Author: rjwhiteclubs@gmail.com

Types of Soil Found in India सर्वप्रथम १८७९ ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया। भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है: जलोढ़ या कछार मिट्टी (Alluvial soil), काली  या रेगुर मिट्टी (Black soil), लाल मिट्टी (Red soil), लैटराइट मिट्टी (Laterite) तथा मरु मिट्टी (desert soil)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है: जलोढ़ मिट्टी  (Alluvial soil), काली मिट्टी (Black soil), लाल एवं पीली मिट्टी (Red & Yello soil), लैटराइट मिट्टी (Laterite), शुष्क मृदा (Arid soils), लवण मृदा (Saline soils), पीटमय तथा जैव मृदा (Peaty & Organic soils) , वन मृदा (Forest soils) जल को अवषोषण करने की क्षमता सबसे अधिक दोमट मिट्टी...

मुख्य दलहनी फसल चने की खेती चना बिहार के मुख्य दलहनी फसल है। इसकी खेती रबी के मौसम में होती है। चना की  बिहार में 58 हजार हे0 क्षेत्र में खेती की जाती है एवं इसकी औसत उत्पादकता 1015 किलोग्राम प्रति हे0 है। चना प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत है। इसके उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि लाकर कुपोषण की समस्या के समाधान में भी चना महत्वपुर्ण योगदान करने में समर्थ है। उन्नत किस्मों का चयन, ससमय बुआई, उन्नत तकनीक वाली सस्य क्रियाओं का उपयोग, राइजोबियम कल्चर एवं पी0एस0बी0से बीजोपचार, समुचित उर्वरता प्रबंधन, कीट ब्याधि एवं खरपतवार प्रबंधन तथा आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई सेे इसकी उत्पादकता में दुगूनी तक वृद्धि लायी जा सकती है। चना उगाने के...

 लोकप्रिय दलहनी फसल मसूर की खेती  मसूर बिहार की बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है तथा इसका कुल क्षेत्रफल 1.71 लाख हे0 एवं औसत उत्पादकता 880 किलोग्राम/हे0 है। मसूर की खेती, भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने मेें सहायक होती है। असिंचित क्षेत्रों के लिए अन्य रबी दलहनी फसलाेें की उपेक्षा मसूर अधिक उपयुक्त हैं। मसूर उगाने के लि‍ए मि‍ट्टी- दोमट मिट्टी मसूर के लिए सर्वोतम पायी जाती है। मिट्टी भुरभूरी होना आवश्यक है। इसलिए 2-3 बार देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताई कर ऐसी अवस्था प्राप्त किया जा सकती है। उन्नत प्रभेद या प्रजाति‍यॉं: ऽ     छोटे दाने वाले प्रजातियाँ: पी.एल.-406, पी.एल. 639, एच.यु.एल. 57 ऽ     बड़े दाने वाले प्रजातियाँ: अरूण, मल्लिका, आई.पी.एल.406 ऽ     अन्य प्रभेद: शिवालिक,...

जलीय कृषि में एंटीबायोटिक दवाईयों का महत्‍व  जलीय जीवों में बहुत प्रकार की बीमारियाँ पाई जाती है। मछलियाँ बहुत ही सवेदनशील होती है जिसके कारण मछलियों में बहुत जल्दी जीवाणुओं का संक्रमण हो जाता है जिससे मछलियाँ कमजोर हो जाती है और कई बार बहुत सी मछलियाँ मर भी जाती है । इससे  किसानो की उत्पादकता में कमी आति है और जितना लाभ मिलना चाहिए उतना  नहीं मिल पाता है । बीमारि‍यों से होने वाली हानि को रोकने अथवा कम करने के लिए मछलियों में कोई बीमारी आने पर कुछ प्रतिजैविक का उपयोग कि‍या जा सकता है और मछलियों का बहेतर उत्पादन करके अधि‍क लाभ कमाया जा सकता है| प्रतिजैविक दवाऐं या एंटीबायोटिक्स (Antibiotics)...

Importance of Bounding in Soil and Water Conservation मेढ़ बंधीकरण (बंडिंग) सीमांत, ढलान एवं पहाड़ी भूमि के लिए एक पारंपरिक, कम लागत वाला ,सरल भूमि प्रबंधन अभ्यास है । यह तकनीक  मृदा - अपरदन को नियंत्रित करने, जल प्रतिधारण को बढ़ाने एवं फसल उत्पादन में वृद्धि हेतु सफलतापूर्वक उपयोग की जाती है। मेढ़ (बंड) एक मिट्टी की तटबंध है जिसे ढलान को नियंत्रित करने के लिए बनाया जाता है, एवं ढलान की लंबाई को कम करके मृदा-अपरदन को कम किया जाता है। यह मृदा-अपरदन को नियंत्रित करने के लिए एक यांत्रिक / अभियांत्रिकीय विधि है। इस अभियांत्रिकीय उपाय में मुख्य रूप से ढलान वाली भूमि सतह का संशोधन करके बहते हुए जल को...

अगेती फूलगोभी में उत्तम पौध उत्पादन की तकनीकी  फूलगोभी जाड़े के मौसम में उगायी जाने वाली एक प्रमुख सब्जी फसल है। यह विभिन्न पोषक तत्वों (पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि) और जैव-सक्रिय पदार्थो (ग्लूकोसिनोलेट्स) की एक प्रमुख स्त्रोत है। यह पाया गया है कि कुछ ग्लूकोसिनोलेट्स कैंसर से बचाने में सहायक हैं। भारत में फूलगोभी खेती 452 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती हैं और उत्पादन 8499 हजार मीट्रिक टन हैं। अगेती फसल की पैदावार तो थोड़ी कम होती हैं लेकिन अधिक बाजार भाव, कम फसल अवधि और मौजूदा फसल प्रणाली में उत्तम समावेश होने के कारण इसकी लोकप्रियता किसानों में निरंतर बढ़ती जा रही हैं। अगेती फूलगोभी की नर्सरी उगाना एक कठिन कार्य...

Soil Testing and Balanced Nutrient Management is a must for Higher Yield पौधों की बढ़वार के लिये प्रमुख रूप से 16 विभिन्न पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिसमें से 03 पोषक तत्व कार्बन, हाईड्रोजन तथा आक्सीजन पौधे वायुमण्डल एवं जल से ग्रहण करते हैं। शेष 13 पोषक तत्व जैसे नत्रजन, स्फुर, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर एवं सूक्ष्म तत्व - आयरन, कापर, जिंक, मैंगनीज,बोरान, क्लोरीन एवं मालीब्डेनम पौधे को भूमि से प्राप्त होता है। इसमें से किसी भी तत्व की कमी या अधिकता होने पर फसल की वृद्धि एवं उत्पादकता प्रभावित होती है। एक तत्व की कमी या अधिकता दूसरे तत्व के अवशोषण पर भी प्रभाव डालता है। इसी तरह मिट्टी की...

विलक्षण गुण सम्पन्न दलहनी फसल अरहर की खेती  अरहर की दाल को तुवर भी कहा जाता है। जो खरीफ की फसल के साथ बोई जाती है।इसकी हरी पत्तियां पशुओं के चारे के रूप में खिलाई जाती है तथा फसल के पकने पर इसकी लकड़ी ईधन के रूप में काम आती है। इसमें खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसके दानों के ऊपर का छिलका पशुओं के खिलाने के काम आता है। दलहन प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है जिसको आम जनता भी खाने में प्रयोग कर सकती है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। यदि प्रोटीन की उपलब्धता बढ़ानी है तो दलहनों का...

Management strategies during disaster in livestock perspective आपदा प्रबंधन प्रणालियों के महत्व संदर्भ मेंविकासशील देश जागरूक हो रहे हैं, और सभी स्तरों पर तैयारी, प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य लाभ तंत्र को सुव्यवस्थित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। यह अच्छी तरह से जाना जाता है कि भारत सहित कई विकासशील देश हमेशा आपदाओं से निपटने के लिए तैयार नहीं रहते हैं। विकसित तरह से आपदा प्रबंधन योजनाओं की कमी के परिणामस्वरूप मानव जीवन, पशु जीवन और संपत्ति का गंभीर नुकसान हुआ है, जो आवश्यक तंत्रों के स्थान पर बचाया जा सकता है। विशेष रूप से पशुऔं कि स्थिति में सुधार के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। भारत में पशुधन...

केंचुआ खाद, जैविक कृषि के लिए एक जरूरी सामग्री  वर्तमान परिदृश्य में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी में जीवांश कार्बन का स्तर लगातार कम हो रहा है, तथा कृषि रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा जीव भी नष्ट होते जा रहे हैं। अतः भविष्य में मृदा उर्वरता को संरक्षित रखनेे तथा इसकी निरन्तरता को बनाये रखने के लिए जीवांश खाद उपयोग को बढ़ावा देने की नितान्त आवश्यकता है। जीवांश खादों में वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) का विशिष्ट स्थान है, क्योंकि इसे तैयार करने की विधि सरल एवं गुणवत्ता काफी अच्छी होती है। केंचुआ खाद जैविक कृषि के लिए एक प्राचीन एवं उत्तम जैविक खाद है। पूरे विश्व में केंचुए की लगभग 3000...