदम उठाया जा सके। सर्वप्रथम यह कीट सन् 2015 में अमेरिका में मक्का, धान एवं गन्ना पर पाया गया था एवंइनके अलावा इस कीट के परपोषी पौधे घास कुल के अन्य सदस्य भी हैं। सन् 2017 के अंत तक...

Agricultural Weather Forecasting and Crop Management किसी भी क्षेत्र का कृषि उत्पादन उस क्षेत्र विशेष में पाये जाने वाले बहुत से जैविक, अजैविक, भौतिक, सामाजिक व आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। मुख्यत: जैविक व अजैविक कारकों में मुख्य रूप से मौसमी तत्व, मिट्टी का स्वास्थय, जल संसाधन, फसलों के प्रकार व विभिन्न प्रजातियाँ, फसलों में होने वाली बीमारियाँ, कीट इत्यादि का प्रकोप आते है। सामाजिक व आर्थिक कारकों में कृषि प्रबन्धन को प्रभावित करने वाले कारक जैसे: कृषि लागत, संसाधनों का उपयोग, श्रमिकों की उपलब्धता, उर्वरक, रसायन, सिंचाई के जल की उपलब्धता, सरकारी नीतियाँ इत्यादि आते है। इन सभी उत्पादन के लिए जिम्मेदार कारकों में मौसमी कारक सबसे ऊपर आते है। मौसमी...

जैव संवर्धित किस्में एवं उनकी प्रमुख विशेषतायें  पोषक आहार मानव शरीर की सम्पूर्ण वृद्धि व विकास के लिए आवश्यक है| पोषक आहार नही मिलने से विभिन्न सूक्ष्म तत्वों की कमी शरीर को अनेक प्रकार से प्रभावित करती है जिसको सामान्य शब्दों में कुपोषण कहा जाता है| सम्पूर्ण विश्व में लगभग 2 बिलियन जनसंख्या अपुष्ट आहार से प्रभावित है जबकि 795 मिलियन जनसंख्या कुपोषण की शिकार है| भारत में 194.6 मिलियन जनसंख्या कुपोषित है जिनमे से 44% महिलायें अनीमिया से ग्रसित है, 5 वर्ष से कम उम्र के 38.4% बच्चे छोटे कद व 35.7% बच्चे कम वजन के है| जैव संवर्धित किस्मों का विकास कर कुपोषण की स्थिति से बचा जा सकता है|...

पादप उपचार (फाइटो रिमीडीएशन) - अपशिष्ट जल के कृषि में उपयोग करने के लिए एक समाधान  भारत के लिए अपशिष्ट जल का प्रबंधन विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में एक चुनौती बन गया है क्योंकि बुनियादी ढांचे के विकास ने जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण और शहरीकरण के साथ तालमेल नहीं बैठा पाया। परिणाम स्वरूप शहर की आवश्यकता पूरी करने में मीठे जल के संसाधनों पर भारी दबाव आ गया है। साथ ही जो अपशिष्ट जल उत्पन्न हो रहा है (जो की लगभग 70-80% ताजे पानी की आपूर्ति अपशिष्ट के रूप में वापस आता है ) जिससे निपटना और इसका प्रबंधन मुश्किल काम है। इस परिदृश्य के  निहितार्थ घरेलू , औद्योगिक और कृषि क्षेत्र...

चारे की पौष्टिकता बढाने हेतु महत्वपूर्ण घरेलु चारा उपचार विधियां पशुओं से अधिकतम दुग्ध उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। इन चारों को पशुपालक या तो स्वयं उगाता हैं या फिर कहीं और से खरीद कर लाता है। गायो को केवल सुखा चारा विशेषतौर से गेहू का सुखा चारा खिलाकर स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है। सूखे चारे में पोष्टिक तत्वों का अभाव रहता है । स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर से सम्बद्ध कृषि विज्ञान केन्द्र, पोकरण के डॉ रामनिवास ढाका,विषय विशेषज्ञ (पशुपालन) ने बताया की ऐसा चारा खिलाने से पशुओ में उर्जा व अन्य पोषक तत्वों की कमी आने लगती है...

उत्तराखण्ड में पारंपरिक फसल विविधता एवं इसका संरक्षण  उत्तराखंड राज्य मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है, तराई, भाभर और पहाड़ी, जिनमें से लगभग 86 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ है। राज्य की भौगोलिक स्थिति और विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र के कारण, राज्य के अधिकांश हिस्सों में निर्वाह-खेती होती है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में 60-70 प्रतिशत भोजन का उत्पादन यहां के छोटे किसानों द्वारा किया जाता है, जो पारंपरिक खेती का पालन करते हैं और स्थानीय बाजार में अधिशेष उपज बेचते हैं। यहां के किसान पारंपरिक तरीके से कई तरह की फसलों की खेती करते हैं, जिसमें मुख्य फसलें हैं जैसे मोटे अनाज (रागी, झुंगरा, कौणी, चीणा आदि), धान, गेहूं, जौ,...