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Application of Aeroponics in Seed Potato Production आलू एक वनस्पतिक रूप से पैदा होने वाली फसल हैं जिसके फलस्वरूप आलू के कंद विभिन्न वेक्टर प्रेषीत वायरल संक्रमणों से ग्रस्त हो जाते है, जो साल दर साल इसकी उत्पादकता को गंभीरता से प्रभावित करते हैं।  इसलिए लाभदायक उत्पादन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करना आवश्यक है। लेकिन, मुख्य रूप से विकासशील देशों में आलू के उत्पादन में गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता एक प्रमुख बाधा है। आलू के बीज उत्पादन के लिए पिछले पांच दशकों से भारत में " सीड प्लॉट तकनीक" पर आधारित पारंपरिक बीज उत्पादन तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। इसमें सभी प्रमुख विषाणुओं के लिए...

तितली मटर की खेेेेती, चराहगाह विकास हेतु एक उत्तम विकल्प तितली मटर (क्लाइटोरिया टेर्नेटा एल.) एक बहुउद्देशीय दलहनी कुल का पौधा है इसका चारा पशु पोषण के हिसाब से अन्य दलहनी कुल के पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ट एवं पाचनशील होता है। जिस कारण सभी प्रकार के पशुओं इसके चारे को बड़े चाव से खाते है। तितली मटर का तना बहुत पतला एवं मुलायम होता है, एवं इसमें पत्तियाँ चौड़ी एवं अधिक संख्या में होती है जिस कारण इसका चारा “हे” एवं “साइलेज” बनाने के लिए उपयुक्त माना गया है। अन्य दलहनी फसलों की तुलना में इसमें कटाई या चराई के बाद कम अवधि के भीतर ही पुनर्वृद्धि शुरू हों जाती...

Role of A1 and A2 cow Milk in Farmer’s Income गाय के दूध को प्रकृति का सबसे अच्छा भोजन माना गया है, जो उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है। दूध कैल्शियम और प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है। दूध हमारे लिए मूल और मुख्य भोजन है। गाय के दूध को माँ के दूध के बाद सबसे अच्छा स्रोत कहा जाता है। गाय के दूध के लाभों में आसान पाचन, विकासको बढ़ावा देना, कैल्शियम और आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करना शामिल है। गाय के दूध में 87.7% पानी, 4.9% लैक्टोज (कार्बोहाइड्रेट), 3.4% वसा, 3.3% प्रोटीन और 0.7% खनिज होते है । दूध में कुल...

गुणकारी फसल, राम तिल की खेती रामतिल इथोयोपिया, भारत और नेपाल में व्यापक रूप से उगाईं जाती है और मोंटाने, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान और वेस्ट इंडीज के कुछ हिस्सों में छोटे पैमाने पर लगाईं जाती है। रामतिल मुख्य रूप से आदिवासी किसानों द्वारा अपनी पारंपरिक फसल के रूप में उगाईं जाती है इसलिए अब तक यह उपेक्षित है। यद्यपि एक गौण तिलहन फसल मानी जाती है लेकिन यह इसकी तेल सामग्री, गुणवत्ता और क्षमता के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। रामतिल बीज प्रोटीन और फैटी एसिड में अत्यधिक समृद्ध है। यह लिनोलिक अम्ल का एक अच्छा स्रोत है और इसमें नियासिन, ओलिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, स्टीयरिक एसिड, राइबोफ्लेविन और एस्कॉर्बिक...

चारा फसलों पर जैव उर्वरक का उपयोग पिछले ५० सालो में कृषि क्षेत्र में फसलों के लिए रासायनिक उर्वरको का अधिक उपयोग किया गया है जिसके प्रभाव से मिटटी की उपजाऊ क्षमता में कमी, पौधों में पोषक तत्वों की ज्यादा मात्रा, पौधों में रोग तथा किटो का आना , फलिय पौधों में नोडूलेसन की कमी, मिटटी के जीवाणुओं में कमी और प्रदुषण हुआ है| जिसके कारण किसानो को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है | फसल की उत्पादकता कम हो गई है जिससे कि‍सानों की आमदनी कम हो गयी| ऐसी स्थिति में किसानो ने रासायनिक उर्वरक के बदले जैव उर्वरक का प्रयोग करना शुरू किया जो उनकी आशाओं पर खड़े...

राजस्थान में ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती खरीफ के अलावा जायद में भी बाजरा की खेती सफलतापूर्वक की जाने लगी है, क्योंकि जायद में बाजरा के लिए अनुकूल वातावरण जहॉ इसके दाने के रूप में उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है वहीं चारे के लिए भी इसकी खेती की जा रही है। बाजरे के दानो की पौष्टिक गुणवत्ता ज्वार से अधिक होती है इसमें लगभग 67-68 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 11-12 प्रतिशत प्रोटीन , 2.7 प्रतिशत खनिज लवण , 5 प्रतिशत वसा आदि पाए जाते है | भूमि की चुनाव :- बलुई दोमट या दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5-8.5 हो बाजरा के लिए अच्छी रहती है। व जीवांश वाली भूमि में बाजरा की खेती करने से...

सुथनी की खेती के लिए उन्नत तकनीक  सुथनी एक कन्दीय फसल है जिसे याम समूह में रखा गया है और यह डायसकोरेसी कुल के अंंर्तगत आती है। इसके पौधों पर छोटे छोटे काँटे पाये जाते हैं। इसे बहुत सारे नामों से जाना जाता है जैसे: - सुथनी, लेसर याम, पिंडालु या छोटा रतालु। इसमे स्र्टाच के साथ साथ बहुत सारे सूक्ष्म तत्व भी पाये जाते है जो मनुष्य के शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी होते है। बिहार प्रदेश में इस फसल की मांग छठ पर्व के अवसर पर बढ़ जाती है जिसे लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस फसल की खेती गर्म एवं आर्द्र जलवायु में की जाती है,...

जलीय कृषि‍ के लि‍ए मत्स्य आहार का चयन एवं भंडारण  जलकृषि में जलीय संवर्धन के विभिन्न तरीकों से मत्स्य उत्पादन की बढ़ती हुई क्षमता को देखते हुए मत्स्य किसानों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले संतुलित मतस्‍य आहार की काफी आवश्यकता है। जलकृषि‍ से विश्व मत्स्य उत्पादन जो ९० के दशक में लगभग १५.२ मिलियन टन था आज बढ़कर लगभग  ६३.६ मिलियन टन हो गया है (एफ.ए.ओ. ,२०१२)। विश्व मत्स्य उत्पादन में आये इस वृद्धि का मुख्य कारण जलकृषि में उत्‍तम मत्स्य आहार का इस्तेमाल है । मछलियों की उत्तम वृद्धि एवं आर्थिक रूप से पालन को सफल बनाने हेतु आहार खिलाने के तौर- तरीके एवं इसकी आवृति बहुत ही महत्वपूर्ण है । मछलियों...